बलबीर सिंह
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पूरा नाम | बलबीर सिंह |
जन्म | 10 अक्टूबर, 1924 |
जन्म भूमि | जालंधर, पंजाब |
मृत्यु | 25 मई, 2020 |
मृत्यु स्थान | मोहाली, पंजाब |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | हॉकी |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | खालसा कॉलेज, अमृतसर |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री', (1957) |
प्रसिद्धि | हॉकी खिलाड़ी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बलबीर सिंह ने तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इन तीनों ओलंपिक (लंदन 1948, हेलसिंकी 1952, मेलबर्न 1956) में भारत ने स्वर्ण पदक जीता था। |
अद्यतन | 04:10, 25 मई-2020 (IST) |
बलबीर सिंह (अंग्रेज़ी: Balbir Singh, जन्म- 10 अक्टूबर, 1924, जालंधर, पंजाब; मृत्यु- 25 मई, 2020, मोहाली) भारत के प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ियों में गिने जाते थे। हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह का नाम आज भी शीर्ष खिलाड़ियों में लिया जाता है। वह अपने खेलने के दिनों से ही सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में एक समझे जाते रहे। उनकी आज भी भारत में ही नहीं विश्व में भी प्रशंसा होती है। उनकी हाँकी से ऐसे गोल निकलते थे, जिनका जवाब नहीं। उन्होंने तीन बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता- 1948, 1952 तथा 1956 में। वह पंजाब सरकार में खेलों के निदेशक भी रहे। मोगा में एक इनडोर स्टेडियम का नाम उनके नाम पर रखा गया है। बलबीर सिंह को 1957 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया था।
परिचय
बलबीर सिंह का जन्म 10 अक्टूबर, सन 1924 में पंजाब राज्य के जालंधर ज़िले में हरीपुर नामक स्थान पर हुआ था। वह हॉकी के बेहतरीन स्ट्राइकर समझे जाते रहे हैं। वह हॉकी टीम के सेंटर-फारवर्ड खिलाड़ी रहे तथा तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। बलबीर सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा देव समाज स्कूल तथा डी.एम. कॉलेज मोगा में हुई। उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज से स्नातक शिक्षा प्राप्त की।[1]
चंडीगढ़ में बलबीर सिंह के घर में प्रवेश करते ही दीवारों पर सजे उनके प्रशस्ति पत्र, शेल्फ में रखी ट्रॉफियां और उस दौर की दास्तां कहती तस्वीरें उनकी उपलब्धियों और भारतीय हॉकी में उनके कद की गाथा स्वत: ही कह देती हैं। लंदन ओलंपिक (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) में स्वर्ण जीतने वाले बलबीर सिंह सीनियर 1975 में एकमात्र विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के मैनेजर थे।
हेलसिंकी (1952) में उद्घाटन समारोह में भारतीय टीम के ध्वजवाहक रहे बलबीर सिंह ने सेमी फाइनल में ब्रिटेन के खिलाफ हैट्रिक लगाई और फाइनल में नीदरलैंड पर 6-1 से मिली जीत में पांच गोल दागे। वह रिकॉर्ड आज भी कायम है। हेलसिंकी ओलंपिक में बलबीर सिंह सीनियर ने भारत के 13 गोल में से नौ गोल दागे। चार साल बाद मेलबर्न में वह टीम के कप्तान थे और पहले मैच में पांच गोल दागने के बाद घायल हो गए थे। सेमीफाइनल और फाइनल उन्होंने खेला जब पाकिस्तान को एक गोल से लगातार भारत ने स्वर्ण पदकों की हैट्रिक लगाई। भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम का शायद ही कोई ऐसा मैच हो जो उन्होंने नहीं देखा हो।
बलबीर सिंह समय-समय पर खिलाड़ियों को मार्गदर्शन भी देते आए। उन्हें यकीन था कि रियो में नाकामी के बाद भारत टोक्यो ओलंपिक में जरूर पदक हासिल करेगा, लेकिन कोरोना विषाणु की महामारी के कारण ओलंपिक एक साल के लिए टल गए। बीजिंग ओलंपिक, 2008 में भारतीय टीम के क्वालिफाई नहीं कर पाने ने उन्हें आहत कर दिया था। इसके चार साल बाद लंदन ओलंपिक के दौरान आधुनिक ओलंपिक के 16 महानतम खिलाड़ियों में उन्हें चुना गया और सम्मानित किया गया, लेकिन तब भी भारतीय टीम के ओलंपिक में 12वें और आखिरी स्थान पर रहने का दु:ख उनके चेहरे पर झलक रहा था। भारतीय टीम जब 1975 में कुआलालम्पुर में विश्व कप खेलने की तैयारी कर रही थी, तब टीम मैनजर रहे बलबीर सिंह सीनियर ने अभ्यास शिविर के दौरान डोरमेट्री के दरवाजे पर सुर्ख लाल रंग से लिखवा दिया था- विश्व हॉकी की बादशाहत फिर हासिल करना ही हमारा मकसद है। भारतीय टीम ने कुआलालम्पुर विश्व कप में वही कर दिखाया था।[2]
हॉकी टीम का नेतृत्व
बलबीर सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय की हॉकी टीम का नेतृत्व किया। 1945 में अन्तर-विश्वविद्यालय चैंपियनशिप में बलबीर सिंह के नेतृत्व में पंजाब विश्वविद्यालय की टीम ने विजय प्राप्त की। जल्दी ही उनका पंजाब पुलिस में चयन हो गया। वह पंजाब पुलिस हॉकी टीम के सदस्य रहे और 1948 से 1960 के बीच अनेकों बार उनके नेतृत्व में टीम ने देश-भर में विजय प्राप्त की। उन्होंने पंजाब राज्य की उस टीम का नेतृत्व किया जिसने 1949 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती थी।
बलबीर सिंह को पहली बार 1947 में भारतीय टीम में शामिल किया गया। तब उन्होंने भारत को श्रीलंका के खिलाफ विजय दिलाई। 1950 में अफ़ग़ानिस्तान के खिलाफ तथा सिंगापुर के खिलाफ तथा 1954 में मलेशिया के खिलाफ भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने टीम को विजय दिलाई। वह ‘इंडिया वंडर्स’ टीम के भी सदस्य थे। इस टीम ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर तथा श्रीलंका के खिलाफ 1955 में अनेक मैच खेले।
'पद्मश्री' से सम्मानित
1958 में हॉकी को टोकियो एशियाई खेलों में शामिल किया गया। तब बलबीर सिंह ने ही भारतीय टीम का नेतृत्व किया। बलबीर सिंह ने तीन ओलंपिक खेलों में भाग लिया- 1948 में लंदन में, 1952 में हेलसिंकी में तथा 1956 में मेलबर्न में। हेलसिंकी में बलबीर सिंह ने भारतीय टीम की कप्तानी की और 13 में से 9 गोल उन्होंने स्वयं लगाए। मेलबर्न में भी पाकिस्तान के विरुद्ध 1956 में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता। उनकी इन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें 1957 में ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया।
कोच तथा मैनेजर
बलबीर सिंह ने जब हॉकी से खिलाड़ी के रूप में संन्यास लिया, तब उनकी मांग कोच तथा मैनेजर के रूप में होने लगी। 1962 में अहमदाबाद में अन्तरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता, बलबीर सिंह उस टीम के मैनेजर थे। उनके मैनेजर रहने पर भारतीय टीम ने निम्न अवसरों पर विजय प्राप्त की[1]-
- 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में रजत पदक जीता।
- 1971 में बार्सिलोना में विश्व हॉकी कप में कांस्य पदक जीता।
- 1982 में विश्व टूर्नामेंट, एम्सटरडम में टीम ने कांस्य पदक जीता।
- 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में टीम ने रजत पदक जीता।
जब भारतीय टीम ने 1975 में कुआलालंपुर में थर्ड वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीता, तब बलबीर सिंह भारतीय टीम के मैनेजर, कोच तथा टीम के मुख्य चयनकर्ता थे। इस टूर्नामेंट में भारत ने 11 वर्ष बाद स्वर्ण पदक जीता था, जिसका श्रेय बलबीर सिंह को जाता है। 1982 में मेलबर्न में एसांडा वर्ल्ड कप खेलने के वक्त भी भारतीय टीम के मैनेजर बलबीर सिंह थे। उन्हें अनेक बार उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया।
- मुख्य अतिथि
1974 में वाशिगंटन में केनेडी मेमोरियल इन्टरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट में बलबीर सिंह को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। उसके छह वर्ष पश्चात् 1980 में मास्को ओलंपिक में उन्हें सम्मानित अतिथि के रूप में बुलाया गया। दिल्ली में 1982 में हुए एशियाई खेलों की मशाल बलबीर सिंह ने ही प्रज्जवलित की थी।
- खेल निदेशक
बलबीर सिंह 'पंजाब राज्य खेल परिषद' के सेक्रेटरी रहे तथा 1982 में रिटायर होने तक वह पंजाब सरकार के खेल निदेशक के पद पर कार्य करते रहे। मोगा (पंजाब) में एक इन्डोर स्टेडियम का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। ध्यानचंद की भांति उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है, जिसका नाम है– ‘द गोल्डन हैट ट्रिक’।[1]
उपलब्धियां
- बलबीर सिंह ने तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इन तीनों ओलंपिक (लदंन 1948, हेलसिंकी 1952, मेलबर्न 1956) में भारत ने स्वर्ण पदक जीता।
- वह पंजाब विश्वविद्यालय टीम के कप्तान रहे।
- उन्होंने पंजाब राज्य की टीम का भी नेतृत्व किया।
- बलबीर सिंह की कप्तानी में भारतीय टीम ने 1950 में अफ़ग़ानिस्तान के तथा 1954 में सिंगापुर व मलेशिया के विरुद्ध विजय प्राप्त की।
- 1958 में टोकियो एशियाई खेलों में बलबीर सिंह भारतीय टीम के कप्तान रहे।
- उनके टीम मैनेजर रहते हुए भारतीय टीम की विजय का रिकार्ड स्वर्ण- 1962-अहमदाबाद (इन्टरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट), रजत-1970, बैंकाक (एशियाई खेल), कास्यं-1971 -बर्सिलोना (वर्ल्ड हॉकी कप), कास्यं-1982-एम्सटरडम (वर्ल्ड टूर्नामेंट), रजत-1982-दिल्ली (एशियाई खेल)।
- 1975 में थर्ड वर्ल्ड कप टूर्नामेंट, कुआलालंपुर में भारतीय टीम ने स्वर्ण जीता, तब टीम के मैनेजर, कोच ब मुख्य चयनकर्ता बलबीर सिंह थे।
- वह ‘पंजाब स्टेट स्पोर्ट्स काउंसिल’ के सेक्रेटरी रहे।
- वह 1982 में रिटायरमेंट तक पंजाब सरकार के खेल निदेशक रहे।
- 1957 में बलबीर सिंह को ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
- मोगा में उनके नाम पर स्टेडियम का नाम रखा गया है।
- बलबीर सिंह ने ‘द गोल्डन हैट ट्रिक’ नामक पुस्तक भी लिखी है।[1]
निधन
हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में शुमार बलबीर सिंह सीनियर का निधन 25 मई, 2020 को 96 साल की उम्र में मोहाली में हुआ। वे दो हफ्ते से मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती थे। इस पूर्व ओलिंपियन को 8 मई को निमोनिया और तेज बुखार की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान उन्हें तीन बार दिल का दौरा भी पड़ा। दिमाग में खून का थक्का जमने की वजह से वे 18 मई से कोमा में थे। उन्होंने सुबह साढ़े छह बजे अंतिम सांस ली।
हॉकी इंडिया ने पूर्व ओलिंपियन बलबीर सिंह के निधन पर दु:ख जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी पूर्व ओलिंपियन बलबीर सिंह के निधन पर दु:ख जताया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि- "बलबीर सिंह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे, लेकिन बतौर मेंटर भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी थी। उन्हें पूरा देश उनके खेल के लिए याद रखेगा। उन्होंने कई मौकों पर देश का सम्मान बढ़ाया।"
खेल मंत्री किरण रिजिजू ने ट्वीट किया- "भारत के महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह के निधन से गहरा दु:ख हुआ। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं।" अभिनव बिंद्रा ने कहा- "मेरे लिए उनसे सम्मान प्राप्त करना गौरव की बात थी। वे एथलीटों के लिए रोल मॉडल रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि दुनिया भर के एथलीट उनसे प्रेरणा लेते रहेंगे।" भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान सरदार सिंह ने कहा- "वह मेरे और कई हॉकी खिलाड़ियों के लिए आदर्श थे। उनकी मौत के साथ मेरी एक इच्छा हमेशा के लिए अधूरी रह जाएगी। मेरा सपना था कि मैं उनके तीन ओलिंपिक स्वर्ण पदक के साथ अपनी एक तस्वीर क्लिक करूं, लेकिन यह अब संभव नहीं है।"[3]
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 धनराज पिल्लै का जीवन परिचय (हिन्दी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2016।
- ↑ बलबीर सिंह सीनियर का निधन (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 25 मई, 2020।
- ↑ पूर्व हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह का 96 की उम्र में निधन, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- वे अच्छे खिलाड़ी होने के साथ मेंटर भी थे (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 25 मई, 2020।
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