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<div style="float:right; width:98%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> | <div style="float:right; width:98%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> | ||
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==गणित== | ==गणित== | ||
* यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ (जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है।) ~ वेदांग ज्योतिष | * यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ (जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है।) ~ वेदांग ज्योतिष | ||
* बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर | * बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत् में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।) ~ महावीराचार्य, जैन गणितज्ञ | ||
* ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी | * ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान् पुस्तक लिखी गयी है। ~ गैलिलियो | ||
* गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी। ~ प्रो. हाल | * गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी। ~ प्रो. हाल | ||
* काफ़ी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध सी.डी से, कैट-स्कैन से, पार्किंग-मीटरों से, राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है। गणित इस | * काफ़ी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध सी.डी से, कैट-स्कैन से, पार्किंग-मीटरों से, राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है। गणित इस जगत् को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं। ~ गरफंकल, 1997 | ||
* गणित एक भाषा है। ~ जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स, अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री | * गणित एक भाषा है। ~ जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स, अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री | ||
* लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ। | * लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ। | ||
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* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है। ~ जेम्स के. फिंक | * इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है। ~ जेम्स के. फिंक | ||
* वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में, अध्ययन करते हैं। इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं। ~ थियोडोर वान कार्मन | * वैज्ञानिक इस संसार का, जैसे है उसी रूप में, अध्ययन करते हैं। इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं। ~ थियोडोर वान कार्मन | ||
* मशीनीकरण करने के लिये यह | * मशीनीकरण करने के लिये यह ज़रूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें। ~ सुश्री जैकब | ||
* इंजिनीररिंग संख्याओं में की जाती है। संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है। | * इंजिनीररिंग संख्याओं में की जाती है। संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है। | ||
* जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है। ~ लॉर्ड केल्विन | * जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है। ~ लॉर्ड केल्विन | ||
* आवश्यकता डिजाइन का आधार है। किसी चीज़ को | * आवश्यकता डिजाइन का आधार है। किसी चीज़ को ज़रूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है। | ||
* तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | * तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | ||
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* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। ~ [[रामधारी सिंह दिनकर]] | * कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। ~ [[रामधारी सिंह दिनकर]] | ||
* कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। ~ अज्ञात | * कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। ~ अज्ञात | ||
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। | * कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ [[डॉ. रामकुमार वर्मा]] | ||
* जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती वह कला नहीं है। | * जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती वह कला नहीं है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* कला ईश्वर की परपौत्री है। | * कला ईश्वर की परपौत्री है। ~ दांते | ||
* प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। | * प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। ~ लांगफैलो | ||
* कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौंदर्य है। | * कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौंदर्य है। ~ गेटे | ||
* मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। | * मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। ~ रस्किन | ||
==भाषा / स्वभाषा== | ==भाषा / स्वभाषा== | ||
* शब्द विचारों के वाहक हैं। | * शब्द विचारों के वाहक हैं। | ||
* शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है। | * शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है। | ||
==साहित्य== | ==साहित्य== | ||
* साहित्य समाज का दर्पण होता है। | * साहित्य समाज का दर्पण होता है। | ||
* साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) ~ भर्तृहरि | * साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) ~ [[भर्तृहरि (कवि)|भर्तृहरि]] | ||
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है| ~ अनंत गोपाल शेवड़े | * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है| ~ [[अनंत गोपाल शेवड़े]] | ||
* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। ~ [[ | * साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। ~ [[डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] | ||
==संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ | ==संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ== | ||
* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | ||
* यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ (जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे।) ~ [[पंचतंत्र]] | * यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ (जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे।) ~ [[पंचतंत्र]] | ||
* को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) | * को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) ~ भर्तृहरि | ||
* सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) संहतिः कार्यसाधिका । (एकता से कार्य सिद्ध होते हैं) ~ पंचतंत्र | * सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) संहतिः कार्यसाधिका । (एकता से कार्य सिद्ध होते हैं) ~ पंचतंत्र | ||
* दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं। ~ कियोसाकी | * दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं। ~ कियोसाकी | ||
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* बिना सहकार , नहीं उद्धार । उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । (उठो, जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ।) | * बिना सहकार , नहीं उद्धार । उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । (उठो, जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ।) | ||
* नहीं संगठित सज्जन लोग । रहे इसी से संकट भोग ॥ ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | * नहीं संगठित सज्जन लोग । रहे इसी से संकट भोग ॥ ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | ||
* सहनाववतु, सह नौ भुनक्तु, सहवीर्यं | * सहनाववतु, सह नौ भुनक्तु, सहवीर्यं करवाह है । (एक साथ आओ, एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो) | ||
* अच्छे मित्रों को पाना कठिन, वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। ~ रैन्डाल्फ | * अच्छे मित्रों को पाना कठिन, वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। ~ रैन्डाल्फ | ||
* काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। ~ अज्ञात | * काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। ~ अज्ञात | ||
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग । | * जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग । चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।। ~ [[रहीम]] | ||
* जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। ~ मुक्ता | * जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। ~ मुक्ता | ||
==संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन== | ==संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन== | ||
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* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव में इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है। | * इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव में इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है। | ||
* मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ [[महात्मा गांधी]] | * मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ [[महात्मा गांधी]] | ||
* किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला | * किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला हृदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। ~ [[द्रोणाचार्य]] | ||
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ [[वल्लभभाई पटेल]] | * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ [[वल्लभभाई पटेल]] | ||
* वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है। ~ डब्ल्यू.एच.आडेन | * वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है। ~ डब्ल्यू.एच.आडेन | ||
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* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | ||
== | ==अभय, निर्भय== | ||
* मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से हम सब के लिए अभय हों। रात्रि के समय हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं में रहनेवाले हमारे मित्र बनकर रहें। ~ [[अथर्ववेद]] | |||
* मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से हम सब के लिए अभय हों। रात्रि के समय हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं में रहनेवाले हमारे मित्र बनकर रहें। | |||
* अभय-दान सबसे बड़ा दान है। | * अभय-दान सबसे बड़ा दान है। | ||
==अनुभव / अभ्यास== | ==अनुभव / अभ्यास== | ||
* बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है| | * बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है| | ||
* करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। | * करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। ~ रहीम | ||
* अनभ्यासेन विषं विद्या । (बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है (?)) | * अनभ्यासेन विषं विद्या । (बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है (?)) | ||
* यह रहीम निज संग लै, जनमत | * यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत् न कोय । बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय ॥ | ||
* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। | * अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। ~ अज्ञात | ||
* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। | * अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात | ||
* दूसरों के अनुभव से जान लेना भी मनुष्य के लिए एक अनुभव है। | |||
* यदि कोई केवल अनुभव से ही बुद्धिमान हो जाता तो लन्दन के अजायबघर में रखे इतने समय के बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमान से अधिक बुद्धिमान होते। ~ बर्नार्ड | |||
==सफलता, असफलता== | ==सफलता, असफलता== | ||
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। | * असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। ~ श्रीरामशर्मा आचार्य | ||
* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्त्व है। | * जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्त्व है। ~ हक्सले | ||
* जो कभी भी कहीं असफल नहीं हुआ वह आदमी | * जो कभी भी कहीं असफल नहीं हुआ वह आदमी महान् नहीं हो सकता। ~ हर्मन मेलविल | ||
* असफलता आपको | * असफलता आपको महान् कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है। ~ नैपोलियन हिल | ||
* असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौक़ा मात्र है। ~ हेनरी फ़ोर्ड | |||
* असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौक़ा मात्र है। | * दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है - एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं। ~ थामस इलियट | ||
* दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है - एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं। | * दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं। ~ इमर्सन | ||
* दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं। | * जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं। पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं। ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | ||
* असफल होने पर, आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु, प्रयास छोड़ देने पर, आप की असफलता सुनिश्चित है। ~ बेवेरली सिल्स | |||
* जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं। पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं। | * हार का स्वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है। ~ माल्कम फोर्बस | ||
* पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्ते होते हैं लेकिन व्यू सब जगह से एक सा दिखता है। ~ चाइनीज कहावत | |||
* असफल होने पर, आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु, प्रयास छोड़ देने पर, आप की असफलता सुनिश्चित है। | * यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ़ क्रेडिट लेने की सोचते हैं। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। ~ [[इंदिरा गांधी]] | ||
* हम हवा का रुख़तो नहीं बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा ज़रूर बदल सकते हैं। | |||
* हार का स्वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है। | |||
* पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्ते होते हैं लेकिन व्यू सब जगह से एक सा दिखता है। | |||
* यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ़ क्रेडिट लेने की सोचते हैं। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। | |||
* हम हवा का | |||
* सफलता सार्वजनिक उत्सव है, जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक। | * सफलता सार्वजनिक उत्सव है, जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक। | ||
==मान , अपमान== | |||
==मान , अपमान | |||
* गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। ~ महात्मा गांधी | * गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। ~ महात्मा गांधी | ||
* मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश । बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश ॥ ~ कबीर | * मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश । बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश ॥ ~ कबीर | ||
== | ==अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य== | ||
* मुक्त बाज़ार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है। | * मुक्त बाज़ार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है। | ||
* स्वार्थ या लाभ ही सबसे बड़ा उत्साहवर्धक (मोटिवेटर) या आगे बढाने वाला बल है। | * स्वार्थ या लाभ ही सबसे बड़ा उत्साहवर्धक (मोटिवेटर) या आगे बढाने वाला बल है। | ||
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* सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करने से सभ्यता के विकास को जितना योगदान मिला है उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं। | * सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करने से सभ्यता के विकास को जितना योगदान मिला है उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं। | ||
* यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों में बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है। | * यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों में बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है। | ||
==व्यापार== | ==व्यापार== | ||
* व्यापारे वसते लक्ष्मी । (व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं) महाजनो येन गतः स पन्थाः । (महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम) मार्ग है) (व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है) | * व्यापारे वसते लक्ष्मी । (व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं) महाजनो येन गतः स पन्थाः । (महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम) मार्ग है) (व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है) | ||
* जब | * जब ग़रीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी। ~ आदम स्मिथ, 'द वेल्थ आफ नेशन्स' में | ||
* तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी। | * तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी। | ||
* राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री, इमानदारी और बराबरी पर। ~ कार्डेल हल्ल | * राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री, इमानदारी और बराबरी पर। ~ कार्डेल हल्ल | ||
* व्यापारिक युद्ध, विश्व युद्ध, शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन | * व्यापारिक युद्ध, विश्व युद्ध, शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये। | ||
* इससे कोई | * इससे कोई फ़र्क़ नहीं पडता कि कौन शाशन करता है, क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं। ~ थामस फुलर | ||
* आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है - या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये। | * आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है - या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये। | ||
* कार्पोरेशन : व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति। ~ द डेविल्स डिक्शनरी | * कार्पोरेशन : व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति। ~ द डेविल्स डिक्शनरी | ||
* अपराधी, दस्यु | * अपराधी, दस्यु प्रवृत्ति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है। | ||
==राजनीति / शासन / सरकार== | ==राजनीति / शासन / सरकार== | ||
* सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ (शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है।) | * सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ (शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है।) | ||
* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र (योजना, परामर्श) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव (राजोचित शक्ति, तेज) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह (उद्यम) से कार्य सिद्ध होता है। ~ दसकुमारचरित | * निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र (योजना, परामर्श) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव (राजोचित शक्ति, तेज) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह (उद्यम) से कार्य सिद्ध होता है। ~ दसकुमारचरित | ||
* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। ~ [[रामायण]] | * दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। ~ [[रामायण]] | ||
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है। ~ चाणक्य | * प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है। ~ चाणक्य | ||
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* लोकतन्त्र, जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिये सरकार होती है। ~ अब्राहम लिंकन | * लोकतन्त्र, जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिये सरकार होती है। ~ अब्राहम लिंकन | ||
* लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है। ~ हेनरी एमर्शन फास्डिक | * लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है। ~ हेनरी एमर्शन फास्डिक | ||
* शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है। प्रजातन्त्र और तानाशाही में अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है, बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है। | * शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है। प्रजातन्त्र और तानाशाही में अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है, बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है। ~ लॉर्ड बिवरेज | ||
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | ||
* बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। | * बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। ~ महात्मा गांधी | ||
* जैसी जनता, वैसा राजा । प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥ | * जैसी जनता, वैसा राजा । प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥ ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | ||
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है। | ||
* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। | * सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। ~ [[स्वामी विवेकानंद]] | ||
* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। | * लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। ~ जयप्रकाश नारायण | ||
==नियम / क़ानून / विधान / न्याय== | ==नियम / क़ानून / विधान / न्याय== | ||
* न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । (कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो) | * न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । (कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो) ~ महाभारत | ||
* अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। | * अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। ~ थामस फुलर | ||
* थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी | * थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान् कार्य नहीं किया जा सकता। ~ लुइस दी उलोआ | ||
* संविधान इतनी विचित्र (आश्चर्यजनक) चीज़ है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या चीज़ होती है, वह गदहा है। | * संविधान इतनी विचित्र (आश्चर्यजनक) चीज़ है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या चीज़ होती है, वह गदहा है। | ||
* लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर। | * लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर। | ||
* सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं। अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें। | * सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं। अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें। ~ इमर्शन | ||
* न राज्यं न च राजासीत्, न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा, रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ (न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी।) | * न राज्यं न च राजासीत्, न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा, रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ (न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी।) | ||
* क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। | * क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। ~ फिदेल कास्त्रो | ||
==व्यवस्था== | ==व्यवस्था== | ||
* व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन (बीम) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीज़ों से है। | * व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन (बीम) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीज़ों से है। ~ राबर्ट साउथ | ||
* अच्छी व्यवस्था ही सभी | * अच्छी व्यवस्था ही सभी महान् कार्यों की आधारशिला है। ~ एडमन्ड बुर्क | ||
* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। | * सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। ~ विल डुरान्ट | ||
* हर चीज़ के लिये जगह, हर चीज़ जगह पर। | * हर चीज़ के लिये जगह, हर चीज़ जगह पर। ~ बेन्जामिन फ्रैंकलिन | ||
* सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है। | * सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है। ~ अलेक्जेन्डर पोप | ||
* परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। | * परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। ~ अल्फ्रेड ह्वाइटहेड | ||
==विज्ञापन== | ==विज्ञापन== | ||
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। | * मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। ~ हरिशंकर परसाई | ||
==शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता== | ==शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता== | ||
* वीरभोग्या वसुन्धरा । (पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है) | * वीरभोग्या वसुन्धरा । (पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है) | ||
* कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ | * कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ ~ पंचतंत्र | ||
* जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | * जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ? | ||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । ख़ुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? | * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । ख़ुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? ~ अकबर इलाहाबादी | ||
* कौन कहता है कि आसमा में छेद हो सकता नहीं। कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।| | * कौन कहता है कि आसमा में छेद हो सकता नहीं। कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।| | ||
* यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते । तेजसा तस्य हीनस्य, पुरुषार्थो न सिध्यति ॥ ( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो | * यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते । तेजसा तस्य हीनस्य, पुरुषार्थो न सिध्यति ॥ (पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दु:ख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नहीं दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नहीं होता) | ||
* नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ (जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार। पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है) | * नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ (जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार। पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है) | ||
* जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता | * जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है ~ मृच्छकटिक | ||
* अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। | * अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। ~ जोनाथन स्विफ्ट | ||
* मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। | * मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। | * आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। ~ श्रीमद्भागवत 8।19।39 | ||
* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। | * तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। ~ गुरु गोविन्द सिंह | ||
==युद्ध | ==युद्ध== | ||
* सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। | * सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। ~ पं. जवाहरलाल नेहरू | ||
* सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा। | * सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा। ~ दुर्योधन, महाभारत में | ||
* प्रागेव विग्रहो न विधिः । पहले ही (बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है। | * प्रागेव विग्रहो न विधिः । पहले ही (बिना साम, दान, दण्ड का सहारा लिये ही) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है। ~ पंचतन्त्र | ||
==प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य== | ==प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य== | ||
* वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नहीं देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। | * वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नहीं देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। | ||
* भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना | * भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना ज़रूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है। ~ एरिक हाफर | ||
* प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है। | * प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है। | ||
* सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। | * सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। | ||
* मूर्खतापूर्ण-प्रश्न, कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे। | * मूर्खतापूर्ण-प्रश्न, कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे। ~ स्टीनमेज | ||
* जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नहीं पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है। | * जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नहीं पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है। | ||
* सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है, सबसे बड़ा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है। | * सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है, सबसे बड़ा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है। | ||
* मैं | * मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ| इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हू| इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन| ~ रुडयार्ड किपलिंग | ||
* यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। | * यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। ~ नीतसार | ||
* शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है। | * शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है। ~ अब्राहम हैकेल | ||
==सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था== | ==सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था== | ||
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* ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं, उतना ही अधिक यह बढता है। इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग। | * ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं, उतना ही अधिक यह बढता है। इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग। | ||
* एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं। | * एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं। | ||
* गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। | * गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं। ~ हितोपदेश | ||
* पर्दे और पाप का घनिष्ट सम्बन्ध होता है। | * पर्दे और पाप का घनिष्ट सम्बन्ध होता है। | ||
* सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है। | * सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है। ~ थामस जेफर्सन | ||
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==अज्ञान== | ==अज्ञान== | ||
* अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। | * अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। ~ चाणक्य | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। ~ ईसा | ||
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है बल्कि स्वयं को अज्ञानी जानना ही उसका विशेषाधिकार है। | * अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है बल्कि स्वयं को अज्ञानी जानना ही उसका विशेषाधिकार है। ~ राधाकृष्णन | ||
* अशिक्षित रहने से पैदा ना होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही सब विपत्ति का मूल है। | * अशिक्षित रहने से पैदा ना होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही सब विपत्ति का मूल है। | ||
* अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। | * अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। ~ शेख सादी | ||
==अतिथि== | ==अतिथि== | ||
* अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। | * अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। ~ अथर्ववेद | ||
* यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। | * यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। ~ विनोबा | ||
* आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। | * आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। ~ तुलसीदास | ||
==अत्याचार== | ==अत्याचार== | ||
* अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। | * अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। ~ शेख सादी | ||
* | * ग़ुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। | * अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। ~ तिलक | ||
==अधिकार== | ==अधिकार== | ||
* ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। | * ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। ~ टैगोर | ||
* संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। | * संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। ~ प्रेमचंद | ||
==अपराध== | ==अपराध== | ||
* दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। | * दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। ~ अज्ञात | ||
* अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। | * अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अपराधी मन संदेह का अड्डा है। | * अपराधी मन संदेह का अड्डा है। ~ शेक्सपीयर | ||
==अभिमान== | ==अभिमान== | ||
* जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। | * जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। ~ विदुर नीति | ||
* अभिमान नरक का मूल है। | * अभिमान नरक का मूल है। ~ महाभारत | ||
* कोयल दिव्या आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता है। | * कोयल दिव्या आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता है। ~ प्रसंग रत्नावली | ||
* कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए। | * कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए। ~ कबीर | ||
* समस्त | * समस्त महान् ग़लतियों की तह में अभिमान ही होता है। ~ रस्किन | ||
* किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है। | * किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है। ~ हाफ़िज़ | ||
* जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। | * जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। ~ शेख सादी | ||
* अभिमान नरक का द्वार है। | |||
* अभिमान जब नम्रता का महोरा पहन लेता है, तब ज़्यादा ही घृणास्पद होता है। ~ कम्बरलेंद | |||
* बड़े लोगों के अभिमान से छोटे लोगों की श्रद्धा बड़ा कार्य कर जाती है। ~ दयानंद सरस्वती | |||
* जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। ~ महावीर स्वामी | |||
* सभी महान् भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। ~ रस्किन | |||
==अभिलाषा== | ==अभिलाषा== | ||
* हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। | * हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। ~ टैगोर | ||
* अभिलाषा सब दुखों का मूल है। | * अभिलाषा सब दुखों का मूल है। ~ बुद्ध | ||
* अभिलाषाओं से ऊपर उठ जाओ वे पूरी हो जायंगी, मांगोगे तो उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेंगी। | * अभिलाषाओं से ऊपर उठ जाओ वे पूरी हो जायंगी, मांगोगे तो उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेंगी। ~ रामतीर्थ | ||
* कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। | * कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। ~ खलील जिज्ञान | ||
* अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। | * अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। ~ शेक्सपीयर | ||
==अहिंसा== | ==अहिंसा== | ||
* उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। | * उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। ~ ईसा | ||
* जब को व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर पूरा उतर जाता है तो अन्य व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर बैर भाव भूल जाता है। | * जब को व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर पूरा उतर जाता है तो अन्य व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर बैर भाव भूल जाता है। ~ पतंजलि | ||
* हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। | * हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। ~ महात्मा गाँधी | ||
==आंसू== | ==आंसू== | ||
* स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के | * स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के हृदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। ~ टैगोर | ||
* नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। | * नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* मेरी एक प्रबल कामना है की मैं कम से कम एक आँख का आंसू पोछ दूं। | * मेरी एक प्रबल कामना है की मैं कम से कम एक आँख का आंसू पोछ दूं। ~ महात्मा गाँधी | ||
* सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। | * सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। ~ बुद्ध | ||
==आचरण== | ==आचरण== | ||
* जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | * जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | ||
* माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। | * माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। ~ शुक्रनीति | ||
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है, उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। | * मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है, उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। ~ टैगोर | ||
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं किन्तु जो उसके अनुसार आचरण करता है वोही वस्तुतः | * शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं किन्तु जो उसके अनुसार आचरण करता है वोही वस्तुतः विद्वान् है। ~ अज्ञात | ||
* रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। | * रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। ~ हितोपदेश | ||
==आपत्ति== | ==आपत्ति== | ||
* ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। | * ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। ~ अज्ञात | ||
* मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। | * मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* आपत्ति 'मनुष्य' बनाती है और संपत्ति 'राक्षस'। | * आपत्ति 'मनुष्य' बनाती है और संपत्ति 'राक्षस'। ~ विक्टर ह्यूगो | ||
* धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपति काल परखिये चारी। | * धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपति काल परखिये चारी। ~ तुलसीदास | ||
* आपत्ति काल में हमारी अजीब अजीब लोगों से पहचान हो जाती है जो अन्यथा संभव नहीं। | * आपत्ति काल में हमारी अजीब अजीब लोगों से पहचान हो जाती है जो अन्यथा संभव नहीं। ~ शेक्सपीयर | ||
* रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | * रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | ||
==आशा== | ==आशा== | ||
* आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। | * आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। ~ कहावत | ||
* आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। | * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गाँधी | ||
* आशा प्रयत्नशील मनुष्य का साथ कभी नहीं छोडती। | * आशा प्रयत्नशील मनुष्य का साथ कभी नहीं छोडती। ~ गेटे | ||
* जितनी अधिक आशा रखोगे उतनी अधिक निराशा होगी। | * जितनी अधिक आशा रखोगे उतनी अधिक निराशा होगी। ~ कहावत | ||
* स्मृति पीछे दृष्टि डालती है और आशा आगे। - रामचंद्र टंडन | * स्मृति पीछे दृष्टि डालती है और आशा आगे। - रामचंद्र टंडन | ||
* मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। | * मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। ~ बर्नार्ड शा | ||
==इंद्रियां== | ==इंद्रियां== | ||
* जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। | * जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। ~ चाणक्य | ||
* अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। | * अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। ~ कठोपनिषद | ||
* जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को विषयों से खींच लेता है तभी उसकी बुद्धि स्थिर होती है। | * जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को विषयों से खींच लेता है तभी उसकी बुद्धि स्थिर होती है। ~ महाभारत | ||
* सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी | * सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी स्वरूप की उपसना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। ~ भगवन कृष्ण | ||
==उत्साह== | ==उत्साह== | ||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। | * उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। ~ वाल्मीकि | ||
* विश्व इतिहास में प्रत्येक | * विश्व इतिहास में प्रत्येक महान् और महत्त्वपूर्ण आन्दोलन उत्साह द्वारा ही सफल हो पाया है। ~ एमर्सन | ||
==उदारता== | ==उदारता== | ||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। | * यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। ~ हितोपदेश | ||
* उदार व्यक्ति दे-देकर अमीर बनता है, लोभी जोड़ जोड़ कर | * उदार व्यक्ति दे-देकर अमीर बनता है, लोभी जोड़ जोड़ कर ग़रीब होता है। ~ जर्मन कहावत | ||
* चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। | * चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। ~ अफलातून | ||
==उधार== | ==उधार== | ||
* ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। | * ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। ~ शेक्सपीयर | ||
* उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। | * उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। ~ अज्ञात | ||
* उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। | * उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। ~ प्रेमचंद | ||
==उपकार== | ==उपकार== | ||
* वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। | * वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। ~ कालिदास | ||
* जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके | * जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके हृदय में प्रेम है उसके लिए द्वार खुले हैं। ~ टैगोर | ||
* उपकार के लिए अगर कुछ जाल भी करना पड़े तो उससे आत्मा की हत्या नहीं होती। | * उपकार के लिए अगर कुछ जाल भी करना पड़े तो उससे आत्मा की हत्या नहीं होती। ~ प्रेमचंद | ||
* उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। | * उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। ~ अज्ञात | ||
==उपदेश== | ==उपदेश== | ||
* बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। | * बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। ~ जर्मन कहावत | ||
* जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। | * जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। ~ शेख सादी | ||
* पेट भरे पर उपवास का उपदेश देना सरल है। | * पेट भरे पर उपवास का उपदेश देना सरल है। ~ कहावत | ||
* जिसने स्वयं को समझ लिया हो वह दूसरों सो समझाने नहीं जायेगा। | * जिसने स्वयं को समझ लिया हो वह दूसरों सो समझाने नहीं जायेगा। ~ धम्मपद | ||
* लोगों की समझ शक्ति के | * लोगों की समझ शक्ति के मुताबिक़ उपदेश देना चाहिए। ~ हदीस | ||
* उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। | * उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। ~ टैगोर | ||
==उपहार== | ==उपहार== | ||
* जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। | * जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। ~ फ्रेंकलिन | ||
* शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना | * शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, बालक को उत्तम दृष्टान्त, पिता को आदर, माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व कर सके, अपने को प्रतिष्ठा और सबको उपहार। ~ बालफोर | ||
==उपेक्षा== | ==उपेक्षा== | ||
* प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। | * प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। ~ अज्ञात | ||
* रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। | * रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ~ सुभाषित | ||
==एकाग्रता== | ==एकाग्रता== | ||
* जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। | * जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। ~ रामतीर्थ | ||
* झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | * झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | ||
* मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। | * मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | ||
==एकांत== | ==एकांत== | ||
* जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। | * जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। ~ अज्ञात | ||
* एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। | * एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। ~ अज्ञात | ||
* मुझे एकांत से बढकर योग्य साथी कभी नहीं मिला। | * मुझे एकांत से बढकर योग्य साथी कभी नहीं मिला। ~ थोरो | ||
* एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। | * एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। ~ प्रेमचंद | ||
==ऐश्वर्य== | ==ऐश्वर्य== | ||
* | * क़दम पीछे ना हटाने वाला ही ऐश्वर्य को जीतता है। ~ ऋग्वेद | ||
* स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। | * स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। ~ महाभारत | ||
* धन ना भी हो तो आरोग्य, विद्वता सज्जन-मैत्री तथा स्वाधीनता मनुष्य के | * धन ना भी हो तो आरोग्य, विद्वता सज्जन-मैत्री तथा स्वाधीनता मनुष्य के महान् ऐश्वर्य हैं। ~ अज्ञात | ||
* ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। | * ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तु | ||
==कल्पना== | ==कल्पना== | ||
* मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। | * मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। ~ योगवशिष्ठ | ||
* कल्पना विश्व पर शासन करती है। | * कल्पना विश्व पर शासन करती है। ~ नेपोलियन | ||
* पागल, प्रेमी और कवि की कल्पनाएँ एक सी होती हैं। | * पागल, प्रेमी और कवि की कल्पनाएँ एक सी होती हैं। ~ शेक्सपियर | ||
==कंजूसी== | ==कंजूसी== | ||
* कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है। | * कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है। ~ अथर्ववेद | ||
* संसार में सबसे दयनीय कौन है? जो धवन होकर भी कंजूस है। | * संसार में सबसे दयनीय कौन है? जो धवन होकर भी कंजूस है। ~ विद्यापति | ||
* हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। | * हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। ~ इतालियन कहावत | ||
==कवि - कविता== | ==कवि - कविता== | ||
* कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। | * कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। ~ शेक्सपियर | ||
* इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। | * इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। ~ प्लेटो | ||
* कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर | * कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर हृदय बंद होते हैं। ~ प्रेमचंद | ||
==काम== | ==काम== | ||
* काम से शोक उत्पन्न होता है। | * काम से शोक उत्पन्न होता है। ~ धम्मपद | ||
* काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। | * काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। ~ गीता | ||
* सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। | * सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। ~ कबीर | ||
==कुरूपता== | ==कुरूपता== | ||
* मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। | * मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। ~ खलील जिब्रान | ||
* कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। | * कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। ~ चाणक्य | ||
==ख्याति== | ==ख्याति== | ||
* ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। | * ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। ~ कहावत | ||
* ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। | * ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। ~ प्रेमचंद | ||
==गुण== | ==गुण== | ||
* गुणों से ही मनुष्य | * गुणों से ही मनुष्य महान् होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से [[कौआ]] गरुड़ नहीं हो सकता। ~ चाणक्य | ||
* सद्गुनशील, मुंसिफ | * सद्गुनशील, मुंसिफ मिज़ाज और अक्लमंद आदमी तब तक नहीं बोलता जब तक ख़ामोशी नहीं हो जाती। ~ शेख सादी | ||
* कस्तूरी को अपनी मौजूदगी कसम खाकर सिद्ध नहीं करनी पड़ती; गुण स्वयं ही सामने आ जाते हैं। | * कस्तूरी को अपनी मौजूदगी कसम खाकर सिद्ध नहीं करनी पड़ती; गुण स्वयं ही सामने आ जाते हैं। ~ अज्ञात | ||
* रूप कि पहुँच आँखों तक है, गुण आत्मा को जीतते हैं। | * रूप कि पहुँच आँखों तक है, गुण आत्मा को जीतते हैं। ~ पोप | ||
* बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। | * बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। ~ रहीम | ||
==क्षमा== | ==क्षमा== | ||
* क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण | * क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण जगत् को धारण कर रखा है। ~ वेदव्यास | ||
* वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। | * वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। ~ चैतन्य | ||
* क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेना है। | * क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेना है। ~ हज़रत अली | ||
* दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। | * दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। ~ कृष्ण | ||
* मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। | * मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। ~ शरतचंद्र | ||
==चतुराई== | ==चतुराई== | ||
* चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। | * चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। ~ शेख सादी | ||
* सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। | * सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। ~ फ़्रांसिसी कहावत | ||
==चापलूसी== | ==चापलूसी== | ||
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==झगड़ा== | ==झगड़ा== | ||
* लोग फल के बजाये छिलके पर अधिक झगड़ते हैं। | * लोग फल के बजाये छिलके पर अधिक झगड़ते हैं। | ||
* झगड़े में शामिल दोनों पक्ष | * झगड़े में शामिल दोनों पक्ष ग़लत होते हैं। | ||
==ठोकर== | ==ठोकर== | ||
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==तर्क== | ==तर्क== | ||
* जो तर्क नहीं सुने वह कट्टर है, जो तर्क न कर सके वह मूर्ख है और जो तर्क करने का सके वह | * जो तर्क नहीं सुने वह कट्टर है, जो तर्क न कर सके वह मूर्ख है और जो तर्क करने का सके वह ग़ुलाम है। - ड्रमंड | ||
* तर्क केवल बुद्धि का विषय है | * तर्क केवल बुद्धि का विषय है हृदय कि सिद्धि तक बुद्धि नहीं पहुँच सकती। | ||
* जिसे बुद्धि मने मगर | * जिसे बुद्धि मने मगर हृदय ना माने वह तजने योग्य है। - महात्मा गाँधी | ||
==दर्शन== | ==दर्शन== | ||
* दर्शन का उद्देश्य जीवन कि व्याख्या करना नहीं उसे बदलना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * दर्शन का उद्देश्य जीवन कि व्याख्या करना नहीं उसे बदलना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
* जब | * जब ज़िन्दगी को अपने दिल के गीत सुनाने का मौक़ा नहीं मिलता तब वह अपने मन के विचार सुनाने के लिए दार्शनिक पैदा कर देती है। - खलील जिब्रान | ||
* दार्शनिक होने का अर्थ केवल सूक्ष्म विचारक होना या केवल किसी दर्शन प्रणाली को चला देना नहीं है बल्कि यह है कि हम ज्ञान के ऐसे प्रेमी बन जायें कि उसके इशारों पर चलते हुए विश्वास, सादगी, स्वतंत्रता और उदारता का जीवन व्यतीत करने लगें। - थोरो | * दार्शनिक होने का अर्थ केवल सूक्ष्म विचारक होना या केवल किसी दर्शन प्रणाली को चला देना नहीं है बल्कि यह है कि हम ज्ञान के ऐसे प्रेमी बन जायें कि उसके इशारों पर चलते हुए विश्वास, सादगी, स्वतंत्रता और उदारता का जीवन व्यतीत करने लगें। - थोरो | ||
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==दुर्वचन== | ==दुर्वचन== | ||
* दुर्वचन पशुओं तक को अप्रिय होते हैं। - बुद्ध | * दुर्वचन पशुओं तक को अप्रिय होते हैं। - बुद्ध | ||
* दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति | * दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति हृदय में उठी हुई भावना तिरस्कार करती है, इसीलिए जब कोई तुम्हे उत्तेजित करता है तो यह तुम्हारे अन्दर की भावना ही है जो तुम्हे उत्तेजित करती है। - एपिक्टेतस | ||
* दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | * दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | ||
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* देह आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसी पवित्र है। - महात्मा गाँधी | * देह आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसी पवित्र है। - महात्मा गाँधी | ||
* देह एक रथ है, इन्द्रिय उसमे घोड़े, बुद्धि सारथी और मन लगाम है, केवल देह पोषण करना आत्मघात है। - ज्ञानेश्वरी | * देह एक रथ है, इन्द्रिय उसमे घोड़े, बुद्धि सारथी और मन लगाम है, केवल देह पोषण करना आत्मघात है। - ज्ञानेश्वरी | ||
==धीरज== | ==धीरज== | ||
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* शोक में, आर्थिक संकट में या प्रानान्त्कारी भय उत्पन्न होने पर जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए दीराज धारण करता है उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। - वाल्मीकि | * शोक में, आर्थिक संकट में या प्रानान्त्कारी भय उत्पन्न होने पर जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए दीराज धारण करता है उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। - वाल्मीकि | ||
* जितनी जल्दी करोगे उतनी देर लगेगी। - चर्चिल | * जितनी जल्दी करोगे उतनी देर लगेगी। - चर्चिल | ||
* सब्र | * सब्र ज़िन्दगी के मकसद का दरवाज़ा खोलता है क्योंकि सिवाय सब्र के उस दरवाज़े कि कोई और चाबी नहीं है। - शेख सादी | ||
==धोका== | ==धोका== | ||
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* मुझे जितनी जहन्नुम से फाटकों से घृणा है उतनी ही उस व्यक्ति से घृणा है जो दिल में एक बात छुपाकर दूसरी कहता है। - होमर | * मुझे जितनी जहन्नुम से फाटकों से घृणा है उतनी ही उस व्यक्ति से घृणा है जो दिल में एक बात छुपाकर दूसरी कहता है। - होमर | ||
* ज़्यादा मधुर बानी धोकेबाज़ी की निशानी। - कहावत | * ज़्यादा मधुर बानी धोकेबाज़ी की निशानी। - कहावत | ||
==नक़ल== | ==नक़ल== | ||
पंक्ति 645: | पंक्ति 527: | ||
* मानव नक़ल करने वाला प्राणी है और जो सबसे आगे रहता है वो नेत्रित्व करता है। - शिलर | * मानव नक़ल करने वाला प्राणी है और जो सबसे आगे रहता है वो नेत्रित्व करता है। - शिलर | ||
* उपदेश के बजाय कहीं ज़्यादा हम हम करके सीखते हैं। - बर्क | * उपदेश के बजाय कहीं ज़्यादा हम हम करके सीखते हैं। - बर्क | ||
* जहाँ नक़ल है वहां | * जहाँ नक़ल है वहां ख़ाली दिखावत होगी, जहाँ ख़ाली दिखावत है वहां मूर्खता होगी। - जॉन्सन | ||
==नरक== | ==नरक== | ||
* संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान लेना पड़ता है की यह | * संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान लेना पड़ता है की यह जगत् ही नरक है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ। - तुलसीदास | * काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ। - तुलसीदास | ||
* अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से बैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवा, ये नरक में रहाहे वालों के लक्षण हैं। - चाणक्य नीति | * अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से बैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवा, ये नरक में रहाहे वालों के लक्षण हैं। - चाणक्य नीति | ||
==नाम== | ==नाम== | ||
* नाम में क्या रखा है जिसे हम गुलाब खाहते हैं वह किसी और नाम से भी सुगंध ही देगा। - शेक्सपियर | * नाम में क्या रखा है जिसे हम गुलाब खाहते हैं वह किसी और नाम से भी सुगंध ही देगा। - शेक्सपियर | ||
* अपना नाम सदा | * अपना नाम सदा क़ायम रखने के लिए मनुष्य बड़े से बड़ा जोखिम उठाने, धन खर्च करने, हर तरह के कष्ट सहने यहाँ तक की मरने के लिए भी तैयार हो जाता है। - सुकरात | ||
* अपने नाम को कमल की तरह निष्कलंक बनाओ। - लांग फैलो | * अपने नाम को कमल की तरह निष्कलंक बनाओ। - लांग फैलो | ||
* आदि नाम परस अहै, मन है मैला लोह, परसत ही कंचन भया, छूता बंधन मोह। - कबीर | * आदि नाम परस अहै, मन है मैला लोह, परसत ही कंचन भया, छूता बंधन मोह। - कबीर | ||
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==निंदा== | ==निंदा== | ||
* यदि तुम्हारी कोई निंदा करे तो भीतर ही भीतर प्रशन्न हो क्योंकि तुम्हारी निंदा करके वह तुम्हारे पाप अपने ऊपर ले रहा है। - ब्रह्मानंद सरस्वती | * यदि तुम्हारी कोई निंदा करे तो भीतर ही भीतर प्रशन्न हो क्योंकि तुम्हारी निंदा करके वह तुम्हारे पाप अपने ऊपर ले रहा है। - ब्रह्मानंद सरस्वती | ||
* ऐ ईमान वालों, दुसरे पर शक मत करो | दूसरों पर शक करना कभी कभी गुनाह हो जाता है। - | * ऐ ईमान वालों, दुसरे पर शक मत करो | दूसरों पर शक करना कभी कभी गुनाह हो जाता है। - क़ुरान | ||
* निंदक नियरे रखिये, आँगन कुटी छाबाये, बिन पानी बिन साबुना, निर्मल करे सुहाए। - कबीर | * निंदक नियरे रखिये, आँगन कुटी छाबाये, बिन पानी बिन साबुना, निर्मल करे सुहाए। - कबीर | ||
* हर किसी की निंदा सुन लो लेकिन अपना निर्णय गुप्त रखो। - शेक्सपियर | * हर किसी की निंदा सुन लो लेकिन अपना निर्णय गुप्त रखो। - शेक्सपियर | ||
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==निराशा== | ==निराशा== | ||
* निराशा दुर्बलता का | * निराशा दुर्बलता का चिह्न है। - रामतीर्थ | ||
* निराशा में प्रतीक्षा अंधे की लाठी है। - प्रेमचंद | * निराशा में प्रतीक्षा अंधे की लाठी है। - प्रेमचंद | ||
* निराशा स्वर्ग का सीलन है जैसे प्रशन्नता स्वर्ग की शांति। - डाने | * निराशा स्वर्ग का सीलन है जैसे प्रशन्नता स्वर्ग की शांति। - डाने | ||
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==नियम== | ==नियम== | ||
* नियम यदि एक क्षण के लिए टूट जाये तो सारा सूर्यमंडल अस्त-व्यस्त हो जाए। - महात्मा गाँधी | * नियम यदि एक क्षण के लिए टूट जाये तो सारा सूर्यमंडल अस्त-व्यस्त हो जाए। - महात्मा गाँधी | ||
* जो अपने लिए नियम नहीं बनाता उसे दूसरों के नियमों पर चलना पड़ता है। - हरिभाऊ उपाध्याय | * जो अपने लिए नियम नहीं बनाता उसे दूसरों के नियमों पर चलना पड़ता है। - [[हरिभाऊ उपाध्याय]] | ||
* प्रकृति का यह साधारण नियम है जो कभी नहीं बदलेगा ही योग्य अयोग्यों पर शासन करते रहेंगे। - दायोनीसियस | * प्रकृति का यह साधारण नियम है जो कभी नहीं बदलेगा ही योग्य अयोग्यों पर शासन करते रहेंगे। - दायोनीसियस | ||
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* कुछ कही नीच न छेडिये, भलो न वाको संग, पाथर दारे कीच में, उछारे बिगारे अंग। - वृन्द | * कुछ कही नीच न छेडिये, भलो न वाको संग, पाथर दारे कीच में, उछारे बिगारे अंग। - वृन्द | ||
* नीच मनुष्य के साथ मैत्री और प्रेम कुछ भी नहीं करना चाहिए, कोयला अगर जल रहा है तो छूने से जला देता है और अगर ठंडा है तो हाथ काले कर देता है। - हितोपदेश | * नीच मनुष्य के साथ मैत्री और प्रेम कुछ भी नहीं करना चाहिए, कोयला अगर जल रहा है तो छूने से जला देता है और अगर ठंडा है तो हाथ काले कर देता है। - हितोपदेश | ||
* | * दाग़ जो काला नील का, सौ मन साबुन धोय, कोटि जतन पर बोधिये, कागा हंस न होय। - कबीर | ||
* जो उपकार करनेवाले को नीच मनाता है उससे अधिक नीच कोई दूसरा नहीं। - विनोबा | * जो उपकार करनेवाले को नीच मनाता है उससे अधिक नीच कोई दूसरा नहीं। - विनोबा | ||
* शक्तियों का एक नियम है जिसके कारण | * शक्तियों का एक नियम है जिसके कारण चीज़ें समुद्र में एक ख़ास गहराई से नीचे नहीं जा सकती लेकिन नीचता के समुद्र में हम जितने गहरे जाये डूबना उतना ही आसान होता है। - लाबैल | ||
* नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | * नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | ||
==पछतावा, पश्चाताप== | ==पछतावा, पश्चाताप== | ||
* अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। - कहावत | * अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। - कहावत | ||
* करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताए, बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाए। - कबीर | * करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताए, बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाए। - कबीर | ||
* पछतावा | * पछतावा हृदय की वेदना है और निर्मल जीवन का उदय। - शेक्सपियर | ||
* सुधार के बिना पश्चाताप ऐसा है जैसे सुराख़ बंद किये बिना | * सुधार के बिना पश्चाताप ऐसा है जैसे सुराख़ बंद किये बिना जहाज़ में से पानी निकलना। - पामर | ||
* मुझे कोई पछतावा नहीं क्योंकि मैंने किसी का बुरा नहीं किया। - महात्मा गाँधी | * मुझे कोई पछतावा नहीं क्योंकि मैंने किसी का बुरा नहीं किया। - महात्मा गाँधी | ||
==पड़ौसी== | ==पड़ौसी== | ||
* कोई भी इतना धनी नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। - डेनिस कहावत | * कोई भी इतना धनी नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। - डेनिस कहावत | ||
* जब तुम्हारे पड़ौसी के घर में आग लगी तो तुम्हारी संपत्ति पर भी | * जब तुम्हारे पड़ौसी के घर में आग लगी तो तुम्हारी संपत्ति पर भी ख़तरा है। - होरेस | ||
* सच्चा पड़ौसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ उसी गली में रहता है बल्कि वह है जो तुम्हारे विचार स्तर पर रहता है। - रामतीर्थ | * सच्चा पड़ौसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ उसी गली में रहता है बल्कि वह है जो तुम्हारे विचार स्तर पर रहता है। - रामतीर्थ | ||
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* पराधीनता समाज के समस्त मौलिक नियमों के विरुद्ध है। - मान्तेस्क्यु | * पराधीनता समाज के समस्त मौलिक नियमों के विरुद्ध है। - मान्तेस्क्यु | ||
* जिन्हें हम हीन या नीच बनाये रखते है वो भी क्रमशः हमें हेय और दीन बना देता हैं। - टैगोर | * जिन्हें हम हीन या नीच बनाये रखते है वो भी क्रमशः हमें हेय और दीन बना देता हैं। - टैगोर | ||
* | * ग़ुलामी में रखना इंसान के शान के ख़िलाफ़ है, जिस ग़ुलाम को अपनी दशा का मान है और फिर भी जंजीरों को तोड़ने का प्रयास नहीं करता वह पशु से हीन है, अन्तः करण से प्रार्थना करने वाला कभी ग़ुलामी को बर्दास्त नहीं कर सकता। - महात्मा गाँधी | ||
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==परिश्रम== | ==आपकी कीमत Your Value== | ||
* सिक्के हमेशा आवाज़ करते हैं मगर नोट हमेशा खामोश रहते हैं। इसलिए, जब आपकी कीमत बढ़े तो शांत रहिये। अपनी हैसियत का शोर मचाने का जिम्मा आपसे कम कीमत वालों के लिए है। | |||
* पैसा आपका दास है अगर आप उसका उपयोग जानते हैं, वह आपका स्वामी है अगर आप उसका उपयोग नहीं जानते है। - होरेस | |||
==पर्यावरण Environment== | |||
* हमारी सुरक्षा, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे ग्रह के लिए बदलाव लाने का हममें साहस और प्रतिबद्धता होनी चाहिए। - बराक ओबामा, अमेरिकी राष्ट्रपति | |||
* प्रकृति को बुरा-भला न कहो। उसने अपना कर्तव्य पूरा किया, तुम अपना करो। - मिल्टन | |||
* हमारा पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आइना होता है। - अर्ल नाइटेंगल | |||
==परिश्रम Hardwork== | |||
* कठोर परिश्रम से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। - चार्वाक | |||
* न रगड़ के बिना रत्न पर पालिश होती है, न कठिनाइयों के बिना मानव में पूर्णता आती है। - लाओ रसे | |||
* लक्ष्मी उद्यमी पुरुष के पास ही रहती है। - सुभाषित | |||
* संयम और परिश्रम मनुष्य के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं। | |||
* आप कुछ भी कर पाने में सक्षम हैं चाहे वह आपकी सोच हो, आपका जीवन हो या आपके सपने हों, सब सच हो सकते हैं। आप जो चाहें वह कर सकते हैं। आप इस अनंत ब्रह्माण्ड की तरह ही अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण हैं। - शेड हेल्म्स्तेटर | |||
* आलस्यं हि मनुष्याणाम शरीरस्थो महारिपुह (मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य हि है)। | |||
* परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने से नहीं। - हितोपदेश | * परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने से नहीं। - हितोपदेश | ||
* मरते दम तक तू अपने पसीने की कमाई की रोटी खाना। - बाइबल | * मरते दम तक तू अपने पसीने की कमाई की रोटी खाना। - बाइबल | ||
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* मानव सुख जीवन में है और जीवन परिश्रम में है। - अज्ञात | * मानव सुख जीवन में है और जीवन परिश्रम में है। - अज्ञात | ||
==महापुरुष Great Soul== | |||
* सज्जन पुरुष बादलों के सामान कुछ देने के लिए ही ग्रहण करते हैं। - कालिदास | |||
* महापुरुष इस दुनिया से जाने पर ऐसी ज्योति छोड़ जाते हैं, जो उनके दुनिया से जाने के बाद भी कई युगों तक जगमगाती रहती है। - लांङ्गफेलो | |||
* जैसे सूर्य आकाश में छिप कर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाले महापुरुष भी संसार में छिपकर नहीं रह सकते। - वेदव्यास (महाभारत, वन पर्व)) | |||
==सत्य Truth== | |||
* एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। - मुण्डक उपनिषद् | |||
* ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। - इमर्सन | |||
==सत्संग Satsang== | |||
* कबीरा संगत साधु की, हरै और की व्याधि। | |||
संगत बुरी असाधु की आठो पहर उपाधि। - कबीर | |||
==मौन (Maun)== | |||
* वाणी चांदी है तो मौन सोना है। | |||
* सुनना एक कला है, इस कला के लिए कान और ध्यान दोनों चाहिए। | |||
* व्यर्थ सुनने वालों से बचना भी एक कला है। | |||
* व्यर्थ की बातों से खुद को बचाना भी एक कला है। | |||
* बीती बातों को भूलने का सर्वोत्तम तरीका है हमेश नई और रचनात्मक बातें सुनना व सोचना या उसमें रमण करना। | |||
* वाणी से सुनने के अलावा हम वक्ता से निकलने वाली अदृश्य तरंगो से भी बहुत कुछ सुनते हैं, यह अधिक प्रभावशाली होता है, इसी को मौन की भाषा कहते हैं। - विजय कुमार सिंह | |||
* मौन से मतलब वाणीविहीन बनना नहीं हैं। सही समय पर सही बात कहना, बडबोलेपन से बचना भी मौन है। - कानन झिंगन | |||
==धर्म (Dharm) Religion== | |||
* जो दृढ राखे धर्म को, नेहि राखे करतार। | |||
* जहाँ धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी। स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। | |||
धर्मरहित स्थिति में बिलकुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। - महात्मा गाँधी | |||
* पर हित सरिस धर्म नहिं भाई। पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई। - संत तुलसीदास | |||
* मनुष्य की धार्मिक वृत्ति ही उसकी सुरक्षा करती है। - आचार्य तुलसी | |||
* धर्मो रक्षति रक्षतः अर्थात् मनुष्य धर्म की रक्षा करे तो धर्म भी उसकी रक्षा करता है। - महाभारत | |||
* धार्मिक व्यक्ति दुःख को सुख में बदलना जानता है। - आचार्य तुलसी | |||
* धार्मिक वृत्ति बनाये रखने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता और धार्मिक वृत्ति को खोने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। - आचार्य तुलसी | |||
* प्रलोभन और भय का मार्ग बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है। लेकिन सच्चे धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में कभी लाभ हानि वाली संकीर्णता नहीं होती। - आचार्य तुलसी | |||
* शांति से बढकर कोई ताप नहीं, संतोष से बढकर कोई सुख नहीं, तृष्णा से बढकर कोई व्याधि नहीं और दया के सामान कोई धर्म नहीं। - चाणक्य | |||
* हर अवसर और हर अवस्था में जो अपना कर्त्तव्य दिखाई दे उसी को धर्म समझ कर पूरा करना चाहिए। - गीता | |||
* धर्म एक भ्रमात्मक सूर्य है जो मनुष्य के गिर्द धूमता रहता है जब तक मनुष्य मनुष्यता के गिर्द नहीं घूमता। - कार्ल मार्क्स | |||
* दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है। - विनोबा | |||
* धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
10:05, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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