वज्रयोगिनी बौद्धों की देवी हैं, जिन्हें 'वज्रेश्वरी' अथवा 'वज्रबाई' भी कहा गया है। इनकी पूजा नेपाल में की जाती है। 'कोटेश्वरी', 'भुवनेश्वरी', 'वत्सलेश्वरी' और 'गुह्येश्वरी' आदि प्राचीन देवियों के साथ इनका नाम है। इनका बिगड़ा हुआ रूप 'ब्रजेश्वरी' हो गया था।[1]
साकार नारी स्वरूप
वज्रयोगिनी (तांत्रिक बौद्धमत) बोधत्त्व तक पहुँचाने वाली संज्ञानात्मक प्रक्रिया का साकार नारी स्वरूप है। वज्रयान अनुमान की अपेक्षा अनुभूति पर अधिक बल देता है, परंतु यह अनुमानिक दार्शनिक बौद्ध शब्दावली का कल्पनाशील प्रयोग करता है। व्रजयोगिनी को 'डाकिनी' भी कहा गया है। इस पद्धति का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के सामान्य जीवन से ली गई छवियाँ मानव अस्तित्त्व को गहराई से समझने का माध्यम बन जाती हैं, जिसमें ‘उपाय और प्रज्ञा’ एक-दूसरे को बल देती हैं।
पौराणिक मान्यता
जालंधर पीठ में व्रजेश्वरी देवी का मंदिर है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिव ने सती के मृत शरीर को लेकर जब तांडव नृत्य किया, तो उनका शव 84 खंडों में बिखरकर धरती पर गिरा था। जालंधर में इनका स्तन भाग गिरा, यही स्तनपीठ की व्रजेश्वरी देवी कही जाती हैं। कुछ लोंगो का मानना है कि जालंधर दैत्य का वध करने के कारण शिव पाप से ग्रस्त हो गए थे और जब जालंधर पीठ में आकर उन्होंने तारा देवी की उपासना की, तब इनका पाप दूर हुआ था। यहाँ की अधिष्ठात्री देवी 'त्रिशक्ति' अर्थात् त्रिपुरा, काली और तारा हैं, लेकिन स्तन की अधिष्ठात्री देवी व्रजेश्वरी ही मुख्य देवी हैं। इन्हें 'विद्याराज्ञी' भी कहते हैं। स्तनपीठ में विद्याराज्ञी देवी के चक्र और आद्या त्रिपुरा की पिंडी की स्थापना है।[1]
स्वरूप
प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और कपाल होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा-सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 वज्रेश्वरी (हिन्दी) हिन्दी विश्वकोश। अभिगमन तिथि: 17 जून, 2015।
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