ग
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ग
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विवरण | ग देवनागरी वर्णमाला में कवर्ग का तीसरा व्यंजन होता है। |
भाषाविज्ञान की दृष्टि से | यह कंठ्य, घोष, अल्पप्राण और स्पर्श है। इसका महाप्राण रूप ‘घ’ है। |
व्याकरण | [ संस्कृत गै+क ] पुल्लिंग- गणेश, गंधर्व, गीत (छ्न्द) गुरु वर्ण का संकेताक्षर, (संगीत) गांधार स्वर का संक्षिप्त रूप। |
विशेष | ‘ग’ के पहले आए ‘ङ्’ का सन्युक्त रूप ङ्ग बनता है (अङ्ग, भङ्गी) जिसे मुद्रण आदि की सुविधा के लिये ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर बिन्दी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है। |
संबंधित लेख | क, ख, घ, ङ |
अन्य जानकारी | ‘ग’ व्यंजन अपने बाद आने वाले व्यंजनों से मिलने पर प्राय: अपनी खड़ी रखा छोड़कर सन्युक्त रूप बनाता है [ग्ण (रूग्ण), ग्ध (दुग्ध), ग्न (भग्न), ग्म (युग्म), ग्य (आरोग्य)] परंतु ‘र’ के साथ उसका सन्युक्त रूप ‘ग्र’ (समग्र, अग्र, ग्राम, ग्रीवा) ध्यान देने योग्य है। |
ग देवनागरी वर्णमाला में कवर्ग का तीसरा व्यंजन होता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कंठ्य, घोष, अल्पप्राण और स्पर्श है। इसका महाप्राण रूप ‘घ’ है।
- विशेष-
- ‘ग’ व्यंजन अपने बाद आने वाले व्यंजनों से मिलने पर प्राय: अपनी खड़ी रखा छोड़कर सन्युक्त रूप बनाता है [ग्ण (रूग्ण), ग्ध (दुग्ध), ग्न (भग्न), ग्म (युग्म), ग्य (आरोग्य)] परंतु ‘र’ के साथ उसका सन्युक्त रूप ‘ग्र’ (समग्र, अग्र, ग्राम, ग्रीवा) ध्यान देने योग्य है।
- ‘ग’ के पहले आए ‘ङ्’ का सन्युक्त रूप ङ्ग बनता है (अङ्ग, भङ्गी) जिसे मुद्रण आदि की सुविधा के लिये ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर बिन्दी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है (अंग, तंगी) परन्तु ‘ग’ के पहले आए ‘र्’ का सन्युक्त रूप ‘र्ग’ ध्यान देने योग्य है (वर्ग, सर्ग)।
- [ संस्कृत गै+क ] पुल्लिंग- गणेश, गंधर्व, गीत (छ्न्द) गुरु वर्ण का संकेताक्षर, (संगीत) गांधार स्वर का संक्षिप्त रूप।
- कुछ शब्दों के अंत में प्रत्यय की तरह जुड़कर समस्त (समासयुक्त) शब्द बनाने के लिए भी ‘ग’ प्रयुक्त होता है। जैसे- आशु+गामी, आशुग।[1]
ग की बारहखड़ी
ग | गा | गि | गी | गु | गू | गे | गै | गो | गौ | गं | गः |
ग अक्षर वाले शब्द
- गमला
- गगन
- गणगौर
- गणना
- गमन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 718
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