"अनमोल वचन 3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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# संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया। | # संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया। | ||
# संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं। | # संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं। | ||
# संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है। | |||
# संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए। | |||
# सारा संसार ऐसा नहीं हो सकता, जैसा आप सोचते हैं, अतः समझौतावादी बनो। | # सारा संसार ऐसा नहीं हो सकता, जैसा आप सोचते हैं, अतः समझौतावादी बनो। | ||
# सात्त्विक स्वभाव सोने जैसा होता है, लेकिन सोने को आकृति देने के लिये थोड़ा - सा पीतल मिलाने कि जरुरत होती है। | # सात्त्विक स्वभाव सोने जैसा होता है, लेकिन सोने को आकृति देने के लिये थोड़ा - सा पीतल मिलाने कि जरुरत होती है। | ||
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# सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। | # सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। | ||
# समाज में कुछ लोग ताकत इस्तेमाल कर दोषी व्यक्तियों को बचा लेते हैं, जिससे दोषी व्यक्ति तो दोष से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति क़ानून की गिरफ्त में आ जाता है। इसे नैतिक पतन का तकाजा ही कहा जायेगा। | # समाज में कुछ लोग ताकत इस्तेमाल कर दोषी व्यक्तियों को बचा लेते हैं, जिससे दोषी व्यक्ति तो दोष से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति क़ानून की गिरफ्त में आ जाता है। इसे नैतिक पतन का तकाजा ही कहा जायेगा। | ||
# समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है। | |||
# समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता। | # समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता। | ||
# सामाजिक और धार्मिक शिक्षा व्यक्ति को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाती है। | # सामाजिक और धार्मिक शिक्षा व्यक्ति को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाती है। | ||
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# '''सत्य''' ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है। | # '''सत्य''' ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है। | ||
# सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, मान-अपमान, निंदा-स्तुति, ये द्वन्द निरंतर एक साथ जगत में रहते हैं और ये हमारे जीवन का एक हिस्सा होते हैं, दोनों में भगवान को देखें। | # सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, मान-अपमान, निंदा-स्तुति, ये द्वन्द निरंतर एक साथ जगत में रहते हैं और ये हमारे जीवन का एक हिस्सा होते हैं, दोनों में भगवान को देखें। | ||
# सुख - दुःख जीवन के दो पहलू हैं, धूप व छांव की तरह। | # सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं, धूप व छांव की तरह। | ||
# सुखी होना है तो प्रसन्न रहिए, निश्चिन्त रहिए, मस्त रहिए। | |||
# '''सुख''' बाहर से नहीं भीतर से आता है। | |||
# सुखों का मानसिक त्याग करना ही सच्चा सुख है जब तक व्यक्ति लौकिक सुखों के आधीन रहता है, तब तक उसे अलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं हों सकती, क्योंकि सुखों का शारीरिक त्याग तो आसान काम है, लेकिन मानसिक त्याग अति कठिन है। | # सुखों का मानसिक त्याग करना ही सच्चा सुख है जब तक व्यक्ति लौकिक सुखों के आधीन रहता है, तब तक उसे अलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं हों सकती, क्योंकि सुखों का शारीरिक त्याग तो आसान काम है, लेकिन मानसिक त्याग अति कठिन है। | ||
# स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नहीं हैं, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे। | # स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नहीं हैं, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे। | ||
# स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है। | # स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है। | ||
# 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | |||
# 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | |||
# स्वर्ग और नरक कोई स्थान नहीं, वरन् दृष्टिकोण है। | |||
# सभ्यता एवं संस्कृति में जितना अंतर है, उतना ही अंतर उपासना और धर्म में है। | # सभ्यता एवं संस्कृति में जितना अंतर है, उतना ही अंतर उपासना और धर्म में है। | ||
# सदा, सहज व सरल रहने से आतंरिक खुशी मिलती है। | # सदा, सहज व सरल रहने से आतंरिक खुशी मिलती है। | ||
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# '''समय''' महान चिकित्सक है। | # '''समय''' महान चिकित्सक है। | ||
# '''समय''' किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। | # '''समय''' किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। | ||
# समय की कद्र करो। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओं। | |||
# समय की कद्र करो। प्रत्येक दिवस एक जीवन है। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओ। जिन्दगी की सच्ची कीमत हमारे वक़्त का एक-एक क्षण ठीक उपयोग करने में है। | |||
# समय का सुदपयोग ही उन्नति का मूलमंत्र है। | |||
# संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं। | # संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं। | ||
# सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है। | # सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है। | ||
# स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | # स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | ||
# सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता। | # सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता। | ||
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# सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है। | # सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है। | ||
# सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय। | # सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय। | ||
# सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है। | |||
# सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है। | # सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है। | ||
# सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है। | # सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है। | ||
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# सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। | # सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। | ||
# सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी। | # सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी। | ||
# स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी। | # स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी। | ||
# सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है। | # सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है। | ||
# सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है। | |||
# सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है। | |||
# सज्जनता और मधुर व्यवहार मनुष्यता की पहली शर्ता है। | |||
# सत्संग और प्रवचनों का - स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है। | # सत्संग और प्रवचनों का - स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है। | ||
# सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है। | # सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है। | ||
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# सद्व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है। | # सद्व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है। | ||
# सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता। | # सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता। | ||
# सलाह सबकी सुनो पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | |||
# सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | # सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | ||
# सबसे बड़ा दीन-दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रयण नहीं। | # सबसे बड़ा दीन-दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रयण नहीं। | ||
# सत्प्रयत्न कभी निरर्थक नहीं होते। | # सत्प्रयत्न कभी निरर्थक नहीं होते। | ||
# सादगी सबसे बड़ा फैशन है। | # सादगी सबसे बड़ा फैशन है। | ||
# 'स्वाध्यान्मा प्रमद:' अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करें। | # 'स्वाध्यान्मा प्रमद:' अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करें। | ||
# सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है। | # सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है। | ||
# सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा। | # सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा। | ||
# स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है। | # स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है। | ||
# स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें। | # स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें। | ||
# स्वाध्याय एक वैसी ही आत्मिक आवश्यकता है जैसे शरीर के लिए भोजन। | |||
# स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है। | # स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है। | ||
# सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए आयु का एक दिन छीन ले जाता है, पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ? | # सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए आयु का एक दिन छीन ले जाता है, पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ? | ||
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# स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है। | # स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है। | ||
# सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है। | # सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है। | ||
# समस्त हिंसा, द्वेष, बैर और विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शान्त हो जाती हैं। | # समस्त हिंसा, द्वेष, बैर और विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शान्त हो जाती हैं। | ||
# साहस ही एकमात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ते एवं लक्ष्य तक जा पहुँचने में समर्थ हो सकता है। | # साहस ही एकमात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ते एवं लक्ष्य तक जा पहुँचने में समर्थ हो सकता है। | ||
# साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखित उठाये बिना जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती। | |||
# सुख बाँटने की वस्तु है और दु:खे बँटा लेने की। इसी आधार पर आंतरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है। | # सुख बाँटने की वस्तु है और दु:खे बँटा लेने की। इसी आधार पर आंतरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है। | ||
# सहानुभूति मनुष्य के [[हृदय]] में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है। | # सहानुभूति मनुष्य के [[हृदय]] में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है। | ||
# सत्य का मतलब सच बोलना भर नहीं, वरन् विवेक, कत्र्तव्य, सदाचरण, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीना है। | # सत्य का मतलब सच बोलना भर नहीं, वरन् विवेक, कत्र्तव्य, सदाचरण, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीना है। | ||
# समर्पण का अर्थ है - मन अपना विचार इष्ट के, [[हृदय]] अपना भावनाएँ इष्ट की और आपा अपना किन्तु कर्तव्य समग्र रूप से इष्ट का। | # समर्पण का अर्थ है - मन अपना विचार इष्ट के, [[हृदय]] अपना भावनाएँ इष्ट की और आपा अपना किन्तु कर्तव्य समग्र रूप से इष्ट का। | ||
# सन्मार्ग का राजपथ कभी भी न छोड़े। | # सन्मार्ग का राजपथ कभी भी न छोड़े। | ||
# स्वच्छता सभ्यता का प्रथम सोपान है। | # स्वच्छता सभ्यता का प्रथम सोपान है। | ||
# सेवा में बड़ी शक्ति है। उससे भगवान भी वश में हो सकते हैं। | # सेवा में बड़ी शक्ति है। उससे भगवान भी वश में हो सकते हैं। | ||
# स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है। | # स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है। | ||
# साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। | # साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। | ||
# स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | # स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | ||
'''ज''' | '''ज''' | ||
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# जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ। | # जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ। | ||
# जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। | # जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। | ||
# जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। | |||
# जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। | |||
# जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | |||
# जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | |||
# जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है। | |||
# जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। | |||
# जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। | |||
# जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। | |||
# जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है। | |||
# जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है। | # जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है। | ||
# जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए। | |||
# जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। | # जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। | ||
# जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। | # जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। | ||
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# जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। | # जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। | ||
# जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। | # जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। | ||
# जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। | |||
# जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | |||
# जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया। | |||
# जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है। | |||
# जब-जब [[हृदय]] की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। | # जब-जब [[हृदय]] की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। | ||
# जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। | # जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। | ||
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# जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। | # जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। | ||
# जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। | # जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। | ||
# जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | |||
# जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | |||
# जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की। | |||
# जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | |||
# जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | |||
# जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। | # जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। | ||
# जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। | # जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। | ||
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# जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। | # जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। | ||
# जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। | # जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। | ||
# जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है। | |||
# जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।। | |||
# जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | |||
# जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। | |||
# जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। | |||
# जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। | |||
# जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। | |||
# जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। | |||
# जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। | |||
# जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। | |||
# जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। | |||
# जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। | |||
# जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। | |||
# जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | |||
# जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | |||
# जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। | # जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। | ||
# जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। | # जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। | ||
# जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। | # जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। | ||
# जैसा अन्न, वैसा मन। | |||
# जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। | |||
# जैसे कोरे [[काग़ज़]] पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। | |||
# जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। | # जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। | ||
# जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। | # जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। | ||
# जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। | # जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। | ||
# जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं। | |||
# जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। | # जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। | ||
# जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है। | # जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है। | ||
# जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। | # जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। | ||
# ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। | # ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। | ||
# जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है। | # जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है। | ||
# जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। | # जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। | ||
# जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | |||
# जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। | # जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। | ||
# जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | # जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | ||
# जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | # जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | ||
# जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो। | |||
# जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है। | |||
# जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। | |||
# जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | |||
# जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | |||
# जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा। | |||
# जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। | # जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। | ||
# जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | # जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | ||
# जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। | # जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। | ||
# ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। | # ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। | ||
# जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। | # जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। | ||
# जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। | # जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। | ||
# | # जाग्रत् आत्मा का लक्षण है- सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की ओर उन्मुखता। | ||
# जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। | # जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। | ||
'''म''' | '''म''' | ||
पंक्ति 252: | पंक्ति 251: | ||
# मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे। | # मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे। | ||
# मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है। | # मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है। | ||
# मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है। | |||
# मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं। | |||
# मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है। - वाङ्गमय | |||
# मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं। | |||
# मनुष्य परिस्थितियों का ग़ुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है। | |||
# मनुष्य अपने '''भाग्य''' का निर्माता आप है। | |||
# मनुष्य उपाधियों से नहीं, श्रेष्ठ कार्यों से सज्जन बनता है। | |||
# मनुष्य का अपने आपसे बढ़कर न कोई शत्रु है, न मित्र। | |||
# मनुष्य को एक ही प्रकार की उन्नति से संतुष्ट न होकर जीवन की सभी दिशाओं में उन्नति करनी चाहिए। केवल एक ही दिशा में उन्नति के लिए अत्यधिक प्रयत्न करना और अन्य दिशाओं की उपेक्षा करना और उनकी ओर से उदासीन रहना उचित नहीं है। | |||
# मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है। | # मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है। | ||
# '''मां''' है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ। | # '''मां''' है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ। | ||
# माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो। | |||
# माँ-बेटी का रिश्ता इतना अनूठा, इतना अलग होता है कि उसकी व्याख्या करना मुश्किल है, इस रिश्ते से सदैव पहली बारिश की फुहारों-सी ताजगी रहती है, तभी तो माँ के साथ बिताया हर क्षण होता है अमिट, अलग उनके साथ गुज़ारा हर पल शानदार होता है। | # माँ-बेटी का रिश्ता इतना अनूठा, इतना अलग होता है कि उसकी व्याख्या करना मुश्किल है, इस रिश्ते से सदैव पहली बारिश की फुहारों-सी ताजगी रहती है, तभी तो माँ के साथ बिताया हर क्षण होता है अमिट, अलग उनके साथ गुज़ारा हर पल शानदार होता है। | ||
# '''माता-पिता''' के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं। | |||
# माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है। | |||
# 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव' की संस्कृति अपनाओ! | |||
# मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है। | # मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है। | ||
# महान प्यार और महान उपलब्धियों के खतरे भी महान होते हैं। | # महान प्यार और महान उपलब्धियों के खतरे भी महान होते हैं। | ||
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# मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है। | # मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है। | ||
# मन की शांति के लिये अंदरूनी संघर्ष को बंद करना ज़रूरी है, जब तक अंदरूनी युद्ध चलता रहेगा, शांति नहीं मिल सकती। | # मन की शांति के लिये अंदरूनी संघर्ष को बंद करना ज़रूरी है, जब तक अंदरूनी युद्ध चलता रहेगा, शांति नहीं मिल सकती। | ||
# मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | |||
# मन-बुद्धि की भाषा है - मैं, मेरी, इसके बिना बाहर के जगत का कोई व्यवहार नहीं चलेगा, अगर अंदर स्वयं को जगा लिया तो भीतर तेरा-तेरा शुरू होने से व्यक्ति परम शांति प्राप्त कर लेता है। | # मन-बुद्धि की भाषा है - मैं, मेरी, इसके बिना बाहर के जगत का कोई व्यवहार नहीं चलेगा, अगर अंदर स्वयं को जगा लिया तो भीतर तेरा-तेरा शुरू होने से व्यक्ति परम शांति प्राप्त कर लेता है। | ||
# मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्द्रीय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं। | # मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्द्रीय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं। | ||
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# महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है। | # महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है। | ||
# मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं। | # मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं। | ||
# '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता। | |||
# मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है। | # मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है। | ||
# मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। | # मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। | ||
# मुस्कान प्रेम की भाषा है। | # मुस्कान प्रेम की भाषा है। | ||
# मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ। | # मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ। | ||
# मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, 'माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:'। | # मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, 'माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:'। | ||
# मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ। | # मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ। | ||
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# मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ। | # मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ। | ||
# मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है। | # मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है। | ||
# मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं। | # मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं। | ||
# मेरे मस्तिष्क में ब्रह्माण्ड सा तेज़, मेधा, प्रज्ञा व विवेक है। | |||
# मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | # मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | ||
# मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | # मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | ||
# महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है। | # महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है। | ||
# | # महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है। | ||
# महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। | # महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। | ||
# मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | # मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | ||
'''क''' | '''क''' | ||
# कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। | # कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। | ||
# | # कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | ||
# | # कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | ||
# कर्म सरल है, विचार कठिन। | # कर्म सरल है, विचार कठिन। | ||
# कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | # कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | ||
# '''कर्म''' ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। | # '''कर्म''' ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। | ||
# | # कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना। | ||
# | # कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। | ||
# किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | |||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | |||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | # किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | ||
# किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | # किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | ||
# किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | # किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | ||
# किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | # किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | ||
# किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | # किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | ||
# किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | # किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | ||
# | # किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है। | ||
# किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। | |||
# किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है। | |||
# किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है। | |||
# किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है। | |||
# किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है। | |||
# '''काल (समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ | |||
# कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। | |||
# कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। | |||
# कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। | |||
# कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? | |||
# क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। | |||
# कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे। | |||
# कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं। | |||
# कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | |||
# कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। | |||
# कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। | |||
# केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। | |||
# काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है। | |||
# कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है। | |||
# कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। | |||
# करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है। | |||
'''द''' | '''द''' | ||
# दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | |||
# दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | |||
# दुनिया में सफलता एक चीज़ के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व। | |||
# दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | |||
# दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया। | |||
# दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं। | |||
# दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें। | |||
# दूसरों के जैसे बनने के प्रयास में अपना निजीपन नष्ट मत करो। | |||
# दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए। | |||
# दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है। | |||
# दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | |||
# दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | |||
# दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है। | |||
# दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है। | # दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है। | ||
# दुष्कर्म स्वत: ही एक अभिशाप है, जो कर्ता को भस्म किये बिना नहीं रहता। | |||
# दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है। | # दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है। | ||
# दुःख देने वाले और हृदय को जलाने वाले बहुत से पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ होता है। | # दुःख देने वाले और हृदय को जलाने वाले बहुत से पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ होता है। | ||
# | # दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं। | ||
# दिन में अधूरी इच्छा को व्यक्ति रात को स्वप्न के रूप में देखता है, इसलिए जितना मन अशांत होगा, उतने ही अधिक स्वप्न आते हैं। | # दिन में अधूरी इच्छा को व्यक्ति रात को स्वप्न के रूप में देखता है, इसलिए जितना मन अशांत होगा, उतने ही अधिक स्वप्न आते हैं। | ||
# दो प्रकार की प्रेरणा होती है- एक बाहरी व दूसरी अंतर प्रेरणा, आतंरिक प्रेरणा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है; क्योंकि वह स्वयं की निर्मात्री होती है। | # दो प्रकार की प्रेरणा होती है- एक बाहरी व दूसरी अंतर प्रेरणा, आतंरिक प्रेरणा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है; क्योंकि वह स्वयं की निर्मात्री होती है। | ||
# दो याद रखने योग्य हैं-एक कर्त्तव्य और दूसरा मरण। | |||
# दान की वृत्ति दीपक की ज्योति के समान होनी चाहिए, जो समीप से अधिक प्रकाश देती है और ऐसे दानी अमरपद को प्राप्त करते हैं। | # दान की वृत्ति दीपक की ज्योति के समान होनी चाहिए, जो समीप से अधिक प्रकाश देती है और ऐसे दानी अमरपद को प्राप्त करते हैं। | ||
# दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए। | # दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए। | ||
# दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है। | # दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है। | ||
# दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है। | # दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है। | ||
# दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है। | # दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है। | ||
# दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है - साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। | # दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है - साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। | ||
# देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | # देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | ||
# दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। | # दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। | ||
# दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। | # दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। | ||
# दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | # दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | ||
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'''प''' | '''प''' | ||
# परमात्मा वास्तविक स्वरुप को न मानकर उसकी कथित पूजा करना अथवा अपात्र को दान देना, ऐसे कर्म क्रमश: कोई कर्म-फल प्राप्त नहीं कराते, बल्कि पाप का भागी बनाते हैं। | |||
# परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव के समान अपने स्वयं के गुण, कर्म व स्वभावों को समयानुसार धारण करना ही परमात्मा की सच्ची पूजा है। | |||
# परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो। | |||
# परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | |||
# परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है। | |||
# पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है। | # पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है। | ||
# पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र। | # पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र। | ||
# '''पाप''' अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है। | |||
# पाप की एक शाखा है - असावधानी। | |||
# पापों का नाश प्रायश्चित करने और इससे सदा बचने के संकल्प से होता है। | # पापों का नाश प्रायश्चित करने और इससे सदा बचने के संकल्प से होता है। | ||
# पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए। | # पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए। | ||
# परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है। | # परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है। | ||
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# परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई धर्म नहीं। | # परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई धर्म नहीं। | ||
# परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही। | # परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही। | ||
# प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है। | # प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है। | ||
# पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा। | # पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा। | ||
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# प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है। | # प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है। | ||
# प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं। | # प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं। | ||
# प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें। | |||
# प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है। | # प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है। | ||
# पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं। | # पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं। | ||
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# प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। | # प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। | ||
# प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। | # प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। | ||
# पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए। | # पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए। | ||
# परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं। | # परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं। | ||
# प्रशंसा और प्रतिष्ठा वही सच्ची है, जो उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्राप्त हो। | # प्रशंसा और प्रतिष्ठा वही सच्ची है, जो उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्राप्त हो। | ||
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# प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों। | # प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों। | ||
# परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। | # परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। | ||
# परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की। | # परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की। | ||
# परिजन हमारे लिए भगवान की प्रतिकृति हैं और उनसे अधिकाधिक गहरा प्रेम प्रसंग बनाए रखने की उत्कंठा उमड़ती रहती है। इस वेदना के पीछे भी एक ऐसा दिव्य आनंद झाँकता है इसे भक्तियोग के मर्मज्ञ ही जान सकते हैं। | # परिजन हमारे लिए भगवान की प्रतिकृति हैं और उनसे अधिकाधिक गहरा प्रेम प्रसंग बनाए रखने की उत्कंठा उमड़ती रहती है। इस वेदना के पीछे भी एक ऐसा दिव्य आनंद झाँकता है इसे भक्तियोग के मर्मज्ञ ही जान सकते हैं। | ||
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# विधा, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च करो, उतना ही बढ़ते हैं। | # विधा, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च करो, उतना ही बढ़ते हैं। | ||
# वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है। | # वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है। | ||
# | # वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। | ||
# वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है। | # वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है। | ||
# वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | |||
# वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं। | |||
# व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं। | # व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं। | ||
# विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता। | # विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता। | ||
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# वह मनुष्य विवेकवान् है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है। | # वह मनुष्य विवेकवान् है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है। | ||
# विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं। | # विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं। | ||
# विपरीत दिशा में कभी न घबराएं, बल्कि पक्की ईंट की तरह मज़बूत बनना चाहिय और जीवन की हर चुनौती को परीक्षा एवं तपस्या समझकर निरंतर आगे बढना चाहिए। | # विपरीत दिशा में कभी न घबराएं, बल्कि पक्की ईंट की तरह मज़बूत बनना चाहिय और जीवन की हर चुनौती को परीक्षा एवं तपस्या समझकर निरंतर आगे बढना चाहिए। | ||
# विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है। | # विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है। | ||
# विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे। | |||
# विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। | # विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। | ||
# वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है। | # वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है। | ||
# विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है। | # विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है। | ||
# विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार हैं। | |||
# विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है। | # विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है। | ||
# विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है। | # विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है। | ||
# | # विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है। | ||
# विचारों का ही परिणाम है - हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का। | # विचारों का ही परिणाम है - हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का। | ||
# विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है। | |||
# विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है। | # विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है। | ||
# वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है। | # वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है। | ||
# विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता। - वाङ्गमय | # विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता। - वाङ्गमय | ||
# वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं - स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण। | # वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं - स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण। | ||
# विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। | # विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। | ||
# वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। | # वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। | ||
# व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है। | # व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है। | ||
# | # '''वृद्धावस्था''' बीमारी नहीं, विधि का विधान है, इस दौरान सक्रिय रहें। | ||
# वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है | # वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है | ||
# व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सामथ्र्यवान् नहीं बन सकता है। -वाङ्गमय | # व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सामथ्र्यवान् नहीं बन सकता है। -वाङ्गमय | ||
# वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है। | # वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है। | ||
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# यदि पुत्र विद्वान और माता-पिता की सेवा करने वाला न हो तो उसका धरती पर जन्म लेना व्यर्थ है। | # यदि पुत्र विद्वान और माता-पिता की सेवा करने वाला न हो तो उसका धरती पर जन्म लेना व्यर्थ है। | ||
# यदि ज़्यादा पैसा कमाना हाथ की बात नहीं तो कम खर्च करना तो हाथ की बात है; क्योंकि खर्चीला जीवन बनाना अपनी स्वतन्त्रता को खोना है। | # यदि ज़्यादा पैसा कमाना हाथ की बात नहीं तो कम खर्च करना तो हाथ की बात है; क्योंकि खर्चीला जीवन बनाना अपनी स्वतन्त्रता को खोना है। | ||
# | # यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते। | ||
# यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे, तो हम कभी भी माँ-बाप के कृतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति के ज़मीन से पैर नहीं उखड़ने देती। | |||
# यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | |||
# यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है। | |||
# यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच से दूसरे का नुकसान होता हो तो, ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए। | # यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच से दूसरे का नुकसान होता हो तो, ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए। | ||
# यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है। | # यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है। | ||
# यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | # यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | ||
# युग निर्माण योजना का लक्ष्य है - शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना। - वाङ्गमय | # युग निर्माण योजना का लक्ष्य है - शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना। - वाङ्गमय | ||
# युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | |||
# यज्ञ, दान और तप से त्याग करने योग्य कर्म ही नहीं, अपितु अनिवार्य कर्त्तव्य कर्म भी हैं; क्योंकि यज्ञ, दान व तप बुद्धिमान लोगों को पवित्र करने वाले हैं। | |||
# यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं। | |||
# योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। | # योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। | ||
'''ब''' | '''ब''' | ||
# बुद्धिमान बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं, भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें। | # बुद्धिमान बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं, भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें। | ||
# बुद्धिमान वह है, जो किसी को ग़लतियों से हानि होते देखकर अपनी ग़लतियाँ सुधार लेता है। | |||
# बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है। | # बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है। | ||
# बड़प्पन सुविधा संवर्धन में नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है। | |||
# बड़प्पन सादगी और शालीनता में है। | |||
# बाहर मैं, मेरा और अंदर तू, तेरा, तेरी के भाव के साथ जीने का आभास जिसे हो गया, वह उसके जीवन की एक महान व उत्तम प्राप्ति है। | # बाहर मैं, मेरा और अंदर तू, तेरा, तेरी के भाव के साथ जीने का आभास जिसे हो गया, वह उसके जीवन की एक महान व उत्तम प्राप्ति है। | ||
# बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता। | # बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता। | ||
# बिना सेवा के चित्त शुद्धि नहीं होती और चित्तशुद्धि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती। | |||
# बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। | |||
# बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया। | |||
# बहुमूल्य वर्तमान का सदुपयोग कीजिए। | |||
# बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है। | |||
# ब्रह्म विद्या मनुष्य को ब्रह्म - परमात्मा के चरणों में बिठा देती है और चित्त की मूर्खता छुडवा देती है। | |||
# बुरी मंत्रणा से राजा, विषयों की आसक्ति से योगी, स्वाध्याय न करने से विद्वान, अधिक प्यार से पुत्र, दुष्टों की संगती से चरित्र, प्रदेश में रहने से प्रेम, अन्याय से ऐश्वर्य, प्रेम न होने से मित्रता तथा प्रमोद से धन नष्ट हो जाता है; अतः बुद्धिमान अपना सभी प्रकार का धन संभालकर रखता है, बुरे समय का हमें हमेशा ध्यान रहता है। | |||
# बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन् बुरे विचारों की देन होती है। | |||
# बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है। | # बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है। | ||
# बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है। | # बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है। | ||
# बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है। | # बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है। | ||
# बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। | # बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। | ||
'''श''' | '''श''' | ||
# शुभ कार्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं। | # शुभ कार्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं। | ||
# शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है। | |||
# शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो। | # शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो। | ||
# शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। | # शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। | ||
पंक्ति 528: | पंक्ति 521: | ||
# शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है। | # शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है। | ||
# शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | # शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | ||
# शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। | # शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। | ||
# शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। | # शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। | ||
पंक्ति 535: | पंक्ति 527: | ||
'''च''' | '''च''' | ||
# चरित्र का अर्थ है - अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। | |||
# चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | |||
# चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | # चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | ||
# | # चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | ||
# चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | # चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | ||
# चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | # चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | ||
# चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | # चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | ||
# चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | # चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | ||
पंक्ति 558: | पंक्ति 550: | ||
# ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है। | # ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है। | ||
# ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए। | # ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए। | ||
# ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है। | |||
# ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | # ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | ||
# ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | # ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | ||
# ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | # ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | ||
'''न''' | '''न''' | ||
पंक्ति 567: | पंक्ति 559: | ||
# न तो किसी तरह का कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है, न चिंता से। कोई ऐसा दाता भी नहीं है, जो मनुष्य को विनष्ट वस्तु दे दे, विधाता के विधान के अनुसार मनुष्य बारी-बारी से समय पर सब कुछ पा लेता है। | # न तो किसी तरह का कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है, न चिंता से। कोई ऐसा दाता भी नहीं है, जो मनुष्य को विनष्ट वस्तु दे दे, विधाता के विधान के अनुसार मनुष्य बारी-बारी से समय पर सब कुछ पा लेता है। | ||
# नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे। | # नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे। | ||
# नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले ख़रीदा जाता है। | |||
# नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके। | |||
# निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है। | # निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है। | ||
# नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है। | # नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है। | ||
# नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके। | # नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके। | ||
# नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। | # नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। | ||
# निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है। | # निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है। | ||
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# हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है। | # हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है। | ||
# हर व्यक्ति संवेदनशील होता है, पत्थर कोई नहीं होता; लेकिन सज्जन व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव पानी की लकीर की भाँति होता है। | # हर व्यक्ति संवेदनशील होता है, पत्थर कोई नहीं होता; लेकिन सज्जन व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव पानी की लकीर की भाँति होता है। | ||
# हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है। | |||
# हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। | |||
# हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | |||
# हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये। | |||
# हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है। | # हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है। | ||
# हीन से हीन प्राणी में भी एकाध गुण होते हैं। उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है। | # हीन से हीन प्राणी में भी एकाध गुण होते हैं। उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है। | ||
# हमें अपने अभाव एवं स्वभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं। | # हमें अपने अभाव एवं स्वभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं। | ||
# हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है। | # हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है। | ||
# हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है। | # हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है। | ||
# हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है। | # हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है। | ||
# हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं। | # हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं। | ||
# हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं। | # हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं। | ||
# हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए। | # हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए। | ||
# हँसती-हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है। | # हँसती-हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है। | ||
# हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। | # हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। | ||
# हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है। | # हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है। | ||
# हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | # हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | ||
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'''ध''' | '''ध''' | ||
# '''धर्म''' का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | |||
# धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है। - वाङ्गमय | |||
# धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | |||
# धर्म को आडम्बरयुक्त मत बनाओ, वरन् उसे अपने जीवन में धुला डालो। धर्मानुकूल ही सोचो और करो। शास्त्र की उक्ति है कि रक्षा किया हुआ धर्म अपनी रक्षा करता है और धर्म को जो मारता है, धर्म उसे मार डालता है, इस तथ्य को। | |||
# धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है। | |||
# धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो। | # धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो। | ||
# '''धन''' अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी। | # '''धन''' अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी। | ||
# ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है। | # ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है। | ||
# धन अपना पराया नहीं देखता। | # धन अपना पराया नहीं देखता। | ||
# धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | # धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | ||
# धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें। | # धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें। | ||
# धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | # धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | ||
# ध्यान में रखकर ही अपने जीवन का नीति निर्धारण किया जाना चाहिए। | # ध्यान में रखकर ही अपने जीवन का नीति निर्धारण किया जाना चाहिए। | ||
# धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए। | # धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए। | ||
'''भ''' | '''भ''' | ||
# भगवान से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है। | # भगवान से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है। | ||
# '''भगवान''' की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है। | # '''भगवान''' की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है। | ||
# भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है। | # भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है। | ||
# | # भगवान को अनुशासन एवं सुव्यवस्थितपना बहुत पसंद है। अतः उन्हें ऐसे लोग ही पसंद आते हैं, जो सुव्यवस्था व अनुशासन को अपनाते हैं। | ||
# '''भगवान''' प्रेम के भूखे हैं, पूजा के नहीं। | |||
# '''भगवान''' सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं। | # '''भगवान''' सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं। | ||
# '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | # '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | ||
# '''भगवान''' के काम में लग जाने वाले कभी घाटे में नहीं रह सकते। | # '''भगवान''' के काम में लग जाने वाले कभी घाटे में नहीं रह सकते। | ||
# '''भगवान''' की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। | # '''भगवान''' की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। | ||
# भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है। | # भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है। | ||
# भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है। | # भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है। | ||
# भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। | # भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। | ||
# भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं। | |||
# भाग्य साहसी का साथ देता है। | |||
# भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। | |||
# भाग्य भरोसे बैठे रहने वाले आलसी सदा दीन-हीन ही रहेंगे। | |||
# भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। | |||
# भले बनकर तुम दूसरों की भलाई का कारण भी बन जाते हो। | |||
# भीड़ में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है, परन्तु विचारों की भीड़ के बीहड़ में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है। | |||
# भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | |||
# भूत लौटने वाला नहीं, भविष्य का कोई निश्चय नहीं; सँभालने और बनाने योग्य तो वर्तमान है। | |||
'''ग''' | '''ग''' | ||
# गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। | # गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। | ||
# गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। | |||
# गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | |||
# गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | |||
# गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है। | |||
# गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | # गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | ||
# गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | # गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | ||
# ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | # ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | ||
# गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | # गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | ||
# गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | # गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | ||
# गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | # गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | ||
पंक्ति 712: | पंक्ति 701: | ||
'''ठ''' | '''ठ''' | ||
# ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। | # ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। | ||
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08:46, 24 सितम्बर 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 4, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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