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| |'''ज्ञान का सागर - अनमोल वचन''' | | |'''अनमोल वचन''' |
| # संसार की चिंता में पढ़ना तुम्हारा काम नहीं है, बल्कि जो सम्मुख आये, उसे भगवद रूप मानकर उसके अनुरूप उसकी सेवा करो।
| | ==अ== |
| # संसार के सारे दु:ख चित्त की मूर्खता के कारण होते हैं। जितनी मूर्खता ताकतवर उतना ही दुःख मज़बूत, जितनी मूर्खता कम उतना ही दुःख कम। मूर्खता हटी तो समझो दुःख छू-मंतर हो जायेगी।
| | * अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। |
| # संसार का सबसे बड़ानेता है - सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा कार्य में संलग्न रहता है।
| | * अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। |
| # संसार कार्यों से, कर्मों के परिणामों से चलता है।
| | * अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता। |
| # संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया।
| | * अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। |
| # संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं।
| | * अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के। |
| # सारा संसार ऐसा नहीं हो सकता, जैसा आप सोचते हैं, अतः समझौतावादी बनो।
| | * अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा। |
| # सात्त्विक स्वभाव सोने जैसा होता है, लेकिन सोने को आकृति देने के लिये थोड़ा - सा पीतल मिलाने कि जरुरत होती है।
| | * अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं। |
| # सन्यासी स्वरुप बनाने से अहंकार बढ़ता है, कपडे मत रंगवाओ, मन को रंगों तथा भीतर से सन्यासी की तरह रहो।
| | * अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है। |
| # सन्यास डरना नहीं सिखाता।
| | * अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। |
| # सभी मन्त्रों से महामंत्र है - कर्म मंत्र, कर्म करते हुए भजन करते रहना ही प्रभु की सच्ची भक्ति है।
| | * अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें। |
| # संयम की शक्ति जीवं में सुरभि व सुगंध भर देती है।
| | * अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है। |
| # सच्चा '''दान''' वही है, जिसका प्रचार न किया जाए।
| | * अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है। |
| # सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
| | * अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है। |
| # सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है।
| | * अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। |
| # सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
| | * अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है। |
| # समाज में कुछ लोग ताकत इस्तेमाल कर दोषी व्यक्तियों को बचा लेते हैं, जिससे दोषी व्यक्ति तो दोष से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति क़ानून की गिरफ्त में आ जाता है। इसे नैतिक पतन का तकाजा ही कहा जायेगा।
| | * अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है। |
| # समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता।
| | * अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है। |
| # सामाजिक और धार्मिक शिक्षा व्यक्ति को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाती है।
| | * अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी। |
| # सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में जो विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं टपकी हैं, वरन् हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया है।
| | * अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है। |
| # सैकड़ों गुण रहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान पुत्र होना अच्छा है; क्योंकि रात्रि के समय हज़ारों तारों की उपेक्षा एक चन्द्रमा से ही प्रकाश फैलता है।
| | * अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें। |
| # सत्य भावना का सबसे बड़ा धर्म है।
| | * अपनी स्वंय की [[आत्मा]] के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है। |
| # सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।
| | * अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं। |
| # सत्य बोलने तक सीमित नहीं, वह चिंतन और कर्म का प्रकार है, जिसके साथ ऊंचा उद्देश्य अनिवार्य जुड़ा होता है।
| | * अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं। |
| # सत्य का पालन ही राजाओं का दया प्रधान सनातन अचार था। राज्य सत्य स्वरुप था और सत्य में लोक प्रतिष्ठित था।
| | * अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। |
| # सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य से उत्तम कुछ भी नहीं हैं और जूठ से बढ़कर तीव्रतर पाप इस जगत में दूसरा नहीं है।
| | * अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। |
| # सत्य बोलते समय हमारे शरीर पर कोई दबाव नहीं पड़ता, लेकिन झूठ बोलने पर हमारे शरीर पर अनेक प्रकार का दबाव पड़ता है, इसलिए कहा जाता है कि सत्य के लिये एक हाँ और झूठ के लिये हज़ारों बहाने ढूँढने पड़ते हैं।
| | * अपनी महान् संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है। |
| # सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।
| | * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। |
| # '''सत्य''' एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती।
| | * अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। |
| # '''सत्य''' ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है।
| | * अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। |
| # सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, मान-अपमान, निंदा-स्तुति, ये द्वन्द निरंतर एक साथ जगत में रहते हैं और ये हमारे जीवन का एक हिस्सा होते हैं, दोनों में भगवान को देखें।
| | * अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं। |
| # सुख - दुःख जीवन के दो पहलू हैं, धूप व छांव की तरह।
| | * अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए। |
| # सुखों का मानसिक त्याग करना ही सच्चा सुख है जब तक व्यक्ति लौकिक सुखों के आधीन रहता है, तब तक उसे अलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं हों सकती, क्योंकि सुखों का शारीरिक त्याग तो आसान काम है, लेकिन मानसिक त्याग अति कठिन है।
| | * अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे। |
| # स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नहीं हैं, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे।
| | * अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। |
| # स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है।
| | * अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है। |
| # सभ्यता एवं संस्कृति में जितना अंतर है, उतना ही अंतर उपासना और धर्म में है।
| | * अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। |
| # सदा, सहज व सरल रहने से आतंरिक खुशी मिलती है।
| | * अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी ख़रीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली। |
| # सब कर्मों में आत्मज्ञान श्रेष्ठ समझना चाहिए; क्योंकि यह सबसे उत्तम विद्या है। यह अविद्या का नाश करती है और इससे मुक्ति प्राप्त होती है।
| | * अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। |
| # सब जीवों के प्रति मंगल कामना धर्म का प्रमुख ध्येय है।
| | * अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है। |
| # सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं।
| | * अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है। |
| # सारे काम अपने आप होते रहेंगे, फिर भी आप कार्य करते रहें। निरंतर कार्य करते रहें, पर उसमें ज़रा भी आसक्त न हों। आप बस कार्य करते रहें, यह सोचकर कि अब हम जा रहें हैं बस, अब जा रहे हैं।
| | * अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है। |
| # समय मूल्यवान है, इसे व्यर्थ नष्ट न करो। आप समय देकर धन पैदा कर रखते हैं और संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन स्मरण रहे - सब कुछ देकर भी समय प्राप्त नहीं कर सकते अथवा गए समय को वापिस नहीं ला सकते।
| | * अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। |
| # समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए।
| | * अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। |
| # समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है, जो उसे नष्ट करता रहता है।
| | * अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंज़िल मानो। |
| # '''समय''' महान चिकित्सक है।
| | * अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन् उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है। |
| # '''समय''' किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
| | * अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। |
| # संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।
| | * अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। |
| # सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है।
| | * अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है। |
| # सलाह सबकी सुनो पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
| | * अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। |
| # स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
| | * अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते। |
| # सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।
| | * अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। |
| # सद्गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।
| | * अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। |
| # सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।
| | * अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। |
| # सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए।
| | * अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर ग़रीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है। |
| # समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कर्तव्य -कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।
| | * असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। |
| # सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।
| | * अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। |
| # सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।
| | * अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास। |
| # सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय।
| | * असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ। |
| # सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है।
| | * असफलता मुझे स्वीकार्य है किन्तु प्रयास न करना स्वीकार्य नहीं है। |
| # सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है।
| | * असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। |
| # स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।
| | * अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे। |
| # संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए।
| | * असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। |
| # संकल्प ही मनुष्य का बल है।
| | * अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं। |
| # सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है।
| | * अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है। |
| # सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी।
| | * अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता। |
| # '''सुख''' बाहर से नहीं भीतर से आता है।
| | * अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती। |
| # सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है।
| | * अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता। |
| # स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी।
| | * अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी। |
| # सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है।
| | * अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है। |
| | | * अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है। |
| # अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना।
| | * अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। |
| # अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
| | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। |
| # अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है।
| | * अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। |
| # अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ।
| | * असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंज़िल नहीं मिलती। |
| # आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है।
| | * अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। |
| # अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें।
| | * असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। |
| # अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है।
| | * 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। |
| # अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे।
| | * अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। |
| # अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं।
| | * अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है। |
| # अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
| | * अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो। |
| # अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे।
| | * अन्धेरी रात के बाद चमकीला सुबह अवश्य ही आता है। |
| # अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के।
| | * अब भगवान [[गंगाजल]], गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। |
| # अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
| | * अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं। |
| # अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।
| | * अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है। |
| # अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
| | * अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं। |
| # अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है।
| | * अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। |
| # अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।
| | * अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। |
| # अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
| | * अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख़ बनाए रहें। |
| # अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
| | * अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं। |
| # अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है।
| | * अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी। |
| # आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं।
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| # अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें।
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| # अपनी स्वंय की [[आत्मा]] के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है।
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| # अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
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| # अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंजिल मानो।
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| # अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है।
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| # अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।
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| # अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
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| # अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।
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| # अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
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| # अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
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| # अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।
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| # अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।
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| # अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
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| # अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
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| # आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।
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| # असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
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| # अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
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| # असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
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| # अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।
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| # अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
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| # आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
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| # असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
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| # अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
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| # अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
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| # अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
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| # अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
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| # आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
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| # अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
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| # आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
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| # आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
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| # '''आत्मविश्वासी''' कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।
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| # अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
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| # अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है।
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| # '''अहिंसा''' सर्वोत्तम धर्म है।
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| # अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।
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| # अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
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| # अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है।
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| # अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
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| # आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
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| # आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
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| # असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती।
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| # '''आयुर्वेद''' हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है।
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| # '''आयुर्वेद''' वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है।
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| # आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा।
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| # जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं।
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| # जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है।
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| # जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो।
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| # जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।
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| # जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।
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| # जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ।
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| # जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।
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| # जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है।
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| # जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो।
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| # जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो।
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| # जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं।
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| # जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है।
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| # जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।
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| # जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।
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| # जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है।
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| # जब-जब [[हृदय]] की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है।
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| # जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है।
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| # जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है।
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| # जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं।
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| # जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती।
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| # जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है।
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| # जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं।
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| # जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं।
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| # जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो।
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| # जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं।
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| # जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते।
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| # जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं।
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| # जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए।
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| # जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है।
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| # जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा।
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| # जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है।
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| # जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है।
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| # जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है।
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| # जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
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| # जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है।
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| # जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।
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| # जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है।
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| # जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है।
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| # जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता।
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| # जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है।
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| # जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए।
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| # जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो।
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| # जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है।
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| # जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं।
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| # जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है।
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| # जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है।
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| # जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।
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| # जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है।
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| # जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं।
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| # ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है।
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| # जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।
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| # जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है।
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| # जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।
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| # जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता।
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| # जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है।
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| # जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है।
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| # जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
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| # जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
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| # जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता।
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| # जैसा अन्न, वैसा मन।
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| # जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है।
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| # '''जीवन''' को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना जीवन का अपमान है।
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| # जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया।
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| # जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं।
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| # जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है।
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| # जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है।
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| # जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।।
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| # मनुष्य को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
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| # मनुष्य का मन कछुए की भाँति होना चाहिए, जो बाहर की चोटें सहते हुए भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे मंजिल पर पहुँच जाता है।
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| # मनुष्य की सफलता के पीछे मुख्यता उसकी सोच, शैली एवं जीने का नज़रिया होता है।
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| # मनुष्य अपने अंदर की बुराई पर ध्यान नहीं देता और दूसरों की उतनी ही बुराई की आलोचना करता है, अपने पाप का तो बड़ा नगर बसाता है और दूसरे का छोटा गाँव भी ज़रा-सा सहन नहीं कर सकता है।
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| # मनुष्य का जीवन तीन मुख्य तत्वों का समागम है - शरीर, विचार एवं मन।
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| # मनुष्य जीवन का पूरा विकास ग़लत स्थानों, ग़लत विचारों और ग़लत दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है।
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| # मनुष्य के भावों में प्रबल रचना शक्ति है, वे अपनी दुनिया आप बसा लेते हैं।
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| # मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल कर जीने की प्रक्रिया भी हाथ न आए।
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| # '''मनुष्य''' परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।
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| # मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे।
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| # मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है।
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| # मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है।
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| # '''मां''' है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ।
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| # माँ-बेटी का रिश्ता इतना अनूठा, इतना अलग होता है कि उसकी व्याख्या करना मुश्किल है, इस रिश्ते से सदैव पहली बारिश की फुहारों-सी ताजगी रहती है, तभी तो माँ के साथ बिताया हर क्षण होता है अमिट, अलग उनके साथ गुज़ारा हर पल शानदार होता है।
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| # मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है।
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| # महान प्यार और महान उपलब्धियों के खतरे भी महान होते हैं।
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| # महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बहुत कष्ट सहना पड़ता है, जो तप के समान होता है; क्योंकि ऊंचाई पर स्थिर रह पाना आसान काम नहीं है।
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| # मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है।
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| # मन की शांति के लिये अंदरूनी संघर्ष को बंद करना ज़रूरी है, जब तक अंदरूनी युद्ध चलता रहेगा, शांति नहीं मिल सकती।
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| # मन-बुद्धि की भाषा है - मैं, मेरी, इसके बिना बाहर के जगत का कोई व्यवहार नहीं चलेगा, अगर अंदर स्वयं को जगा लिया तो भीतर तेरा-तेरा शुरू होने से व्यक्ति परम शांति प्राप्त कर लेता है।
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| # मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्द्रीय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं।
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| # मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से जीवन की दिशाएँ बनती और मुड़ती रहती हैं।
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| # महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है।
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| # मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।
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| # मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है।
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| # '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता।
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| # मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
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| # मुस्कान प्रेम की भाषा है।
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| # मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ।
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| # मेरे मस्तिष्क में ब्रह्माण्ड सा तेज़, मेधा, प्रज्ञा व विवेक है।
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| # मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, 'माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:'।
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| # मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ।
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| # मैं सदा प्रभु में हूँ, मेरा प्रभु सदा मुझमें है।
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| # मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने इस पवित्र भूमि व देश में जन्म लिया है।
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| # मैं अपने जीवन पुष्प से माँ भारती की आराधना करुँगा।
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| # मैं पुरुषार्थवादी, राष्ट्रवादी, मानवतावादी व अध्यात्मवादी हूँ।
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| # मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ।
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| # मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है।
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| # '''माता-पिता''' के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं।
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| # 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव' की संस्कृति अपनाओ!
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| # माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है।
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| # मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं।
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| # पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है।
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| # पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र।
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| # पापों का नाश प्रायश्चित करने और इससे सदा बचने के संकल्प से होता है।
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| # परमात्मा वास्तविक स्वरुप को न मानकर उसकी कथित पूजा करना अथवा अपात्र को दान देना, ऐसे कर्म क्रमश: कोई कर्म-फल प्राप्त नहीं कराते, बल्कि पाप का भागी बनाते हैं।
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| # परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव के समान अपने स्वयं के गुण, कर्म व स्वभावों को समयानुसार धारण करना ही परमात्मा की सच्ची पूजा है।
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| # पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए।
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| # परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है।
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| # प्रेम करने का मतलब सम-व्यवहार ज़रूरी नहीं, बल्कि समभाव होना चाहिए, जिसके लिये घोड़े की लगाम की भाँति व्यवहार में ढील देना पड़ती है और कभी खींचना भी ज़रूरी हो जाता है।
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| # पूर्वजों के गुणों का अनुसरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
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| # पांच वर्ष की आयु तक पुत्र को प्यार करना चाहिए। इसके बाद दस वर्ष तक इस पर निगरानी राखी जानी चाहिए और ग़लती करने पर उसे दण्ड भी दिया जा सकता है, परन्तु सोलह वर्ष की आयु के बाद उससे मित्रता कर एक मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए।
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| # पूरी दुनिया में 350 धर्म हैं, हर '''धर्म''' का मूल तत्व एक ही है, परन्तु आज लोगों का धर्म की उपेक्षा अपने-अपने भजन व पंथ से अधिक लगाव है।
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| # परमार्थ मानव जीवन का सच्चा स्वार्थ है।
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| # परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई धर्म नहीं।
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| # परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही।
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| # '''पाप''' अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है।
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| # पाप की एक शाखा है - असावधानी।
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| # प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है।
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| # पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा।
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| # प्रतिभावान् व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है।
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| # पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही कैसे जाए?
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| # पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है?
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| # प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है।
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| # प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।
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| # पूरी तरह तैरने का नाम तीर्थ है। एक मात्र पानी में डुबकी लगाना ही तीर्थस्नान नहीं।
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| # प्रचंड वायु में भी पहाड़ विचलित नहीं होते।
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| # प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते हैं।
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| # प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।
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| # प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है।
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| # प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं।
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| # प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है।
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| # पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं।
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| # पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मृत्यु है।
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| # पवित्र विचार प्रवाह ही मधुर व प्रभावशाली वाणी का मूल स्रोत है।
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| # प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।
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| # कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों?
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| # क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है।
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| # कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना।
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| # किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है।
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| # किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है।
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| # कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे।
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| # कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं।
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| # किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।
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| # कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता।
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| # किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।
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| # कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।
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| # करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है।
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| # किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।
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| # कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती।
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| # काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।
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| # किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
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| # कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है।
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| # कर्म सरल है, विचार कठिन।
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| # कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं।
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| # कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं।
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| # '''कर्म''' ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है।
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| # यदि तुम फूल चाहते हो तो जल से पौधों को सींचना भी सीखो।
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| # यदि कोई दूसरों की जिन्दगी को खुशहाल बनाता है तो उसकी जिन्दगी अपने आप खुशहाल बन जाती है।
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| # यदि व्यक्ति के संस्कार प्रबल होते हैं तो वह नैतिकता से भटकता नहीं है।
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| # यदि पुत्र विद्वान और माता-पिता की सेवा करने वाला न हो तो उसका धरती पर जन्म लेना व्यर्थ है।
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| # यदि ज़्यादा पैसा कमाना हाथ की बात नहीं तो कम खर्च करना तो हाथ की बात है; क्योंकि खर्चीला जीवन बनाना अपनी स्वतन्त्रता को खोना है।
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| # यज्ञ, दान और तप से त्याग करने योग्य कर्म ही नहीं, अपितु अनिवार्य कर्त्तव्य कर्म भी हैं; क्योंकि यज्ञ, दान व तप बुद्धिमान लोगों को पवित्र करने वाले हैं।
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| # यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच से दूसरे का नुकसान होता हो तो, ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए।
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| # यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है।
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| # यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं।
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| # यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते।
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| # यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे, तो हम कभी भी माँ-बाप के कृतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति के ज़मीन से पैर नहीं उखड़ने देती।
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| # दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है।
| | ==आ== |
| # दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है।
| | * आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है। |
| # दुःख देने वाले और हृदय को जलाने वाले बहुत से पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ होता है।
| | * आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता। |
| # दूसरों के जैसे बनने के प्रयास में अपना निजीपन नष्ट मत करो।
| | * आसक्ति संकुचित वृत्ति है। |
| # दिन में अधूरी इच्छा को व्यक्ति रात को स्वप्न के रूप में देखता है, इसलिए जितना मन अशांत होगा, उतने ही अधिक स्वप्न आते हैं।
| | * आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है। |
| # दो प्रकार की प्रेरणा होती है- एक बाहरी व दूसरी अंतर प्रेरणा, आतंरिक प्रेरणा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है; क्योंकि वह स्वयं की निर्मात्री होती है।
| | * आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं। |
| # दान की वृत्ति दीपक की ज्योति के समान होनी चाहिए, जो समीप से अधिक प्रकाश देती है और ऐसे दानी अमरपद को प्राप्त करते हैं।
| | * आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। |
| # दुष्कर्म स्वत: ही एक अभिशाप है, जो कर्ता को भस्म किये बिना नहीं रहता।
| | * आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है। |
| # दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए।
| | * '''आयुर्वेद''' हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है। |
| # दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए।
| | * आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है। |
| # दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है।
| | * आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा। |
| # दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है।
| | * '''आत्मा''' को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है। |
| # दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं।
| | * आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। - वाङ्गमय |
| # दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है।
| | * आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है। |
| # दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।
| | * आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। |
| | * आत्म निर्माण का अर्थ है - भाग्य निर्माण। |
| | * आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन् अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है। |
| | * आत्मा की पुकार अनसुनी न करें। |
| | * आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है। |
| | * आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें। |
| | * आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है। |
| | * '''आत्मबल''' ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है। |
| | * आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है। |
| | * आत्म निर्माण ही युग निर्माण है। |
| | * '''आत्मविश्वासी''' कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं। |
| | * आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है। |
| | * आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है। |
| | * आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है। |
| | * आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है। |
| | * आज के काम कल पर मत टालिए। |
| | * आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है। |
| | * आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। |
| | * आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है। |
| | * आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं। |
| | * आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है। |
| | * आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। |
| | * आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं। |
| | * आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो। |
| | * आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। |
| | * आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना। |
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| # हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है।
| | ==इ== |
| # हर व्यक्ति संवेदनशील होता है, पत्थर कोई नहीं होता; लेकिन सज्जन व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव पानी की लकीर की भाँति होता है।
| | * इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। |
| # हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है।
| | * इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। |
| # हीन से हीन प्राणी में भी एकाध गुण होते हैं। उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है।
| | * इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। |
| # हमें अपने अभाव एवं स्वभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं।
| | * इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं। |
| # हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है।
| | * इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। |
| # हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
| | * इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। |
| # हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है।
| | * इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दु:ख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। |
| # हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है।
| | * 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। |
| # हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है।
| | * इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। |
| # हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
| | * इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है। |
| # हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।
| | * इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। |
| # हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए।
| | * इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है। |
| | * इतिहास और पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित हो जाते हैं। |
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| # इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है।
| | ==ई== |
| # इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
| | * '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। |
| # इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
| | * ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। |
| # '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।
| | * ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। |
| # '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
| | * ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। |
| # ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
| | * ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया। |
| # इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
| | * ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया। |
| # 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
| | * '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। |
| # इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
| | * ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। |
| | * ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। |
| | * ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। |
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| # '''रोग''' का सूत्रपान मानव मन में होता है।
| | ==उ== |
| # राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है।
| | * उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। |
| # राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है।
| | * उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। |
| # राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है।
| | * उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंज़िल प्राप्त न हो जाये। |
| # राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न होती है।
| | * उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। |
| # राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है। प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं।
| | * उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता। |
| # राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रान्तियाँ हुई हैं। उन परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला हो, सच्ची बात यह रही है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान् व्यक्तियों ने उन क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल बनाया।
| | * उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। |
| # राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता।
| | * उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है। |
| # राग-द्वेष की भावना अगर प्रेम, सदाचार और कर्त्तव्य को महत्त्व दें तो, मन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
| | * उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। |
| | * उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो! |
| | * उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। |
| | * ‘उत्तम होना’ एक कार्य नहीं बल्कि स्वभाव होता है। |
| | * उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। |
| | * उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। |
| | * उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। |
| | * उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। |
| | * उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। |
| | * उन्नति के किसी भी अवसर को खोना नहीं चाहिए। |
| | * उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। |
| | * उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। |
| | * उद्धेश्य निश्चित कर लेने से आपके मनोभाव आपके आशापूर्ण विचार आपकी महत्वकांक्षाये एक चुम्बक का काम करती हैं। वे आपके उद्धेश्य की सिद्धी को सफलता की ओर खींचती हैं। |
| | * उद्धेश्य प्राप्ति हेतु कर्म, विचार और भावना का धु्रवीकरण करना चाहिये। |
| | * उनसे कभी मित्रता न कर, जो तुमसे बेहतर नहीं। |
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| # फल की सुरक्षा के लिये छिलका जितना जरूरी है, धर्म को जीवित रखने के लिये सम्प्रदाय भी उतना ही काम का है।
| | ==ऊ== |
| # फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण न कर सको।<br>
| | * ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। |
| | * ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। |
| | * ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान् है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। |
| | * ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। |
| | * ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी। |
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| # व्रतों से सत्य सर्वोपरि है।
| | ==ए== |
| # विधा, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च करो, उतना ही बढ़ते हैं।
| | * एक ही पुत्र यदि विद्वान् और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। |
| # वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है।
| | * एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। |
| # वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
| | * एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। |
| # वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
| | * एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। |
| # व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं।
| | * एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। |
| # विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।
| | * एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। |
| # व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है।
| | * एकाग्रता से ही विजय मिलती है। |
| # वह मनुष्य विवेकवान् है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है।
| | * एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है। |
| # विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं।
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| # '''वृद्धावस्था''' बीमारी नहीं, विधि का विधान है, इस दौरान सक्रिय रहें।
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| # विपरीत दिशा में कभी न घबराएं, बल्कि पक्की ईंट की तरह मज़बूत बनना चाहिय और जीवन की हर चुनौती को परीक्षा एवं तपस्या समझकर निरंतर आगे बढना चाहिए।
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| # विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है।
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| # विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है।
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| # वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है।
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| # विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है।
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| # विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है।
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| # विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।
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| # विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है।
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| # विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार हैं।
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| # विचारों का ही परिणाम है - हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का।
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| # विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है।
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| # वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है।
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| # ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है।
| | ==क== |
| # ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए।
| | * कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। |
| # ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता।
| | * कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। |
| # ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।
| | * कोई भी कार्य सही या ग़लत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या ग़लत बनाती है। |
| # ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।
| | * कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। |
| # ज्ञान से एकता पैदा होती है और अज्ञान से संकट।
| | * कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। |
| # ज्ञान का अर्थ मात्र जानना नहीं, वैसा हो जाना है।
| | * कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं। |
| | * '''कर्म''' सरल है, विचार कठिन। |
| | * कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। |
| | * कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। |
| | * कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना। |
| | * कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। |
| | * कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है। |
| | * किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। |
| | * किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। |
| | * किसी महान् उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। |
| | * किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। |
| | * किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। |
| | * किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। |
| | * किसी महान् उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। |
| | * किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं। |
| | * किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। |
| | * किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है। |
| | * किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। |
| | * किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है। |
| | * किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है। |
| | * किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है। |
| | * किसी को हृदय से प्रेम करना शक्ति प्रदान करता है और किसी के द्वारा हृदय से प्रेम किया जाना साहस। |
| | * किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है। |
| | * '''काल (समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ |
| | * कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। |
| | * कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। |
| | * कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। |
| | * कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? |
| | * क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। |
| | * क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है। |
| | * कल की असफलता वह बीज है जिसे आज बोने पर आने वाले कल में सफलता का फल मिलता है। |
| | * कठिन परिश्रम का कोई भी विकल्प नहीं होता। |
| | * कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे। |
| | * कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। |
| | * कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। |
| | * कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। |
| | * केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। |
| | * काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है। |
| | * कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है। |
| | * कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। |
| | * करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है। |
| | * कुसंगी है कोयलों की तरह, यदि गर्म होंगे तो जलाएँगे और ठंडे होंगे तो हाथ और वस्त्र काले करेंगे। |
| | * क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। |
| | * कमज़ोरी का इलाज कमज़ोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें हैं। |
| | * काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है। |
| | * कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे। |
| | * कुछ लोग दुर्भीति (Phobia) के शिकार हो जाते हैं उन्हें उनकी क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे। |
| | * कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता। |
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| # उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।
| | ==ख== |
| # उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
| | * खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। |
| # ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।
| | * खुद साफ़ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। |
| # उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
| | * खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। |
| # उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
| | * खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है। |
| # उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
| | * खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय शुदा है। |
| # ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।
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| # उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
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| # ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।
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| # उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
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| # उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
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| # एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
| | ==ग== |
| # एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
| | * गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। |
| # एकाग्रता से ही विजय मिलती है।
| | * गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। |
| # एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।
| | * गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। |
| # एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
| | * गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। |
| | * गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है। |
| | * गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। |
| | * गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। |
| | * ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। |
| | * ग़लती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व। |
| | * गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। |
| | * गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। |
| | * गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। |
| | * खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय शुदा है। |
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| # ब्रह्म विद्या मनुष्य को ब्रह्म - परमात्मा के चरणों में बिठा देती है और चित्त की मूर्खता छुडवा देती है।
| | ==घ== |
| # बुरी मंत्रणा से राजा, विषयों की आसक्ति से योगी, स्वाध्याय न करने से विद्वान, अधिक प्यार से पुत्र, दुष्टों की संगती से चरित्र, प्रदेश में रहने से प्रेम, अन्याय से ऐश्वर्य, प्रेम न होने से मित्रता तथा प्रमोद से धन नष्ट हो जाता है; अतः बुद्धिमान अपना सभी प्रकार का धन संभालकर रखता है, बुरे समय का हमें हमेशा ध्यान रहता है।
| | * घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे। |
| # बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन् बुरे विचारों की देन होती है।
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| # बड़प्पन सुविधा संवर्धन का नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है।
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| # बुद्धिमान बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं, भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें।
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| # बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।
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| # बाहर मैं, मेरा और अंदर तू, तेरा, तेरी के भाव के साथ जीने का आभास जिसे हो गया, वह उसके जीवन की एक महान व उत्तम प्राप्ति है।
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| # बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता।
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| # बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है।
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| # बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।
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| # बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है।
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| # बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है।
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| # बिना सेवा के चित्त शुद्धि नहीं होती और चित्तशुद्धि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती।
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| # धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो।
| | ==च== |
| # '''धन''' अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी।
| | * चरित्र का अर्थ है - अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। |
| # धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है।
| | * चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। |
| # धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
| | * चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय |
| # ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है।
| | * चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। |
| # धन अपना पराया नहीं देखता।
| | * चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। |
| | * चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। |
| | * चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। |
| | * चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। |
| | * चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं। |
| | * चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है। |
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| # न तो दरिद्रता में मोक्ष है और न सम्पन्नता में, बंधन धनी हो या निर्धन दोनों ही स्थितियों में ज्ञान से मोक्ष मिलता है।
| | ==ज== |
| # न तो किसी तरह का कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है, न चिंता से। कोई ऐसा दाता भी नहीं है, जो मनुष्य को विनष्ट वस्तु दे दे, विधाता के विधान के अनुसार मनुष्य बारी-बारी से समय पर सब कुछ पा लेता है।
| | * जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो ज़िन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। |
| # नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे।
| | * जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। |
| # निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है।
| | * जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ। |
| # नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है।
| | * जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है। |
| # नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके।
| | * जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो। |
| # नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके।
| | * जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो। |
| # नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले ख़रीदा जाता है।
| | * जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है। |
| # नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं।
| | * जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। |
| # निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है।
| | * जीवन की माप जीवन में ली गई साँसों की संख्या से नहीं होती बल्कि उन क्षणों की संख्या से होती है जो हमारी साँसें रोक देती हैं। |
| # निष्काम कर्म, कर्म का अभाव नहीं, कर्तृत्व के अहंकार का अभाव होता है।
| | * जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। |
| # 'न' के लिए अनुमति नहीं है।
| | * जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। |
| # निन्दक दूसरों के आर-पार देखना पसन्द करता है, परन्तु खुद अपने आर-पार देखना नहीं चाहता।
| | * जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। |
| | * जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय |
| | * जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान् कार्य करने के लिए है। |
| | * जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। |
| | * जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। |
| | * जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है। |
| | * जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु है। |
| | * जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों। |
| | * जीवन में एक मित्र मिल गया तो बहुत है, दो बहुत अधिक है, तीन तो मिल ही नहीं सकते। |
| | * जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है। |
| | * जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए। |
| | * जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। |
| | * जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। |
| | * जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं। |
| | * जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है। |
| | * जब आगे बढ़ना कठिन होता है, तब कठिन परिश्रमी ही आगे बढ़ता है। |
| | * जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी। |
| | * जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। |
| | * जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। |
| | * जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। |
| | * जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता तब तक सब शक्तियाँ चुपचाप खड़ी उसका मुँह ताकती रहती हैं। |
| | * जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। |
| | * जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया। |
| | * जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है। |
| | * जब-जब [[हृदय]] की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। |
| | * जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। |
| | * जिस में दया नहीं, उस में कोई सदगुण नहीं। |
| | * जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है। |
| | * जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता। |
| | * जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं। |
| | * जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती। |
| | * जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। |
| | * जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। |
| | * जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। |
| | * जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। |
| | * जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनिया में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनिया की। |
| | * जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। |
| | * जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। |
| | * जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। |
| | * जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। |
| | * जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। |
| | * जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते। |
| | * जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं। |
| | * जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए। |
| | * जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है। |
| | * जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा। |
| | * जो व्यक्ति शत्रु से मित्र होकर मिलता है, व धूल से धन बना सकता है। |
| | * जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। |
| | * जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है। |
| | * जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है। |
| | * जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। |
| | * जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है। |
| | * जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। |
| | * जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है। |
| | * जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। |
| | * जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। |
| | * जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है। |
| | * जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।। |
| | * जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। |
| | * जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। |
| | * जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। |
| | * जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। |
| | * जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। |
| | * जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। |
| | * जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। |
| | * जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। |
| | * जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। |
| | * जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। |
| | * जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। |
| | * जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। |
| | * जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। |
| | * जो शत्रु बनाने से भय खाता है, उसे कभी सच्चे मित्र नहीं मिलेंगे। |
| | * जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्य को विलक्षण और अदभुत बना देता है। |
| | * जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, अहसान को भुला देते हैं उल्हें कृतघ्नी कहा जाता है, और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं उन्हें कृतज्ञ कहा जाता है। |
| | * जो विषपान कर सकता है, चाहे विष पराजय का हो, चाहे अपमान का, वही शंकर का भक्त होने योग्य है और उसे ही शिवत्व की प्राप्ति संभव है, अपमान और पराजय से विचलित होने वाले लोग शिव भक्त होने योग्य ही नहीं, ऐसे लोगों की शिव पूजा केवल पाखण्ड है। |
| | * जैसे का साथ तैसा वह भी ब्याज सहित व्यवहार करना ही सर्वोत्तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये के सूत्र को अमल मे लाना ही गुणकारी उपाय है। |
| | * जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। |
| | * जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। |
| | * जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। |
| | * जैसा अन्न, वैसा मन। |
| | * जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। |
| | * जैसे कोरे [[काग़ज़]] पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। |
| | * जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। |
| | * जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। |
| | * जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। |
| | * जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं। |
| | * जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। |
| | * जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है। |
| | * जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। |
| | * ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। |
| | * जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है। |
| | * जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। |
| | * जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। |
| | * जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफ़ादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। |
| | * जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। |
| | * जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। |
| | * जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो। |
| | * जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है। |
| | * जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। |
| | * जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरुष जगत् के लिए जहाज़ है। |
| | * जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। |
| | * जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। |
| | * जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा। |
| | * जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। |
| | * जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। |
| | * जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। |
| | * ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। |
| | * जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। |
| | * जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। |
| | * जाग्रत् आत्मा का लक्षण है- सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की ओर उन्मुखता। |
| | * जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। |
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| # लोगों को चाहिए कि इस जगत में मनुष्यता धारण कर उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योग्याभ्यास और विज्ञान का सम्यक ग्रहण करके सुख का प्रयत्न करें, यही जीवन की सफलता है।
| | ==झ== |
| # लज्जा से रहित व्यक्ति ही स्वार्थ के साधक होते हैं।
| | * झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती। |
| | * झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है। |
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| # गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है।
| | ==ठ== |
| # गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
| | * ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। |
| # गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।
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| # गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है।
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| # गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है।
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| # भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
| | ==ड== |
| # भगवान को अनुशासन एवं सुव्यवस्थितपना बहुत पसंद है। अतः उन्हें ऐसे लोग ही पसंद आते हैं, जो सुव्यवस्था व अनुशासन को अपनाते हैं।
| | * डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है। |
| # '''भगवान''' प्रेम के भूखे हैं, पूजा के नहीं।
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| # भले बनकर तुम दूसरों की भलाई का कारण भी बन जाते हो।
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| # भगवान से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है।
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| # '''भगवान''' की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है।
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| # भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है।
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| # भाग्य साहसी का साथ देता है।
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| # '''भगवान''' सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।
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| # भीड़ में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है, परन्तु विचारों की भीड़ के बीहड़ में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है।
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| # तीनों लोकों में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिये दौड़ता फिरता है, दुखों के लिये बिल्कुल नहीं, किन्तु दुःख के दो स्रोत हैं-एक है देह के प्रति मैं का भाव और दूसरा संसार की वस्तुओं के प्रति मेरेपन का भाव।
| | ==त्र== |
| # तुम्हारा प्रत्येक छल सत्य के उस स्वच्छ प्रकाश में एक बाधा है जिसे तुम्हारे द्वारा उसी प्रकार प्रकाशित होना चाहिए जैसे साफ शीशे के द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है।
| | * त्रुटियाँ या भूल कैसी भी हो वे आपकी प्रगति में भयंकर रूप से बाधक होती है। |
| # तर्क से विज्ञान में वृद्धि होती है, कुतर्क से अज्ञान बढ़ता है और वितर्क से अध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है।
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| # शुभ कार्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं।
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| # शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो।
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| # शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है।
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| # शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती।
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| # शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है।
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| |'''अनमोल वचन'''
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| # दृढ़ता हो, ज़िद्द नहीं। बहादुरी हो, जल्दबाज़ी नहीं। दया हो, कमज़ोरी नहीं।
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| # घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।
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| |'''सुभाषित'''
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| # चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं।
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| # डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है।
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| # श्रेष्ठ मार्ग पर क़दम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है।
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| # ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।
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