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विवरण देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का पाँचवाँ व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य व्यंजन है।
व्याकरण पुल्लिंग- शुक्र, वृष, बैल, संगीत, गायन, तेढ़ी-मेढ़ी चाल, घर्घर शब्द।
विशेष 'ञ' से हिंदी शब्दों का आरम्भ या अंत नहीं होता। परंतु यह महत्त्वपूर्ण ध्वनि है और अनेक भाषाओं में इसका प्रचुर प्रयोग होता है और हिंदी शब्दों में, बीच में, 'ञ' प्रयुक्त होता है।
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अन्य जानकारी चवर्ग के व्यंजनों से पूर्व आकर 'ञ' उनसे संयुक्त अक्षर बनाता है। जैसे- चञ्चल, वाच्छा, रञ्जन, सञ्झा इत्यादि। 'ञ्ञ' व्यंजन-गुच्छ वाले शब्द नहीं हैं।

देवनागरी वर्णमाला में चवर्ग का पाँचवाँ व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, स्पर्श, घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य व्यंजन है।

विशेष
  • 'ञ' से हिंदी शब्दों का आरम्भ या अंत नहीं होता। परंतु यह महत्त्वपूर्ण ध्वनि है और अनेक भाषाओं में इसका प्रचुर प्रयोग होता है और हिंदी शब्दों में, बीच में, 'ञ' प्रयुक्त होता है।
  • चवर्ग के व्यंजनों से पूर्व आकर 'ञ' उनसे संयुक्त अक्षर बनाता है। जैसे- चञ्चल, वाच्छा, रञ्जन, सञ्झा इत्यादि। 'ञ्ञ' व्यंजन-गुच्छ वाले शब्द नहीं हैं।
  • ज्‌ और ञ का संयुक्त रूप 'ज्‌ञ' 'ज्ञ' (अज्ञ, ज्ञान, विज्ञापन) लिखा जाता है।
  • 'ज्ञ' (अर्थात् ज्ज्ञ) का अशुद्ध उच्चारण हिंदी भाषी प्राय: 'ग्य' करते हैं। उदारणार्थ, 'ज्ञान' का शुद्ध उच्चारण 'ज्‌ञान' होना चाहिए परंतु शताब्दियों से इसे 'ग्यान' बोला जाता रहा है।
  • 'ञ' के स्थान पर प्राय: अनुस्वार जैसी बिंदी का प्रयोग सुविधा के लिए प्रचलित है (जैसे- चंचल, वांछा, रंजन, संझा इत्यादि में) परन्तु इसे अनुस्वार समझने का भ्रम हो सकता है।
  • पुल्लिंग- शुक्र, वृष, बैल, संगीत, गायन, तेढ़ी-मेढ़ी चाल, घर्घर शब्द।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 1048

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