बलिदान
बलिदान का अर्थ होता है- "अपना सर्वस्व दान कर देना।" प्रयोग के अनुसार बलिदान शब्द के अनेक अर्थ हो जाते हैं। साधारणतः पशुओं का वध कर देवी देवताओं पर चढ़ा देने को बलिदान समझा जाता है। किसी सत्कार्य के लिये अपना प्राण दे देना या अपने किसी प्रिय के प्राण ले लेना को भी बलिदान समझा जाता है। किसी अन्य की खुशी के लिये अपनी खुशियों को त्याग देना भी बलिदान का ही एक रूप है।
भारतीय सेना के संदर्भ में
भारतीय सेना में शहीद नहीं, देश पर मर मिटने वाले वीर होते हैं। देश की एकता और अखंडता की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले सैन्याधिकारी और जवानों को शहीद नहीं लिखा जाएगा। सेना ने उन्हें 'बलिदानी', 'वीर', 'वीरगति को प्राप्त वीर', 'वीर योद्धा', 'दिवंगत नायक', 'भारतीय सेना के वीर' जैसी संज्ञाओं से संबोधित करने की सलाह दी है। सैन्य प्रशासन ने अपनी सभी इकाइयों को इस संदर्भ में एक आवश्यक परिपत्र भी जारी किया है। इसके अनुसार[1]-
"बलिदान होने वाले जवानों के लिए सेना, पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की शब्दावली में कहीं भी 'शहीद' शब्द नहीं रहा है। इसके बावजूद 1990 के बाद से यह शब्द आतंकियों और नक्सलियों समेत विभिन्न राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ बलिदान होने वाले जवानों व अधिकारियों के लिए प्रयोग होता रहा है। पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध में वीरगति पाए जवानों के लिए अब यही शब्द इस्तेमाल होने लगा है। बलिदानी सैनिकों के लिए 'शहीद' और अंग्रेज़ी में 'मारटर' (Martyr) लिखे जाने को लेकर लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं।
इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिसम्बर 2016 में लोकसभा को सूचित किया था कि भारतीय सेना, पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के बलिदानी जवानों के लिए अंग्रेज़ी में 'मारटर' और हिन्दी अथवा उर्दू में 'शहीद' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
'शहीद' शब्द व्याख्या
जम्मू के प्रख्यात चिंतक प्रो. हरिओम के मुताबिक, शहीद शब्द आमतौर पर मुस्लिम और इसाइयों के बीच धर्मयुद्ध में मारे गए लोगों के लिए इस्तेमाल होता रहा है। इस्लाम में शहीद का प्रयोग जिहाद के लिए मारे जाने वालों के लिए इस्तेमाल होता आया है। उन्होंने कहना था कि आज भी इस्लाम के नाम पर दुनियाभर में आतंक फैलाने वाले तत्व और आतंकी अपने साथी के मारे पर उसे शहीद ही पुकारते हैं। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले, अपने लोगों की जान बचाने के लिए अपना बलिदान करने वाले बलिदानी और वीर होते हैं।[1]
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ डॉ. अजय चुरुंगु के अनुसार, हमारी शब्दावली में कुछ ऐसे शब्द शामिल हुए हैं जिनका मूल अर्थ पूरी तरह से इस्लामिक सभ्यता को बढ़ाना है। शहीद भी ऐसा ही शब्द है। हमारी सेना पंथनिरपेक्ष है और यह मातृभूमि की रक्षा के लिए है, किसी धर्म या विचारधारा की रक्षा के लिए नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इस तक ऊपर जायें: 1.0 1.1 सेना में कोई 'शहीद' नहीं, देश पर जान देने वाले होते हैं बलिदानी, शहीद शब्द के इस्तेमाल पर सेना को है आपत्ति (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2022।