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'''आ''' देवनागरी वर्णमाला का द्वितीय अक्षर।


:1. विस्मयादिद्योतक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है-
::(क) स्वीकृति 'हाँ'
::(ख) दया 'आह'
::(ग) पीड़ा या खेद (बहुधा-आस् या आः लिखा जाता है) 'हा 'हंत'
::(घ) प्रत्यास्मरण 'अहो-ओह' आ एवं किलासीत्<ref>-उत्तर. 6</ref>
::(च) कई बार केवल अनुपूरक के रूप में प्रयुक्त होता है-आ एवं मन्यसे


:2. ([[संज्ञा]] और क्रियाओं के [[उपसर्ग]] के रूप में)
::(क) 'निकट' 'पार्श्व' 'की ओर' 'सब ओर से' 'सब और' (कुछ क्रियाओं को देखो)
::(ख) गत्यर्थक नयनार्थक, तथा स्थानान्तरणार्थक क्रियाओं से पूर्व लगकर विपरीतार्थ का बोध कराता है-यथा गम्-जाना, आगम्-आना, दा-देना, आदा-लेना
:3. (अपा. के साथ वियुक्त निपात के रूप में प्रयुक्त होकर) निम्नांकित अर्थ प्रकट करता हैः-
::(क) आरम्भिक सीमा, (अभिविधि), 'से', 'से लेकर' 'से दूर' 'में से'-आमूलात् श्रोतु-मिच्छामि<ref>-श. 1.</ref>, आ जन्मनः<ref>-श. 5/25</ref>
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08:43, 31 मई 2024 के समय का अवतरण

विवरण देवनागरी वर्णमाला का दूसरा स्वर है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से कण्ठ्य, दीर्घ ('अ' का दीर्घ रूप), मध्य, अवृत्तमुखी तथा अर्धविवृत स्वर है और 'घोष' ध्वनि है।
अनुनासिक रूप आँ (जैसे- आँख, आँगन)
मात्रा 'ा' (जैसे- का, ता, पा इत्यादि)
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) आप्+क्विप् पृषो. प-लोप ] पुल्लिंग- शिव, महादेव; स्त्रीलिंग- लक्ष्मी, रमा।
संबंधित लेख , , , ,
अन्य जानकारी तत्सम क्रियार्थक संज्ञाओं के पहले लगकर विविध अर्थ देता है। जैसे- राधन > आराधन, लोचन > आलोचन, कलन > आकलन

देवनागरी वर्णमाला का दूसरा स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कण्ठ्य, दीर्घ ('अ' का दीर्घ रूप), मध्य, अवृत्तमुखी तथा अर्धविवृत स्वर है और 'घोष' ध्वनि है।

विशेष-
  1. 'आ' का अनुनासिक रूप 'आँ' है (जैसे- आँख, आँगन)।
  2. 'आ' स्वर की मात्रा खड़ी रेखा 'ा' है जो व्यंजन के दाहिनी ओर लगती है (जैसे- का, ता, पा इत्यादि)
  3. [संस्कृत (धातु) आप्+क्विप् पृषो. प-लोप] पुल्लिंग- शिव, महादेव; स्त्रीलिंग- लक्ष्मी, रमा।
'आ' एक उपसर्ग भी है जो संस्कृत तत्सम शब्दों में जुड़कर अनेक अर्थ देता है-
  • पर्यन्त/तक (जैसे- आमरण)
  • आदि से अन्त तक या भर (जैसे- आजीवन)
  • अन्दर सब स्थानों पर व्याप्त या अन्दर तक (जैसे- आपाताल)
  • सहित (जैसे- आबालवृद्ध)
  • विपरीत, उलटा या विलोम (जैसे- आगत)
  • ओर/तरफ़ (जैसे- आकर्षण)
  • तत्सम क्रियार्थक संज्ञाओं के पहले लगकर विविध अर्थ देता है (जैसे- राधन > आराधन, लोचन > आलोचन, कलन > आकलन)[1]

'आ' से कुछ शब्द

आ की मात्रा ा का प्रयोग

क + ा = का
ख + ा = खा
ग + ा = गा
घ + ा = घा
ड़ + ा = ड़ा
च + ा = चा
छ + ा = छा
ज + ा = जा
झ + ा = झा
ञ + ा = ञा
ट + ा = टा
ठ + ा = ठा
ड + ा = डा
ढ + ा = ढा
ण + ा = णा
त + ा = ता
थ + ा = था
द + ा = दा
ध + ा = धा
न + ा = ना
प + ा = पा
फ + ा = फा
ब + ा = बा
भ + ा = भा
म + ा = मा
य + ा = या
र + ा = रा
ल + ा = ला
व + ा = वा
श + ा = शा
ष + ा = षा
स + ा = सा
ह + ा = हा
क्ष + ा = क्षा
त्र + ा = त्रा
ज्ञ + ा = ज्ञा

देवनागरी वर्णमाला का द्वितीय अक्षर।

1. विस्मयादिद्योतक अव्यय के रूप में प्रयुक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है-
(क) स्वीकृति 'हाँ'
(ख) दया 'आह'
(ग) पीड़ा या खेद (बहुधा-आस् या आः लिखा जाता है) 'हा 'हंत'
(घ) प्रत्यास्मरण 'अहो-ओह' आ एवं किलासीत्[2]
(च) कई बार केवल अनुपूरक के रूप में प्रयुक्त होता है-आ एवं मन्यसे
2. (संज्ञा और क्रियाओं के उपसर्ग के रूप में)
(क) 'निकट' 'पार्श्व' 'की ओर' 'सब ओर से' 'सब और' (कुछ क्रियाओं को देखो)
(ख) गत्यर्थक नयनार्थक, तथा स्थानान्तरणार्थक क्रियाओं से पूर्व लगकर विपरीतार्थ का बोध कराता है-यथा गम्-जाना, आगम्-आना, दा-देना, आदा-लेना
3. (अपा. के साथ वियुक्त निपात के रूप में प्रयुक्त होकर) निम्नांकित अर्थ प्रकट करता हैः-
(क) आरम्भिक सीमा, (अभिविधि), 'से', 'से लेकर' 'से दूर' 'में से'-आमूलात् श्रोतु-मिच्छामि[3], आ जन्मनः[4]
(ख) पृथक्करणीय या उपसंहारक सीमा (मर्यादा) को प्रकट करता है-'तक' 'जब तक कि नहीं' 'यथाशक्ति' 'जब तक कि'-आ परितोषाद्विदुषां[5],-कैलासात्[6], कैलास तक
(ग) इन दोनों अर्थों को प्रकट करने में 'आ' या तो अव्ययीभाव समास में अथवा सामाजिक विशेषण का रूप धारण कर लेता है।[7]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी शब्दकोश खण्ड-1 पृष्ठ- 271
  2. -उत्तर. 6
  3. -श. 1.
  4. -श. 5/25
  5. श. 1/2
  6. -मेघ. 11
  7. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 146 |

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