"अनमोल वचन 1": अवतरणों में अंतर

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हम '''अनमोल वचन''' उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम '''सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित)''' भी कहते हैं। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नही लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
{{दाँयाबक्सा|पाठ=बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।|विचारक=आईजक दिसराली}}
* हम '''अनमोल वचन ( Priceless Words / Quotes)''' (अमृत वचन/ सुविचार/ सुवचन/ सत्य वचन/ सूक्ति/ सुभाषित/ उत्तम (उत्‍तम) वाणी/ उद्धरण/ धीर गंभीर मृदु वाक्‍य)उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम '''सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित)''' भी कहते हैं। जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
* वक्ता हो या संत हो, विद्वान् हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
* सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।
<poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती।|विचारक=राबर्ट हेमिल्टन}}</poem>
* लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। '''जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है।''' यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
* शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है —  दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
* [[शंकराचार्य]] से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान् पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग [[गीता]] में [[श्रीकृष्ण]] ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। [[मंथरा]] ने [[कैकेयी]] में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह [[राम]] के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति [[दशरथ]] की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।
* महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘'''देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर'''’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है।
* हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।


{{seealso|कहावत लोकोक्ति मुहावरे|सूक्ति और कहावत|अनमोल वचन 2|अनमोल वचन 3|अनमोल वचन 4|अनमोल वचन 5|अनमोल वचन 6|अनमोल वचन 7|अनमोल वचन 8|महात्मा गाँधी के अनमोल वचन}}
==अनमोल वचन संग्रह==
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| '''[[महात्मा गाँधी]]''' के अनमोल वचन --  महात्मा, ट्रुथ इज गॉड, एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, द मैसेज ऑफ द गीता और माइंड ऑफ महात्मा गांधी पुस्तकों से
|
*अहिंसा एक [[विज्ञान]] है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं।
'''तीन बातें'''
*उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में लाया जा सके।
* तीन बातें कभी भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर। - महावीर
*सार्थक [[कला]] रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है।
* तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री। - विनोबा
*एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है।
* तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया। - अंग्रेजी कहावत
*मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है।
* तीन से घृणा करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। - मुहम्मद साहब
*चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो माता-पिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं।
* तीन के आंसू पवित्र होते हैं - प्रेम के, करुना के और सहानुभूति के। - बुद्ध
*विश्व के सारे महान [[धर्म]] मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं।
* तीन बातें सुखी जीवन के लिए- अतीत की चिंता मत करो, भविष्य का विश्वास न करो और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दो।
*अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है।
* तीन चीज़ें किसी का इन्तजार नहीं करती - समय, मौत, ग्राहक।
*सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं |
* तीन चीज़ें जीवन में एक बार मिलती है - मां, बांप, और जवानी।
*अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है।
* तीन चीज़ें पर्दे योग्य है - धन, स्त्री और भोजन।
*निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी।
* तीन चीजों से सदा सावधान रहिए - बुरी संगत, परस्त्री और निन्दा।
*आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए।
* तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या।
*जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है।
* तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बीमारी, कर्जा, शत्रु।
*वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है।
* तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ।
*क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है।
* तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।
*एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है।
* तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच।
*वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब '[[भाषा]]' है।
* तीन चीज़े असल उद्धेश्य से रोकता हैं - बदचलनी, क्रोध और लालच।
*स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती।
* तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र, हुनर।
*निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वतः अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है।
* तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई, दोस्त।
*जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है।
* तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु।
*सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है।
* तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल।
*अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है।
* तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़।
*उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा।
* तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता।
*[[गुलाब]] को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है।
* तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु।
*जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है।
* तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।
*मेरे विचारानुसार [[गीता]] का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है।
* तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।
*गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है।
* तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।
*मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है।
* तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।
*हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है।
* तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।
*साहस कोई शारीरिक विशेषता होकर आत्मिक विशेषता है।
* तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।
*संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं।
* तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन।
*हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की .....भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है।
* तीन चीज़ें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर।
*मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है।
* तीन चीज़ें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी।
*सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है।
* तीन चीज़ें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।
*शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
* तीन चीजे जो कभी निश्चित नहीं होती - सपनें, सफलता और भाग्य।
*हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है।
* तीन चीजें, जो जीवन को संवारती है - कड़ी मेहनत, निष्ठा और त्याग।
*यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए।
* तीन चीज़ें किसी भी इन्सान को बरबाद कर सकती है - शराब, घमन्ड और क्रोध।
*आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है।
* तीन चीजों से बचने की कोशिश करनी चाहिये – बुरी संगत, स्वार्थ और निन्दा।
*किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है।
* कोई भी कार्य करने से पहले – सोचो, समझो, फिर करो।
*ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे।
 
*नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है।
*गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अर्थों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है।
*जहाँ प्रेम है, वही जीवन है। ईर्ष्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं।
*यदि अंधकार से [[प्रकाश]] उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है।
*प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है।
*प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल।
*यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है।
*मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है।
*यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी।
*युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं।
*जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें।
*[[बुद्ध]] ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है।
*हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किंतु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं।
*अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है।
*स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है।
*जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता।
*समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं।
*पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंत–दृष्टि खोल देती है।
*किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है।
*विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नपव ठोस हो।
*मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं।
*ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है।
*प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है ।
*सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है।
*हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें।
*सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है।
*अंततः अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है।
*हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमपदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो।
*किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो।
*यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है ।
*स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामर्थ्य प्राप्त है ।
*जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है।
*धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है।
*स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है।
*महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया  है।
*स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है।
*भारतीयों के एक वर्ग को दूसरे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनाने में ही उपयुक्त होगी।
*स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे।
*आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है।
*मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा।
*अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे।
*धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है।
*सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है।
*अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना।
*मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता।
*अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है।
*पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंतः सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm |title=गांधीजी के शब्दों में |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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| '''[[स्वामी विवेकानन्द]]''' के अनमोल वचन
* उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
* जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो - उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो - वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।
* तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
* ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं - इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
* ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
* मानव - देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव - देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं - निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
* जो महापुरुष प्रचार - कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है - अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत को शिक्षा प्रदान करता है।
* आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
* मुक्ति - लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
* हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा [[प्रत्यक्ष]] अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
* मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो - उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
* पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
* सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र - सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। [[भारत]] में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
* संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे - धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
* हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वान! डरो मत; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हें दिखाता हूँ!
* बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे - मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो - यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं - इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा [[हृदय]] बनाकर कार्य में जुट जाओ।
* किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। [[सिंह]] की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।
* लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, [[लक्ष्मी]] तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक [[युग]] मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।
* वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो - व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।
* मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना। इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। 
* जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुद्धचरित्र हों।
* शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष, निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो - सारा धर्म इसी में है।
* शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए [[अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत]] का अध्ययन मन लगाकर करो।
* बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु - प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी।
* जब तक जीना, तब तक सीखना' - अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
* जिस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है।
* पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।
* पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।
* साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना - यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे - माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे।
* बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरु में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है।
* महाशक्ति का तुममें संचार होगा -- कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ।
* बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही।
* धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी।
* जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः।
* ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो - संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो।
* पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो।
* यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो।
* यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा।
* गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है।
* बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो।
* किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं; तब तक उन्के कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बडा हाथ है।
* किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।
* क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
* आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा।
* न टालो, न ढूँढों - भगवान अपनी इच्छानुसार जो कुछ भेहे, उसके लिए प्रतिक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है।
* शक्ति और विशवास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है।
* एक ही आदमी मेरा अनुसरण करे, किन्तु उसे मृत्युपर्यन्त सत्य और विश्वासी होना होगा। मैं सफलता और असफलता की चिन्ता नहीं करता। मैं अपने आन्दोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो। कपटी कार्यों से सामना पडने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। यही संसार है कि जिन्हें तुम सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हे धोखा देंगे।
* मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता है - मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।
* जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेशवाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है।
*  'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यहि मेरा धर्म है। "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः - यही मेरा धर्म है।"
* हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है -- उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।
* यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे - स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं।
* न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुद्ध जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म - साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिनका चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे।
* यही रहस्य है। योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, "जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसी का प्रचार करना है। जगत में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्यक्ष आचरण नहीं करता।
* जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है।
* अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है।
* मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है?
* तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो। इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते
* श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। -- प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनिया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बडे - बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा।
* मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसीको श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषओं में व्यवहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, [[कबीरदास]] के दोहे में है - "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार, साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता।
* अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा - ठहरो - धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है - तुमसे कहता हूँ देखना - कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो - बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दूसरों के धर्म का द्वेष न करना"; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पूरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा।
* नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो -- प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरुष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते -- यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चों, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।
* यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बीमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। परन्तु जब उसके सिर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है -- वह कितना ही फटा - पुराना क्यों न हो -- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर [[हिन्दू]] के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है?
* प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता।
* मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को [[चीन]], [[जापान]] में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवास करने वालों, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुद्धिवालों, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृद्धिगत कूडा - कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करने वाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी-गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। जिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्ड बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनों। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखों, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। क्या तुम्हें मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुडकर मत देखों; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पीछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है...<ref>{{cite web |url=http://www.chhathpuja.co/community/groups/viewgroup/178-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80+%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0,swami+vivekananda+quotes,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Hindi+Quotes+by+Swami+Vivekananda,Swami+Vivekananda+quote+in+hindi,Vivekanandas+Hindi+Quotes,Swami+vivekananda+Hindi+quotations |title=स्वामी विवेकानन्द के सुविचार |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=छठ पूजा |language=हिन्दी}}</ref>
* एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है -- वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्यदृष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हें नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढव्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म - जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, केवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया।
* वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम् ! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो।
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11:01, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।

- आईजक दिसराली
  • हम अनमोल वचन ( Priceless Words / Quotes) (अमृत वचन/ सुविचार/ सुवचन/ सत्य वचन/ सूक्ति/ सुभाषित/ उत्तम (उत्‍तम) वाणी/ उद्धरण/ धीर गंभीर मृदु वाक्‍य)उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित) भी कहते हैं। जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
  • वक्ता हो या संत हो, विद्वान् हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
  • सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।

सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती।

- राबर्ट हेमिल्टन
  • लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
  • शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में शब्द को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है — दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
  • शंकराचार्य से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान् पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। मंथरा ने कैकेयी में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह राम के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति दशरथ की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।
  • महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है।
  • हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।

इन्हें भी देखें: कहावत लोकोक्ति मुहावरे, सूक्ति और कहावत, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8 एवं महात्मा गाँधी के अनमोल वचन

अनमोल वचन संग्रह

अनमोल वचन

तीन बातें

  • तीन बातें कभी न भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर। - महावीर
  • तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री। - विनोबा
  • तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया। - अंग्रेजी कहावत
  • तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। - मुहम्मद साहब
  • तीन के आंसू पवित्र होते हैं - प्रेम के, करुना के और सहानुभूति के। - बुद्ध
  • तीन बातें सुखी जीवन के लिए- अतीत की चिंता मत करो, भविष्य का विश्वास न करो और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दो।
  • तीन चीज़ें किसी का इन्तजार नहीं करती - समय, मौत, ग्राहक।
  • तीन चीज़ें जीवन में एक बार मिलती है - मां, बांप, और जवानी।
  • तीन चीज़ें पर्दे योग्य है - धन, स्त्री और भोजन।
  • तीन चीजों से सदा सावधान रहिए - बुरी संगत, परस्त्री और निन्दा।
  • तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या।
  • तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बीमारी, कर्जा, शत्रु।
  • तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ।
  • तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।
  • तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच।
  • तीन चीज़े असल उद्धेश्य से रोकता हैं - बदचलनी, क्रोध और लालच।
  • तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र, हुनर।
  • तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई, दोस्त।
  • तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु।
  • तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल।
  • तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़।
  • तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता।
  • तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु।
  • तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।
  • तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।
  • तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।
  • तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।
  • तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।
  • तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।
  • तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन।
  • तीन चीज़ें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर।
  • तीन चीज़ें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी।
  • तीन चीज़ें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।
  • तीन चीजे जो कभी निश्चित नहीं होती - सपनें, सफलता और भाग्य।
  • तीन चीजें, जो जीवन को संवारती है - कड़ी मेहनत, निष्ठा और त्याग।
  • तीन चीज़ें किसी भी इन्सान को बरबाद कर सकती है - शराब, घमन्ड और क्रोध।
  • तीन चीजों से बचने की कोशिश करनी चाहिये – बुरी संगत, स्वार्थ और निन्दा।
  • कोई भी कार्य करने से पहले – सोचो, समझो, फिर करो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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