"अनमोल वचन 2": अवतरणों में अंतर
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|'''अनमोल वचन''' | |'''अनमोल वचन''' | ||
==अ== | |||
* अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। | * अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। | ||
* अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। | * अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। | ||
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* अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। | * अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। | ||
* अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। | * अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। | ||
* अपनी | * अपनी महान् संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है। | ||
* अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को | * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। | ||
* अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। | * अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। | ||
* अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। | |||
* अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं। | * अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं। | ||
* अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए। | * अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए। | ||
* अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे। | * अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे। | ||
* अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। | |||
* अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है। | * अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है। | ||
* अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। | * अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। | ||
* अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी ख़रीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली। | |||
* अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। | * अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। | ||
* अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है। | * अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है। | ||
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* अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। | * अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। | ||
* अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। | * अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। | ||
* अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी | * अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंज़िल मानो। | ||
* अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, | * अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन् उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है। | ||
* अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। | * अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। | ||
* अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। | * अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। | ||
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* अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। | * अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। | ||
* अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। | * अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। | ||
* अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर | * अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर ग़रीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है। | ||
* असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। | * असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। | ||
* अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। | * अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। | ||
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* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है। | * अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है। | ||
* अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है। | * अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है। | ||
* | * अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। | ||
* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | ||
* अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। | * अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। | ||
* असंयम की राह पर चलने से आनन्द की | * असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंज़िल नहीं मिलती। | ||
* अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। | * अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। | ||
* असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। | * असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। | ||
* 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। | * 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। | ||
* अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। | * अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। | ||
* अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है। | * अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है। | ||
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* अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं। | * अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं। | ||
* अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | * अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | ||
* अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी | * अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। | ||
* अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख़ बनाए रहें। | |||
* अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं। | |||
* अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी। | |||
==आ== | |||
* आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है। | * आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है। | ||
* आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता। | * आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता। | ||
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* आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | * आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | ||
* आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं। | * आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं। | ||
* आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो। | |||
* आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | * आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | ||
* आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना। | |||
==इ== | |||
* इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | * इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | ||
* इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। | * इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। | ||
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* इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | * इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | ||
* इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | * इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | ||
* इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। | * इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दु:ख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। | ||
* 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | * 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | ||
* इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | * इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | ||
* इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है। | * इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है। | ||
* इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | * इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | ||
* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है। | |||
* इतिहास और पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित हो जाते हैं। | |||
==ई== | |||
* '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। | * '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। | ||
* ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | * ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | ||
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* ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | * ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | ||
* ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया। | * ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया। | ||
* ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया। | |||
* '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। | * '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। | ||
* ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | * ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | ||
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* ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | * ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | ||
==उ== | |||
* उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | * उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | ||
* उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | * उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | ||
* उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक | * उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंज़िल प्राप्त न हो जाये। | ||
* उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। | * उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। | ||
* उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता। | |||
* उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। | * उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। | ||
* उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है। | * उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है। | ||
पंक्ति 177: | पंक्ति 188: | ||
* उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। | * उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। | ||
* उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | * उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | ||
* उद्धेश्य निश्चित कर लेने से आपके मनोभाव आपके आशापूर्ण विचार आपकी महत्वकांक्षाये एक चुम्बक का काम करती हैं। वे आपके उद्धेश्य की सिद्धी को सफलता की ओर खींचती हैं। | |||
* उद्धेश्य प्राप्ति हेतु कर्म, विचार और भावना का धु्रवीकरण करना चाहिये। | |||
* उनसे कभी मित्रता न कर, जो तुमसे बेहतर नहीं। | |||
==ऊ== | |||
* ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। | * ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। | ||
* ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। | * ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। | ||
* ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो | * ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान् है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | ||
* ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | * ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | ||
* ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी। | |||
==ए== | |||
* एक ही पुत्र यदि | * एक ही पुत्र यदि विद्वान् और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। | ||
* एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | * एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | ||
* एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | * एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | ||
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* एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। | * एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। | ||
* एकाग्रता से ही विजय मिलती है। | * एकाग्रता से ही विजय मिलती है। | ||
* एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है। | |||
==क== | |||
* कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। | |||
* कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | |||
* कोई भी कार्य सही या ग़लत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या ग़लत बनाती है। | |||
* कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। | |||
* कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | |||
* कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं। | |||
* '''कर्म''' सरल है, विचार कठिन। | |||
* कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | |||
* कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। | |||
* कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना। | |||
* कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। | |||
* कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है। | |||
* किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | |||
* किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | |||
* किसी महान् उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | |||
* किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | |||
* किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। | |||
* किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | |||
* किसी महान् उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | |||
* किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं। | |||
* किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | |||
* किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है। | |||
* किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। | |||
* किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है। | |||
* किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है। | |||
* किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है। | |||
* किसी को हृदय से प्रेम करना शक्ति प्रदान करता है और किसी के द्वारा हृदय से प्रेम किया जाना साहस। | |||
* किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है। | |||
* '''काल (समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ | |||
* कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। | |||
* कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। | |||
* कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। | |||
* कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? | |||
* क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। | |||
* क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है। | |||
* कल की असफलता वह बीज है जिसे आज बोने पर आने वाले कल में सफलता का फल मिलता है। | |||
* कठिन परिश्रम का कोई भी विकल्प नहीं होता। | |||
* कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे। | |||
* कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | |||
* कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। | |||
* कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। | |||
* केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। | |||
* काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है। | |||
* कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है। | |||
* कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। | |||
* करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है। | |||
* कुसंगी है कोयलों की तरह, यदि गर्म होंगे तो जलाएँगे और ठंडे होंगे तो हाथ और वस्त्र काले करेंगे। | |||
* क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। | |||
* कमज़ोरी का इलाज कमज़ोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें हैं। | |||
* काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है। | |||
* कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे। | |||
* कुछ लोग दुर्भीति (Phobia) के शिकार हो जाते हैं उन्हें उनकी क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे। | |||
* कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता। | |||
==ख== | |||
* खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | |||
* खुद साफ़ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। | |||
* खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | |||
* खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है। | |||
* खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय शुदा है। | |||
==ग== | |||
* गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। | |||
* गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। | |||
* गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | |||
* गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | |||
* गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है। | |||
* गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | |||
* गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | |||
* ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | |||
* ग़लती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व। | |||
* गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | |||
* गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | |||
* गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | |||
* खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय शुदा है। | |||
==घ== | |||
* घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे। | |||
==च== | |||
* चरित्र का अर्थ है - अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। | |||
* चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | |||
* चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | |||
* चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | |||
* चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | |||
* चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | |||
* चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | |||
* चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | |||
* चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं। | |||
* चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है। | |||
==ज== | |||
* जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो ज़िन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। | |||
* जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। | |||
* जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ। | |||
* जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है। | |||
* जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो। | |||
* जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो। | |||
* जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है। | |||
* जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। | |||
* जीवन की माप जीवन में ली गई साँसों की संख्या से नहीं होती बल्कि उन क्षणों की संख्या से होती है जो हमारी साँसें रोक देती हैं। | |||
* जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। | |||
* जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। | |||
* जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | |||
* जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | |||
* जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान् कार्य करने के लिए है। | |||
* जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। | |||
* जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। | |||
* जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है। | |||
* जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु है। | |||
* जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों। | |||
* जीवन में एक मित्र मिल गया तो बहुत है, दो बहुत अधिक है, तीन तो मिल ही नहीं सकते। | |||
* जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है। | |||
* जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए। | |||
* जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। | |||
* जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। | |||
* जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं। | |||
* जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है। | |||
* जब आगे बढ़ना कठिन होता है, तब कठिन परिश्रमी ही आगे बढ़ता है। | |||
* जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी। | |||
* जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। | |||
* जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। | |||
* जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। | |||
* जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता तब तक सब शक्तियाँ चुपचाप खड़ी उसका मुँह ताकती रहती हैं। | |||
* जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | |||
* जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया। | |||
* जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है। | |||
* जब-जब [[हृदय]] की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। | |||
* जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। | |||
* जिस में दया नहीं, उस में कोई सदगुण नहीं। | |||
* जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है। | |||
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता। | |||
* जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं। | |||
* जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती। | |||
* जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। | |||
* जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। | |||
* जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | |||
* जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | |||
* जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनिया में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनिया की। | |||
* जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | |||
* जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | |||
* जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। | |||
* जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। | |||
* जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। | |||
* जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते। | |||
* जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं। | |||
* जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए। | |||
* जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है। | |||
* जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा। | |||
* जो व्यक्ति शत्रु से मित्र होकर मिलता है, व धूल से धन बना सकता है। | |||
* जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। | |||
* जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है। | |||
* जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है। | |||
* जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | |||
* जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है। | |||
* जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। | |||
* जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है। | |||
* जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। | |||
* जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। | |||
* जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है। | |||
* जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।। | |||
* जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | |||
* जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। | |||
* जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। | |||
* जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। | |||
* जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। | |||
* जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। | |||
* जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। | |||
* जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। | |||
* जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। | |||
* जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। | |||
* जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। | |||
* जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | |||
* जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | |||
* जो शत्रु बनाने से भय खाता है, उसे कभी सच्चे मित्र नहीं मिलेंगे। | |||
* जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्य को विलक्षण और अदभुत बना देता है। | |||
* जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, अहसान को भुला देते हैं उल्हें कृतघ्नी कहा जाता है, और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं उन्हें कृतज्ञ कहा जाता है। | |||
* जो विषपान कर सकता है, चाहे विष पराजय का हो, चाहे अपमान का, वही शंकर का भक्त होने योग्य है और उसे ही शिवत्व की प्राप्ति संभव है, अपमान और पराजय से विचलित होने वाले लोग शिव भक्त होने योग्य ही नहीं, ऐसे लोगों की शिव पूजा केवल पाखण्ड है। | |||
* जैसे का साथ तैसा वह भी ब्याज सहित व्यवहार करना ही सर्वोत्तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये के सूत्र को अमल मे लाना ही गुणकारी उपाय है। | |||
* जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। | |||
* जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। | |||
* जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। | |||
* जैसा अन्न, वैसा मन। | |||
* जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। | |||
* जैसे कोरे [[काग़ज़]] पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। | |||
* जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। | |||
* जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। | |||
* जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। | |||
* जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं। | |||
* जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। | |||
* जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है। | |||
* जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। | |||
* ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। | |||
* जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है। | |||
* जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। | |||
* जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | |||
* जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफ़ादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। | |||
* जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | |||
* जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | |||
* जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो। | |||
* जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है। | |||
* जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। | |||
* जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरुष जगत् के लिए जहाज़ है। | |||
* जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | |||
* जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | |||
* जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा। | |||
* जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। | |||
* जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | |||
* जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। | |||
* ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। | |||
* जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। | |||
* जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। | |||
* जाग्रत् आत्मा का लक्षण है- सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की ओर उन्मुखता। | |||
* जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। | |||
==झ== | |||
* झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती। | |||
* झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है। | |||
==ठ== | |||
* ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। | |||
==ड== | |||
* डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है। | |||
==त्र== | |||
* त्रुटियाँ या भूल कैसी भी हो वे आपकी प्रगति में भयंकर रूप से बाधक होती है। | |||
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पंक्ति 201: | पंक्ति 447: | ||
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{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
09:16, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 5, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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