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♦ यहाँ आप भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। <br />
* यहाँ हम [[भारत]] के [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दर्शन वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है।
♦ भारतीय संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह कोई गर्वोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहकर सम्मानित किया गया है।
* लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन हमारे देश में नास्तिक विचारधारा माना जाता रहा है। दर्शन यथार्थता की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है।
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{{Headnote2| [[:श्रेणी:दर्शन कोश|दर्शन श्रेणी के सभी लेख देखें:- दर्शन कोश]]}}
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{{प्रांगण नोट}}
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><h2>दर्शन मुखपृष्ठ</h2></div>
[[चित्र:Culture-icon-2.gif|center|60px]]
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♦ भारत के अनेकों धर्मों तथा परम्पराओं और उनका आपस में संमिश्रण ने विश्व के अनेकों स्थानों को भी प्रभावित किया है।<br />
♦ हजारों वर्षों से भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं, रीति-रिवाजों आदि में विविधता बनी रही है जो कि आज भी विद्यमान है, और यही अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की महान विशेषता है।
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| class="headbg20" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px;" valign="top" | <div class="headbg19" style="padding-left:8px;">'''विशेष आलेख'''</div>  
| style="border:1px solid #d2cd9f; padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" class="bg63" valign="top"| <div style="padding-left:8px; background:#f8f4d2; border:thin solid #d2cd9f">'''विशेष आलेख'''</div>  
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[चार्वाक दर्शन]]'''</div>
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[पुराण]]'''</div>
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<div id="rollnone"> [[चित्र:Puran-1.png|right|150px|पुराण|link=पुराण]] </div>
        '''[[चार्वाक दर्शन]]''' के अनुसार [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]], [[जल]], [[तेज]] तथा [[वायु देव|वायु]] ये चार ही तत्त्व सृष्टि के मूल कारण हैं। जिस प्रकार [[बौद्ध]] उसी प्रकार चार्वाक का भी मत है कि आकाश नामक कोई तत्त्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणविक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपर्युक्त चार तत्त्व ही बाह्य जगत, इन्द्रिय अथवा देह के रूप में दृष्ट होते हैं। आकाश की वस्त्वात्मक सत्ता न मानने के पीछे इनकी प्रमाण व्यवस्था कारण है। जिस प्रकार हम गन्ध, रस, रूप और स्पर्श का [[प्रत्यक्ष]] अनुभव करते हुए उनके समवायियों का भी तत्तत इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष करते हैं। आकाश तत्त्व का वैसा प्रत्यक्ष नहीं होता। अत: उनके मत में आकाश नामक तत्त्व है ही नहीं। चार महाभूतों का मूलकारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर चार्वाकों के पास नहीं है। यह विश्व अकस्मात भिन्न-भिन्न रूपों एवं भिन्न-भिन्न मात्राओं में मिलने वाले चार महाभूतों का संग्रह या संघट्ट मात्र है।  '''[[चार्वाक दर्शन|.... और पढ़ें]]'''
*पुराणों की रचना वैदिक काल के काफ़ी बाद की है, ये स्मृति विभाग में रखे जाते हैं। पुराणों को '''मनुष्य के भूत, भविष्य, वर्तमान का दर्पण''' भी कहा जा सकता है।  
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*पुराणों में हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है। इनकी '''भाषा सरल और कथा कहानी''' की तरह है।
*पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं। [[वेदव्यास]] जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की।
*पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होता है। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत और ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है- कहना या बतलाना।
*संसार की रचना करते समय [[ब्रह्मा]] जी ने एक ही पुराण की रचना की थी। जिसमें एक '''अरब श्लोक''' थे। यह पुराण बहुत ही विशाल और कठिन था। '''[[पुराण|.... और पढ़ें]]'''
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| class="bgsanskrati2" style="border:1px solid #fbe773;padding:10px;" valign="top" | '''चयनित लेख'''
| class="headbg20" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f6f0b9; border:thin solid #FBE773">'''चयनित लेख'''</div>
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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ज्ञानमीमांसा]]'''</div>
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ईद-उल-फ़ितर]]'''</div>
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<div id="rollnone"> [[चित्र:Eid-ul fitr-2.jpg|right|100px|ईद पर नमाज़ पढ़ते लोग|link=ईद-उल-फ़ितर]] </div>
        '''[[ज्ञानमीमांसा]]''' दर्शनशास्त्र की एक शाखा है। [[दर्शनशास्त्र]] का ध्येय सत्‌ के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। सदियों से सत्‌ के विषय में विवाद होता रहा है। [[आधुनिक काल]] में 'देकार्त' (1596-1650 ई.) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत: सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता। संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है '''[[ज्ञानमीमांसा|.... और पढ़ें]]'''
*ईद-उल-फ़ितर मुसलमानों का पवित्र त्योहार है। [[रमज़ान]] के पूरे महीने में [[मुसलमान]] रोज़े रखकर अर्थात भूखे-प्यासे रहकर पूरा महीना अल्लाह की इबादत में गुज़ार देते हैं।
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*ईद का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान किसी पाक साफ़ जगह पर जिसे 'ईदगाह' कहते हैं, वहाँ इकट्ठे होकर दो रक्आत नमाज़ शुक्राने की अदा करते हैं।  
*रमज़ान के पूरे महीने को अल्लाह की इबादत में गुज़ार कर जब वे रोज़ों से फ़ारिग हो जाते हैं तो चांद की पहली तारीख़ अर्थात जिस दिन चांद दिखाई देता है, उस रोज़ को छोड़कर दूसरे दिन ईद का त्योहार अर्थात ‘बहुत ख़ुशी का दिन’ मनाया जाता है।
*रमज़ान महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे-क़द्र कहते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। '''[[ईद-उल-फ़ितर|.... और पढ़ें]]'''
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| class="headbg20" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f6f0b9; border:thin solid #FBE773">'''कुछ लेख'''</div>
<div style="padding-left:8px;" class="headbg2"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''कुछ चुने हुए लेख'''</span></div>
* [[वैशेषिक दर्शन]]
* [[कृष्ण जन्माष्टमी]]
* [[सांख्य दर्शन]]
* [[दीपावली]]
* [[गीता]]
* [[पोंगल]]
* [[उपनिषद]]
* [[करवा चौथ]]
* [[न्याय दर्शन]]
* [[होली]]
* [[चार्वाक दर्शन]]
* [[ईद उल ज़ुहा]]
* [[जैन दर्शन और उसका उद्देश्य|जैन दर्शन]]
* [[वैशाखी]]
* [[बौद्ध दर्शन]]
* [[लोहड़ी]]
* [[गीता कर्म जिज्ञासा]]
* [[ओणम]]
* [[गीता कर्म योग]]
* [[विजय दशमी]]
* [[वेद]]
* [[जगन्नाथ रथयात्रा]]
* [[ॠग्वेद]]
* [[कुम्भ मेला]]
* [[पुराण]]
* [[एकादशी]]
* [[धर्मशास्त्रीय ग्रंथ]]
* [[गंगा दशहरा]]
* [[वैशेषिक प्रमुख ग्रन्थ]]
* [[गणेश चतुर्थी]]
* [[उत्तर मीमांसा]]
* [[शिवरात्रि]]
* [[ज्ञानमीमांसा]]
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* [[अज्ञेयवाद]]  
<div style="padding-left:8px;" class="headbg2"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''संस्कृति श्रेणी वृक्ष'''</span></div>
* [[द्वैतवाद]]
* [[पूर्व मीमांसा]]
* [[योग दर्शन]]
* [[विशिष्टाद्वैत दर्शन]]
* [[अध्यात्मवाद]]  
| style="border:1px solid #d2cd9f; padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" class="bg63" valign="top"| <div style="padding-left:8px; background:#f8f4d2; border:thin solid #d2cd9f">'''दर्शन श्रेणी वृक्ष'''</div>
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==संबंधित लेख==
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[[Category:प्रांगण]]
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[[Category:दर्शन]]
[[Category:दर्शन कोश]]
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07:44, 12 मई 2021 के समय का अवतरण

  • यहाँ हम भारत के दर्शन संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दर्शन वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है।
  • लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन हमारे देश में नास्तिक विचारधारा माना जाता रहा है। दर्शन यथार्थता की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है।
दर्शन श्रेणी के सभी लेख देखें:- दर्शन कोश
  • भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
विशेष आलेख

        चार्वाक दर्शन के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु ये चार ही तत्त्व सृष्टि के मूल कारण हैं। जिस प्रकार बौद्ध उसी प्रकार चार्वाक का भी मत है कि आकाश नामक कोई तत्त्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणविक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपर्युक्त चार तत्त्व ही बाह्य जगत, इन्द्रिय अथवा देह के रूप में दृष्ट होते हैं। आकाश की वस्त्वात्मक सत्ता न मानने के पीछे इनकी प्रमाण व्यवस्था कारण है। जिस प्रकार हम गन्ध, रस, रूप और स्पर्श का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए उनके समवायियों का भी तत्तत इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष करते हैं। आकाश तत्त्व का वैसा प्रत्यक्ष नहीं होता। अत: उनके मत में आकाश नामक तत्त्व है ही नहीं। चार महाभूतों का मूलकारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर चार्वाकों के पास नहीं है। यह विश्व अकस्मात भिन्न-भिन्न रूपों एवं भिन्न-भिन्न मात्राओं में मिलने वाले चार महाभूतों का संग्रह या संघट्ट मात्र है। .... और पढ़ें

चयनित लेख

        ज्ञानमीमांसा दर्शनशास्त्र की एक शाखा है। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत्‌ के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। सदियों से सत्‌ के विषय में विवाद होता रहा है। आधुनिक काल में 'देकार्त' (1596-1650 ई.) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत: सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता। संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है .... और पढ़ें

कुछ लेख
दर्शन श्रेणी वृक्ष

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