इंद्रभूति

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इंद्रभूति तांत्रिक बौद्ध आचार्य और अनंगवज्र के शिष्य। इसकी पुष्टि कार्डियर की तेंजुर की सूची से होती है। दूसरे तिब्बती स्रोतों से इंद्रभूति 747 ई. में तिब्बत जाने वाले गुरु पद्मसंभव के पिता थे। इन्हीं पद्मसंभव ने अपने साले शांतिरक्षित के साथ तिब्बत के प्रसिद्ध विहार साम्ये की स्थापना ओदंतपुरी विहार के अनुकरण पर की थी। इस आधार पर इंद्रभूति का समय लगभग 717 ई. निश्चित किया जा सकता है, ऐसा डा. विनयतोष भट्टाचार्य का मत है। इनके गुरु अनंगवज्र पद्मवज्र या सरोजवज्र अथवा सरोरुहवज्र के शिष्य थे। इस प्रकार इंद्रभूति आदिसिद्ध सरहपाद की महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध शिष्यपरंपरा की तीसरी पीढ़ी में थे। भगवती लक्ष्मींकरा, जिनकी गणना, 84 सिद्धों में की जाती है, इंद्रभूति की छोटी बहन थीं और शिष्या भी। तेंजुर में इंद्रभूति को महाचार्य, उड्डीयानसिद्ध, आचार्य अवधूत आदि विशेषणों के साथ स्मरण किया गया है। इन्हें उड्डीयन का राजा ही कहा गया है। डा. विनयतोष भट्टाचार्य ने तेंजुर से इनके 22-23 ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की है। इनकी 'ज्ञानसिद्धि' नामक तांत्रिक बौद्ध पुस्तक संस्कृत में लिखित है और प्रकाशित हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 502 |

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