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विवरण | आ देवनागरी वर्णमाला का दूसरा स्वर है। |
भाषाविज्ञान की दृष्टि से | कण्ठ्य, दीर्घ ('अ' का दीर्घ रूप), मध्य, अवृत्तमुखी तथा अर्धविवृत स्वर है और 'घोष' ध्वनि है। |
अनुनासिक रूप | आँ (जैसे- आँख, आँगन) |
मात्रा | 'ा' (जैसे- का, ता, पा इत्यादि) |
व्याकरण | [ संस्कृत (धातु) आप्+क्विप् पृषो. प-लोप ] पुल्लिंग- शिव, महादेव; स्त्रीलिंग- लक्ष्मी, रमा। |
संबंधित लेख | अ, इ, ई, ओ, औ |
अन्य जानकारी | तत्सम क्रियार्थक संज्ञाओं के पहले लगकर विविध अर्थ देता है। जैसे- राधन > आराधन, लोचन > आलोचन, कलन > आकलन |
आ देवनागरी वर्णमाला का दूसरा स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कण्ठ्य, दीर्घ ('अ' का दीर्घ रूप), मध्य, अवृत्तमुखी तथा अर्धविवृत स्वर है और 'घोष' ध्वनि है।
- विशेष-
- 'आ' का अनुनासिक रूप 'आँ' है (जैसे- आँख, आँगन)।
- 'आ' स्वर की मात्रा खड़ी रेखा 'ा' है जो व्यंजन के दाहिनी ओर लगती है (जैसे- का, ता, पा इत्यादि)
- [संस्कृत (धातु) आप्+क्विप् पृषो. प-लोप] पुल्लिंग- शिव, महादेव; स्त्रीलिंग- लक्ष्मी, रमा।
- 'आ' एक उपसर्ग भी है जो संस्कृत तत्सम शब्दों में जुड़कर अनेक अर्थ देता है-
- पर्यन्त/तक (जैसे- आमरण)
- आदि से अन्त तक या भर (जैसे- आजीवन)
- अन्दर सब स्थानों पर व्याप्त या अन्दर तक (जैसे- आपाताल)
- सहित (जैसे- आबालवृद्ध)
- विपरीत, उलटा या विलोम (जैसे- आगत)
- ओर/तरफ़ (जैसे- आकर्षण)
- तत्सम क्रियार्थक संज्ञाओं के पहले लगकर विविध अर्थ देता है (जैसे- राधन > आराधन, लोचन > आलोचन, कलन > आकलन)[1]
'आ' से कुछ शब्द
आ की मात्रा ा का प्रयोग
क + ा = का |
ख + ा = खा |
ग + ा = गा |
घ + ा = घा |
ड़ + ा = ड़ा |
च + ा = चा |
छ + ा = छा |
ज + ा = जा |
झ + ा = झा |
ञ + ा = ञा |
ट + ा = टा |
ठ + ा = ठा |
ड + ा = डा |
ढ + ा = ढा |
ण + ा = णा |
त + ा = ता |
थ + ा = था |
द + ा = दा |
ध + ा = धा |
न + ा = ना |
प + ा = पा |
फ + ा = फा |
ब + ा = बा |
भ + ा = भा |
म + ा = मा |
य + ा = या |
र + ा = रा |
ल + ा = ला |
व + ा = वा |
श + ा = शा |
ष + ा = षा |
स + ा = सा |
ह + ा = हा |
क्ष + ा = क्षा |
त्र + ा = त्रा |
ज्ञ + ा = ज्ञा |
आ देवनागरी वर्णमाला का द्वितीय अक्षर।
- 1. विस्मयादिद्योतक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है-
- (क) स्वीकृति 'हाँ'
- (ख) दया 'आह'
- (ग) पीड़ा या खेद (बहुधा-आस् या आः लिखा जाता है) 'हा 'हंत'
- (घ) प्रत्यास्मरण 'अहो-ओह' आ एवं किलासीत्[2]
- (च) कई बार केवल अनुपूरक के रूप में प्रयुक्त होता है-आ एवं मन्यसे
- 2. (संज्ञा और क्रियाओं के उपसर्ग के रूप में)
- (क) 'निकट' 'पार्श्व' 'की ओर' 'सब ओर से' 'सब और' (कुछ क्रियाओं को देखो)
- (ख) गत्यर्थक नयनार्थक, तथा स्थानान्तरणार्थक क्रियाओं से पूर्व लगकर विपरीतार्थ का बोध कराता है-यथा गम्-जाना, आगम्-आना, दा-देना, आदा-लेना
- 3. (अपा. के साथ वियुक्त निपात के रूप में प्रयुक्त होकर) निम्नांकित अर्थ प्रकट करता हैः-
- (क) आरम्भिक सीमा, (अभिविधि), 'से', 'से लेकर' 'से दूर' 'में से'-आमूलात् श्रोतु-मिच्छामि[3], आ जन्मनः[4]
- (ख) पृथक्करणीय या उपसंहारक सीमा (मर्यादा) को प्रकट करता है-'तक' 'जब तक कि नहीं' 'यथाशक्ति' 'जब तक कि'-आ परितोषाद्विदुषां[5],-कैलासात्[6], कैलास तक
- (ग) इन दोनों अर्थों को प्रकट करने में 'आ' या तो अव्ययीभाव समास में अथवा सामाजिक विशेषण का रूप धारण कर लेता है।[7]
इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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