"अनमोल वचन 2": अवतरणों में अंतर
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* इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | |||
* इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। | |||
* इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। | |||
* इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं। | |||
* इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | |||
* इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | |||
* इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। | |||
* 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | |||
* इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | |||
* इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है। | |||
* इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। | |||
'''ई''' | '''ई''' | ||
* '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। | |||
* ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | |||
* ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। | |||
* ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। | |||
* '''ईमानदार''' होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। | |||
* ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। | |||
* ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। | |||
* ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। | |||
'''उ''' | '''उ''' | ||
* उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | |||
* उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | |||
* उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। | |||
* उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। | |||
* उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है। | |||
* उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। | |||
* उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो! | |||
* उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। | |||
* उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। | |||
* उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। | |||
* उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। | |||
* उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। | |||
* उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | |||
* उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। | |||
* उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। | |||
'''ऊ''' | '''ऊ''' | ||
* ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। | |||
* ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। | |||
* ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। | |||
* ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | |||
'''ए''' | '''ए''' | ||
* एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। | |||
* एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | |||
* एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | |||
* एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। | |||
* एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। | |||
* एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। | |||
* एकाग्रता से ही विजय मिलती है। | |||
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19:19, 24 सितम्बर 2011 का अवतरण
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |