आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट वर्ष 2012

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दादू की इन पंक्तियों में सामाजिक जीवन भी व्यक्त हो गया है। इससे तत्कालीन राज्य व्यवस्था में जनता की अशक्ति प्रकट होती है। वह मानते हैं कि अपनी चिन्ता स्वयं करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसका फल हानिकारक है। अतः दादू कहते हैं कि आदमी को अनुत्पादक चिन्ता नहीं करनी चाहिये। उस युग के भक्तों और संतों ने यह अनुभवपरक निष्कर्ष निकाला था कि आदमी को अपने भोजन-पानी की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। वह तो मिल ही जायेगा। इससे अधिक सम्पत्ति संचित करने की इच्छा मनुष्य को निरन्तर कष्ट देती है। वह सम्पत्ति संचय तो नहीं कर पाता, उल्टे अपने भोजन से ही हाथ धो बैठता है। अतः संतोष धारण करके आदमी को राम का नाम लेते रहना चाहिये। अपने समय के समाज का सर्वेक्षण करते हुए दादू ने कहा है—
दादू सब जग नीधना, धनवंता नहीं कोई।
सो धनवंता जाणिय, जाकै राम पदारथ होई।।

27 दिसंबर, 2012

मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग का कथन है कि ‘नज़ीर’ आठ भाषाएँ जानते थे - अरबी, फ़ारसी, उर्दू, पंजाबी, ब्रजभाषा, मारवाड़ी, पूरबी और हिन्दी। नज़ीर ने अपनी शायरी सीधी-सादी उर्दू में आम जनता के लिए की। उस ज़माने में इल्मो-अदब शाही दरबारों में पलती-पनपती थी, पर नज़ीर ही एक ऐसे शायर हैं जिन्होंने अपने आप को दरबारों से दूर रखा। नवाब सादत अली खां ने उन्हें लखनऊ बुलवाया और भरतपुर के नवाब ने उन्हें न्यौता भेजा, पर न उन्हें अकबराबाद छोड़ना था न उन्होंने आगरा छोड़ा।
नज़ीर एक धर्मनिरपेक्ष शायर थे।
उन्होंने तो कृष्ण के गुण भी गाए--
तारीफ़ करूँ अब मैं क्या उस मुरली बजैय्या की
नित सेवा कुंज फिरैया की और बन बन गऊ-चरैया की
गोपाल, बिहारी, बनवारी, दुखहरना, मेल करैया की
गिरधारी, सुंदर, श्याम बरन और हलधर जू के भैया की
यह लीला है उस नंद-ललन, मनमोहन, जसुमति-छैया की
रख ध्यान सुनो दंडौत करो, जय बोलो किशन कन्हैया की॥

26 दिसंबर, 2012

अब्दुल कलाम के जीवन में इनकी माता का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इनकी माता ने 92 वर्ष की उम्र पाई। वह प्रेम, दया और स्नेह की प्रतिमूर्ति थीं। उनका स्वभाव बेहद शालीन था। इनकी माता पाँचों समय की नमाज़ अदा करती थीं। जब इन्हें नमाज़ करते हुए अब्दुल कलाम देखते थे तो इन्हें रूहानी सुकून और प्रेरणा प्राप्त होती थी।

15 अक्टूबर, 2012

कोणार्क शब्द, 'कोण' और 'अर्क' शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से रहा होगा। कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के क़रीब निर्मित है। इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह मूर्ति सूर्य मन्दिर की सबसे भव्य मूतियों में से एक है। सम्भवतया निर्माण सामग्री नदी मार्ग से यहाँ पर लाई गई। इसे मन्दिर के निकट ही तराशा गया। पत्थरों को स्थिरता प्रदान करने के लिए जंगरहित लोहे के क़ब्ज़ों का प्रयोग किया गया। इसमें पत्थरों को इस प्रकार से तराशा गया कि वे इस प्रकार से बैठें कि जोड़ों का पता न चले।

28 सितंबर, 2012

श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसी को श्राद्ध कहते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म में, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्घ्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है जिसे 'श्राद्ध' कहते हैं।

22 सितंबर, 2012

देवर्षि! जैसे अग्नि को प्रकट करने की इच्छा वाला पुरुष अरणीकाष्ठ का मन्थन करता है, उसी प्रकार इन कुटुम्बी-जनों का कटुवचन मेरे हृदय को सदा मथता और जलाता रहता है।
नारद जी! बड़े भाई बलराम में सदा ही असीम बल है; वे उसी में मस्त रहते हैं। छोटे भाई गद में अत्यन्त सुकुमारता है (अत: वह परिश्रम से दूर भागता है); रह गया बेटा प्रद्युम्न, सो वह अपने रूप-सौन्दर्य के अभिमान से ही मतवाला बना रहता है। इस प्रकार इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हूँ।

14 सितंबर, 2012

हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् 1991 ई. की जनगणना के अनुसार, 23.342 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 33.727 करोड़ लोग इसकी लगभग 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। इसकी कुछ बोलियाँ, मैथिली और राजस्थानी अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमांऊनी, मागधी और मारवाड़ी भाषा शामिल हैं।

14 सितंबर, 2012

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 सितम्बर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए तीन प्रमुख बातें कही थीं --

किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान् नहीं हो सकता।
कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।
भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए।

14 सितंबर, 2012

गजानन माधव मुक्तिबोध असमय ही मेंनन्जाइटिस की बीमारी के कारण अपनी काव्य की महानतम रचनाओं की बहुमूल्य सामग्री हमें देकर चल बसे। अंतिम समय में लालबहादुर शास्त्री जी की आर्थिक मदद भी काम नहीं आयी। जो स्थान गद्य में फ़्रॅंज़ काफ़्का और श्ज़्याँ पॉल सात्र का है, चित्रकारी में पाब्लो पिकासो और वॅन गॉफ़ का है, संगीत में वुल्फ़ गैंग अमादियुस मोज़ार्ट और लुड्विग बिथोवन का है, विज्ञान में एल्बर्ट आंइस्टाइन और आइज़ॅक न्यूटन का है, जो कहानी कहने में मोपाँसा, मण्टो और ओ'हेनरी का है, जो नाट्य में ब्रर्तोल्त ब्रेख़्त और सेमुअल बैकेट का है, फ़िल्म निर्माण में अकीरा कुरोसावा, फेदिरिको फेलिनी और चार्ली चैपलिन का है, राजनीति में चेग्वेरा, हो चिन मिन्ह और भगत सिंह का है, वही स्थान हिंदी कविता में मुक्तिबोध का है। मुक्तिबोध के लिए जैसे कविता की विधा उनके व्यक्तित्त्व के सामने अपनी सीमित क्षमताओं की वजह से संकुचित हो जाती है और फिर मुक्तिबोध जैसे उसे अपनी भावों और अभिव्यक्ति से नवीन आकार देते हैं और एक ऐसा मार्ग और क्षेत्र भी प्रदान करते हैं जहाँ हिंदी कविता अपने स्वच्छंद रूप को निखारते हुए विचरण करती है। मुक्तिबोध को पढ़ना ऐसा ही है जैसे पृथ्वी से इतर किसी ग्रह से मिली किसी ऐसी रचना को पढ़ा जाए जो उस हिंदी भाषी ग्रह के सैंकड़ों वर्ष अग्रिम होने का आभास देती हो। मेरी इस महाकवि को हृदय के प्रत्येक स्पंदन से श्रृद्धांजलि।

12 सितंबर, 2012

अमर शहीद खुदी राम जी जब जेल में थे तो उनके बारे में एक घटना उनके मृत्यु के प्रति निर्भीकता को बताती है। जेल में वार्डन ने इनके लिए कुछ आम भिजवाए। बाद में उसने देखा तो खुदीराम ने आम ज्यों रख छोड़े थे, उन्हें छूआ भी नहीं था। वार्डन ने पूछा तो उन्होंने कहा "मुझे फाँसी होने वाली है और तुम्हें आमों की पड़ी है।" वार्डन ने आमों
को उठाया तो बहुत हल्के लगे। असल में खुदीराम बोस ने आमों को चूस कर दोबारा हवा से फुला कर वापस रख दिया था। इस बात पर वे और वार्डन ख़ूब हँसे।
जिसे फाँसी होने वाली हो उसका इस तरह हँसी मज़ाक करना क्या मायने रखता है इसको वही समझ सकता है जिसने मृत्यु को बहुत क़रीब से जाना हो।
मृत्यु के समय जिन क्रांतिकारियों में पूर्णत: 'अभय' की स्थिति देखी गई उनमें खुदीराम बोस का नाम बहुत ऊँचा है। हमारे यहाँ कहते हैं 'रेख' निकलने से पहले ही खुदीराम बोस को फाँसी देदी थी। (रेख कहते हैं मूछों की पहली रेखा)। -आदित्य चौधरी

11 अगस्त, 2012

आप कृष्ण को भगवान मानते हैं, मिथक मानते हैं, कथा चरित्र मानते हैं या ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं इससे कृष्ण की सार्वकालिक प्रासंगिकता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। डॉ. राममनोहर लोहिया लिखते हैं कि "एक कृष्ण ही है जिसने दर्शन को गीत बनाया।"... कृष्ण को कोई अछूता नहीं छोड़ता। सभी कृष्ण पर लिखते हैं चाहे धार्मिक हो या मार्क्सवादी, समाजवादी हो या पूँजीवादी या फिर किसी भी नए पुराने संम्प्रदाय के व्याख्याकार।
यह तो मैं नहीं जानता कि भगवत्‌ गीता, श्री कृष्ण के श्रीमुख से आई अथवा व्यासों ने लिखी लेकिन गीता एक विलक्षण 'उपनिषद' है। 'कृष्ण' संपूर्ण भारत का सबसे व्यापक तत्व है इससे किसी को मतभेद नहीं होना चाहिए।

10 अगस्त, 2012

गुरु रवींद्र नाथ टैगोर (ठाकुर) को शिक्षा पद्धति में प्रयोग करते रहने की आदत थी। शांतिनिकेतन ऐसे अनेक प्रयोगों और विद्यार्थियों का साक्षी है। जब उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की तो उनकी पहचान वालों ने शांतिनिकेतन में अपने बच्चे डरते-डरते भेजे कि पता नहीं किस तरह की पढ़ाई होगी। गुरु रवींद्र के विश्वास दिलाने पर कि सब कुछ ठीक रहेगा, वे थोड़े आश्वस्त हुए। एक दिन इन जोखिम उठाने वाले अभिभावकों ने अपने बच्चों की पढ़ाई की प्रगति की जांच करने की गरज़ से शांतिनिकेतन में जाने का निश्चय किया। वहाँ पहुँचे तो देखते हैं कि गुरु रवींद्र एक पेड़ के नीचे बैठ कर तीन बच्चों को पढ़ा रहे हैं और 7-8 बच्चे उस पेड़ पर चढ़कर आम खा रहे हैं। पूछने पर गुरु रवींद्र ने कहा "मैं तो इन तीन बच्चों में उस कमी को दूर करने की कोशिश कर रहा हूँ जो इनको रसीले खट्टे-मीठे आम खाने से रोक रही है... न जाने क्यों इनका ध्यान आमों पर नहीं है... ये तो पढ़ना चाहते हैं... शायद आप लोगों के ग़लत लालन-पालन से ऐसा हुआ है।" ... ऐसे थे गुरु रवींद्र नाथ टैगोर जिनके खाते में पर दो-दो देशों के राष्ट्र गान आते हैं। एक तो अपना देश भारत और दूसरा बांग्ला देश

8 अगस्त, 2012

उत्तिरमेरूर, उत्तरमेरूर अथवा उत्तरमेरुर (अंग्रेज़ी: Uthiramerur)
भारत में प्रजातांत्रिक शासन के कई प्राचीन उदाहरण हैं जिनमें से एक उत्तिरमेरूर का भी है। इसे पढ़कर कोई भी आश्चर्यचकित रह जाएगा जबकि यूरोपीय विद्वानों का दावा रहता है कि प्रजातांत्रिक ढांचा उनकी ईजाद है। असल में भारत के इतिहास को जिन तथ्यों के आधार पर क्रमबद्ध किया गया वे पर्याप्त नहीं थे और आज भी अपर्याप्त हैं। इसका दोष किसी दूसरे के सर मढ़ने से अच्छा है कि इसका दोष हम ख़ुद स्वीकारें और पश्चाताप करने के बजाय प्रायश्चित करें। जिसका प्रयास में भारतकोश के माध्यम से कर रहा हूँ।

31 जुलाई, 2012

सरदार ऊधम सिंह जी ने जो किया वह स्वतंत्रता आंदोलन और शहादत के इतिहास में सबसे बड़ा प्रतिशोध माना जाता है। किसी लक्ष्य को 21 वर्ष तक अपने ज़ेहन में समेटे रखना और उसे कर दिखाना वास्तव में अद्भुत होने से भी परे है।
हमें क्रोध आता है और धीरे-धीरे चला जाता है लेकिन ऊधमसिंह जी ने इस प्रतिशोध की अग्नि को न जाने कौन सा ईंधन दिया कि जलियाँवाला बाग़ के नृशंस हत्याकाण्ड का बदला उनके हृदय में 21 वर्ष सुलगता रहा। यदि मेरा बस चलता तो संसद भवन का नाम सरदार भगतसिंह भवन, लालक़िले का नाम सरदार ऊधमसिंह क़िला और राष्ट्रपति भवन नाम सुभाषचंद्र बोस भवन कर देता...

31 जुलाई, 2012

प्रेमचंद जी की प्रतिभा को समझने का एक आसान तरीक़ा है।
उनकी कहानी को एक बार पढिए और दोबारा उसे अपने-आप लिखने की कोशिश कीजिए।
हो सके तो अपने मन से उसे और बेहतरीन बनाने की कोशिश कीजिए।
इसके बाद ख़ुद पढ़िए और किसी को पढ़ने को दीजिए। सब कुछ अपने-आप सामने आ जाएगा।
प्रेमचंद का साहित्य किसी की एकान्तिक अन्तर्व्यथा नहीं बल्कि अपने भीतर जीते जागते भारत की संस्कृति और समाज को सहज समाहित करने का सफलतम प्रयास है।

31 जुलाई, 2012

भारतीय उद्योग के पितामह जमशेदजी टाटा के भतीजे जे.आर.डी. साहब एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके लिए भारत का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' भी छोटा पड़ जाता है। टाटा परिवार देशभक्ति और ईमानदार विकासवादी सोच के लिए पहचाना जाता है। टाटा परिवार ने कभी भी व्यापार को उद्योग से अधिक महत्त्व नहीं दिया। यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि जमशेदजी टाटा के परिवार का वंशज, अब रतन टाटा साहब के बाद कोई नहीं है। ईरान (फ़ारस या पर्सिया) से जब पारसी भारत आए तो उन्होंने भारतीय कुलनाम अपनाए, जो अधिकतर व्यवसायों से सम्बंधित थे। जैसे - बाटलीवाला, टायरवाला, दारूवाला आदि, लेकिन टाटा कुलनाम का स्त्रोत बिल्कुल अलग है। इसे संस्कृतनिष्ट गुजराती में संस्कृत भाषा के शब्द 'तात' से अपनाया गया।

29 जुलाई, 2012

छत्रपति साहू महाराज ने दलित जातियों के लिए अनुकरणीय कार्य किए। वे शिक्षा में प्रत्येक जाति की भागीदारी चाहते थे। किसानों के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने सन 1907 में बाँध बनवाने का कार्य किया। उस समय भारत में यह सब सोच पाना भी किसी के वश की बात नहीं थी। वे किसानों, ग़रीबों और दलितों के लिए वास्तव में सच्चे 'राजा' थे।

26 जुलाई, 2012

लोकमान्य तिलक जी पर चला मुक़दमा एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। इसे पढ़ने से अंग्रेज़ी शासन कारगुज़ारी पता चलती हैं। अदालत में दिए उनके लम्बे भाषण भी बहुत प्रसिद्ध हुए उन्होंने कहा "मैं हज़ारों ऐसे लोगों से मिला हूँ, जो ज़ंजीरों और परेशानियों में थे। लेकिन मुझे उनमें एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो स्वतंत्रता से प्यार न करता हो। जो क़ानून और व्यवस्था के विरुद्ध हो, जो सुसंचालित सरकार न चाहता हो।..."
उन्होंने प्रसिद्ध नारा भी दिया "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करके रहूँगा।
जीवन भर उन्होंने लिखा, बोले और अंग्रेज़ों से लड़े। गीता का भाष्य उनकी उत्कृष्ट रचना है।

23 जुलाई, 2012

अमर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद कई भगतसिंह तैयार कर सकते थे लेकिन कोई आज़ाद जैसी शख़्सियत 'तैयार' कर दे यह मुमकिन नहीं। चंद्रशेखर आज़ाद पैदा हुआ करते हैं बनाए नहीं जाते। आज़ाद जी ने बिना संसाधनों के एक सुनियोजित क्रांतिकारी आंदोलन चलाया। नौजवानों को देशभक्ति की, हथियारों की और गुरिल्ला युद्ध की शिक्षा देने का कार्य करना एक अद्‌भुत कार्य था। वे जानते थे कि कब, किसको, कितना और किस कार्य का दायित्व सौंपा जा सकता है।
स्वयं उनके द्वारा चलाई गई आख़री गोली उनकी कनपटी पर तो चली लेकिन उसकी गूँज ने अंग्रेज़ों के मन्सूबों को दहला दिया। हर वर्ष जब लालक़िले पर झंडा फहराया जाता है तो मुझे लगता है तिरंगे के स्तम्भ को स्वयं आज़ाद अपने हाथ से थामे हुए मुस्कुरा रहे हैं।

23 जुलाई, 2012

मीरा बेन (मीरा बहन) गाँधी वादी हो गई थीं। अंग्रेज़ होने के बावजूद वे भारत के पक्ष में रहीं। उस समय अंग्रेज़ों का शासन था और वे अंग्रेज़ अधिकारी की बेटी थीं। उनके इस जज़्बे के लिए भारत की ओर से बहुत कुछ होना चाहिए था लेकिन हुआ नहीं। वे प्रकृति, जीव-जन्तु और संगीत की विशेष प्रेमी थीं। आज़ादी के बाद सच्चे गाँधी वादियों का अप्रासंगिक हो जाना सामान्य सी बात थी। यही मीरा बेन के साथ भी घटा। किसान आश्रम, बापू ग्राम जैसे आश्रम उन्होंने खोले। मीरा बेन ने पशुओं की सुरक्षा और उन्होंने हिमालय और तराई के जंगलों को बचाने के लिए प्रयास किए।
सरकार ने उनके सुझावों को अनदेखा कर दिया। 60 के दशक के अंत में वो इंग्लॅन्ड और बाद में वियना चली गईं।

वियना तो हमेशा की तरह मोज़ार्ट और बीथोवन की संगीत से गूँज रहा था। बीथोवन उनके पसंदीदा संगीतकार थे। मीरा बेन ने बीथोवन की जीवनी भी लिखी लेकिन किसी कारण छपी नहीं।

21 जुलाई, 2012

नसीरुद्दीन शाह ने भारतीय फ़िल्म अभिनय को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। उन्हें राबर्ट डी नीरो और अल पचीनो के समकक्ष माना जाता है। अभिनय एक प्रतिभा के रूप में जितना नसीर साहब को मिला उतना अभी तक किसी अभिनेता को नहीं। किसी भी फ़िल्म में नहीं लगता कि नसीर अभिनय 'कर' रहे हैं बल्कि इतनी सहजता से वे पात्र को जीते हैं कि आश्चर्य होता है।
फ़िल्मों के बारे में उनका कहना है कि फ़िल्म सिर्फ़ अच्छी या बुरी होती है। फ़िल्मों की तमान श्रेणियाँ बनाना बेकार है। फ़िल्म अभिनेताओं में दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन और नसीरुद्दीन शाह ही ऐसे माने जाते हैं जिनका हिंदी भाषा और अंग्रेज़ी भाषा पर समान और अच्छा अधिकार है।

21 जुलाई, 2012

अफ़साना निगार याने कहानीकार और उपन्यासकार इतिहास को अपने मन मुताबिक़़ घुमा-फिरा देते हैं। इसके बाद फ़िल्मकार तो और भी ज़्यादा मसाले का तड़का लगा देते हैं। मुग़ल इतिहास में अकबर की पत्नी, जो सलीम (जहाँगीर) की माँ भी थी, का नाम जोधाबाई, कहीं भी नहीं है। अकबरनामा, जहाँगीरनामा कहीं भी देख लीजिए आपको जोधाबाई नाम जहाँगीर की पत्नी के रूप में मिलेगा, अकबर की पत्नी का नहीं। ये हिंदू रानी जो अकबर की पत्नी बनी आमेर (जयपुर) के राजा बिहारी मल (भारमल) की पुत्री थी। इसका नाम हरका, रुक्मा या हीरा था। शादी के बाद नाम हो गया था मरियम-उज़-ज़मानी। कर्नल टॉड के लोक-कथाओं पर आधारित इतिहास और मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म के कारण जोधाबाई नाम, अकबर की रानी के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
फ़तेहपुर सीकरी आगरा से 22 मील दक्षिण में, मुग़ल सम्राट अकबर का बसाया हुआ भव्य नगर जिसके खंडहर आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। अकबर से पूर्व यहाँ फ़तेहपुर और सीकरी नाम के दो गाँव बसे हुए थे जो अब भी हैं। इन्हें अंग्रेज़ी शासक ओल्ड विलेजेस के नाम से पुकारते थे। सन् 1527 ई. में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और बाबर ने यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बाबर ने इस गाँव का नाम फ़तेहपुर कर दिया था। तभी से यह स्थान फ़तेहपुर सीकरी कहलाता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर सलीम (जहाँगीर) का जन्म हुआ था। जहाँगीर की माता मरियम-उज़्-ज़मानी (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, शेख सलीम के कहने से यहाँ 6 मास तक ठहरे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
सन् 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी आया, उसने लिखा है− 'आगरा और फ़तेहपुर दोनों बड़े शहर हैं। उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है। सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहाँ रेशमी तथा दूसरे कपड़े, बहुमूल्य रत्न, लाल, हीरा और मोती बेचने के लिए लाते हैं।' सन् 1600 के बाद शहर वीरान होता चला गया हालांकि कुछ नए निर्माण भी यहाँ हुए थे।

18 जुलाई, 2012

मदन मोहन जी ने किसी भी फ़िल्म में ऐसा संगीत नहीं दिया जो प्रयोगात्मक और अद्‌भुत न हो। यह लक्षण सिर्फ़ विशेष व्यक्तियों में ही पाया जाता है। उन्होंने विधिवत्‌ संगीत शिक्षा नहीं ली थी। सिनेमा इतिहास में पहली बार (शायद आख़िरी भी) हुआ है कि जब किसी संगीतकार के मरने के 35 वर्ष बाद उसका संगीत ज्यों का त्यों इस्तेमाल किया गया हो। वीर-ज़ारा में यश चौपड़ा जी ने यह कर दिखया। इससे बड़ा प्रमाण किसी संगीतकार की महानता का भला मैं क्या दूँ…

15 जुलाई, 2012

दारा सिंह जी ने बचपन में अपनी माँ से कहा कि वे पहलवान बनना चाहते हैं तो उनकी माँ ने कहा कि बेटा सबसे पहले इंसान बनो जब अच्छे इंसान बन जाओगे उसके बाद कुछ भी बनना। वास्तव में वे अच्छे इंसान ही बने और बाद में कुछ और... वे असली ज़िन्दगी में भी हीरो थे। वे बेहद हैन्डसम और ताक़तवर थे। असली कुश्ती छोड़कर उन्हें तथाकथित फ़्रीस्टाइल कुश्ती में जाना पड़ा। मैंने उनकी फ़्रीस्टाइल कुश्ती देखी थी। जो कि wwf जैसी होती थी। यह एक प्रकार का खेल है कोई वास्तविक कुश्ती नहीं। कोई कुछ भी कहे लेकिन अब कोई उनसे ज़्यादा नाम नहीं कर पाएगा। कहीं नहीं तू दारा सिंह हो गया, ज़्यादा दारासिंह मत बन जैसी बातें न जाने कब से हमें घर-घर में सुनने को मिल रही हैं। वे बेहद कम उम्र में ही किंवदन्ती बन गए थे...बचपन से आज तक मुझे उनकी फ़िल्में अच्छी लगीं। मैं हमेशा उनका फ़ॅन रहा और आज भी भी हूँ। उनके निधन पर मैं शोक में डूब गया कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसा भी होगा... न जाने क्यों ? बिल्कुल ऐसा लगा कि कोई परिवार का ही 'बड़ा' नहीं रहा…

13 जुलाई, 2012

6 जुलाई बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि है। बाबू जगजीवन राम पं. जवाहरलाल नेहरू के पसंदीदा कांग्रेसी राजनीतिज्ञों में से थे। दलितों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद भी इन पर कभी किसी भी जाति विशेष का पक्ष लेने का आरोप नहीं लगा। रक्षा मंत्री जैसे अति संवेदनशील मंत्रालय को संभालने वाले बाबू जगजीवन राम सरल, मृदु और व्यवाहरिक स्वाभाविक गुणों के लिए पहचाने जाते थे। 1971 के भारत पाक युद्ध में जब भारत की जीत हुई, तब रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम ही थे।
भारत में हरित क्रांति से अन्न का उत्पादन कई गुणा बढ़ा। हरित क्रांति के समय 1974 में बाबू जगजीवन राम ही कृषि मंत्री थे। बाबू जी ने आधुनिक भारत निर्माण में जितना सक्रिय योगदान बिना मुखर हुए नेपथ्य की सी भूमिका में किया उतना योगदान वर्तमान बड़बोले राजनीतिज्ञों के लिए प्रत्यक्ष में भी कर पाना सम्भव नहीं है।

7 जुलाई, 2012

'शबबरात' याने मुक्ति की रात्रि, एक त्योहार है। मुस्लिम, इस रात रतजगा करते हैं, प्रार्थना की जाती है और नमाज़ पढ़ी जाती है। सुन्नी और शिया दोनों ही इस त्योहार को अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। पूर्वजों शांति के लिए प्रार्थना होती है और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी जाती है।
विश्व के जिन तीन देशों में मुस्लिम आबादी अधिक है, उनमें से भारत भी एक है। भारत में सबसे पहली मस्जिद केरल में बनी जो ब्राह्मण राजा 'चेरामन पेरूमल' ने बनवाई और स्वयं भी स्वेच्छा से मुस्लिम हो गया। इस मस्जिद को चेरामन जुमा मस्जिद कहते हैं। यह मस्जिद एक बौद्ध मंदिर था और इसकी बनावट पूर्ण हिंदू शैली की है। यह, सन 629 की बात है जब इस्लाम अरब में भी नहीं फैला था।
भारत में सूफ़ी संप्रदाय इस्लाम का भारतीय रूप है जिसमें मुस्लिम के अलावा अन्य धर्म के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। संगीत को शामिल करने से प्राय: सभी लोग सूफ़ी संप्रदाय को पसंद करते हैं। निज़ामुद्दीन औलिया, सलीम चिश्ती, मोइनुद्दीन चिश्ती आदि मशहूर नाम है, जिनकी मजारों पर भक्त जन श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं। सूफ़ी संप्रदाय की सबसे बड़ी देन हैं अमीर ख़ुसरो..

4 जुलाई, 2012

स्वामी विवेकानंद का जीवन ईश्वर के अस्तित्व की अस्वीकृति और स्वीकृति की ऊहापोह में निकला। 'उत्तिष्ठ जागृत' मंत्र को उन्होंने 'उत्तिष्ठ भारत' बनाकर भारतवासियों में आत्मविश्वास पैदा करने का कार्य किया। उनके भीतर ज्ञान-ऊर्जा का भंडार था। किस समय क्या करना चाहिए और क्या बोलना चाहिए, वे भली-भांति जानते थे। उनके ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्चभर में है। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा "एक और विवेकानंद चाहिए, यह समझने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है”

4 जुलाई, 2012

वराह पुराण में आया है- विष्णु कहते हैं कि इस पृथिवी या अन्तरिक्ष या पाताल लोक में कोई ऐसा स्थान नहीं है जो मथुरा के समान मुझे प्यारा हो- मथुरा मेरा प्रसिद्ध क्षेत्र है और मुक्तिदायक है, इससे बढ़कर मुझे कोई अन्य स्थल नहीं लगता। पद्म पुराण में आया है- 'माथुरक नाम विष्णु को अत्यन्त प्रिय है' हरिवंश पुराण ने मथुरा का सुन्दर वर्णन किया है, एक श्लोक यों है- 'मथुरा मध्य-देश का 'ककुद' है, यह लक्ष्मी का निवास-स्थल है, या पृथिवी का श्रृंग है। इसके समान कोई अन्य नहीं है और यह प्रभूत धन-धान्य से पूर्ण है।
गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से ही श्रावण (सावन) मास प्रारम्भ होता है। मथुरा नगरी की पुनर्स्थापना श्रावण मास में हुई थी। जो अयोध्यापति राम के भाई शत्रुघ्न द्वारा की गई थी। जिसका अति सुंदर वर्णन महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में है।

3 जुलाई, 2012

गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से ही श्रावण (सावन) मास प्रारम्भ होता है। मथुरा नगरी की पुनर्स्थापना श्रावण मास में हुई थी। जो अयोध्यापति राम के भाई शत्रुघ्न द्वारा की गई थी। जिसका अति सुंदर वर्णन महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में है।

3 जुलाई, 2012

कुछ लोग भूल-वश 'गुरु' के स्थान पर 'गुरू' लिख देते हैं, जिससे कि शब्द का अर्थ ही बदल जाता है। गुरू (ऊ की मात्रा) का अर्थ है चालाक और चलता-पुर्ज़ा। प्रत्येक धर्म में गुरु का महत्व है।

23 जुलाई, 2012

भारत का राष्ट्रीयगीत 'वन्दे मातरम' और राष्ट्रीयगान 'जन गण मन', दोनों ही बंगाल से मिले हैं। हम अपने राष्ट्रीय प्रतीकों प्रति भावुकता अधिक और समझ कम रखते हैं। देश भावना से नहीं समझदारी और अनुशासन से चला करते हैं। अपने राष्ट्रीय प्रतीकों के बारे जानना और समझना केवल तभी हो पाता है जब किसी नौकरी के लिए प्रतियोगिता की तैयारी की जाती है या फिर 'कौन बनेगा करोड़पति' जैसे कार्यक्रम में भाग लेने का मन बनता है। यह कमी नागरिकों की नहीं बल्कि हमारी शिक्षा-प्रणाली की है। जहाँ 'राष्ट्रीय चरित्र' (National character) विषय कोर्स में है ही नहीं... जो कि अलग से एक पूरा विषय होना चाहिए...

21 जून, 2012

21 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा है। यह रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है। जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा की प्रसिद्धि, पुराने समय में श्रद्धालु भक्तों के रथ के नीचे कुचल कर मरने की थी। रथ को खींचने वाले और उसके साथ चलने वाले कभी असावधानी से और कभी स्वेछा से रथ के नीचे कुचल कर मर जाते थे। कुछ-कुछ 'काशी करवट' जैसा मामला था। सती प्रथा की तरह यह प्रथा भी बुरी थी लेकिन अंग्रेज़ों से जगन्नाथ शब्द (Juggernaut) को अंग्रेज़ी डिक्शनरी का हिस्सा बनाया और Juggernaut शब्द का अर्थ लिखा 'जिसे रोका न जा सके', जो बिना रुके संहार करता जाय आदि। इससे और आगे ये कि उदाहरण में लिखा 'Juggernaut जैसे कि हिटलर'। एक भयानक से चरित्र वाली 'Juggernaut comics' भी हैं। अंग्रेज़ी के विभिन्न शब्दकोशों देखें तो पता चलेगा कि भगवान जगन्नाथ के नाम का अर्थ, ग़लत इरादे से, कितना अनर्थपूर्ण कर दिया गया। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिससे कि भारतीय संस्कृति को नुक़सान पहुँचता है... ख़ैर ये बात तो थी आपकी जानकारी के लिए... अब आइए भारतकोश पर विस्तार से देखें भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा...

20 जून, 2012

महान स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मीबाई (रानी झांसी) के संबंध में भारतकोश के कुछ सुधी और जागरूक पाठक गणों ने अपने प्रश्न और शंकाएँ जताई हैं।
इस संबंध में उनकी शंकाओं का निवारण करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। चूँकि हम भारतीयों में इतिहास लिखने की परंपरा नहीं रही, इसलिए ये झंझट सामने आते हैं। आइए कुछ तारीख़ों पर ग़ौर करें...
राजा झांसी गंगाधर राव के मनु (बाद में लक्ष्मीबाई) से विवाह का वर्ष लगभग सभी उल्लेखों में 1842 मिलता है। महान् स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मीबाई के जन्म का वर्ष अधिकतर 1835 ही मिलता है। इस हिसाब से विवाह की उम्र रही मात्र 7 वर्ष...? लेकिन कई स्थानों पर यह 13-14 वर्ष भी है।
गंगाधर राव का कोई जीवन चरित नहीं मिलता और न ही जन्म की तारीख़... लेकिन फिर भी ये सोच कर कि वह राजा था... तो कम से कम विवाह की और मरने की तारीख़ तो सही होगी... विवाह 1842 में और गंगाधर की मृत्यु हुई 1853 में...। महारानी लक्ष्मीबाई की वीरगति प्राप्त करने की तारीख़ भी दो हैं 17 जून और 18 जून।
गंगाधर राव स्त्री पोशाक पहन कर नाटकों में हिस्सा लेता था या नहीं इसका फ़ैसला करने वाला मैं कौन होता हूँ। जो कुछ भी इतिहासकारों ने लिखा और मैंने पढ़ा वही मैं भी आप तक पहुँचाने का प्रयत्न करता हूँ...
एक बात जो मुझे महसूस हुई वह यह है कि माने हुए बड़े इतिहासकारों ने रानी लक्ष्मीबाई का जीवन-वृत्त क्यों नहीं लिखा ? इसका कारण यह हो सकता है कि ये इतिहासकार 1857 के स्वतंत्रता समर को महज़ एक आर्थिक विद्रोह की संज्ञा देते हैं और रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष को यह लिख कर हलका बना देते हैं कि लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को अंग्रेज़ों ने उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और झांसी को शासक विहीन मान लिया गया और अंग्रेज़ों ने झांसी को पूर्णत: अपने अधिकार में लेना चाहा जो कि लक्ष्मीबाई को नागवार गुज़रा...।
अब बताइए मैं क्या करूँ ? मेरे प्रपितामह याने मेरे पिताजी के दादाजी 'बाबा देवकरण सिंह' को भी अंग्रेज़ों ने फाँसी दी थी इसी 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम में... उनका नाम इतिहास में तो दर्ज है लेकिन फाँसी की सही-सही तारीख़ नहीं मिलती।
ख़ैर मुझे बहुत अच्छा लगा कि लोग मेरे जैसे साधारण आदमी की पोस्ट में भी दिलचस्पी लेते हैं... मैं तो समझ रहा था कि जनता को नवरत्न तेल बेचने वाले महान् व्यक्तित्वों से फ़ुर्सत ही नहीं…

18 जून, 2012

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि रुद्रवीणा स्वयं भगवान शिव का प्रिय वाद्य है। 33 देवों में रुद्र ग्यारह हैं और शिव अंश भी हैं। रुद्रवीणा बजाना कठिन कार्य है। इसके बजाने वाले बहुत कम ही रहे जैसे उस्ताद असद अली ख़ाँ साहिब। जिनकी 14 जून को पुण्य-तिथि है। 'विचित्र वीणा' बजाने वाले भी अब नहीं मिलते... यह वीणा सचमुच विचित्र ही होती है।

14 जून, 2012

आज मन उदास है... मेहदी हसन साहिब नहीं रहे... मैंने बहुत कम उम्र से ही उनको सुना और अब भी सुनता हूँ... उनके गायन की प्रशंसा करने के लिए मैं अति तुच्छ व्यक्ति हूँ... कभी-कभी सोचता हूँ कि राजस्थान की मिट्टी में ऐसा क्या अद्‌भुत है जिसने मेहदी हसन जैसे कला शिरोमणि को जन्म दिया... उनकी गाई और ज़फ़र (बहादुर शाह ज़फ़र) की कही ग़ज़ल आज बहुत याद आई-
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ।
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी ॥
ले गया लूट के कौन आज तिरा सब्र-उ-क़रार ।
बे-क़रारी तुझे दिल कभी ऐसी तो न थी ॥

14 जून, 2012

'कला' शब्द का अर्थ वात्स्यायन (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के बाद बदल गया। वात्स्यायन ने पहली बार 'कला' शब्द को इस अर्थ में प्रयोग किया जिसे कि अंग्रेज़ी में 'आर्ट' कहते हैं। जयमंगल ने भी 64 कलाओं के बारे में बताया। इससे पहले इसका अर्थ था 'अंश' (हिस्सा)। इसी लिए चन्द्रमा या सूर्य की पृथ्वी के सापेक्ष स्थितियों को बाँटा गया तो उन्हें कला कहा गया। चन्द्रमा को सोलह अंश में और सूर्य को बारह में। इसीलिए चन्द्रमा की सोलह कला हैं और सूर्य की बारह कला। अवतारों की कला का भी यही रहस्य है। लोग अक्सर पूछते हैं कि कृष्ण की सोलह कलाएँ कौन-कौन सी थी ? असल में कृष्ण के काल में कला का अर्थ अंश था न कि आज की तरह 'आर्ट'।
ख़ैर... नृत्य कला पर भी भारतकोश पर कुछ है शायद आपकी रुचि हो

10 जून, 2012

अस्सी के दशक में बना दूर दर्शन का धारावाहिक 'कबीर', अनिल चौधरी साहब की एक बेजोड़ रचना है। अब देखने के लिए शायद यह उपलब्ध नहीं है, लेकिन हज़ारी प्रसाद जी की किताब 'कबीर' उपलब्ध है।
वैसे तो कबीर के जन्म की तारीख़ आदि की कोई जानकारी नहीं है। परंपरानुसार आज कबीर-जयंती है...एक संस्मरण है उनके विवाह का...
विवाह के दिन ही कबीर साहब को उनकी पत्नी 'लोई' ने बताया कि वो तो किसी और से प्रेम करती है और यह शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई है। कबीर उसी समय लोई को उसके प्रेमी के पास छोड़ आए। उस प्रेमी ने लोई से पूछा "रात का समय है रास्ते में घुटने-घुटने पानी भरा है तुम्हारे पैर तो सूखे हैं ! ऐसा कैसे ?" लोई ने उत्तर दिया "मुझे कबीर साहब पीठ पर लादकर लाए हैं, इससे मेरे पैर सूखे हैं" यह सुनकर प्रेमी तो सन्नाटे में आ गया, उसने कहा "उस देवता को छोड़कर मेरे जैसे बेकार आदमी के पास आई क्यों ?" वह प्रेमी तुरंत ही लोई को वापस ले गया और ख़ुद भी कबीर का शिष्य बन गया ... ऐसे थे कबीर। कबीर को पंडित कुमार गंधर्व ने जिस तरह गाया है उससे लगता है कि कबीर साहब की रचनाएँ जैसे कुमार गंधर्व की ही प्रतीक्षा कर रही थीं सुरों में सजने के लिए...

4 जून, 2012

नर्गिस दत्त, जिस पृष्ठ भूमि से आयीं थीं, कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे एक संवेदनशील समाजसेविका भी बनेंगी। ये भी उल्लेखनीय है कि वे समाजसेवा का ढोंग नहीं करती थीं (जैसा कि आजकल फ़ॅशन है)। जब वे कॅन्सर से हार कर अपनी अंतिम सांसे ले रही थीं, उस समय, पति सुनील दत्त उनके पास थे। उनके अंतिम समय की बातें सुनकर मैं इतना भावुक हो गया कि आँसू नहीं रोक पाया। आप चाहें तो भारतकोश पर उनके लेख के सबसे नीचे की ओर, बाहरी कड़ियों में उनके जीवन पर बनी छोटी सी डॉक्यूमेन्ट्री को लिंक क्लिक करके देख सकते हैं। इसमें उनकी आवाज़ की अंतिम रिकॉर्डिंग भी है।

1 जून, 2012

पृथ्वीराज कपूर की फ़िल्म सिकंदर जब रिलीज़ हुई तो कोर्स की किताबों में सिकंदर के चित्र के स्थान पर पृथ्वीराज का फ़ोटो लगाया गया। मुग़ल-ए-आज़म के अकबर का रोल तो और भी ग़ज़ब ढा गया। प्राणायाम के साथ संवाद अदायगी उनकी विशेषता थी। उनके अभिनय में पूरी तरह पारसी थियेटर का प्रभाव होता था। 29 मई उनकी पुण्यतिथि है।

29 मई, 2012

वीर सावरकर जब अण्डमान में बंदी थे तो उन्हें कई वर्षों तक यह भी पता नहीं चल पाया था कि उनके भाई भी उसी जेल में हैं। सावरकर पर गाँधी जी हत्या के षड़यंत्र का संदेह उनकी लोकप्रियता के लिए सबसे घातक सिद्ध हुआ। यदि स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही देखा जाय तो वे निर्विवाद रूप से सच्चे राष्ट्र्भक्त थे।

28 मई, 2012

अकबर की याद्‌दाश्त ग़ज़ब की थी इसका ज़िक्र पंडित राहुल साँकृत्यायन ने अपनी पुस्तक 'अकबर' में किया है। उन्होंने लिखा है कि अकबर जब मात्र सवा साल का था और उसने पैदल चलना शुरू ही किया था तब उस समय की रस्म के हिसाब से परिवार के बुज़ुर्ग ने उसके पैरों में अपनी पगड़ी मारी जिससे वह गिर पड़ा था। अकबर को बड़े होने पर यह घटना याद थी।...

26 मई, 2012

सिन्धु सभ्यता (2600-1800 ई.पू.) के संक्षिप्त लेख, जिनकी संख्या लगभग चार हज़ार है, सेलखड़ी की मुहरों, ताम्रपट्टियों, लघुप्रस्तरों, काँसे के औज़ारों, हाथीदाँत व हड्डियों के दंडों, मिट्टी के बर्तनों तथा उनके ठीकरों पर अंकित देखने को मिलते हैं। यह ज्ञात नहीं है कि अपने दैनिक व्यवहार में सिन्धुजन किस लेखन-सामग्री का इस्तेमाल करते थे। उनके समकालीन मेसोपोटामियावासी एक छोटी कील से गीली मिट्टी के फलकों पर अक्षर उकेरते थे। वे कीलाक्षर लेख पढ़े जा चुके हैं, परन्तु सिन्धु लिपि अभी भी अज्ञेय बनी हुई है।

26 मई, 2012

महाराणा प्रताप की जयंती 24 मई को है...
चित्तौड़ के विध्वंस और उसकी दीन दशा को देखकर भट्ट कवियों ने उसको 'आभूषण रहित विधवा स्त्री- की उपमा दी है। प्रताप ने अपनी जन्मभूमि की इस दशा को देखकर सब प्रकार के भोग—विलास को त्याग दिया, भोजन—पान के समय काम में लिये जाने वाले सोने-चाँदी के बर्तनों को त्यागकर वृक्षों के पत्तों को काम में लिया जाने लगा, कोमल शय्या को छोड़ तृण शय्या का उपयोग किया जाने लगा। उसने अकेले ही इस कठिन मार्ग को नहीं अपनाया अपितु अपने वंश वालों के लिये भी इस कठोर नियम का पालन करने के लिये आज्ञा दी थी कि जब तक चित्तौड़ का उद्धार न हो तब तक सिसोदिया राजपूतों को सभी सुख त्याग देने चाहिएँ।

24 मई, 2012






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