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'''त्रिपिटक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tripiṭaka'') [[बौद्ध धर्म]] का प्रमुख ग्रंथ है, जिसे सभी बौद्ध सम्प्रदाय ([[महायान]], [[थेरवाद]], [[वज्रयान]], मूलसर्वास्तिवाद, नवयान आदि) मानते है। यह बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिसमें [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के उपदेश संग्रहीत हैं। यह ग्रंथ [[पालि भाषा]] में लिखा गया है और विभिन्न भाषाओं में अनुवादित है।
==खंड==
त्रिपिटक में भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्त्व प्राप्त करने के समय से महापरिनिर्वाण तक दिए हुए प्रवचनों को संग्रहित किया गया है। त्रिपिटक का रचनाकाल या निर्माणकाल ईसा पूर्व 100 से ईसा पूर्व 500 है। सभी त्रिपिटक सिहल देश (श्रीलंका) में लिखे गये। त्रिपिटक के तीन खंड हैं-
#[[विनयपिटक]]
#[[सुत्तपिटक]]
#[[अभिधम्मपिटक]]
====विनयपिटक====
विनयपिटक में पांच ग्रंथ सम्मिलित हैं। इसमें [[बुद्ध]] के विभिन्न घटनाओं और अवसरों पर दिए उपदेश संकलित हैं। इसमें बौद्ध श्रमणों तथा भिक्षुओं के संघ के विनय, अर्थात् अनुशासन-आचार सम्बन्धी नियम दिये गये हैं। जिसमें धम्म (धर्म), अर्थात् बौद्ध-सिध्दातों, भगवान बुद्ध के सूक्तों (जिसमें पालिका 'सुत्त' शब्द निकलता है)- सद्वचनों द्वारा निरूपण किया गया है। इसीलिए ये पालि पिटक 'त्रिपिटक' कहलाते हैं। प्रथम के [[पातिमोक्ख]], [[खन्धक]] तथा [[परिवार (विनयपिटक)|परिवार]] नामक तीन भाग हैं। 
====सुत्तपिटक====
सुत्तपिटक में भी पांच भाग हैं और इसमें भिक्षुओं, श्रावकों आदि के आचरण से संबंधित बातों का उल्लेख है।
====अभिधम्मपिटक====
अभिधम्मपिटक के सात भाग हैं और उसमें चित्त, नैतिक धर्म और निर्वाण का उल्लेख है।
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त्रिपिटकों के अतिरिक्त [[पालि भाषा]] में लिखे गये कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ-
#[[मिलिन्दपन्ह]]
#[[दीपवंश]] 
#[[महावंश]]
==महत्त्व==
बौद्ध त्रिपिटक अनेक दृष्टियों से बहुत महत्त्व का है। इसमें बुद्धकालीन भारत की राजनीति, अर्थनीति, सामाजिक व्यवस्था, शिल्पकला, [[संगीत]], वस्त्र-आभूषण, वेष-भूषा, रीति-रिवाज तथा ऐतिहासिक, भौगोलिक, व्यापारिक आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तार से प्रतिपादन है। उदाहरण के लिए, [[विनयपिटक]] में बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों के आचार-व्यवहार सम्बन्धी नियमों का विस्तृत वर्णन है। ‘महावग्ग’ में तत्कालीन जूते, आसन, सवारी, ओषधि, वस्त्र, छतरी, पंखे आदि का उल्लेख है। ‘चुल्लवग्ग’ में भिक्षुणियों की प्रव्रज्या आदि का वर्णन है। यहाँ भिक्षुओं के लिए जो शलाका-ग्रहण की पद्धति बताई गयी है, वह तत्कालीन [[लिच्छवी|लिच्छवि गणतंत्र]] के ‘वोट’ (छन्द) लेने के रिवाज की नकल है। उस समय के गणतन्त्र शासन में कोई प्रस्ताव पेश करने के बाद, प्रस्ताव को दुहराते हुए उसके विषय में तीन बार तक बोलने का अवसर दिया जाता था। तब कहीं जाकर निर्णय सुनाया जाता था। यही पद्धति भिक्षु संघ में स्वीकार की गयी थी।


त्रिपिटक बौद्ध धर्म के आधारभूत और मुख्य ग्रंथ हैं। भगवान [[बुद्ध]] के उपदेश तीन साहित्य खंडों में संकलित हैं।  इन्हें 'त्रिपिटक' कहते हैं। ये तीन खंड हैं-
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#विनयपिटक,
==संबंधित लेख==
#सुत्तपिटक और
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#अभिधम्मपिटक।
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*विनयपिटक में पांच ग्रंथ सम्मिलित हैं।  इसमें बुद्ध के विभिन्न घटनाओं और अवसरों पर दिए उपदेश संकलित हैं। इसमें बौद्ध श्रमणों तथा भिक्षुओं के संघ के विनय, अर्थात् अनुशासन-आचार सम्बन्धी नियम दिये गये हैं। जिसमें धम्म (धर्म), अर्थात् बौद्ध-सिध्दातों, भगवान् बुद्ध के सूक्तों (जिसमें पालिका 'सुत्त' शब्द निकलता है)- सद्वचनों द्वारा निरूपण किया गया है। इसीलिए ये पालि पिटक 'त्रिपिटक' कहलाते हैं। प्रथम के पातिमोक्ख, खन्धक तथा परिवार नामक तीन भाग हैं। 
*सुत्तपिटक में भी पांच भाग हैं और इसमें भिक्षुओं , श्रावकों आदि के आचरण से संबंधित बातों का उल्लेख है। सुत्तपिटक में भी पांच भाग हैं और इसमें भिक्षुओं , श्रावकों आदि के आचरण से संबंधित बातों का उल्लेख है।
*अभिधम्मपिटक के सात भाग हैं और उसमें चित्त, नैतिक धर्म और निर्वाण का उल्लेख है।
 
 
 
[[Category:बौद्ध_धर्म]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:ब्राह्मण_ग्रन्थ]]
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]]
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07:33, 23 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

त्रिपिटक (अंग्रेज़ी: Tripiṭaka) बौद्ध धर्म का प्रमुख ग्रंथ है, जिसे सभी बौद्ध सम्प्रदाय (महायान, थेरवाद, वज्रयान, मूलसर्वास्तिवाद, नवयान आदि) मानते है। यह बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिसमें भगवान बुद्ध के उपदेश संग्रहीत हैं। यह ग्रंथ पालि भाषा में लिखा गया है और विभिन्न भाषाओं में अनुवादित है।

खंड

त्रिपिटक में भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्त्व प्राप्त करने के समय से महापरिनिर्वाण तक दिए हुए प्रवचनों को संग्रहित किया गया है। त्रिपिटक का रचनाकाल या निर्माणकाल ईसा पूर्व 100 से ईसा पूर्व 500 है। सभी त्रिपिटक सिहल देश (श्रीलंका) में लिखे गये। त्रिपिटक के तीन खंड हैं-

  1. विनयपिटक
  2. सुत्तपिटक
  3. अभिधम्मपिटक

विनयपिटक

विनयपिटक में पांच ग्रंथ सम्मिलित हैं। इसमें बुद्ध के विभिन्न घटनाओं और अवसरों पर दिए उपदेश संकलित हैं। इसमें बौद्ध श्रमणों तथा भिक्षुओं के संघ के विनय, अर्थात् अनुशासन-आचार सम्बन्धी नियम दिये गये हैं। जिसमें धम्म (धर्म), अर्थात् बौद्ध-सिध्दातों, भगवान बुद्ध के सूक्तों (जिसमें पालिका 'सुत्त' शब्द निकलता है)- सद्वचनों द्वारा निरूपण किया गया है। इसीलिए ये पालि पिटक 'त्रिपिटक' कहलाते हैं। प्रथम के पातिमोक्ख, खन्धक तथा परिवार नामक तीन भाग हैं।

सुत्तपिटक

सुत्तपिटक में भी पांच भाग हैं और इसमें भिक्षुओं, श्रावकों आदि के आचरण से संबंधित बातों का उल्लेख है।

अभिधम्मपिटक

अभिधम्मपिटक के सात भाग हैं और उसमें चित्त, नैतिक धर्म और निर्वाण का उल्लेख है।

त्रिपिटकों के अतिरिक्त पालि भाषा में लिखे गये कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ-

  1. मिलिन्दपन्ह
  2. दीपवंश
  3. महावंश

महत्त्व

बौद्ध त्रिपिटक अनेक दृष्टियों से बहुत महत्त्व का है। इसमें बुद्धकालीन भारत की राजनीति, अर्थनीति, सामाजिक व्यवस्था, शिल्पकला, संगीत, वस्त्र-आभूषण, वेष-भूषा, रीति-रिवाज तथा ऐतिहासिक, भौगोलिक, व्यापारिक आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तार से प्रतिपादन है। उदाहरण के लिए, विनयपिटक में बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों के आचार-व्यवहार सम्बन्धी नियमों का विस्तृत वर्णन है। ‘महावग्ग’ में तत्कालीन जूते, आसन, सवारी, ओषधि, वस्त्र, छतरी, पंखे आदि का उल्लेख है। ‘चुल्लवग्ग’ में भिक्षुणियों की प्रव्रज्या आदि का वर्णन है। यहाँ भिक्षुओं के लिए जो शलाका-ग्रहण की पद्धति बताई गयी है, वह तत्कालीन लिच्छवि गणतंत्र के ‘वोट’ (छन्द) लेने के रिवाज की नकल है। उस समय के गणतन्त्र शासन में कोई प्रस्ताव पेश करने के बाद, प्रस्ताव को दुहराते हुए उसके विषय में तीन बार तक बोलने का अवसर दिया जाता था। तब कहीं जाकर निर्णय सुनाया जाता था। यही पद्धति भिक्षु संघ में स्वीकार की गयी थी।


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