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*यहीं से तीन महावीरों की मूर्तियां मिली थीं जो अब मथुरा-संग्रहालय में सुरक्षित हैं।  
 
*यहीं से तीन महावीरों की मूर्तियां मिली थीं जो अब मथुरा-संग्रहालय में सुरक्षित हैं।  
 
*एक अभिलिखित ईट भी मोरा से प्राप्त हुइ थी जो मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है जिससे ज्ञात होता है कि जिस भवन में यह ईंट लगी थी उसे बृहस्पतिमित्र की पुत्री राजभार्या यशोमती ने बनवाया था।  
 
*एक अभिलिखित ईट भी मोरा से प्राप्त हुइ थी जो मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है जिससे ज्ञात होता है कि जिस भवन में यह ईंट लगी थी उसे बृहस्पतिमित्र की पुत्री राजभार्या यशोमती ने बनवाया था।  
*यह [[बृहस्पतिमित्र]] वहीं [[शुंग वंश|शुंग-वंशीय]] नरेश जान पड़ता है जिसके सिक़्क़े [[कौशांबी]] तथा [[अहिच्छत्र]] में प्राप्त हुए थे। यशोमती का विवाह मथुरा के किसी राजा से हुआ होगा।
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*यह [[बृहस्पतिमित्र]] वहीं [[शुंग वंश|शुंग-वंशीय]] नरेश जान पड़ता है जिसके सिक्के [[कौशांबी]] तथा [[अहिच्छत्र]] में प्राप्त हुए थे। यशोमती का विवाह मथुरा के किसी राजा से हुआ होगा।
 
*मोरा से क्षत्रप रंजुबल का भी अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें इसे [[महाक्षत्रप]] कहा गया है। इसका समय प्रथम शती ई. है।  
 
*मोरा से क्षत्रप रंजुबल का भी अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें इसे [[महाक्षत्रप]] कहा गया है। इसका समय प्रथम शती ई. है।  
 
*शकक्षत्रपों के इन अभिलेखों से सिद्ध होता है कि मथुरा पर प्रथम-द्वितीय शती ई. में [[शक|शकों]] का प्रभुत्व था।
 
*शकक्षत्रपों के इन अभिलेखों से सिद्ध होता है कि मथुरा पर प्रथम-द्वितीय शती ई. में [[शक|शकों]] का प्रभुत्व था।

11:05, 3 मार्च 2013 का अवतरण

  • मोरा गाँव ज़िला मथुरा, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
  • मोरा ग्राम से महाक्षत्रप शोडास[1] के समय का एक शिला पट्ट लेख प्राप्त हुआ था जो मथुरा के संग्रहालय में है। इससे ज्ञात होता है कि इस ग्राम में तोषा नामक किसी स्त्री ने एक मंदिर बनवाकर पंचवीरों की मूर्तियां स्थापित की थीं।
  • डॉ. ल्यूडर्स के मत में इस लेख में जिन पंचवीरों का उल्लेख है वे कृष्ण, बलराम आदि यदुवंशीय योद्धा थे।
  • लेख उच्चकोटि की संस्कृत में है और छंद भुजंगप्रयात है।
  • इसी ग्राम से एक स्त्री की मूर्ति भी प्राप्त हुई है जो ल्यूडर्स के मत में तोषा की है।
  • यहीं से तीन महावीरों की मूर्तियां मिली थीं जो अब मथुरा-संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
  • एक अभिलिखित ईट भी मोरा से प्राप्त हुइ थी जो मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है जिससे ज्ञात होता है कि जिस भवन में यह ईंट लगी थी उसे बृहस्पतिमित्र की पुत्री राजभार्या यशोमती ने बनवाया था।
  • यह बृहस्पतिमित्र वहीं शुंग-वंशीय नरेश जान पड़ता है जिसके सिक्के कौशांबी तथा अहिच्छत्र में प्राप्त हुए थे। यशोमती का विवाह मथुरा के किसी राजा से हुआ होगा।
  • मोरा से क्षत्रप रंजुबल का भी अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें इसे महाक्षत्रप कहा गया है। इसका समय प्रथम शती ई. है।
  • शकक्षत्रपों के इन अभिलेखों से सिद्ध होता है कि मथुरा पर प्रथम-द्वितीय शती ई. में शकों का प्रभुत्व था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 80-57 ई. पू.

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