"आंसू (सूक्तियाँ)": अवतरणों में अंतर

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09:51, 24 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के हृदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। टैगोर
(2) नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। जयशंकर प्रसाद
(3) मेरी एक प्रबल कामना है की मैं कम से कम एक आँख का आंसू पोछ दूं। महात्मा गाँधी
(4) सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। बुद्ध
(5) शरीर के मामले में जो स्‍थान साबुन का है, वही आत्‍मा के सन्‍दर्भ में आंसू का है। अज्ञात
(6) दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। प्रेमचंद
(7) संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। खलील जिब्रान
(8) शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के संदर्भ में आंसू का है। यहूदी कहावत
(9) दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं। माल्कम एक्स
(10) यदि तुम सूर्य के खो जाने पर आंसू बहाओगे, तो तारों को भी खो बैठोगे। रवींद्रनाथ टैगोर


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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