"अनमोल वचन 3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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# साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। | # साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना। | ||
# सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है। | # सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है। | ||
# स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है। | |||
# 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है। | |||
# आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। | # आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। | ||
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# आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है। | # आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है। | ||
# आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | # आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। | ||
# अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। | |||
# आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | |||
# अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं। | |||
# आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है। | |||
# असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। | |||
# जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | # जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | ||
# जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | # जो दूसरों को '''धोखा''' देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। | ||
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# जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है। | # जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है। | ||
# जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की। | # जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की। | ||
# जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। | |||
# जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। | |||
# जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | |||
# मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | # मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। | ||
# मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है। - वाङ्गमय | # मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है। - वाङ्गमय | ||
# महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है। | # महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है। | ||
# मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है। | # मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है। | ||
# मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं। | # मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं। | ||
# मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | # मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है। | ||
# | # मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं। | ||
# '''मानवता''' की सेवा से बढ़कर और कोई काम बङा नहीं हो सकता। | |||
# मनुष्य परिस्थितियों का ग़ुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है। | |||
# मनुष्य अपने '''भाग्य''' का निर्माता आप है। | |||
# महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है। | |||
# मनुष्य उपाधियों से नहीं, श्रेष्ठ कार्यों से सज्जन बनता है। | |||
# मनुष्य का अपने आपसे बढ़कर न कोई शत्रु है, न मित्र। | |||
# महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है। | |||
# मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है। | |||
# मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। | |||
# कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | |||
# कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। | |||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | |||
# किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। | |||
# कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | # कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। | ||
# केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। | # केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। | ||
# किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | # किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | ||
# किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | |||
# कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। | |||
# '''काल (समय)''' सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ | |||
# कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। | |||
# कत्र्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। | |||
# किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | |||
# कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। | |||
# किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | |||
# किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। | |||
# किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | |||
# दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | # दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। | ||
# दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | # दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | ||
# | # दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है - साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। | ||
# देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | # देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं। | ||
# दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | # दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | ||
# दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया। | # दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया। | ||
# दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं। | # दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं। | ||
# | # दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें। | ||
# | # दो याद रखने योग्य हैं-एक कर्त्तव्य और दूसरा मरण। | ||
# | # दूसरों की निन्दा-त्रुटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो। | ||
# | # दुनिया में सफलता एक चीज़ के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व। | ||
# | # दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है। | ||
# दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है। | |||
# दूसरों को पीड़ा न देना ही '''मानव धर्म''' है। | |||
# दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे। | |||
# प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके। | |||
# प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके। | |||
# परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो। | |||
# परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | |||
# पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए। | # पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए। | ||
# प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें। | # प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें। | ||
# परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है। | # परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है। | ||
# परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं। | # परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं। | ||
# प्रशंसा और प्रतिष्ठा वही सच्ची है, जो उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्राप्त हो। | |||
# प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है। | |||
# प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। | |||
# प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों। | |||
# परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है। | |||
# परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है। | |||
# परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की। | |||
# परिजन हमारे लिए भगवान की प्रतिकृति हैं और उनसे अधिकाधिक गहरा प्रेम प्रसंग बनाए रखने की उत्कंठा उमड़ती रहती है। इस वेदना के पीछे भी एक ऐसा दिव्य आनंद झाँकता है इसे भक्तियोग के मर्मज्ञ ही जान सकते हैं। | |||
# प्रगतिशील जीवन केवल वे ही जी सकते हैं, जिनने हृदय में कोमलता, मस्तिष्क में तीष्णता, रक्त में उष्णता और स्वभाव में दृढ़ता का समुतिच समावेश कर लिया है। | |||
# परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं। | |||
# पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है। | |||
# वही जीवति है, जिसका [[मस्तिष्क]] ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है। | |||
# वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं। | |||
# वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं। | |||
# विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता। - वाङ्गमय | |||
# वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं - स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण। | |||
# विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है। | |||
# वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े। | |||
# वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है। | |||
# व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है। | |||
# विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है। | |||
# वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है | |||
# विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे। | |||
# व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सामथ्र्यवान् नहीं बन सकता है। -वाङ्गमय | |||
# वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है। | |||
# व्यक्तिवाद के प्रति उपेक्षा और समूहवाद के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों का समाज ही समुन्नत होता है। | |||
# विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है। | |||
# यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति [[धर्म]] का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। | |||
# युग निर्माण योजना का लक्ष्य है - शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना। - वाङ्गमय | |||
# योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। | |||
# यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है। | |||
# युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा। | |||
# बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। | |||
# बुद्धिमान वह है, जो किसी को ग़लतियों से हानि होते देखकर अपनी ग़लतियाँ सुधार लेता है। | |||
# बहुमूल्य वर्तमान का सदुपयोग कीजिए। | |||
# बड़प्पन सुविधा संवर्धन में नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है। | |||
# बड़प्पन सादगी और शालीनता में है। | # बड़प्पन सादगी और शालीनता में है। | ||
# बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया। | |||
# बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है। | |||
# इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | |||
# इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। | |||
# इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है। | |||
# ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। | |||
# ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | |||
# ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | |||
# इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | |||
# इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | |||
# ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | |||
# शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है? | |||
# शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है। | |||
# शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है। | |||
# शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं। | |||
# शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं। | |||
# शूरता है सभी परिस्थितियों में परम सत्य के लिए डटे रह सकना, विरोध में भी उसकी घोषण करना और जब कभी आवश्यकता हो तो उसके लिए युद्ध करना। | |||
# चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | |||
# चरित्र का अर्थ है - अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। | |||
# चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | # चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | ||
# मनुष्य | # चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | ||
# चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। | |||
# चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं। | |||
# चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। | |||
# '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है। | |||
# ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। | |||
# ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों में और कोई दान नहीं। | |||
# ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है। | |||
# ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए। | |||
# ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है। | |||
# ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं। | |||
# नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है- शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ। | |||
# निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है। | |||
# निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है। - वाङ्गमय | |||
# नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है। | |||
# नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। | |||
# नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार। | |||
# हर मनुष्य का '''भाग्य''' उसकी मुट्ठी में है। | |||
# हँसती-हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है। | |||
# हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है। | |||
# हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये। | |||
# हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है। | |||
# हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय | |||
# हमारी कितने रातें सिसकते बीती हैं - कितनी बार हम फूट-फूट कर रोये हैं इसे कोई कहाँ जानता है? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं, कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता, समझा हैं। कोई उसे देख सका होता तो उसे मानवीय व्यथा वेदना की अनुभूतियों से करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढ़ाँचे में बैठी बिलखती दिखाई पड़ती है। | |||
# धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | # धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं। | ||
# | # धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें। | ||
# '''धर्म''' का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | |||
# धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है। - वाङ्गमय | |||
# धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो। | |||
# धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें। | |||
# भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। | # भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। | ||
# भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | # भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है। | ||
# | # भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं। | ||
# | # '''भगवान''' भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है। | ||
# '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | |||
# '''भगवान''' के काम में लग जाने वाले कभी घाटे में नहीं रह सकते। | |||
# भूत लौटने वाला नहीं, भविष्य का कोई निश्चय नहीं; सँभालने और बनाने योग्य तो वर्तमान है। | |||
# भाग्य भरोसे बैठे रहने वाले आलसी सदा दीन-हीन ही रहेंगे। | |||
# '''भगवान''' की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है। | |||
# भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है। | |||
# '''भगवान''' जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं। | |||
# भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है। | |||
# भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है। | |||
# ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | # ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | ||
# | # गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | ||
# गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | |||
# गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। | |||
# गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। | |||
# दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है। | # दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है। | ||
# उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। | |||
# ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | |||
# लोग क्या कहते हैं - इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ़ यह देखो कि जो करने योग्य था, वह बनपड़ा या नहीं? | |||
# उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | # उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | ||
# खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | # खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | ||
# | # खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। | ||
# खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | |||
# | # उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | ||
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# फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो। | # फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो। | ||
# उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | # उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | ||
# जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। | # जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। | ||
# यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है। | # यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है। | ||
# हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़। | # हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़। | ||
# उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | # उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | ||
# राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। | # राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है। | ||
# श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है। | # श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है। | ||
# | # श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है। | ||
# | # उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | ||
# | # एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | ||
# पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा। | # पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा। | ||
# पुण्य-परमार्थ का कोई अवसर टालना नहीं चाहिए; क्योंकि अगले क्षण यह देह रहे या न रहे क्या ठिकाना। | # पुण्य-परमार्थ का कोई अवसर टालना नहीं चाहिए; क्योंकि अगले क्षण यह देह रहे या न रहे क्या ठिकाना। | ||
# एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। | # एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। | ||
# हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं। | # हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं। | ||
# ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | # ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें। | ||
# नाव स्वयं ही नदी पार नहीं करती। पीठ पर अनेकों को भी लाद कर उतारती है। सन्त अपनी सेवा भावना का उपयोग इसी प्रकार किया करते हैं। | # नाव स्वयं ही नदी पार नहीं करती। पीठ पर अनेकों को भी लाद कर उतारती है। सन्त अपनी सेवा भावना का उपयोग इसी प्रकार किया करते हैं। | ||
# कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | # कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | ||
# गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | # गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। | ||
# ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | # ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | ||
# दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | # दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना। | ||
# तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं। | # तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं। | ||
# श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति। | # श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति। | ||
# जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। | # जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। |
18:49, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 4, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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