"स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन": अवतरणों में अंतर
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* पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो। | * पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो। | ||
* सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र - सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। [[भारत]] में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके। | * सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र - सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। [[भारत]] में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके। | ||
* सन्न्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु | * सन्न्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे - धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना। | ||
* हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वान! डरो मत; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हें दिखाता हूँ! | * हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वान! डरो मत; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हें दिखाता हूँ! | ||
* बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे - मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो - यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं - इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा [[हृदय]] बनाकर कार्य में जुट जाओ। | * बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे - मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो - यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं - इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा [[हृदय]] बनाकर कार्य में जुट जाओ। | ||
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* लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, [[लक्ष्मी]] तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक [[युग]] मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। | * लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, [[लक्ष्मी]] तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक [[युग]] मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। | ||
* वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो - व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। | * वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो - व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। | ||
* मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को | * मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान् शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना। इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। | ||
* जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों, सम्पूर्ण शुद्धचरित्र हों। | * जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों, सम्पूर्ण शुद्धचरित्र हों। | ||
* शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष, निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो - सारा धर्म इसी में है। | * शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष, निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो - सारा धर्म इसी में है। | ||
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* जिस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। | * जिस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। | ||
* पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। | * पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। | ||
* 'पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न' के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि | * 'पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न' के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान् कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं। | ||
* साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना - यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे - माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। | * साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना - यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे - माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। | ||
* बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरु में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। | * बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरु में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। | ||
* महाशक्ति का तुममें संचार होगा - कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। | * महाशक्ति का तुममें संचार होगा - कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। | ||
* बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। | * बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। | ||
* धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लड़ो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी | * धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लड़ो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी महान् कार्य करेंगे। जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी। | ||
* जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। | * जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। | ||
* ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो - संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। | * ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो - संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। | ||
* पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढ़ो, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो। | * पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढ़ो, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो। | ||
* यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। | * यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। | ||
* यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी | * यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान् पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा। | ||
* गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। | * गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। | ||
* बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरु तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। | * बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरु तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। | ||
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* जो सबका दास होता है, वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। | * जो सबका दास होता है, वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। | ||
* अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है। | * अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है। | ||
* मेरी दृढ़ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे | * मेरी दृढ़ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान् कर्म क्या है? | ||
* तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नहीं चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो। इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दुनिया को छान डालो! अफ़सोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते | * तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नहीं चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो। इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दुनिया को छान डालो! अफ़सोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते | ||
* श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। - प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनिया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फ़तह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, | * श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। - प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनिया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फ़तह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्हीं विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बड़े - बड़े बह गये, अब गड़रिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा। | ||
* मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषयों में व्यावहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, [[कबीरदास]] के दोहे में है - "हाथी चले बाज़ार में, कुत्ता भोंके हज़ार, साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। | * मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषयों में व्यावहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, [[कबीरदास]] के दोहे में है - "हाथी चले बाज़ार में, कुत्ता भोंके हज़ार, साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। | ||
* अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा - ठहरो - धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है - तुमसे कहता हूँ देखना - कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो - बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दूसरों के धर्म का द्वेष न करना"; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बड़े-बड़े जहाज़ डूब जाते हैं पूरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा। | * अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा - ठहरो - धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है - तुमसे कहता हूँ देखना - कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो - बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दूसरों के धर्म का द्वेष न करना"; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बड़े-बड़े जहाज़ डूब जाते हैं पूरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा। | ||
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* प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफ़ान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। | * प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफ़ान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। | ||
* मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को [[चीन]], [[जापान]] में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवास करने वालों, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुद्धिवालों, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृद्धिगत कूडा - कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करने वाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी-गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो - यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्त्वाकांक्षा है। जिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्ड बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनों। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखों, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। क्या तुम्हें मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुडकर मत देखों; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पीछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है...<ref>{{cite web |url=http://www.chhathpuja.co/community/groups/viewgroup/178-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80+%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9AE0%A4BE%E0A4%B0,swami+vivekananda+quotes,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Hindi+Quotes+by+Swami+Vivekananda,Swami+Vivekananda+quote+in+hindi,Vivekanandas+Hindi+Quotes,Swami+vivekananda+Hindi+quotations |title=स्वामी विवेकानन्द के सुविचार |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=छठ पूजा |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | * मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को [[चीन]], [[जापान]] में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवास करने वालों, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुद्धिवालों, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृद्धिगत कूडा - कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करने वाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी-गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो - यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्त्वाकांक्षा है। जिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्ड बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनों। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखों, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। क्या तुम्हें मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुडकर मत देखों; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पीछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है...<ref>{{cite web |url=http://www.chhathpuja.co/community/groups/viewgroup/178-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80+%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9AE0%A4BE%E0A4%B0,swami+vivekananda+quotes,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Swami+vivekananda+quotes+in+hindi,Hindi+Quotes+by+Swami+Vivekananda,Swami+Vivekananda+quote+in+hindi,Vivekanandas+Hindi+Quotes,Swami+vivekananda+Hindi+quotations |title=स्वामी विवेकानन्द के सुविचार |accessmonthday=20 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=छठ पूजा |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
* एक | * एक महान् रहस्य का मैंने पता लगा लिया है - वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्यदृष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हें नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढव्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म - जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, केवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। | ||
* वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज़्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम ! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतीक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो।<ref>{{cite web |url=http://shivajimaharaj.org/dont-miss/ |title=स्वामी विवेकानन्द जी के विचार |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=shivajimaharaj.org |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | * वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज़्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम ! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतीक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो।<ref>{{cite web |url=http://shivajimaharaj.org/dont-miss/ |title=स्वामी विवेकानन्द जी के विचार |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=shivajimaharaj.org |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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*हर अच्छे, श्रेष्ठ और | *हर अच्छे, श्रेष्ठ और महान् कार्य में तीन चरण होते हैं, प्रथम उसका उपहास उड़ाया जाता है, दूसरा चरण उसे समाप्त या नष्ट करने की हद तक विरोध किया जाता है और तीसरा चरण है, स्वीकृति और मान्यता, जो इन तीनों चरणों में बिना विचलित हुये अडिग रहता है, वह श्रेष्ठ बन जाता है और उसका कार्य सर्व स्वीकृत होकर अनुकरणीय बन जाता है। | ||
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। | * मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। | ||
* मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न हुआ है, उसका अनुसरण करने के लिए नहीं। | * मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न हुआ है, उसका अनुसरण करने के लिए नहीं। | ||
* मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। | * मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। | ||
* अचल निष्ठा ही | * अचल निष्ठा ही महान् कार्यो की जननी है। | ||
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। | * आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। | ||
* आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। | * आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। | ||
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* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। | * सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। | ||
* सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है। | * सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है। | ||
* सच्चे | * सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं। जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। | ||
* सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। | * सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। | ||
* सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना है। उससे एक शब्द कहो और वह लापता हो जाएगी। | * सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना है। उससे एक शब्द कहो और वह लापता हो जाएगी। |
12:05, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन |
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्वामी विवेकानन्द के सुविचार (हिन्दी) (पी.एच.पी.) छठ पूजा। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2011।
- ↑ स्वामी विवेकानन्द जी के विचार (हिन्दी) (पी.एच.पी.) shivajimaharaj.org। अभिगमन तिथि: 14 अप्रॅल, 2011।
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