"अनागारिक धर्मपाल" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''अनागारिक धर्मपाल''' एक प्रसिद्ध बौद्ध [[...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{बौद्ध धर्म}}
 
{{बौद्ध धर्म}}
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:चरित कोश]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
+
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:चरित कोश]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

12:25, 18 मार्च 2015 का अवतरण

अनागारिक धर्मपाल एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु था। उसका जन्म लंका में 17 सितंबर, 1864 ई. को हुआ था। उसके पिता का नाम डान करोलिंस हेवावितारण तथा माता का नाम मल्लिका था।

  • पहले अनागारिक धर्मपाल का नाम 'डान डेविड' रखा गया था। शिक्षा काल से ही उनको ईसाई स्कूलों में पढ़ने, यूरोपीय रहन-सहन और विदेशी शासन से घृणा हो गई थी।[1]
  • शिक्षा की समाप्ति पर उसने प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान भदंत हिवकडुवे श्रीसुमंगल नामक महास्थविर से पालि भाषा की शिक्षा और बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तथा अपना नाम बदलकर 'अनागरिक (संन्यासी) धर्मपाल' रख लिया।
  • अनागारिक धर्मपाल ने सार्वजनिक प्रचार कार्य के लिए एक मोटर बस को घर बनाया और उसका नाम 'शोभन मालिगाँव' रखकर गाँव-गाँव घूमकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा बौद्ध धर्म का संदेश दिया।
  • प्रथम महायुद्ध के समय ये पाँच वर्षों के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में नजरबंद कर दिए गए थे।[1]
  • महाबोधि सभा (महाबोधि सोसायटी) अनागारिक धर्मपाल के ही प्रयत्न से स्थापित हुई थी।
  • मेरी फास्टर नामक एक विदेशी महिला ने इनसे प्रभावित होकर महाबोधि सोसायटी के लिए लगभग पाँच लाख रुपए दान दिए थे।
  • धर्मपाल के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप उनके निधनोपरांत राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के हाथों बौद्ध गया को वैशाख पूर्णिमा, संवत 2012 अर्थात्‌ 6 मई, सन 1955 को बौद्धों को दे दिया गया।
  • 13 जुलाई, 1931 को अनागारिक धर्मपाल ने प्रवज्या ली और उनका नाम 'देवमित धर्मपाल' हुआ।
  • 1933 की 16 जनवरी को प्रवज्या पूर्ण हुई और उन्होंने उपसंपदा ग्रहण की, तब उनका नाम पड़ा 'भिक्षु श्री देवमित धर्मपाल'।
  • 29 अप्रैल, 1933 को 69 वर्ष की आयु में अनागारिक धर्मपाल ने इहलीला संवरण की। उनकी अस्थियाँ पत्थर के एक छोटे-से स्तूप में 'मूलगंध कुटी विहार' के पार्श्व में रख दी गई।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 अनागारिक धर्मपाल (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2015।

संबंधित लेख