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|  (24) ||पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। || [[अथर्ववेद]]  
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|  (25) ||विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते। || आगस्टाइन  
|  (25) ||विश्व एक महान् पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते। || आगस्टाइन  
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|  (26) ||पत्नी को चाहिए कि पति घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दु:ख हो। || मार्टिन लूथर  
|  (26) ||पत्नी को चाहिए कि पति घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दु:ख हो। || मार्टिन लूथर  
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|  (37) ||भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। || [[चाणक्य]]  
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|  (38) ||[[माता]] के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी मां को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। || [[वेदव्यास]]  
|  (38) ||[[माता]] के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी माँ को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। || [[वेदव्यास]]  
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|  (39) ||जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। || [[वेदव्यास]]  
|  (39) ||जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। || [[वेदव्यास]]  
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|  (40) ||जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। || महाभारत  
|  (40) ||जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। || महाभारत  
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|  (41) ||लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करनेवाली है। || बल्लाल कवि  
|  (41) ||लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करने वाली है। || बल्लाल कवि  
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|  (42) ||जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। || उडि़या लोकोक्ति  
|  (42) ||जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। || उडि़या लोकोक्ति  

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क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) घर के समान कोई स्कूल नहीं, न ईमानदारी व सदाचारी माता-पिता के समान कोई अध्यापक है।
(2) जब घर में अतिथि हो तब चाहे अमृत ही क्यों न हो, अकेले नहीं पीना चाहिए। तिरुवल्लुवर
(3) घर का मोह कायरता का दूसरा नाम है। अज्ञात
(4) जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती। संत कबीर
(5) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम। कबीर
(6) विदेश में विद्या, घर में पत्नी, रोगी के लिए औषधि और मृतक का मित्र धर्म है। अज्ञात
(7) आदर्श पत्नी :जो बरतन, कपड़े, झाड़ू, पोंछा … कहने का मतलब घर के सभी काम, करने में पति की मदद करे।
(8) कार्यालय: वह स्थान जहां आप घर के तनावों से मुक्ति पाकर विश्राम कर सकते हैं।
(9) चाहे राजा हो या किसान, वह सबसे ज़्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है। गेटे
(10) मंज़िल तो मिल ही जायेगी भटक कर ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकला ही नहीं करते।
(11) अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
(12) कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं।
(13) अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
(14) दुष्टता वस्तुत: पहले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है।
(15) शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है।
(16) व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन (बीम) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीज़ों से है। राबर्ट साउथ
(17) कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय, टूक एक के कारने, स्वान घरे घर जाय। कबीर
(18) जब तुम्हारे पड़ौसी के घर में आग लगी तो तुम्हारी संपत्ति पर भी ख़तरा है। होरेस
(19) आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है। प्रेमचंद
(20) जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है कहावत
(21) सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों की आशा पूरी कर देते है जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर जाकर प्रकाश फैला देता है। कालिदास
(22) यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। कबीरदास
(23) वह पुरुष धन्‍य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्‍यलक्ष्‍मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। भगवान महावीर
(24) पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। अथर्ववेद
(25) विश्व एक महान् पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते। आगस्टाइन
(26) पत्नी को चाहिए कि पति घर लौटने पर खुश हो, और पति को चाहिए कि पत्नी को उसके घर से निकलने पर दु:ख हो। मार्टिन लूथर
(27) इस संसार में सबसे सुखी वही व्‍यक्ति है जो अपने घर में शांति पाता है। गेटे
(28) क्रोध बुद्धि को घर से बाहर, निकाल देता है और दरवाज़े पर, चटकनी लगा देता है। प्‍लूटार्क
(29) मनुष्य की सबसे शुरुआती आवश्यकताओं में एक है किसी ऐसे की ज़रूरत जो आपके रात को घर न लौटने पर चिंतित हो कि आप कहाँ हैं। माग्रेट मीड
(30) निष्क्रियता से संदेह और डर की उत्पत्ति होती है, क्रियाशीलता से विश्वास और साहस का सृजन होता है, यदि आप डर पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो चुपचाप घर पर बैठ कर इसके बारे में विचार न करें, बाहर निकले और व्यस्त रहें। डेल कार्नेगी
(31) व्यवहार कुशलता उस कला का नाम है कि आप महमानों को घर जैसा आराम दें और मन ही मन मनाते भी जाएं कि वे अपनी तशरीफ उठा ले जाएं। जॉर्ज ई बर्गमैन
(32) मेरे साथ जो कुछ अप्रिय हो सकता है, उन सभी से मैं बड़ा हूं, यह सभी बातें, दुःख, दुर्भाग्य, तथा पीड़ाएं, मेरे दरवाज़े से बाहर हैं. मैं घर में हूं तथा मेरे पास घर की चाबी है। चार्ल्स फ्लैचर ल्यूम्मिस
(33) आज से सौ साल बाद इन बातों का कोई मायना नहीं होगा कि मेरा बैंक खाता कैसा था, में कैसे घर में रहता था, या मेरी कार कौन सी थी, लेकिन दुनिया शायद अलग हो सकती है अगर मैं किसी बालक के जीवन में महत्व रखता था। फॉरेस्ट ई विटक्राफ्ट
(34) अगर तुम घर में शान्ति चाहते हो, तो तुम्हें वह करना चाहिए जो गृहिणी चाहती है। डेनिश कहावत
(35) कष्टों से भी बड़ा कष्ट दूसरों के घर पर रहना है।
(36) बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष न कहे। चाणक्यनीति
(37) भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। चाणक्य
(38) माता के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी माँ को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। वेदव्यास
(39) जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। वेदव्यास
(40) जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। महाभारत
(41) लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करने वाली है। बल्लाल कवि
(42) जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। उडि़या लोकोक्ति
(43) विश्व एक विशाल ग्रंथ है और जो कभी घर के बाहर नहीं जाते, वे उसका केवल एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं। ऑगस्टीन
(44) हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। गुरुनानक
(45) घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते। प्रेमचंद

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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