"जातक के अनमोल वचन": अवतरणों में अंतर

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* जिस बात से एक की प्रशंसा होती है, उसी बात से दूसरा निंदित होता है।   
* जिस बात से एक की प्रशंसा होती है, उसी बात से दूसरा निंदित होता है।   
* झुकने वाले के सामने झुकें। संगति करने वाले के साथ संगति करें।  
* झुकने वाले के सामने झुकें। संगति करने वाले के साथ संगति करें।  
* मनुष्य को चाहिए कि वह दुख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े।   
* मनुष्य को चाहिए कि वह दु:ख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े।   
* दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।   
* दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।   
* निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।   
* निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।   

14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

जातक के अनमोल वचन
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे।
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता।
  • जिस बात से एक की प्रशंसा होती है, उसी बात से दूसरा निंदित होता है।
  • झुकने वाले के सामने झुकें। संगति करने वाले के साथ संगति करें।
  • मनुष्य को चाहिए कि वह दु:ख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े।
  • दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।
  • निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।
  • वह विजय अच्छी विजय नहीं है, जिसमें फिर से पराजय हो। वही विजय अच्छी है, जिस विजय की फिर विजय न हो।
  • जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता।
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता।


इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत



टीका टिप्पणी और संदर्भ


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