"अनमोल वचन 3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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# जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | # जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | ||
# जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | # जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | ||
# जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | |||
# जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। | |||
# मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | # मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | ||
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# मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | # मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | ||
# मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | # मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | ||
# मनुष्य को एक ही प्रकार की उन्नति से संतुष्ट न होकर जीवन की सभी दिशाओं में उन्नति करनी चाहिए। केवल एक ही दिशा में उन्नति के लिए अत्यधिक प्रयत्न करना और अन्य दिशाओं की उपेक्षा करना और उनकी ओर से उदासीन रहना उचित नहीं है। | |||
# माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो। | |||
# कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | # कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | ||
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# किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | # किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | ||
# किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | # किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | ||
# कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | |||
# दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | # दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | ||
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# दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | # दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | ||
# दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | # दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | ||
# दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। | |||
# दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | |||
# प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। | # प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। | ||
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# परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं। | # परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं। | ||
# पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है। | # पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है। | ||
# पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा। | |||
# पुण्य-परमार्थ का कोई अवसर टालना नहीं चाहिए; क्योंकि अगले क्षण यह देह रहे या न रहे क्या ठिकाना। | |||
# वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | # वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | ||
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# व्यक्तिवाद के प्रति उपेक्षा और समूहवाद के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों का समाज ही समुन्नत होता है। | # व्यक्तिवाद के प्रति उपेक्षा और समूहवाद के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों का समाज ही समुन्नत होता है। | ||
# विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है। | # विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है। | ||
# विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा पुरुषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात् ईश्वर विश्वास का प्रथम चिन्ह है। | |||
# यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | # यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | ||
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# यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | # यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | ||
# युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | # युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | ||
# यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है। | |||
# बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। | # बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। | ||
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# इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | # इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | ||
# ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | # ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | ||
# ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | |||
# शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | # शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | ||
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# चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | # चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | ||
# चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | # चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | ||
# चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | |||
# '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है। | # '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है। | ||
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# ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | # ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | ||
# ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | # ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | ||
# ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | |||
# ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है। | |||
# नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है- शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ। | # नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है- शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ। | ||
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# नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। | # नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। | ||
# नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार। | # नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार। | ||
# नाव स्वयं ही नदी पार नहीं करती। पीठ पर अनेकों को भी लाद कर उतारती है। सन्त अपनी सेवा भावना का उपयोग इसी प्रकार किया करते हैं। | |||
# हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | # हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | ||
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# हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | # हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | ||
# हमारी कितने रातें सिसकते बीती हैं - कितनी बार हम फूट-फूट कर रोये हैं इसे कोई कहाँ जानता है? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं, कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता, समझा हैं। कोई उसे देख सका होता तो उसे मानवीय व्यथा वेदना की अनुभूतियों से करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढ़ाँचे में बैठी बिलखती दिखाई पड़ती है। | # हमारी कितने रातें सिसकते बीती हैं - कितनी बार हम फूट-फूट कर रोये हैं इसे कोई कहाँ जानता है? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं, कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता, समझा हैं। कोई उसे देख सका होता तो उसे मानवीय व्यथा वेदना की अनुभूतियों से करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढ़ाँचे में बैठी बिलखती दिखाई पड़ती है। | ||
# हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं। | |||
# हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़। | |||
# धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | # धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | ||
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# धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | # धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | ||
# धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | # धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | ||
# धर्म को आडम्बरयुक्त मत बनाओ, वरन् उसे अपने जीवन में धुला डालो। धर्मानुकूल ही सोचो और करो। शास्त्र की उक्ति है कि रक्षा किया हुआ धर्म अपनी रक्षा करता है और धर्म को जो मारता है, धर्म उसे मार डालता है, इस तथ्य को। | |||
# ध्यान में रखकर ही अपने जीवन का नीति निर्धारण किया जाना चाहिए। | |||
# धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए। | |||
# भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। | # भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। | ||
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# गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | # गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | ||
# गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | # गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | ||
# गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | |||
# उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। | # उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। | ||
# ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | # ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | ||
# उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | # उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | ||
# उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | # उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | ||
# उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | # उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | ||
# उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | # उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | ||
# उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | # उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | ||
# उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | |||
# खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | |||
# खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। | |||
# खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | |||
# एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | # एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | ||
# एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। | # एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। | ||
# | # लोग क्या कहते हैं - इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ़ यह देखो कि जो करने योग्य था, वह बनपड़ा या नहीं? | ||
# लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत की तरह भारी और विशालकाय दीखती है। | # लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत की तरह भारी और विशालकाय दीखती है। | ||
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# दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है। | |||
# दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुंजी है। | # दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुंजी है। | ||
# श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है। | |||
# श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है। | |||
# श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति। | |||
# तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं। | |||
# फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो। | |||
# राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। | |||
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04:55, 24 सितम्बर 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 4, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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