ऋ
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ऋ
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| विवरण | ऋ देवनागरी वर्णमाला का सातवाँ स्वर है। |
| भाषाविज्ञान की दृष्टि से | यह मूर्धन्य, ह्रस्व, अग्र, अवृत्तमुखी, स्वर है तथा घोष ध्वनि है। |
| अनुनासिक रूप | ‘ऋ’ का अनुनासिक रूप नहीं होता। |
| मात्रा | ृ (जैसे- कृ, गृ, मृ, पृ) |
| व्याकरण | [ संस्कृत ऋ+क्विप् ] स्त्रीलिंग (देव-माता) अदिति, निंदा, उपहास। |
| संबंधित लेख | अ, आ, ई, ओ, औ, ऊ, ए, ऐ, अं, अ: |
| अन्य जानकारी | सामान्य हिंदी भाषी ‘ऋ’ को ‘र’ के समान ही बोलता है। फिर भी, ऋ-युक्त संस्कृत तत्सम शब्द हिंदी में अपने मूल रूप में ही लिखे जाते हैं और लिखे भी जाने चाहिए। |
ऋ देवनागरी वर्णमाला का सातवाँ स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, ह्रस्व, अग्र, अवृत्तमुखी, स्वर है तथा घोष ध्वनि है।
- विशेष-
- ‘ऋ’ का अनुनासिक रूप नहीं होता।
- ‘ऋ’ का दीर्घ रूप ‘ऋ’ है जो हिंदी के शब्दों में नहीं, संस्कृत के कुछ शब्दों में ही प्रयुक्त होता है।
- ऋ की मात्रा 'ृ' व्यंजनों के नीचे जुड़कर लगती है (जैसे- कृ, गृ, मृ, पृ)। ‘र’ में ‘ऋ’ की मात्रा नहीं लगती।
- ‘ऋ’ का उच्चारण कुछ संस्कृतज्ञों में ही विशिष्ट रूप से मिलता है। सामान्य हिंदी भाषी ‘ऋ’ को ‘र’ के समान ही बोलता है। फिर भी, ऋ-युक्त संस्कृत तत्सम शब्द हिंदी में अपने मूल रूप में ही लिखे जाते हैं और लिखे भी जाने चाहिए।
- ‘ऋ’ के शुद्ध उच्चारण के सम्बंध में संस्कृत-विद्वानों में भी मतभेद हैं। मराठी-भाषी ‘ऋ’ का उच्चारण ‘रु’ से मिलता-जुलता करते हैं।
- [ संस्कृत ऋ+क्विप् ] स्त्रीलिंग (देव-माता) अदिति, निंदा, उपहास।[1]
ऋ अक्षर वाले शब्द
ऋ की मात्रा ृ का प्रयोग
| क + ृ = कृ |
| ख + ृ = खृ |
| ग + ृ = गृ |
| घ + ृ = घृ |
| च + ृ = चृ |
| छ + ृ = छृ |
| ज + ृ = जृ |
| झ + ृ = झृ |
| ट + ृ = टृ |
| ठ + ृ = ठृ |
| ड + ृ = डृ |
| ढ + ृ = ढृ |
| त + ृ = तृ |
| थ + ृ = थृ |
| द + ृ = दृ |
| ध + ृ = धृ |
| न + ृ = नृ |
| प + ृ = पृ |
| फ + ृ = फृ |
| ब + ृ = बृ |
| भ + ृ = भृ |
| म + ृ = मृ |
| य + ृ = यृ |
| ल + ृ = लृ |
| व + ृ = वृ |
| श + ृ = शृ |
| ष + ृ = षृ |
| स + ृ = सृ |
| ह + ृ = हृ |
| क्ष + ृ = क्षृ |
| ज्ञ + ृ = ज्ञृ |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 452
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