"अनमोल वचन 3": अवतरणों में अंतर
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|'''ज्ञान का सागर - अनमोल वचन''' | |'''ज्ञान का सागर - अनमोल वचन''' | ||
# सत्संग और प्रवचनों का - स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है। | # सत्संग और प्रवचनों का - स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है। | ||
# सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है। | # सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है। | ||
# साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है। | # साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है। | ||
# '''समर्पण''' का अर्थ है - पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण में उसे परिणत करते रहना। | |||
# सबसे महान धर्म है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनना। | |||
# सद्व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है। | |||
# सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता। | |||
# सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | |||
# सबसे बड़ा दीन-दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रयण नहीं। | |||
# सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है। | |||
# सत्प्रयत्न कभी निरर्थक नहीं होते। | |||
# समय का सुदपयोग ही उन्नति का मूलमंत्र है। | |||
# संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है। | |||
# सादगी सबसे बड़ा फैशन है। | |||
# 'स्वाध्यान्मा प्रमद:' अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करें। | |||
# सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है। | |||
# सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा। | |||
# संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए। | |||
# स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है। | |||
# स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें। | |||
# स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है। | |||
# सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए आयु का एक दिन छीन ले जाता है, पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ? | |||
# सबके सुख में ही हमारा सुख सन्निहित है। | |||
# सेवा से बढ़कर पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता। | |||
# स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है। | |||
# सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है। | |||
# समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है। | |||
# समस्त हिंसा, द्वेष, बैर और विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शान्त हो जाती हैं। | |||
# समय की कद्र करो। प्रत्येक दिवस एक जीवन है। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओ। जिन्दगी की सच्ची कीमत हमारे वक़्त का एक-एक क्षण ठीक उपयोग करने में है। | |||
# साहस ही एकमात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ते एवं लक्ष्य तक जा पहुँचने में समर्थ हो सकता है। | |||
# सुख बाँटने की वस्तु है और दु:खे बँटा लेने की। इसी आधार पर आंतरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है। | |||
# सहानुभूति मनुष्य के [[हृदय]] में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है। | |||
# सत्य का मतलब सच बोलना भर नहीं, वरन् विवेक, कत्र्तव्य, सदाचरण, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीना है। | |||
# साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखित उठाये बिना जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती। | |||
# समर्पण का अर्थ है - मन अपना विचार इष्ट के, [[हृदय]] अपना भावनाएँ इष्ट की और आपा अपना किन्तु कर्तव्य समग्र रूप से इष्ट का। | |||
# सन्मार्ग का राजपथ कभी भी न छोड़े। | |||
# समय की कद्र करो। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओं। | |||
# स्वर्ग और नरक कोई स्थान नहीं, वरन् दृष्टिकोण है। | |||
# स्वच्छता सभ्यता का प्रथम सोपान है। | |||
# सेवा में बड़ी शक्ति है। उससे भगवान भी वश में हो सकते हैं। | |||
# स्वाध्याय एक वैसी ही आत्मिक आवश्यकता है जैसे शरीर के लिए भोजन। | |||
# सज्जनता और मधुर व्यवहार मनुष्यता की पहली शर्ता है। | |||
# स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है। | |||
# सुखी होना है तो प्रसन्न रहिए, निश्चिन्त रहिए, मस्त रहिए। | |||
# 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | |||
# साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। | |||
# सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है। | |||
# आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। | |||
# आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है। | # आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है। | ||
# अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। | |||
# अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। | |||
# आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। - वाङ्गमय | |||
# अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। | |||
# असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। | |||
# अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। | |||
# अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है। | |||
# अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। | |||
# अपनी महान संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है। | |||
# 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। | |||
# अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | |||
# अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। | |||
# आज के काम कल पर मत टालिए। | |||
# '''आत्मा''' की पुकार अनसुनी न करें। | |||
# अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें। | |||
# अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। | |||
# आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है। | |||
# '''आत्मबल''' ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है। | |||
# आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है। | |||
# '''आत्मा''' की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है। | |||
# आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। | |||
# आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं। | |||
# अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है। | |||
# अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो। | |||
# आत्म निर्माण ही युग निर्माण है। | |||
# अब भगवान [[गंगाजल]], गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। | |||
# अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं। | |||
# अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है। | |||
# अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है। | |||
# आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है। | |||
# आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है। | |||
# अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। | |||
# आत्म निर्माण का अर्थ है - भाग्य निर्माण। | |||
# अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है। | |||
# अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं। | |||
# अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता। | |||
# आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन् अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है। | |||
# अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है। | |||
# अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | |||
# अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख बनाए रहें। | |||
# आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें। | |||
# आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है। | |||
# कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। | |||
# जैसे कोरे [[काग़ज़]] पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। | # जैसे कोरे [[काग़ज़]] पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। | ||
# योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। | # योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। | ||
# इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। | # इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। | ||
# '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है। | # '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है। | ||
# यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | # यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | ||
# जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | # जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | ||
# जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | # जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | ||
# मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | # मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | ||
# जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | # जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | ||
# कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | # कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | ||
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# प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। | # प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। | ||
# धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | # धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | ||
# शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | # शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | ||
# जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। | # जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। | ||
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# जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | # जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | ||
# निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है। - वाङ्गमय | # निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है। - वाङ्गमय | ||
# हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | # हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | ||
# किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | # किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | ||
# महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है। | # महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है। | ||
# खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | # खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | ||
# मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है। | # मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है। | ||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | # किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | ||
# उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | # उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | ||
# वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | # वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | ||
# चरित्र का अर्थ है - अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। | # चरित्र का अर्थ है - अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। | ||
# मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं। | # मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं। | ||
# जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। | # जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। | ||
# हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये। | # हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये। | ||
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# वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं। | # वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं। | ||
# मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | # मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | ||
# विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। | # विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। | ||
# कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | # कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | ||
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# '''धर्म''' का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | # '''धर्म''' का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | ||
# मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं। | # मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं। | ||
# हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। | # हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। | ||
# किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | # किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | ||
# दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | # दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | ||
# निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है। | # निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है। | ||
# दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | # दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | ||
# चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | # चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | ||
# ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | # ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | ||
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# परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | # परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | ||
# देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | # देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | ||
<ref>{{cite web |url=http://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-1 |title=प्रज्ञा सुभाषित-1 |accessmonthday=[[12 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=wikiquote|language=हिन्दी}}</ref> | |||
# स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | # स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | ||
# बुद्धिमान वह है, जो किसी को ग़लतियों से हानि होते देखकर अपनी ग़लतियाँ सुधार लेता है। | # बुद्धिमान वह है, जो किसी को ग़लतियों से हानि होते देखकर अपनी ग़लतियाँ सुधार लेता है। | ||
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# दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | # दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | ||
# दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया। | # दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया। | ||
# यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | # यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | ||
# '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई काम बङा नहीं हो सकता। | # '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई काम बङा नहीं हो सकता। | ||
पंक्ति 119: | पंक्ति 188: | ||
# शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है। | # शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है। | ||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | # किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | ||
# '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | # '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | ||
# गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | # गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | ||
# दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं। | # दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं। | ||
# धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें। | # धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें। | ||
# हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | # हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | ||
# मनुष्य परिस्थितियों का ग़ुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है। | # मनुष्य परिस्थितियों का ग़ुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है। | ||
# आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | # आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | ||
# जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। | # जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। | ||
# कत्र्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। | # कत्र्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। | ||
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# वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। | # वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। | ||
# प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें। | # प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें। | ||
# '''भगवान''' भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है। | # '''भगवान''' भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है। | ||
# गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | # गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | ||
# नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। | # नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। | ||
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# जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। | # जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। | ||
# जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। | # जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। | ||
# दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें। | # दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें। | ||
# महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है। | # महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है। | ||
# श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है। | # श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है। | ||
# मनुष्य अपने '''भाग्य''' का निर्माता आप है। | # मनुष्य अपने '''भाग्य''' का निर्माता आप है। | ||
# परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है। | # परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है। | ||
# ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है। | # ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है। | ||
# उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | # उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | ||
# दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | # दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | ||
# एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | # एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | ||
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# भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | # भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | ||
# खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। | # खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। | ||
# धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | # धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | ||
# ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | # ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | ||
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# उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | # उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | ||
# खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | # खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | ||
# ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। | # ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। | ||
# ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | # ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | ||
# विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है। | # विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है। | ||
# ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए। | # ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए। | ||
# प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है। | # प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है। | ||
# चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | # चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | ||
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# फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो। | # फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो। | ||
# उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | # उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | ||
# भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं।<ref>{{cite web |url=http://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-2 |title=प्रज्ञा सुभाषित-2 |accessmonthday=[[12 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=wikiquote |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | # भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं।<ref>{{cite web |url=http://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-2 |title=प्रज्ञा सुभाषित-2 |accessmonthday=[[12 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=wikiquote |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
# अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। | # अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। | ||
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# कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। | # कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। | ||
# ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | # ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | ||
# महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। | # महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। | ||
# चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | # चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | ||
# बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया। | # बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया। | ||
# परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। | # परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। | ||
# व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है। | # व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है। | ||
# विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे। | # विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे। | ||
# जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | # जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | ||
# किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | # किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | ||
# जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | # जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | ||
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# जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | # जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | ||
# नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है। | # नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है। | ||
# प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। | # प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। | ||
# प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों। | # प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों। | ||
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# कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। | # कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। | ||
# इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | # इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | ||
# '''काल(समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ | # '''काल (समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ | ||
# जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। | # जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। | ||
# जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। | # जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। | ||
# जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | # जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | ||
# दूसरों की निन्दा-त्रुटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | # दूसरों की निन्दा-त्रुटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | ||
# ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | # ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | ||
# जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। | # जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। | ||
# मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | # मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | ||
# दुनिया में सफलता एक चीज़ के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व। | # दुनिया में सफलता एक चीज़ के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व। | ||
# जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। | # जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। | ||
# दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। | # दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। | ||
# हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़। | # हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़। | ||
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# युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | # युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | ||
# '''भगवान''' की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। | # '''भगवान''' की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। | ||
# उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | # उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | ||
# जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है। | # जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है। | ||
# राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। | # राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। | ||
# इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | # इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | ||
# जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। | # जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। | ||
# श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है। | # श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है। | ||
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# चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | # चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | ||
# पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा। | # पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा। | ||
# ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | # ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | ||
# मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | # मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | ||
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# शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। | # शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। | ||
# वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है | # वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है | ||
# ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | # ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | ||
# बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है। | # बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है। | ||
# शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। | # शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। | ||
# शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं। | # शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं। | ||
# भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है। | # भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है। | ||
# आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | # आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | ||
पंक्ति 295: | पंक्ति 315: | ||
# जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | # जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | ||
# किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | # किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | ||
# असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। | # असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। | ||
# 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | # 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | ||
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# जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।<ref>{{cite web |url=http://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%#7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-3 |title=प्रज्ञा सुभाषित-3 |accessmonthday=[[12 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=wikiquote |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | # जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।<ref>{{cite web |url=http://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%#7%E0%A4%BF%E0%A4%A4-3 |title=प्रज्ञा सुभाषित-3 |accessmonthday=[[12 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=wikiquote |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
# शूरता है सभी परिस्थितियों में परम सत्य के लिए डटे रह सकना, विरोध में भी उसकी घोषण करना और जब कभी आवश्यकता हो तो उसके लिए युद्ध करना। | # शूरता है सभी परिस्थितियों में परम सत्य के लिए डटे रह सकना, विरोध में भी उसकी घोषण करना और जब कभी आवश्यकता हो तो उसके लिए युद्ध करना। | ||
# हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं। | # हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं। | ||
# ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | # ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | ||
# परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | # परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | ||
# वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है। | # वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है। | ||
# परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की। | # परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की। | ||
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# जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | # जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | ||
# ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | # ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | ||
# भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है। | # भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है। | ||
# भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। | # भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। | ||
पंक्ति 322: | पंक्ति 338: | ||
# दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | # दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | ||
# परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं। | # परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं। | ||
# तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं। | # तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं। | ||
# जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। | # जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। | ||
# दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | # दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | ||
# जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। | # जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। | ||
# विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है। | # विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है। | ||
# श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति। | # श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति। | ||
# जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | # जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | ||
# ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है। | # ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है। | ||
# जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। | # जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। | ||
# माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो। | # माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो। | ||
# धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए। | # धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए। | ||
# जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की। | # जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की। | ||
# लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत की तरह भारी और विशालकाय दीखती है। | # लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत की तरह भारी और विशालकाय दीखती है। | ||
# उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | # उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | ||
# चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | # चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | ||
# दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। | # दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। | ||
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# विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा पुरुषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात् ईश्वर विश्वास का प्रथम चिन्ह है। | # विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा पुरुषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात् ईश्वर विश्वास का प्रथम चिन्ह है। | ||
# दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुंजी है। | # दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुंजी है। | ||
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19:52, 21 सितम्बर 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 4, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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