विदुर नीति
विदुर हिन्दू पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' के प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं। हिन्दू ग्रंथों में दिये जीवन-जगत के व्यवहार में राजा और प्रजा के दायित्वों की विधिवत नीति की व्याख्या करने वाले महापुरुषों ने महात्मा विदुर सुविख्यात हैं। उनकी विदुर नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है।
विदुर जानते थे कि युद्ध विनाशकारी होगा। महाराज धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन के मोह में समस्या का कोई सरल समाधान नहीं खोज पा रहे थे। वह अनिर्णय की स्थिति में थे। दुर्योधन अपनी हठ पर अड़ा था। दुर्योधन की हठ नीति विरुद्ध थी। पाण्डवों ने द्यूत की शर्त के अनुसार बारह वर्ष के बनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की अवधि पूर्ण करने के बाद जब अपना राज्य वापस माँगा तो दुर्योधन के हठ के सम्मुख असहाय एवं पुत्र मोह से ग्रस्त धृतराष्ट्र पाण्डवों के दूत श्रीकृष्ण को कोई निर्णायक उत्तर नहीं दे सके। केवल इतना आश्वस्त किया कि वह सबसे परामर्श करके संजय द्वारा अपना निर्णय प्रेषित कर देंगे। संजय के माध्यम से भेजा गया संदेश भी कोई निर्णायक संदेश नहीं था। उसमें इतना कहा गया था कि वे ऐसा कार्य करें, जिससे भरतवंशियों का हित हो और युद्ध न हो।
विदुर नीति
‘महाभारत’ की कथा के महत्त्वपूर्ण पात्र विदुर कौरव वंश की गाथा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। विदुर नीति जीवन-युद्ध की नीति ही नहीं, जीवन-प्रेम, जीवन-व्यवहार की नीति के रूप में अपना विशेष स्थान रखती है। राज्य-व्यवस्था, व्यवहार और दिशा निर्देशक सिद्धांत वाक्यों को विस्तार से प्रस्तावना करने वाली नीतियों में जहां चाणक्य नीति का नामोल्लेख होता है, वहां सत्-असत् का स्पष्ट निर्देश और विवेचन की दृष्टि से विदुर-नीति का विशेष महत्त्व है। व्यक्ति वैयक्तिक अपेक्षाओं से जुड़कर अनेक बार नितान्त व्यक्तिगत, एकेंद्रीय और स्वार्थी हो जाता है, वहीं वह वैक्तिक अपेक्षाओं के दायरे से बाहर आकर एक को अनेक के साथ तोड़कर, सत्-असत् का विचार करते हुए समष्टिगत भाव से समाज केंद्रीय या बहुकेंद्रीय होकर परार्थी हो जाता है।
पुरुषों के आठ गुण
विदुर के अनुसार आठ गुण पुरूषों की ख्याति बढ़ा देते हैं, जो इस प्रकार हैं[1]-
- विदुर मनुष्य लोक के छह सुखों की व्याख्या करते हैं, नीरोग रहना, ऋणी न होना, परदेश में न रहना, अच्छे लोगों के साथ मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निडर होकर रहना- ये छह मनुष्य लोक के सुख हैं।
- महात्मा विदुर कहते हैं कि निम्न छह प्रकार के मनुष्य सदा दु:खी रहते हैं-
- ईर्ष्या करने वाला
- घृणा करने वाला
- असंतोषी
- क्रोधी
- सदा शंकित रहने वाला
- दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने
- महात्मा विदुर कहते हैं कि राजा को सात दोषों को त्याग देना चाहिये- स्त्रीविषयक आसक्ति, जुआ, शिकार, मद्यपान, वचन की कठोरता, अत्यन्त कठोर दंड देना और धन का दुरुपयोग करना। ये सात दुःखदायी दोष राजा को सदा त्याग देने चाहिये, इनसे दृढ़मूल राजा भी प्रायः नष्ट हो जाता है।
- विदुर महाराज ने हर्ष प्राप्ति के ये साधन बताये हैं- मित्रों से समागम, अधिक धन की प्राप्ति, पुत्र का आलिंगन, मैथुन में प्रवृत्ति, समय पर प्रिय वचन बोलना, अपने वर्ग के लोगों में उन्नति, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति और समाज में सम्मान- ये आठ हर्ष के सार दिखाई देते हैं और ये ही लौकिक सुख के साधन भी होेते हैं।
- पुरुषों के ये आठ गुण ख्याति को बढ़ा देते हैं, ऐसा महाराज विदुर का मानना है- बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना, शक्ति के अनुसार दान देना और कृतज्ञता- ये आठ गुण पुरुष की ख्याति बढ़ा देते हैं।
- विदुर कहते हैं कि ये दस प्रकार के लोग धर्म को नहीं जानते- नशे में मतवाला, असावधान, पागल, थका हुआ, क्रोधी, भूखा, जल्दबाज, लोभी, भयभीत और कामी -ये दस हैं। विद्वान व्यक्ति इन लोगों से आसक्ति न बढ़ाये।
- धीर कौन है? महाराज विदुर कहते हैं- जो किसी दुर्बल का अपमान नहीं करता, सदा सावधान रहकर शत्रु से बुद्धि पूर्वक व्यवहार करता है, बलवानों के साथ युद्ध पसंद नहीं करता तथा समय आने पर पराक्रम दिखाता है, वही धीर है।
- विदुर कहते हैं, देवगण ऐसे व्यक्तियों के साथ होते हैं जो दान, होम, देवपूजन, मांगलिक कार्य, प्रायश्चित तथा अनेक प्रकार के लौकिक आचार, इन कार्यो को नित्य करता है, देवगण उसके अभ्युदय की सिद्धि करते हैं।
- महाराज विदुर कहते हैं कि उस विद्धान की नीति श्रेष्ठ है, जो अपने बराबर वालों के साथ विवाह, मित्रता, व्यवहार तथा बातचीत रखता है, हीन पुरूषों के साथ नहीं, और गुणों में बढे़ चढ़े पुरूषों को सदा आगे रखता है, उस विद्धान की नीति श्रेष्ठ है।
- विदुर कहते हैं ऐसे पुरूषों को अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं, जो अपने आश्रित जनों को बांटकर खाता है, बहुत अधिक काम करके भी थोड़ा सोता है तथा मांगने पर जो मित्र नहीं है, उसे भी धन देता है, उस मनस्वी पुरुष के सारे अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं।
- बलवान के सम्मुख झुकने का परामर्श कितने सुन्दर उदाहरण से नीतिज्ञ विदुर देते हैं- जो धातु बिना गर्म किये मुड़ जाती है, उसे आग में नहीं तपाते। जो काठ स्वयं झुका होता है, उसे कोई झुकाने का प्रयत्न नहीं करता, अतः बुद्धिमान पुरुष को अधिक बलवान के सामने झुक जाना चाहिये, जो अधिक बलवान के सामने झुकता है, वह मानो इन्द्रदेवता को प्रणाम करता है।। 36-37/2।।
- किस वस्तु की किस प्रकार रक्षा करें, विदुर महाराज उदाहरणों द्वारा समझाते हैं- सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या सुरक्षित होती है, सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है और सदाचार से कुल की रक्षा होेती है, तोलने से अनाज की रक्षा होती है, हाथ फेेरने से घोड़े सुरक्षित रहते हैं, बारम्बार देखभाल करने से गौओं की तथा मैले वस्त्रों से स्त्रियों की रक्षा होती है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विदुर के अनुसार आठ गुण पुरुष की ख्याति बढ़ा देते हैं (हिन्दी) jyotesh.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2016।