"अनमोल वचन 14": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। ~ तुलसीदास | * अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। ~ तुलसीदास | ||
* जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। ~ जॉर्ज हरबर्ट | * जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। ~ जॉर्ज हरबर्ट | ||
===संसार वीरों की चित्रशाला है=== | |||
* वीर कभी बड़े मौकों का इंतज़ार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह | |||
* शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं। ~ वाल्मीकि | |||
* संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं। ~ जयशंकर प्रसाद | |||
* बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | |||
* वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी | |||
===संसार को बाज़ार समझो=== | |||
* धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। ~ चाणक्यनीति | |||
* परोपकार संतों का सहज स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान हैं, जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ | |||
* इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते। ~ विद्यापति | |||
* समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है। ~ कल्हण | |||
* जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुत: वे ही मुक्त पुरुष हैं। ~ आचारांग | |||
===संसार और स्वप्न=== | |||
* संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है। ~ याज्ञवल्क्य | |||
* आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी | |||
* अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है। ~ स्वामी रामतीर्थ | |||
* जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस | |||
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ | |||
===संसार में रहो, संसार को अपने अंदर मत रखो=== | |||
* दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस | |||
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद | |||
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा | |||
* जो श्रम नहीं करता, दूसरों के श्रम से जीवित रहता है, सबसे बड़ा हिंसक होता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | |||
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | |||
===संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री=== | |||
* क्षीण हुआ चंद्रमा पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि | |||
* यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है। ~ मौलाना रूमी | |||
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। उदान | |||
* संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई | |||
* आपत्ति काल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं। ~ अभिनंद | |||
===सत्याग्रह की तलवार=== | ===सत्याग्रह की तलवार=== | ||
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* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | * जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | ||
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | * सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन | ||
===सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं=== | |||
* साधारण सुधारक सदा उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनसे आगे जाते हैं। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड | |||
* पढ़ना सुलभ है पर उसका पालन करना अत्यंत दुर्लभ। ~ ललद्देश्वरी | |||
* संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता। ~ सुकरात | |||
* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं, स्वस्थ बहाव है। ~ रांगेय राघव | |||
* शब्द, मुहावरे और फैशन आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं। ~ बर्नार्ड बार्टन | |||
===सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है=== | ===सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है=== | ||
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* सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | * सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास | * अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास | ||
===सत्य के तीन भाग हैं=== | |||
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। इसका सबसे बड़ा शत्रु पक्षपात और इसका अचल साथी नम्रता है। ~ कोल्टन | |||
* सत्य का प्रत्येक उल्लंघन मानव समाज के स्वास्थ्य में छुरी भोंकने के समान है। ~ एमर्सन | |||
* सत्य किरणों की किरण, सूर्यों का सूर्य, चंद्रमाओं का चंद्र और नक्षत्रों का नक्षत्र है। सत्य सब का सारभूत तत्व है। ~ डिकेंस | |||
* सत्य के तीन भाग हैं-प्रथम जिज्ञासा, जो कि आराधना है। द्वितीय ज्ञान, जो कि उसकी उपस्थिति है। और तृतीय विश्वास, जो कि उसका उपभोग है। ~ बेकन | |||
* मनुष्य को मरते दम तक सत्य बोलना चाहिए और शैतान को लज्जित करना चाहिए। ~ शेक्सपियर | |||
===सज्जन का क्रोध स्थायी नहीं होता=== | |||
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश | |||
* जो भी घटित होता है उससे मैं संतुष्ट हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि परमात्मा द्वारा चयन मेरे द्वारा चयन से अधिक श्रेष्ठ है। ~ एपिक्टेटस | |||
* कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं। ~ प्रेमचंद | |||
* सज्जन अत्यंत क्रुद्ध होने पर भी मिलने-जुलने से मृदु हो जाते हैं, किंतु नीच नहीं। ~ अमृतवर्धन | |||
===सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते=== | |||
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी तरह सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट | |||
* परिचित गुणों का स्मरण रखने वाले उत्तम लोग सारे दोषों को स्मरण रखने में कुशल नहीं होते। ~ माघ | |||
* आए हुए उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सज्जनों का कुलव्रत है। ~ विशाखदत्त | |||
* सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र | |||
* सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष | |||
===सज्जनों का सत्संग=== | |||
* जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है। ~ प्रेमचंद | |||
* सज्जनों का सत्संग ही स्वर्ग में निवास के समान है। ~ चाणक्य | |||
* विद्या शील के अभाव में शोचनीय हो जाती है और द्वेष से अपवित्र हो जाती है। ~ क्षेमेन्द्र | |||
* धर्मान्धो! सुनो, दूसरों के पाप गिनने से पहले अपने पापों को गिनो। ~ काजी नजरूल इस्लाम | |||
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश | |||
===साहस और धैर्य=== | ===साहस और धैर्य=== | ||
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* पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं। ~ एकनाथ | * पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं। ~ एकनाथ | ||
* हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता | * हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता | ||
===सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है=== | |||
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद | |||
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन | |||
* प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता है। ~ जैनेंद्र | |||
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता। ~ कालिदास | |||
* सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी | |||
===सुकर्म के बीज से ही महान फल=== | ===सुकर्म के बीज से ही महान फल=== | ||
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* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा | * द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा | ||
* बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल | * बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल | ||
===सारा संसार ही कुटुंब है=== | ===सारा संसार ही कुटुंब है=== | ||
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* अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग | * अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग | ||
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव होता है। ~ महात्मा गांधी | * शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव होता है। ~ महात्मा गांधी | ||
===संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है=== | ===संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है=== | ||
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* यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम | * यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम | ||
* सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है। ~ एडमंड स्पेंसर | * सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है। ~ एडमंड स्पेंसर | ||
===संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं=== | ===संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं=== | ||
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* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। ~ रांगेय राघव | * संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। ~ रांगेय राघव | ||
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। ~ उदान | * संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। ~ उदान | ||
===समता का नाम ही योग है=== | |||
* समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं। ~ प्रेमचंद | |||
* बड़ों की कुछ समता हम विनीत होकर ही पाते हैं। ~ रवींद्रनाथ | |||
* आसक्ति का त्याग करते हुए सिद्बि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर कर्म करना चाहिए। समता का नाम ही योग है। ~ गीता | |||
* समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो। ~ महात्मा गांधी | |||
* पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता। ~ अज्ञात | |||
===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ===सुदिन सबके लिए आते हैं=== | ||
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* सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात | * सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात | ||
* सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन | * सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन | ||
===समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है=== | ===समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है=== | ||
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* सहृदय भी थोड़े ही होते हैं। जो होते हैं वे भी थोड़ी देर के लिए ही। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * सहृदय भी थोड़े ही होते हैं। जो होते हैं वे भी थोड़ी देर के लिए ही। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* आवश्यक समय पर पहुंचाई गई सहायता अल्प होने पर भी उपयुक्त होती है। ~ तिरुवल्लुवर | * आवश्यक समय पर पहुंचाई गई सहायता अल्प होने पर भी उपयुक्त होती है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
===सम्मान और अपमान=== | |||
* जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | |||
* तलवार का घाव भर जाता है, पर अपमान का घाव कभी नहीं भरता। ~ एक कहावत | |||
* अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का दुख होता है, लेकिन अपमानपूर्वक जीने में तो प्रतिदिन का दुख सहना होता है। ~ चाणक्य | |||
* अपमान का भय कानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। ~ प्रेमचंद | |||
* अपना मान तभी बना रह सकता है जब हम दूसरों के सम्मान की चिंता करें। ~ जैनेंद्र कुमार | |||
===स्त्री विश्वास चाहती है=== | ===स्त्री विश्वास चाहती है=== |
08:56, 8 मई 2012 का अवतरण
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इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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