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| ==अज्ञात==
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| * जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है। ~ अज्ञात
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| * जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात
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| * जीवन एक प्रयोगशाला के समान है जिसमें मनुष्य निरंतर प्रयोग करता रहता है। ~ अज्ञात
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| * जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात
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| * जाति से कोई पतित नहीं है। पतित वह है जो चोरी, व्यभिचार, ब्रह्महत्या, भ्रूण-हत्या आदि दुष्ट कृत्यों को करता है और उनको गुप्त रखने के लिए झूठ बोलता है। ~ अज्ञात
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| * जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं। ~ अज्ञात
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| * जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख स्वयं को भी प्राप्त होता है। ~ अज्ञात
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| * जिस तरह एक जवान स्त्री बूढ़े पुरुष का आलिंगन करना नहीं चाहती, उसी तरह लक्ष्मी भी आलसी, भाग्यवादी और साहसविहीन व्यक्ति को नहीं चाहती। ~ अज्ञात
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| * जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं का त्याग कर निस्पृह हो जाता है और ममता तथा अहंकार को छोड़ देता है, वही शांति पाता है। ~ अज्ञात
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| * जब मनुष्य स्वयं आत्मविश्वास खो बैठता है तो उसके पतन का सिरा खोजने से भी नहीं मिलता। ~ अज्ञात
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| * जैसा चित्त में है, वैसी वाणी है। जैसा वाणी में है, वैसी ही क्रियाएं हैं। सज्जनों के चित्त, वाणी और क्रिया में एकरूपता होती है। ~ अज्ञात
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| * जो गुणज्ञ न हो, उसके सामने गुण नष्ट हो जाता है और कृतघ्न के साथ की गई उदारता नष्ट हो जाती है। ~ अज्ञात
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| * जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती हे और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~अज्ञात
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| * अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात
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| * आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता। ~ अज्ञात
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| * आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
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| * आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। ~ अज्ञात
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| * आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। ~ अज्ञात
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| * अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
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| * सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है। ~ अज्ञात
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| * सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो। ~ अज्ञात
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| * सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं। ~ अज्ञात
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| * सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए। ~ अज्ञात
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| * सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात
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| * सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है। ~ अज्ञात
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| * सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है। ~ अज्ञात
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| * सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ- पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
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| * सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात
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| * सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। ~ अज्ञात
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| * संसार रूपी विष - वृक्ष के दो फल अमृततुल्य हैं - काव्यामृत के रस का आस्वादन और सज्जनों की संगति। ~ अज्ञात
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| * सबसे निकृष्ट मित्र वह है जो अच्छे दिनो मे पास आता है और मुसीबत के दिनो मे त्याग देता है। ~ अज्ञात
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| * समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है। ~ अज्ञात
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| * स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है। ~ अज्ञात
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| * मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात
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| * मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात
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| * मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनों में अंतर रहता है। ~ अज्ञात
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| * माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। ~ अज्ञात
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| * मानव जाति को यूं तो अनेक उपहार मिले हैं, लेकिन हंसी उसे दिए गए सर्वोत्तम दिव्य उपहारों में से एक है। ~ अज्ञात
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| * मनुष्यों की गुणों से रहित वाणी भी यदि उचित अवसर पर कही गई हो, तो शोभा देती है। ~ अज्ञात
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| * कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है। ~ अज्ञात
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| * क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। ~ अज्ञात
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| * कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
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| * कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। ~ अज्ञात
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| * कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
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| * क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दुख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी। ~ अज्ञात
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| * कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। ~ अज्ञात
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| * केवल पढ़-लिख लेने से कोई विद्वान नहीं होता। जो सत्य, तप, ज्ञान, अहिंसा, विद्वानों के प्रति श्रद्धा और सुशीलता को धारण करता है, वही सच्चा विद्वान है। ~ अज्ञात
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| * किसी जगह पर विनोदी इंसान के आने से ऐसा लगता है जैसे दूसरा दीपक जला दिया गया हो। ~ अज्ञात
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| * हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात
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| * हमारी शिक्षा तब तक अधूरी रहेगी जब तक उसमें धार्मिक विचारों का समावेश नहीं किया जाता। ~ अज्ञात
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| * पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
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| * पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं। ~ अज्ञात
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| * प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? ~ अज्ञात
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| * प्रत्येक पर्वत पर जिस तरह माणिक्य नहीं होते और जिस तरह चंदन हर जगह नहीं पाया जाता, सज्जन लोग भी सब जगह नहीं होते। ~ अज्ञात
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| * पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता। ~ अज्ञात
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| * विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
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| * व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
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| * विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं। ~ अज्ञात
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| * विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
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| * विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
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| * विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? ~ अज्ञात
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| * विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है। भाग्य का नाश होने के बावजूद यह मनुष्य का आश्रय बनी रहती है। ~ अज्ञात
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| * विद्या के लिए मोमबत्ती की तरह पिघलना चाहिए। ~ अज्ञात
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| * वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है। ~ अज्ञात
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| * दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। ~ अज्ञात
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| * दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। ~ अज्ञात
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| * दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। ~ अज्ञात
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| * दुर्जन व्यक्ति बिना दूसरों की निंदा किए बिना प्रसन्न नहीं हो सकता। ~ अज्ञात
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| * उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात
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| * उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। ~ अज्ञात
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| * उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण। ~ अज्ञात
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| * उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात
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| * उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। ~ अज्ञात
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| * उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। ~ अज्ञात
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| * गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात
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| * गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात
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| * ग़लती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम ग़लती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। ~ अज्ञात
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| * गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं। ~ अज्ञात
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| * गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। कोयल ही वसंत जानती है, कौवा नहीं। ~ अज्ञात
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| * गुण से रूप की, सदाचार से कुल की और सफलता से विद्या की शोभा होती है। ~ अज्ञात
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| * यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। ~ अज्ञात
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| * याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
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| * यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। ~ अज्ञात
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| * धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है। ~ अज्ञात
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| * धन की कमी होने पर कोमलता रहती है, पर उसके बढ़ते ही उसकी जगह कठोरता लेने लगती है। ~ अज्ञात
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| * ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात
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| * इच्छाओं के सामने आते ही सभी प्रतिज्ञाएं ताक पर धरी रह जाती हैं। ~ अज्ञात
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| * शक्ति का उपयोग परोपकार मेें करना चाहिए। शत्रु को पीडि़त कर देना मात्र ही शक्ति का सदुपयोग नहीं है। ~ अज्ञात
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| * शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना। ~ अज्ञात
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| * शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है। ~ अज्ञात
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| * बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। ~ अज्ञात
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| * बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात
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| * भोले बनने का नाटक न करो। तुम्हारे मन का मैल तुम्हारे चेहरे पर चमक रहा है। ~ अज्ञात
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| * घाव पर बार-बार चोट लगती है, अन्न की कमी होने पर भूख बढ़ जाती है, विपत्ति में बैर बढ़ जाते हैं- विपत्तियों में अनर्थ बहुलता होती है। ~ अज्ञात
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| * एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। ~ अज्ञात
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| * निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। ~ अज्ञात
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| * चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। ~ अज्ञात
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| * तू ने स्वर्ग और नर्क नहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। ~ अज्ञात
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| * श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। ~ अज्ञात
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| ==शेख सादी==
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| * महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है। ~ शेख सादी | | * महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है। ~ शेख सादी |
| * महान लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें। ~ शेख सादी | | * महान लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें। ~ शेख सादी |
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| * हृदयहीन मनुष्य से उपासना नहीं होती। ~ शेख सादी | | * हृदयहीन मनुष्य से उपासना नहीं होती। ~ शेख सादी |
| * हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। ~ शेख सादी | | * हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। ~ शेख सादी |
| | | ==कहावत, लोकोक्ति== |
| ==खलील जिब्रान==
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| * ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। ~ खलील जिब्रान
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| * मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
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| * कभी यह न सोचना कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित कर सकते हो। क्योंकि प्रेम यदि तुमको उसका अधिकारी समझता है, तो तुम्हारी राह वह स्वयं निर्धारित करता है। ~ खलील जिब्रान
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| * तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक क़दम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं। ~ खलील जिब्रान
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| * तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। ~ खलील जिब्रान
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| * मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
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| * तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा का सितार है। यह तुम्हारे हाथ की बात है कि तुम उससे मधुर स्वर झंकृत करो या बेसुरी आवाजें निकालो। ~ खलील जिब्रान
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| * जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
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| * हृदयों को अर्पित करो पर उसे एक-दूसरे के संरक्षण में मत रखो। ~ खलील जिब्रान
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| ==कहावत , लोकोक्ति== | |
| * बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत | | * बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत |
| * हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति | | * हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति |
पंक्ति 275: |
पंक्ति 162: |
| * मूर्ख राजा अपनी प्रजा पर शासन करता है, चतुर राजा उसकी शक्ति और सार्मथ्य का लाभ उठाता है और ज्ञानी राजा उसे संतान की तरह प्रेम करता है। ~ कल्हण | | * मूर्ख राजा अपनी प्रजा पर शासन करता है, चतुर राजा उसकी शक्ति और सार्मथ्य का लाभ उठाता है और ज्ञानी राजा उसे संतान की तरह प्रेम करता है। ~ कल्हण |
| * अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महज धन है तथा हे सुंदरी! विद्या तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त कल्हण | | * अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महज धन है तथा हे सुंदरी! विद्या तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त कल्हण |
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| ==स्वामी शंकराचार्य==
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| * जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। ~ शंकराचार्य
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| * ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। ~ शंकराचार्य
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| * प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। ~ स्वामी शंकराचार्य
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| * दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
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| * ज्ञाताज्ञात पाप ही अंत:करण की मलिनता है। जब तक अंत:करण मलरहित, पापरहित नहीं होगा, तब तक वास्तविक दृष्टि का उदय नहीं होगा। ~ शंकराचार्य
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| * सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
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| * संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य
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| * माता के समान सुख देने वाली कौन है? उत्तम विद्या। देने से क्या बढ़ती है? उत्तम विद्या। ~ शंकराचार्य
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| ==वृंद== | | ==वृंद== |
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पंक्ति 228: |
| * जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। ~ महादेवी वर्मा | | * जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। ~ महादेवी वर्मा |
| * असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | | * असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा |
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| ==माघ==
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| * दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ
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| * दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है। ~ माघ
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| * उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ
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| * योग्य व्यक्ति से किसका काम पूरा नहीं होता। ~ माघ
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| * बिना राजा के देश में किसी की कोई वस्तु अपनी नहीं रहती। मछलियों की भांति सब लोग एक-दूसरे को अपना ग्रास बनाते, लूटते-खसोटते रहते हैं। ~ माघ
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| * अतिशय सम्पन्नता को पाकर भी गर्वरहित सज्जन किसी को थोड़ा भी नहीं भूलता। ~ माघ
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| * ऊंचाई पर पहुंचे हुए जल बरसाने वाले बादल का ऊसर को छोड़ना क्या उचित है ? ~ माघ
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| * भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? ~ माघ
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| * उदात्त चित्त वाले लोगों में दूसरों के प्रकट हुए दोषों को भी चिरकाल तक छिपाने की निपुणता होती है और अपने गुण को प्रकट करने में उन्हें अतिशय अकौशल होता है। ~ माघ
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| * अपार संपन्नता पाकर भी अहंकार से मुक्त सज्जन किसी को तनिक भी नहीं भूलता। ~ माघ
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| * जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। ~ माघ
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| * सत्यप्रतिज्ञ श्रेष्ठ व्यक्ति को कटु वचन कह कर भी कौन क्षुब्ध कर सकता है? (कोई नहीं)। ~ माघ
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| * परिचित गुणों का स्मरण रखने वाले उत्तम लोग सारे दोषों को स्मरण रखने में कुशल नहीं होते। ~ माघ
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| * छोटे शत्रु को छोटे उपाय करके ही काबू मे लाना चाहिए। जैसे चूहे को सिंह नहीं बिल्ली ही मारती है। ~ माघ
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| ==काका कालेलकर== | | ==काका कालेलकर== |
| * संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर | | * संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर |
पंक्ति 389: |
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| * जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद | | * जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद |
| * जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद | | * जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद |
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| ==विष्णु शर्मा==
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| * कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा। ~ विष्णु शर्मा
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| * जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। ~ विष्णु शर्मा
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| * उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं। ~ विष्णु शर्मा
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| * संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। ~ विष्णु शर्मा
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| * जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है। ~ विष्णु शर्मा
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| * अपना अहित करने वाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं। ~ विष्णु शर्मा
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| * संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करने वाले ही महान कहलाते हैं। ~ विष्णु शर्मा
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| * जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा
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| * उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा
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| * एक का कर्म देखकर दूसरा भी निंदनीय कर्म करता है। लोक गतानुगतिक होता है, वास्तविकता का विचार कर कार्य नहीं करता। ~ विष्णु शर्मा
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| ==भारवि==
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| * राग और द्वेष से दूषित स्वभाव वाले लोगों के मन सज्जनों के विषय में भी विकारपूर्ण हो जाते हैं। ~ भारवि
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| * गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से। ~ भारवि
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| * निष्काम होकर नित्य अपना काम करनेवाले की गोद में ही उत्सुक होकर सफलता आती है। ~ भारवि
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| * नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं। ~ भारवि
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| * एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। ~ भारवि
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| * हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। ~ भारवि
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| * समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। ~ भारवि
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| * जो स्वाभवत: सुंदर हैं, उनकी विकृति भी शोभादायक होती है। ~ भारवि
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| * मुक्ति चाहने वाले विरक्त लोगों को भी अच्छे लोगों के प्रति पक्षपात होता है। ~ भारवि
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| ==श्रीहर्ष== | | ==श्रीहर्ष== |
| * कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष | | * कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष |
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| * जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | | * जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार |
| * सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। ~ हनुमानप्रसाद पोद्दार | | * सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। ~ हनुमानप्रसाद पोद्दार |
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| ==बाणभट्ट==
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| * जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
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| * सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। ~ बालकृष्ण भट्ट
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| * सज्जनों के मन थोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। ~ बाणभट्ट
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| * परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ बाण भट्ट
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| * मनस्विता धन की गरमी से लता के समान झुलस जाती है। ~ बाणभट्ट
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| * सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दुख छीर्घकालिक। ~ बाणभट्ट
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| * सज्जन लोग स्वभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं। ~ बाणभट्ट
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| * शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट
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| ==सनाई== | | ==सनाई== |
| * संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई | | * संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई |