"कथावत्थु": अवतरणों में अंतर

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====अशोक द्वारा सभा बुलाना====
====अशोक द्वारा सभा बुलाना====
इतने वैभिन्य और विवाद को देखकर मूल बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए अशोक ने बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद 253 अथवा 246 ई.पू. में [[पाटलिपुत्र]] में [[बौद्ध]] भिक्षुओं की एक सभा बुलाई, जिसके सभापति स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने 18 निकायों में से केवल 'थेरवाद' या 'स्थविरवाद' को मूल बौद्ध धर्म मानकर शेष 17 निकायों के दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण किया और उसे 'कथावत्थुप्पकरण' नामक ग्रंथ में प्रस्तुत किया। यह [[ग्रंथ]] उसी समय से '[[अभिधम्मपिटक]]' का अंग माना जाने लगा।  
इतने वैभिन्य और विवाद को देखकर मूल बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए अशोक ने बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद 253 अथवा 246 ई.पू. में [[पाटलिपुत्र]] में [[बौद्ध]] भिक्षुओं की एक सभा बुलाई, जिसके सभापति स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने 18 निकायों में से केवल 'थेरवाद' या 'स्थविरवाद' को मूल बौद्ध धर्म मानकर शेष 17 निकायों के दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण किया और उसे 'कथावत्थुप्पकरण' नामक ग्रंथ में प्रस्तुत किया। यह [[ग्रंथ]] उसी समय से '[[अभिधम्मपिटक]]' का अंग माना जाने लगा।  
==विषयवस्तु==
==विषयवस्तु==
इस ग्रंथ में विरोधी संप्रदायों के 216 सिद्धांतों का खंडन है, जिसे 23 अध्यायों में विभक्त किया गया है, किंतु उक्त विरोधी संप्रदायों का नामोल्लेख इसमें नहीं मिलता। उन संप्रदायों के नामों का पता पाँचवीं [[शताब्दी]] में आचार्य बुद्धघोष द्वारा लिखित 'कथावत्थु अट्ठकथा' (कथावस्तु अर्थकथा) नामक ग्रंथ से लगता है, जिसमें निराकृत 216 सिद्धांतों को 17 संप्रदायों से पृथक-पृथक रूप में संबद्ध भी किया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि कथावत्थु में कुछ अशोक परवर्ती संप्रदायों के भी दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण मिलता है। यह तो पूर्णतया स्पष्ट है कथावत्थु में संप्रदायों के नामों का उल्लेख नहीं है। अत: यह अनुमान स्वाभाविक है कि मोग्गलिपुत्त तिस्स के समय में जो सिद्धांत जीवित थे, वे ही बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए।<ref name="aa"/>
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====अनुवर्तन====
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इस कथावत्थु का अनुवर्तन बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए। कथावत्थु का अनुवर्तन बाद के '[[दीपवंश]]' और '[[महावंश]]' जैसे ग्रंथों में मिलता है। प्रथम ईस्वी शताब्दी में रचित '[[मिलिंदपन्हो]]' नाम के प्रसिद्ध [[बौद्ध]] ग्रंथ के उपदेष्टा भदंत नागसेन के ऊपर भी कथावत्थु का पर्याप्त प्रभाव माना जाता है। अनेक लोगों का मत है कि 'मिलिंदपन्हो' के रचयिता भदंत नागसेन ही थे। इस प्रकार कथावत्थु का महत्व स्थविरवादी सिद्धांत, तद्विरोधी मतों के सैद्धांतिक परिचय, उनके उदय के [[इतिहास]] आदि की दृष्टि से सर्वथा स्वीकार्य है।
इस कथावत्थु का अनुवर्तन बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए। कथावत्थु का अनुवर्तन बाद के '[[दीपवंश]]' और '[[महावंश]]' जैसे ग्रंथों में मिलता है। प्रथम ईस्वी शताब्दी में रचित '[[मिलिंदपन्हो]]' नाम के प्रसिद्ध [[बौद्ध]] ग्रंथ के उपदेष्टा भदंत नागसेन के ऊपर भी कथावत्थु का पर्याप्त प्रभाव माना जाता है। अनेक लोगों का मत है कि 'मिलिंदपन्हो' के रचयिता भदंत नागसेन ही थे। इस प्रकार कथावत्थु का महत्व स्थविरवादी सिद्धांत, तद्विरोधी मतों के सैद्धांतिक परिचय, उनके उदय के [[इतिहास]] आदि की दृष्टि से सर्वथा स्वीकार्य है।

12:23, 25 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

कथावत्थु स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स की लिखी हुई एक स्थविरवादी रचना है, जिसका समय लगभग तीसरी शताब्दी ई.पू. माना जाता है। इस ग्रंथ में विरोधी संप्रदायों के 216 सिद्धांतों का खंडन है, जिसे 23 अध्यायों में विभक्त किया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि 'कथावत्थु' में कुछ अशोक परवर्ती संप्रदायों के दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण मिलता है।

बुद्ध का निर्वाण

बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 100 वर्ष बाद वज्जिपुत्तक भिक्षुओं ने संघ के अनुशासन का उल्लंघन किया और 'महासंघिक' नामक संप्रदाय की स्थापना की, जिसमें पाँच और शाखाओं का उद्भव बाद में हुआ। पहले जिस बौद्ध धर्म को 'प्रथम बौद्ध संगीति' में एक निश्चित रूप प्राप्त हुआ था, उसमें अशोक के समय तक आते-आते 11 संप्रदाय और उदित हो गए थे। इस प्रकार सब मिलाकर, ऐसा माना जाता है कि ई.पू. तीसरी शताब्दी तक बौद्ध धर्म में कुल 18 संप्रदाय प्रचार में आ चुके थे।[1]

अशोक द्वारा सभा बुलाना

इतने वैभिन्य और विवाद को देखकर मूल बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए अशोक ने बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद 253 अथवा 246 ई.पू. में पाटलिपुत्र में बौद्ध भिक्षुओं की एक सभा बुलाई, जिसके सभापति स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने 18 निकायों में से केवल 'थेरवाद' या 'स्थविरवाद' को मूल बौद्ध धर्म मानकर शेष 17 निकायों के दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण किया और उसे 'कथावत्थुप्पकरण' नामक ग्रंथ में प्रस्तुत किया। यह ग्रंथ उसी समय से 'अभिधम्मपिटक' का अंग माना जाने लगा।

विषयवस्तु

इस ग्रंथ में विरोधी संप्रदायों के 216 सिद्धांतों का खंडन है, जिसे 23 अध्यायों में विभक्त किया गया है, किंतु उक्त विरोधी संप्रदायों का नामोल्लेख इसमें नहीं मिलता। उन संप्रदायों के नामों का पता पाँचवीं शताब्दी में आचार्य बुद्धघोष द्वारा लिखित 'कथावत्थु अट्ठकथा' (कथावस्तु अर्थकथा) नामक ग्रंथ से लगता है, जिसमें निराकृत 216 सिद्धांतों को 17 संप्रदायों से पृथक-पृथक् रूप में संबद्ध भी किया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि कथावत्थु में कुछ अशोक परवर्ती संप्रदायों के भी दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण मिलता है। यह तो पूर्णतया स्पष्ट है कथावत्थु में संप्रदायों के नामों का उल्लेख नहीं है। अत: यह अनुमान स्वाभाविक है कि मोग्गलिपुत्त तिस्स के समय में जो सिद्धांत जीवित थे, वे ही बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए।[1]

अनुवर्तन

इस कथावत्थु का अनुवर्तन बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए। कथावत्थु का अनुवर्तन बाद के 'दीपवंश' और 'महावंश' जैसे ग्रंथों में मिलता है। प्रथम ईस्वी शताब्दी में रचित 'मिलिंदपन्हो' नाम के प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ के उपदेष्टा भदंत नागसेन के ऊपर भी कथावत्थु का पर्याप्त प्रभाव माना जाता है। अनेक लोगों का मत है कि 'मिलिंदपन्हो' के रचयिता भदंत नागसेन ही थे। इस प्रकार कथावत्थु का महत्व स्थविरवादी सिद्धांत, तद्विरोधी मतों के सैद्धांतिक परिचय, उनके उदय के इतिहास आदि की दृष्टि से सर्वथा स्वीकार्य है।


इन्हें भी देखें: बौद्ध धर्म, दीपवंश एवं महावंश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कथावत्थु (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2014।

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