"अश्वघोष के अनमोल वचन": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) ('<div style="float:right; width:98%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> {| width="98%" class="bharattable-purple" style="float:ri...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
* विषयों की खोज में | * विषयों की खोज में दु:ख है। उनकी प्राप्ति होने पर तृप्ति नहीं होती। उनका वियोग होने पर शोक होना निश्चित है। | ||
* धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। | * धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। | ||
* आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। | * आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। | ||
* सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा। | * सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा। | ||
* स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। | * स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। | ||
* जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के | * जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। | ||
* शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है। | * शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है। | ||
* जिस प्रकार [[बादल]] एकत्र होकर फिर अलग हो जाते हैं , उसी प्रकार प्राणियों का संयोग और वियोग है। | * जिस प्रकार [[बादल]] एकत्र होकर फिर अलग हो जाते हैं , उसी प्रकार प्राणियों का संयोग और वियोग है। |
13:31, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
अश्वघोष के अनमोल वचन |
---|
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख