बुद्ध पूर्णिमा

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बुद्ध पूर्णिमा
अभिलिखित अभय मुद्रा में बुद्ध, राजकीय संग्रहालय मथुरा
अभिलिखित अभय मुद्रा में बुद्ध, राजकीय संग्रहालय मथुरा
अन्य नाम 'वैशाख पूर्णिमा', 'बुद्ध जयंती', 'सत्य विनायक पूर्णिमा'
अनुयायी बौद्ध, हिंदू
उद्देश्य 'बुद्ध पूर्णिमा' के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं।
तिथि वैशाख की पूर्णिमा
धार्मिक मान्यता बुद्ध पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भगवान बुद्ध अवतरित हुए थे और इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था।
संबंधित लेख बुद्ध, बोधगया, कुशीनगर
विशेष 'दिल्ली संग्रहालय' इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।
अन्य जानकारी यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

बुद्ध पूर्णिमा वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे 'बुद्ध जयंती' के नाम से भी जाना जाता है। यह बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को 'बुद्धत्व' की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।

सत्य विनायक पूर्णिमा

यह 'सत्य विनायक पूर्णिमा' भी मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के दरिद्र मित्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको सत्यविनायक व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गया। इस दिन धर्मराज की पूजा करने का विधान है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु का नौवाँ अवतार भगवान बुद्ध के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिवस को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

उत्सव और अनुष्ठान

'बुद्ध पूर्णिमा' के दिन अलग-अलग पुण्य कर्म करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे तिल दान देने से सब पापों का क्षय हो जाता है। यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल के दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से निवृत्त हो जाता है। इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं तथा उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है। यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, सम्पदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।

समारोह

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए 'बुद्ध पूर्णिमा' सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन सारे विश्व में जहाँ कहीं भी बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं, वहाँ अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए जाते हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।[1]

  1. श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक उत्सव' के रूप में मनाते हैं, जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।
  2. इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।
  3. दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं।
  4. बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
  5. मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
  6. बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं।
  7. इस दिन मांसाहार का परहेज होता है, क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
  8. इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
  9. पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।
  10. गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
  11. दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।

बुद्ध पूर्णिमा स्नान का महत्त्व

वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा श्रीहरि विष्णु भगवान को समर्पित होती है। शास्त्रों में पूर्णिमा को तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। वैशाख पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस पूर्णिमा को सूर्य देव अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चंद्रमा भी उच्च राशि तुला में। शास्त्रों में पूरे वैशाख माह में गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि पूर्णिमा का स्नान करने से पूरे वैशाख माह के स्नान के बराबर पुण्य मिलता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया गया स्नान मनुष्य के कई जन्मों के अधर्मी कार्यों को समाप्त कर सकता है, ऐसी मान्यता रही है।

प्रेरक प्रसंग

महात्मा बुद्ध के सद्गुणों से प्रभावित होकर बहुत-से लोग उनके शिष्य बन गए थे। आम जनमानस उनका बहुत आदर सत्कार करता था। किंतु संसार में जहां संतों का आदर सम्मान करने वाले संस्कारी लोग होते हैं, वहां अकारण ही उनसे ईर्ष्या, द्वेष करने वाले व्यक्ति भी संसार में मिल ही जाते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति महात्मा बुद्ध से अकारण ही वैर भाव रखता था और उन्हें गालियां दिया करता था। महात्मा बुद्ध उसकी गालियों का कोई उत्तर न देते। उसकी ओर देखकर मुस्कराते और आगे बढ़ जाते।

एक बार निरंतर दो दिन तक महात्मा बुद्ध को वह व्यक्ति दिखाई न दिया। उन्होंने एक शिष्य को उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा। शिष्य ने थोड़ी देर में पता लगाकर बताया कि वह व्यक्ति परसों घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहा था, मार्ग में घोड़ा अचानक बिगड़ गया और बेकाबू हो गया। वह व्यक्ति संभल न सका और नीचे गिर गया। जिससे उसे बहुत चोटें आई हैं। बिस्तर पर पड़ा वह दर्द से कराह रहा है। अपने घर में वह अकेला ही रहता है। वह चूंकि अत्यंत क्रोधी और झगड़ालू प्रकृति का है, इसलिए कोई पड़ोसी उसके पास नहीं फटकता। सारा वृतांत सुनते ही महात्मा बुद्ध का हृदय करुणा से भर गया। वे तुरंत उसके घर चल दिए और सीधे उस कमरे में पंहुचे, जहां पड़ा वह दर्द से कराह रहा था। उसके माथे पर प्यार भरा हाथ रखते हुए कहा, कैसी तबीयत है।

आवाज सुनते ही उसने आँखें खोली। महात्मा बुद्ध को देखते ही वह अपना सारा दर्द भुल गया। वह एकटक उन्हें आँखें फाड़ फाड़ कर देखने लगा। कुछ पल ऐसे ही देखता रहा, फिर उठने का प्रयास करने लगा। महात्मा बुद्ध बोले, "उठो नहीं, तुम्हें आराम की आवश्यकता है"। फिर उसके घावों को अच्छी तरह साफ करके मरहम पट्टी की, दो भिक्षुओं को वहां रहकर उसकी सेवा करने का आदेश दिया। फिर उस व्यक्ति को संबोधित करते हुए बोले, "जब तक तुम पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाते, ये दोनों यहीं रहकर तुम्हारी सेवा करेंगे"। महात्मा बुद्ध के प्रेम भरे शब्द सुनकर उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। उसने तथागत के चरणों में गिरकर अपने अनुचित व्यवहार के लिए माफी मांगी और उनका शिष्य हो गया।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मई, 2014।
  2. जब करुणा से भर गया महात्मा बुद्ध का हृदय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मई, 2014।

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