"अनमोल वचन 4": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
{| class="bharattable" border="1" width="98%" | {| class="bharattable" border="1" width="98%" | ||
|- | |- | ||
==अनमोल वचन== | |||
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं। ~ संस्कृत सुभाषित | * पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं। ~ संस्कृत सुभाषित | ||
* विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। ~ मैथ्यू अर्नाल्ड | * विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। ~ मैथ्यू अर्नाल्ड | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। ~ राबर्ट हेमिल्टन | * सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। ~ राबर्ट हेमिल्टन | ||
==गणित== | |||
* यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ (जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है।) ~ वेदांग ज्योतिष | * यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ (जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है।) ~ वेदांग ज्योतिष | ||
* बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।) ~ महावीराचार्य, जैन गणितज्ञ | * बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।) ~ महावीराचार्य, जैन गणितज्ञ | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
* यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते। | * यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते। | ||
==विज्ञान== | |||
* विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है। ~ विल्ल डुरान्ट | * विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है। ~ विल्ल डुरान्ट | ||
* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं - सिद्धान्त, प्रयोग और सिमुलेशन। | * विज्ञान की तीन विधियाँ हैं - सिद्धान्त, प्रयोग और सिमुलेशन। | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
* हम किसी भी चीज़ को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। ~ रिचर्ड फ़ेनिमैन | * हम किसी भी चीज़ को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं। ~ रिचर्ड फ़ेनिमैन | ||
==तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी== | |||
* पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता। ~ आर्थर सी. क्लार्क | * पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता। ~ आर्थर सी. क्लार्क | ||
* सभ्यता की कहानी, सार रूप में, इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया। ~ एस डीकैम्प | * सभ्यता की कहानी, सार रूप में, इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया। ~ एस डीकैम्प | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 47: | ||
* तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | * तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है। हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है। | ||
==कम्प्यूटर / इन्टरनेट== | |||
* इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है। ~ टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) | * इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है। ~ टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक) | ||
* कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते। चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर ख़रीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं। ~ एडवर्ड शेफर्ड मीडस | * कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते। चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर ख़रीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं। ~ एडवर्ड शेफर्ड मीडस | ||
* कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं। ~ क्लिफ़ोर्ड स्टॉल | * कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं। ~ क्लिफ़ोर्ड स्टॉल | ||
==कला== | |||
* कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है। | * कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है। | ||
* कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है। ~ फ्रायड | * कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है। ~ फ्रायड | ||
पंक्ति 68: | पंक्ति 68: | ||
* मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। - रस्किन | * मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। - रस्किन | ||
==भाषा / स्वभाषा== | |||
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ ~ [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ ~ [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | ||
* जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता, वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नहीं जानता। ~ गोथे | * जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता, वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नहीं जानता। ~ गोथे | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 79: | ||
* श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। ~ शिशुपाल वध | * श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। ~ शिशुपाल वध | ||
==साहित्य== | |||
* साहित्य समाज का दर्पण होता है। | * साहित्य समाज का दर्पण होता है। | ||
* साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) ~ भर्तृहरि | * साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) ~ भर्तृहरि | ||
पंक्ति 85: | पंक्ति 85: | ||
* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। ~ [[डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] | * साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। ~ [[डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] | ||
==संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ== | |||
* संघे शक्तिः (एकता में शक्ति है) | * संघे शक्तिः (एकता में शक्ति है) | ||
* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | ||
पंक्ति 104: | पंक्ति 104: | ||
* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। ~ अज्ञात | * एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। ~ अज्ञात | ||
==संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन== | |||
* दुनिया की सबसे बडी खोज (इन्नोवेशन) का नाम है ~ संस्था। | * दुनिया की सबसे बडी खोज (इन्नोवेशन) का नाम है ~ संस्था। | ||
* आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है। | * आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है। | ||
पंक्ति 112: | पंक्ति 112: | ||
* व्यक्तियों से राष्ट्र नहीं बनता, संस्थाओं से राष्ट्र बनता है। ~ डिजरायली | * व्यक्तियों से राष्ट्र नहीं बनता, संस्थाओं से राष्ट्र बनता है। ~ डिजरायली | ||
==साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न== | |||
* कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ ~ [[कबीर]] | * कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ ~ [[कबीर]] | ||
* साहसे खलु श्री वसति । (साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं) | * साहसे खलु श्री वसति । (साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं) | ||
पंक्ति 132: | पंक्ति 132: | ||
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | ||
==भय, अभय, निर्भय== | |||
* तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | * तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥ | ||
* भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये। — पंचतंत्र | * भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये। — पंचतंत्र | ||
पंक्ति 143: | पंक्ति 143: | ||
* भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। — [[विवेकानंद]] | * भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। — [[विवेकानंद]] | ||
==दोष / ग़लती / त्रुटि== | |||
* ग़लती करने में कोई ग़लती नहीं है। ग़लती करने से डरना सबसे बडी ग़लती है। — एल्बर्ट हब्बार्ड | * ग़लती करने में कोई ग़लती नहीं है। ग़लती करने से डरना सबसे बडी ग़लती है। — एल्बर्ट हब्बार्ड | ||
* ग़लती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं। | * ग़लती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं। | ||
पंक्ति 160: | पंक्ति 160: | ||
* किसी पूर्वतन ख्याति का उत्तराधिकार प्राप्त करना एक संकट मोल लेना है। - टैगोर | * किसी पूर्वतन ख्याति का उत्तराधिकार प्राप्त करना एक संकट मोल लेना है। - टैगोर | ||
==अनुभव / अभ्यास== | |||
* बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है| | * बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है| | ||
* करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | * करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान। रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम | ||
पंक्ति 168: | पंक्ति 168: | ||
* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। – अज्ञात | * अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। – अज्ञात | ||
==सफलता, असफलता== | |||
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीरामशर्मा आचार्य | * असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीरामशर्मा आचार्य | ||
* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्त्व है। — हक्सले | * जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्त्व है। — हक्सले | ||
पंक्ति 193: | पंक्ति 193: | ||
* सफलता के तीन रहस्य हैं - योग्यता, साहस और कोशिश। | * सफलता के तीन रहस्य हैं - योग्यता, साहस और कोशिश। | ||
==सुख-दुःख , व्याधि , दया== | |||
* संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है ? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। ~ खलील जिब्रान | * संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है ? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। ~ खलील जिब्रान | ||
* संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। ~ मृच्छकटिक | * संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। ~ मृच्छकटिक | ||
पंक्ति 210: | पंक्ति 210: | ||
* पाप का संचय ही दुखों का मूल है। - बुद्ध | * पाप का संचय ही दुखों का मूल है। - बुद्ध | ||
==प्रशंसा / प्रोत्साहन== | |||
* उष्ट्राणां विवाहेषु, गीतं गायन्ति गर्दभाः । परस्परं प्रशंसन्ति, अहो रूपं अहो ध्वनिः । (ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, अहा! क्या रूप है ? अहा! क्या आवाज़ है ?) | * उष्ट्राणां विवाहेषु, गीतं गायन्ति गर्दभाः । परस्परं प्रशंसन्ति, अहो रूपं अहो ध्वनिः । (ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं। एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, अहा! क्या रूप है ? अहा! क्या आवाज़ है ?) | ||
* मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है। ~ चार्ल्स श्वेव | * मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है। ~ चार्ल्स श्वेव | ||
पंक्ति 220: | पंक्ति 220: | ||
* हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं| ~ नॉर्मन विंसेंट पील | * हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं| ~ नॉर्मन विंसेंट पील | ||
==मान , अपमान , सम्मान== | |||
* धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी। ~ माघकाव्य | * धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी। ~ माघकाव्य | ||
* इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है। ~ कल्विन कूलिज | * इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है। ~ कल्विन कूलिज | ||
पंक्ति 228: | पंक्ति 228: | ||
* मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश । बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश ॥ ~ कबीर | * मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश । बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश ॥ ~ कबीर | ||
==अभिमान / घमण्ड / गर्व== | |||
* जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मै नाहि । सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ ~ कबीर | * जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मै नाहि । सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ ~ कबीर | ||
==धन / अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य== | |||
* दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | * दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | ||
* हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः । (सोना (धन) ही कमाओ, कलाएँ निष्फल है) ~ महाकवि माघ | * हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः । (सोना (धन) ही कमाओ, कलाएँ निष्फल है) ~ महाकवि माघ | ||
पंक्ति 250: | पंक्ति 250: | ||
* यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों में बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है। | * यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों में बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है। | ||
==धनी / निर्धन / गरीब / गरीबी== | |||
* गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। ~ डेनियल | * गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। ~ डेनियल | ||
* गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं, अमीरों के सम्बन्धी। ~ एनॉन | * गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं, अमीरों के सम्बन्धी। ~ एनॉन | ||
पंक्ति 262: | पंक्ति 262: | ||
* उस मनुष्य के गरीब कोई नहीं जिसके पास केवल धन है। - कहावत | * उस मनुष्य के गरीब कोई नहीं जिसके पास केवल धन है। - कहावत | ||
==व्यापार== | |||
* व्यापारे वसते लक्ष्मी । (व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं) महाजनो येन गतः स पन्थाः । (महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम) मार्ग है) (व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है) | * व्यापारे वसते लक्ष्मी । (व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं) महाजनो येन गतः स पन्थाः । (महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम) मार्ग है) (व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है) | ||
* जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी। ~ आदम स्मिथ, 'द वेल्थ आफ नेशन्स' में | * जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी। ~ आदम स्मिथ, 'द वेल्थ आफ नेशन्स' में | ||
पंक्ति 273: | पंक्ति 273: | ||
* अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है। | * अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है। | ||
==विकास / प्रगति / उन्नति== | |||
* बीज आधारभूत कारण है, पेड उसका प्रगति परिणाम। विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं। ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | * बीज आधारभूत कारण है, पेड उसका प्रगति परिणाम। विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं। ~ श्रीराम शर्मा, आचार्य | ||
* विकास की कोई सीमा नहीं होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नहीं है। ~ रोनाल्ड रीगन | * विकास की कोई सीमा नहीं होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नहीं है। ~ रोनाल्ड रीगन | ||
पंक्ति 285: | पंक्ति 285: | ||
* त्रुटियों के संशोधन का नाम ही उन्नति है। - लाला लाजपत रॉय | * त्रुटियों के संशोधन का नाम ही उन्नति है। - लाला लाजपत रॉय | ||
==राजनीति / शासन / सरकार== | |||
* सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ (शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है।) | * सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् । न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ (शक्ति स्वतन्त्रता की जड है, मेहनत धन-दौलत की जड है, न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है।) | ||
* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र (योजना, परामर्श) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव (राजोचित शक्ति, तेज) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह (उद्यम) से कार्य सिद्ध होता है। ~ दसकुमारचरित | * निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है। शक्तियाँ मंत्र, प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं। मंत्र (योजना, परामर्श) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है, प्रभाव (राजोचित शक्ति, तेज) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह (उद्यम) से कार्य सिद्ध होता है। ~ दसकुमारचरित | ||
पंक्ति 298: | पंक्ति 298: | ||
* सरकार चाहे किसी की हो, सदा बनिया ही शाशन करते हैं। | * सरकार चाहे किसी की हो, सदा बनिया ही शाशन करते हैं। | ||
==लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र / जनतन्त्र== | |||
* लोकतन्त्र, जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिये सरकार होती है। ~ अब्राहम लिंकन | * लोकतन्त्र, जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिये सरकार होती है। ~ अब्राहम लिंकन | ||
* लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है। ~ हेनरी एमर्शन फास्डिक | * लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है। ~ हेनरी एमर्शन फास्डिक | ||
पंक्ति 309: | पंक्ति 309: | ||
* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। — जयप्रकाश नारायण | * लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। — जयप्रकाश नारायण | ||
==नियम / क़ानून / विधान / न्याय== | |||
* न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । (कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो) — महाभारत | * न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते । (कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो) — महाभारत | ||
* अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। — थामस फुलर | * अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता। — थामस फुलर | ||
पंक्ति 319: | पंक्ति 319: | ||
* क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। — फिदेल कास्त्रो | * क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो, वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। — फिदेल कास्त्रो | ||
==व्यवस्था== | |||
* व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन (बीम) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीज़ों से है। — राबर्ट साउथ | * व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है, शरीर का स्वास्थ्य है, शहर की शान्ति है, देश की सुरक्षा है। जो सम्बन्ध धरन (बीम) का घर से है, या हड्डी का शरीर से है, वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीज़ों से है। — राबर्ट साउथ | ||
* अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है। – एडमन्ड बुर्क | * अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है। – एडमन्ड बुर्क | ||
पंक्ति 327: | पंक्ति 327: | ||
* परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। — अल्फ्रेड ह्वाइटहेड | * परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। — अल्फ्रेड ह्वाइटहेड | ||
==विज्ञापन== | |||
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। - हरिशंकर परसाई | * मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। - हरिशंकर परसाई | ||
==समय== | |||
* आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | * आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ | ||
* करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता। | * करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता। | ||
पंक्ति 347: | पंक्ति 347: | ||
* ऐसी घडी नहीं बन सकती जो गुजरे हुए घण्टे को फिर से बजा दे। — [[प्रेमचन्द]] | * ऐसी घडी नहीं बन सकती जो गुजरे हुए घण्टे को फिर से बजा दे। — [[प्रेमचन्द]] | ||
==अवसर / मौक़ा / सुतार / सुयोग== | |||
* जो प्रमादी है, वह सुयोग गँवा देगा। — श्रीराम शर्मा , आचार्य | * जो प्रमादी है, वह सुयोग गँवा देगा। — श्रीराम शर्मा , आचार्य | ||
* बाज़ार में आपाधापी - मतलब, अवसर। धरती पर कोई निश्चितता नहीं है, बस अवसर हैं। — डगलस मैकआर्थर | * बाज़ार में आपाधापी - मतलब, अवसर। धरती पर कोई निश्चितता नहीं है, बस अवसर हैं। — डगलस मैकआर्थर | ||
पंक्ति 361: | पंक्ति 361: | ||
* अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख । दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | * अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख । दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥ — गोस्वामी तुलसीदास | ||
==इतिहास== | |||
* उचित रूप से (देंखे तो) कुछ भी इतिहास नहीं है; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा है। — इमर्सन | * उचित रूप से (देंखे तो) कुछ भी इतिहास नहीं है; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा है। — इमर्सन | ||
* इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जता है। | * इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जता है। | ||
पंक्ति 376: | पंक्ति 376: | ||
* इतिहास के तजुर्बों से हम सबक नहीं लेते इसीलिए इतिहास अपने आप को दोहराता है। - विनोबा | * इतिहास के तजुर्बों से हम सबक नहीं लेते इसीलिए इतिहास अपने आप को दोहराता है। - विनोबा | ||
==शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता== | |||
* वीरभोग्या वसुन्धरा । (पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है) | * वीरभोग्या वसुन्धरा । (पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है) | ||
* कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | * कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् । को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र | ||
पंक्ति 390: | पंक्ति 390: | ||
* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। – गुरु गोविन्द सिंह | * तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। – गुरु गोविन्द सिंह | ||
==युद्ध / शान्ति== | |||
* सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। — पं. जवाहरलाल नेहरू | * सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। — पं. जवाहरलाल नेहरू | ||
* सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा। — दुर्योधन, महाभारत में | * सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । (हे कृष्ण, बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी (ज़मीन) नहीं दूँगा। — दुर्योधन, महाभारत में | ||
पंक्ति 399: | पंक्ति 399: | ||
* शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति। – स्वामी ज्ञानानन्द | * शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति। – स्वामी ज्ञानानन्द | ||
==आत्मविश्वास / निर्भीकता== | |||
* आत्मविश्वास, वीरता का सार है। — एमर्सन | * आत्मविश्वास, वीरता का सार है। — एमर्सन | ||
* आत्मविश्वास, सफलता का मुख्य रहस्य है। — एमर्शन | * आत्मविश्वास, सफलता का मुख्य रहस्य है। — एमर्शन | ||
पंक्ति 407: | पंक्ति 407: | ||
* करने का कौशल आपके करने से ही आता है। | * करने का कौशल आपके करने से ही आता है। | ||
==प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य== | |||
* वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नहीं देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। | * वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नहीं देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है। | ||
* भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है। — एरिक हाफर | * भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी। उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं, पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है। जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी। प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है। — एरिक हाफर | ||
पंक्ति 419: | पंक्ति 419: | ||
* शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है। — अब्राहम हैकेल | * शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है। — अब्राहम हैकेल | ||
==सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था== | |||
* संचार, गणना (कम्प्यूटिंग) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं। | * संचार, गणना (कम्प्यूटिंग) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं। | ||
* ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं, उतना ही अधिक यह बढता है। इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग। | * ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं, उतना ही अधिक यह बढता है। इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग। | ||
पंक्ति 431: | पंक्ति 431: | ||
|- | |- | ||
==अज्ञान== | |||
* अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। - चाणक्य | * अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। - चाणक्य | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। - ईसा | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। - ईसा | ||
पंक्ति 438: | पंक्ति 438: | ||
* अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। - शेख सादी | * अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। - शेख सादी | ||
==अतिथि== | |||
* अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। - अथर्ववेद | * अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। - अथर्ववेद | ||
* यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। - विनोबा | * यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। - विनोबा | ||
* आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। - तुलसीदास | * आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। - तुलसीदास | ||
==अत्याचार== | |||
* अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। - शेख सादी | * अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। - शेख सादी | ||
* गुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। - महात्मा गाँधी | * गुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। - महात्मा गाँधी | ||
* अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। - तिलक | * अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। - तिलक | ||
==अधिकार== | |||
* ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। - महात्मा गाँधी | * ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। - महात्मा गाँधी | ||
* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। - टैगोर | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। - टैगोर | ||
* संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। - प्रेमचंद | * संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। - प्रेमचंद | ||
==अध्ययन== | |||
* सत्ग्रंथ इस लोक की चिंतामणि नहीं उनके अध्ययन से साडी कुचिंताएं मिट जाती हैं। संशय पिशाच भाग जाते हैं और मन में सद्भाव जागृत होकर परम शांति प्राप्त होती है। | * सत्ग्रंथ इस लोक की चिंतामणि नहीं उनके अध्ययन से साडी कुचिंताएं मिट जाती हैं। संशय पिशाच भाग जाते हैं और मन में सद्भाव जागृत होकर परम शांति प्राप्त होती है। | ||
* हम जितना अध्ययन करते हैं उतना हमे अज्ञान का आभास होता है। | * हम जितना अध्ययन करते हैं उतना हमे अज्ञान का आभास होता है। | ||
==अनुभव== | |||
* बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अँधा है। | * बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अँधा है। | ||
* दूसरों के अनुभव से जान लेना भी मनुष्य के लिए एक अनुभव है। | * दूसरों के अनुभव से जान लेना भी मनुष्य के लिए एक अनुभव है। | ||
* यदि कोई केवल अनुभव से ही बुद्धिमान हो जाता तो लन्दन के अजायबघर में रखे इतने समय के बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमान से अधिक बुद्धिमान होते। - बर्नार्ड | * यदि कोई केवल अनुभव से ही बुद्धिमान हो जाता तो लन्दन के अजायबघर में रखे इतने समय के बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमान से अधिक बुद्धिमान होते। - बर्नार्ड | ||
==अन्याय== | |||
* अन्याय सहने से अन्याय करना अच्छा है कोई भी इस सिधांत को स्वीकार नहीं करेगा। - अरस्तु | * अन्याय सहने से अन्याय करना अच्छा है कोई भी इस सिधांत को स्वीकार नहीं करेगा। - अरस्तु | ||
* अन्याय सहने वाला भी उतना ही अपराधी होता है जितना करने वाला क्योंकि अगर अन्याय न सहा जाये तो कोई भी अन्याय करने का साहस नहीं करेगा। - टैगोर | * अन्याय सहने वाला भी उतना ही अपराधी होता है जितना करने वाला क्योंकि अगर अन्याय न सहा जाये तो कोई भी अन्याय करने का साहस नहीं करेगा। - टैगोर | ||
* अन्याय को मिटाओ लेकिन अपने आप को मिटाकर नहीं। - प्रेमचंद | * अन्याय को मिटाओ लेकिन अपने आप को मिटाकर नहीं। - प्रेमचंद | ||
==अपमान== | |||
* धुल स्वयं अपमान सह लेती है और बदले में फूलों कर उपहार देती है। - टैगोर | * धुल स्वयं अपमान सह लेती है और बदले में फूलों कर उपहार देती है। - टैगोर | ||
* अपमान का दर कानून के दर से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। - प्रेमचंद | * अपमान का दर कानून के दर से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। - प्रेमचंद | ||
* अपमान पूर्ण जीवन से मृत्यु अच्छी है। - कहावत | * अपमान पूर्ण जीवन से मृत्यु अच्छी है। - कहावत | ||
==अपराध== | |||
* दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। - अज्ञात | * दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। - अज्ञात | ||
* अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। - महात्मा गाँधी | * अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। - महात्मा गाँधी | ||
* अपराधी मन संदेह का अड्डा है। - शेक्सपीयर | * अपराधी मन संदेह का अड्डा है। - शेक्सपीयर | ||
==अभिमान== | |||
* जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। - विदुर नीति | * जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। - विदुर नीति | ||
* अभिमान नरक का मूल है। - महाभारत | * अभिमान नरक का मूल है। - महाभारत | ||
पंक्ति 486: | पंक्ति 486: | ||
* जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। - शेख सादी | * जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। - शेख सादी | ||
==अभिलाषा== | |||
* हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। - टैगोर | * हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। - टैगोर | ||
* अभिलाषा सब दुखों का मूल है। - बुद्ध | * अभिलाषा सब दुखों का मूल है। - बुद्ध | ||
पंक्ति 493: | पंक्ति 493: | ||
* अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। - शेक्सपीयर | * अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। - शेक्सपीयर | ||
==अवसर== | |||
* अवसर तुम्हारा दरवाज़ा एक ही बार खटखटाता है। - कहावत | * अवसर तुम्हारा दरवाज़ा एक ही बार खटखटाता है। - कहावत | ||
* मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहष्य आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। - डिजरायली | * मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहष्य आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। - डिजरायली | ||
* अवसर पर दुश्मन को न लगाया हुआ थप्पड़ अपने मुह पर लगता है। - फारसी कहावत | * अवसर पर दुश्मन को न लगाया हुआ थप्पड़ अपने मुह पर लगता है। - फारसी कहावत | ||
==अहिंसा== | |||
* उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। - महात्मा गाँधी | * उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। - महात्मा गाँधी | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। - ईसा | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। - ईसा | ||
पंक्ति 504: | पंक्ति 504: | ||
* हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। - महात्मा गाँधी | * हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। - महात्मा गाँधी | ||
==आंसू== | |||
* स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के ह्रदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। - टैगोर | * स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के ह्रदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। - टैगोर | ||
* नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। - जयशंकर प्रसाद | * नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। - जयशंकर प्रसाद | ||
पंक्ति 510: | पंक्ति 510: | ||
* सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। - बुद्ध | * सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। - बुद्ध | ||
==आचरण== | |||
* जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | * जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | ||
* माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। - शुक्रनीति | * माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। - शुक्रनीति | ||
पंक्ति 517: | पंक्ति 517: | ||
* रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। - हितोपदेश | * रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। - हितोपदेश | ||
==आत्म विश्वास== | |||
* आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहष्य है। - एमर्सन | * आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहष्य है। - एमर्सन | ||
* यह आत्मविश्वास रखो को तुम पृथ्वी के सबसे आवश्यक मनुष्य हो। - गोर्की | * यह आत्मविश्वास रखो को तुम पृथ्वी के सबसे आवश्यक मनुष्य हो। - गोर्की | ||
पंक्ति 523: | पंक्ति 523: | ||
* आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीन जीवन को परम शांति सम्पन्न बना देते हैं। - टेनीसन | * आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीन जीवन को परम शांति सम्पन्न बना देते हैं। - टेनीसन | ||
==आत्मा== | |||
* आत्मा को न शाश्त्र काट सकता है, न आग जला सकती है, न जल भिगो सकता है और न हवा सुखा सकती है। - भगवत गीता | * आत्मा को न शाश्त्र काट सकता है, न आग जला सकती है, न जल भिगो सकता है और न हवा सुखा सकती है। - भगवत गीता | ||
* क्या तुम नहीं जानते ही तुम ही ईश्वर का मंदिर हो और ईश्वर की आत्मा तुममे रहती है। - इंजील | * क्या तुम नहीं जानते ही तुम ही ईश्वर का मंदिर हो और ईश्वर की आत्मा तुममे रहती है। - इंजील | ||
पंक्ति 532: | पंक्ति 532: | ||
* अहम् की मृत्यु द्वारा आत्मा का वर्जन करते करते अपने रुपातित स्वरुप को आत्मा प्रकाशित करता है। - टैगोर | * अहम् की मृत्यु द्वारा आत्मा का वर्जन करते करते अपने रुपातित स्वरुप को आत्मा प्रकाशित करता है। - टैगोर | ||
==आनंद== | |||
* आनंद वह ख़ुशी है जिसके भोगने पर पछताना नहीं पड़ता। - सुकरात | * आनंद वह ख़ुशी है जिसके भोगने पर पछताना नहीं पड़ता। - सुकरात | ||
* केवल आत्मज्ञान ही आत्मा हृदय को सच्चा आनंद प्रदान करता है। - रामतीर्थ | * केवल आत्मज्ञान ही आत्मा हृदय को सच्चा आनंद प्रदान करता है। - रामतीर्थ | ||
पंक्ति 540: | पंक्ति 540: | ||
* आयु में आनंद है, समग्र शरीर के मंगल में, स्वाश्थ्य में आनंद है। इसी आनंद का भाग करने पर दो वस्तुएं प्राप्त होती हैं एक ज्ञान एंड दूसरा प्रेम। - टैगोर | * आयु में आनंद है, समग्र शरीर के मंगल में, स्वाश्थ्य में आनंद है। इसी आनंद का भाग करने पर दो वस्तुएं प्राप्त होती हैं एक ज्ञान एंड दूसरा प्रेम। - टैगोर | ||
==आपत्ति== | |||
* ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - अज्ञात | * ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - अज्ञात | ||
* मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। - तिरुवल्लुवर | * मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। - तिरुवल्लुवर | ||
पंक्ति 548: | पंक्ति 548: | ||
* रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | * रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | ||
==आशा== | |||
* आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। - कहावत | * आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। - कहावत | ||
* आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गाँधी | * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गाँधी | ||
पंक्ति 556: | पंक्ति 556: | ||
* मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। - बर्नार्ड शा | * मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। - बर्नार्ड शा | ||
==इंद्रियां== | |||
* जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। - चाणक्य | * जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। - चाणक्य | ||
* अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। - कठोपनिषद | * अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। - कठोपनिषद | ||
पंक्ति 562: | पंक्ति 562: | ||
* सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी स्वरुप की उपसना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। - भगवन कृष्ण | * सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी स्वरुप की उपसना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। - भगवन कृष्ण | ||
==ईश्वर== | |||
* मैं ईश्वर से डरता हूँ और ईश्वर के बाद उससे डरता हूँ जो ईश्वर से नहीं डरता। - शेख सादी | * मैं ईश्वर से डरता हूँ और ईश्वर के बाद उससे डरता हूँ जो ईश्वर से नहीं डरता। - शेख सादी | ||
* ईश्वर एक है और वह एकता को पसंद करता है। - हज़रत मोहम्मद | * ईश्वर एक है और वह एकता को पसंद करता है। - हज़रत मोहम्मद | ||
पंक्ति 570: | पंक्ति 570: | ||
* ईश्वर बड़े साम्राज्यों से विमुख हो सकता है पर छोटे छोटे फूलों से कभी खिन्न नहीं होता। - टैगोर | * ईश्वर बड़े साम्राज्यों से विमुख हो सकता है पर छोटे छोटे फूलों से कभी खिन्न नहीं होता। - टैगोर | ||
==ईर्ष्या== | |||
* ईर्ष्या करने वालों का सबसे बड़ा शत्रु उसकी ईर्ष्या ही है। - तिरुवल्लुवर | * ईर्ष्या करने वालों का सबसे बड़ा शत्रु उसकी ईर्ष्या ही है। - तिरुवल्लुवर | ||
* ईर्ष्यालु को मृत्यु के सामान दुःख भोगना पड़ता है। - वेदव्यास | * ईर्ष्यालु को मृत्यु के सामान दुःख भोगना पड़ता है। - वेदव्यास | ||
==उत्साह== | |||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। - तिरुवल्लुवर | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। - तिरुवल्लुवर | ||
* उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। - वाल्मीकि | * उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। - वाल्मीकि | ||
* विश्व इतिहास में प्रत्येक महान और महत्त्वपूर्ण आन्दोलन उत्साह द्वारा ही सफल हो पाया है। - एमर्सन | * विश्व इतिहास में प्रत्येक महान और महत्त्वपूर्ण आन्दोलन उत्साह द्वारा ही सफल हो पाया है। - एमर्सन | ||
==उदारता== | |||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। - तिरुवल्लुवर | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। - तिरुवल्लुवर | ||
* यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। - हितोपदेश | * यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। - हितोपदेश | ||
पंक्ति 585: | पंक्ति 585: | ||
* चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। - अफलातून | * चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। - अफलातून | ||
==उधार== | |||
* ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। - शेक्सपीयर | * ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। - शेक्सपीयर | ||
* उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। - अज्ञात | * उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। - अज्ञात | ||
* उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। - प्रेमचंद | * उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। - प्रेमचंद | ||
==उपकार== | |||
* वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। - कालिदास | * वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। - कालिदास | ||
* जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके ह्रदय में प्रेम है उसके लिए द्वार खुले हैं। - टैगोर | * जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके ह्रदय में प्रेम है उसके लिए द्वार खुले हैं। - टैगोर | ||
पंक्ति 596: | पंक्ति 596: | ||
* उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। - अज्ञात | * उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। - अज्ञात | ||
==उपदेश== | |||
* बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। - जर्मन कहावत | * बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। - जर्मन कहावत | ||
* जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। - शेख सादी | * जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। - शेख सादी | ||
पंक्ति 604: | पंक्ति 604: | ||
* उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। - टैगोर | * उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। - टैगोर | ||
==उपहार== | |||
* जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। - फ्रेंकलिन | * जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। - फ्रेंकलिन | ||
* शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना ह्रदय, बालक को उत्तम दृष्टान्त, पिता को आदर, माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व कर सके, अपने को प्रतिष्ठा और सबको उपहार। - बालफोर | * शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना ह्रदय, बालक को उत्तम दृष्टान्त, पिता को आदर, माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व कर सके, अपने को प्रतिष्ठा और सबको उपहार। - बालफोर | ||
==उपेक्षा== | |||
* प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। - अज्ञात | * प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। - अज्ञात | ||
* रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। - सुभाषित | * रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। - सुभाषित | ||
==एकता== | |||
* एकता चापलूसी से कायम नहीं की जा सकती। - महात्मा गाँधी | * एकता चापलूसी से कायम नहीं की जा सकती। - महात्मा गाँधी | ||
* यदि चिड़ियाँ एकता कर लें तो शेर की खल खींच सकती हैं। - शेख सादी | * यदि चिड़ियाँ एकता कर लें तो शेर की खल खींच सकती हैं। - शेख सादी | ||
==एकाग्रता== | |||
* जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। - रामतीर्थ | * जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। - रामतीर्थ | ||
* झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | * झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | ||
* मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। - अज्ञात | * मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। - अज्ञात | ||
==एकांत== | |||
* जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। - अज्ञात | * जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। - अज्ञात | ||
* एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। - अज्ञात | * एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। - अज्ञात | ||
पंक्ति 627: | पंक्ति 627: | ||
* एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। - प्रेमचंद | * एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। - प्रेमचंद | ||
==ऐश्वर्य== | |||
* कदम पीछे ना हटाने वाला ही ऐश्वर्य को जीतता है। - ऋग्वेद | * कदम पीछे ना हटाने वाला ही ऐश्वर्य को जीतता है। - ऋग्वेद | ||
* स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। - महाभारत | * स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। - महाभारत | ||
पंक्ति 633: | पंक्ति 633: | ||
* ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। - अरस्तु | * ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। - अरस्तु | ||
==कल्पना== | |||
* मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। - योगवशिष्ठ | * मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। - योगवशिष्ठ | ||
* कल्पना विश्व पर शासन करती है। - नेपोलियन | * कल्पना विश्व पर शासन करती है। - नेपोलियन | ||
पंक्ति 643: | पंक्ति 643: | ||
* हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। - इतालियन कहावत | * हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। - इतालियन कहावत | ||
==कवि - कविता== | |||
* कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। - शेक्सपियर | * कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। - शेक्सपियर | ||
* इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। - प्लेटो | * इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। - प्लेटो | ||
* कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर ह्रदय बंद होते हैं। - प्रेमचंद | * कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर ह्रदय बंद होते हैं। - प्रेमचंद | ||
==कष्ट== | |||
* आज के कष्ट का सामना करने वाले के पास आगामी कल के कष्ट आने से घबराते हैं। - अज्ञात | * आज के कष्ट का सामना करने वाले के पास आगामी कल के कष्ट आने से घबराते हैं। - अज्ञात | ||
* ईश्वर जिसे प्यार करते हैं उन्हें रगड़कर साफ करतें हैं। - इंजील | * ईश्वर जिसे प्यार करते हैं उन्हें रगड़कर साफ करतें हैं। - इंजील | ||
* हमारे कष्ट पापों का प्रायश्चित हैं। - हज़रत मोहम्मद | * हमारे कष्ट पापों का प्रायश्चित हैं। - हज़रत मोहम्मद | ||
==काम== | |||
* काम से शोक उत्पन्न होता है। - धम्मपद | * काम से शोक उत्पन्न होता है। - धम्मपद | ||
* काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। - गीता | * काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। - गीता | ||
* सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। - कबीर | * सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। - कबीर | ||
==कार्य== | |||
* दौड़ना काफी नहीं है समय पर चल पड़ना चाहिए। - फ़्रांसिसी कहावत | * दौड़ना काफी नहीं है समय पर चल पड़ना चाहिए। - फ़्रांसिसी कहावत | ||
* जिसने निश्चय कर लिया उसके लिए बस करना बाकि रह जाता है। - इटैलियन कहावत | * जिसने निश्चय कर लिया उसके लिए बस करना बाकि रह जाता है। - इटैलियन कहावत | ||
पंक्ति 666: | पंक्ति 666: | ||
* बिना काम के सिधांत दिमागी एय्याशी है, बिना सिधांत के कार्य अंधे की टटोल हैं। - जवाहरलाल नेहरु | * बिना काम के सिधांत दिमागी एय्याशी है, बिना सिधांत के कार्य अंधे की टटोल हैं। - जवाहरलाल नेहरु | ||
==कायरता== | |||
* अत्याचार और भय दोनों कायरता के दो पहलू हैं। - अज्ञात | * अत्याचार और भय दोनों कायरता के दो पहलू हैं। - अज्ञात | ||
* घर का मोह कायरता का दूसरा नाम है। - अज्ञात | * घर का मोह कायरता का दूसरा नाम है। - अज्ञात | ||
* मैं कायरता तो किसी हाल में सहन नहीं कर सकता, आप कायरता से मरें इसकी बजाये बहादुरी से प्रहार करते हुए और प्रहार सहते हुए मैं कहीं बेहतर समझूंगा। - महात्मा गाँधी | * मैं कायरता तो किसी हाल में सहन नहीं कर सकता, आप कायरता से मरें इसकी बजाये बहादुरी से प्रहार करते हुए और प्रहार सहते हुए मैं कहीं बेहतर समझूंगा। - महात्मा गाँधी | ||
==कुरूपता== | |||
* मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। - खलील जिब्रान | * मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। - खलील जिब्रान | ||
* कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। - चाणक्य | * कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। - चाणक्य | ||
==ख्याति== | |||
* ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। - कहावत | * ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। - कहावत | ||
* ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। - प्रेमचंद | * ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। - प्रेमचंद | ||
==गुण== | |||
* गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौवा गरुड़ नहीं हो सकता। - चाणक्य | * गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौवा गरुड़ नहीं हो सकता। - चाणक्य | ||
* सद्गुनशील, मुंसिफ मिजाज़ और अक्लमंद आदमी तब तक नहीं बोलता जब तक ख़ामोशी नहीं हो जाती। - शेख सादी | * सद्गुनशील, मुंसिफ मिजाज़ और अक्लमंद आदमी तब तक नहीं बोलता जब तक ख़ामोशी नहीं हो जाती। - शेख सादी | ||
पंक्ति 686: | पंक्ति 686: | ||
* बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। - रहीम | * बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। - रहीम | ||
==गुरु== | |||
* शिष्य के ज्ञान पर सही करना यही गुरु का काम है, बाकी के लिए शिष्य स्वावलंबी है। - विनोबा | * शिष्य के ज्ञान पर सही करना यही गुरु का काम है, बाकी के लिए शिष्य स्वावलंबी है। - विनोबा | ||
* सच्चा गुरु अनुभव है। - स्वामी विवेकानंद | * सच्चा गुरु अनुभव है। - स्वामी विवेकानंद | ||
* कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को मानत और हरी रुठै गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर। - कबीर | * कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को मानत और हरी रुठै गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर। - कबीर | ||
==घृणा== | |||
* घृणा पाप से करो पापी से नहीं। - महात्मा गाँधी | * घृणा पाप से करो पापी से नहीं। - महात्मा गाँधी | ||
* जो सच्चाई पर निर्भर है वह किसी से घृणा नहीं करता। - नेपोलियन | * जो सच्चाई पर निर्भर है वह किसी से घृणा नहीं करता। - नेपोलियन | ||
पंक्ति 698: | पंक्ति 698: | ||
* घृणा घृणा से कभी कम नहीं होती, प्रेम से ही होती है। - बुद्ध | * घृणा घृणा से कभी कम नहीं होती, प्रेम से ही होती है। - बुद्ध | ||
==क्षमा== | |||
* क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण जगत को धारण कर रखा है। - वेदव्यास | * क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण जगत को धारण कर रखा है। - वेदव्यास | ||
* वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। - चैतन्य | * वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। - चैतन्य | ||
पंक्ति 705: | पंक्ति 705: | ||
* मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। - शरतचंद्र | * मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। - शरतचंद्र | ||
==चतुराई== | |||
* चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। - शेख सादी | * चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। - शेख सादी | ||
* सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। - फ़्रांसिसी कहावत | * सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। - फ़्रांसिसी कहावत | ||
==चापलूसी== | |||
* चापलूस आपको हनी पहुंचा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। - हरिऔध | * चापलूस आपको हनी पहुंचा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। - हरिऔध | ||
* चापलूसी तीन घृणित दुर्गुणों से बही है, असत्य , दासत्व और विश्वासघात। - अज्ञात | * चापलूसी तीन घृणित दुर्गुणों से बही है, असत्य , दासत्व और विश्वासघात। - अज्ञात | ||
पंक्ति 715: | पंक्ति 715: | ||
* रहिमन जो रहिबो चहै कहै वाही के दांव, जो वासर को निसी कहै तो कचपची दिखाव। - रहीम | * रहिमन जो रहिबो चहै कहै वाही के दांव, जो वासर को निसी कहै तो कचपची दिखाव। - रहीम | ||
==चिंता== | |||
* चिंता चिता सामान है। - अज्ञात | * चिंता चिता सामान है। - अज्ञात | ||
* निश्चंत मन, भरी थैली से अच्छा है। - अरबी कहावत | * निश्चंत मन, भरी थैली से अच्छा है। - अरबी कहावत | ||
पंक्ति 722: | पंक्ति 722: | ||
* चिंता वहां तक तो वांछनीय है जहाँ तक वह रचनात्मक ध्येय की पूर्ति के लिए विविध उपायों का मनन करने तक सीमित हो, परन्तु जब चिंता इतनी बढ़ जाये कि वह शरीर को खाने लगे तो वह अवांछनीय हो जाती है क्योंकि फिर तो वह अपने ध्येय को ही हरा बैठती है। - महात्मा गाँधी | * चिंता वहां तक तो वांछनीय है जहाँ तक वह रचनात्मक ध्येय की पूर्ति के लिए विविध उपायों का मनन करने तक सीमित हो, परन्तु जब चिंता इतनी बढ़ जाये कि वह शरीर को खाने लगे तो वह अवांछनीय हो जाती है क्योंकि फिर तो वह अपने ध्येय को ही हरा बैठती है। - महात्मा गाँधी | ||
==चेहरा== | |||
* चेहरा मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है और आँखें बिना कहे दिल के राज़ खोल देती हैं। - सैंट जेरोमे | * चेहरा मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है और आँखें बिना कहे दिल के राज़ खोल देती हैं। - सैंट जेरोमे | ||
* भोली भाली सूरत वाले होते हैं जल्लाद भी। - उर्दू कहावत | * भोली भाली सूरत वाले होते हैं जल्लाद भी। - उर्दू कहावत | ||
* सुन्दर चेहरा सबसे अच्छा प्रशंसापात्र है। - रानी एलिज़ाबेथ | * सुन्दर चेहरा सबसे अच्छा प्रशंसापात्र है। - रानी एलिज़ाबेथ | ||
==चिकित्सा== | |||
* संयम और परिश्रम मनुष्य के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं, परिश्रम के भूख तेज़ होती है और संयम अतिभोग से रोकता है। - रूसो | * संयम और परिश्रम मनुष्य के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं, परिश्रम के भूख तेज़ होती है और संयम अतिभोग से रोकता है। - रूसो | ||
* समय सबसे बड़ा चिकित्सक है, वक़्त हर घाव का मरहम है। - कहावत | * समय सबसे बड़ा चिकित्सक है, वक़्त हर घाव का मरहम है। - कहावत | ||
* मन की प्रशन्नता से समस्त मानसिक और शारीरिक रोग दूर हो जाते हैं। - रामदास | * मन की प्रशन्नता से समस्त मानसिक और शारीरिक रोग दूर हो जाते हैं। - रामदास | ||
==चोरी== | |||
* आवश्यकता से अधिक एकत्र करने वाला प्रत्येक व्यक्ति चोर है। - भगवत गीता | * आवश्यकता से अधिक एकत्र करने वाला प्रत्येक व्यक्ति चोर है। - भगवत गीता | ||
* ईश्वर ने आदमी को मेहनत करके खाने के लिए बनाया है और कहा है कि जो मेहनत किये बगैर खाते हैं बे चोर हैं। - महात्मा गाँधी | * ईश्वर ने आदमी को मेहनत करके खाने के लिए बनाया है और कहा है कि जो मेहनत किये बगैर खाते हैं बे चोर हैं। - महात्मा गाँधी | ||
* जो मेरा धन चुराता है वह मेरी सबसे तुच्छ वस्तु ले जाता है। - शेक्सपियर | * जो मेरा धन चुराता है वह मेरी सबसे तुच्छ वस्तु ले जाता है। - शेक्सपियर | ||
==जनता== | |||
* जनता कि आवाज़ ईश्वर की आवाज़ है। - कहावत | * जनता कि आवाज़ ईश्वर की आवाज़ है। - कहावत | ||
* राजमहलों की चालबाजियां, सभाभवानों की राजनीती, समझौते और लेन-देन का जमाना उसी दिन खत्म हो जाता है जब जनता राजनीति में प्रवेश करती है। - जवाहरलाल नेहरु | * राजमहलों की चालबाजियां, सभाभवानों की राजनीती, समझौते और लेन-देन का जमाना उसी दिन खत्म हो जाता है जब जनता राजनीति में प्रवेश करती है। - जवाहरलाल नेहरु | ||
==जीविका== | |||
* व्यवसाय समय का यन्त्र है। - नेपोलियन | * व्यवसाय समय का यन्त्र है। - नेपोलियन | ||
* व्यस्त मनुष्य को आंसू बहाने का अवकाश नहीं। - बायरन | * व्यस्त मनुष्य को आंसू बहाने का अवकाश नहीं। - बायरन | ||
* वह जीविका श्रेष्ठ है जिसमे ओने धर्म कि नहीं नहीं और वाही देश उत्तम है जिससे कुटुंब का पालन हो। - शुक्रनीति | * वह जीविका श्रेष्ठ है जिसमे ओने धर्म कि नहीं नहीं और वाही देश उत्तम है जिससे कुटुंब का पालन हो। - शुक्रनीति | ||
==जीवन== | |||
* जीवन का एक क्षण करोड़ स्वर्ण मुद्राएं देने पर भी नहीं मिलता। - चाणक्य | * जीवन का एक क्षण करोड़ स्वर्ण मुद्राएं देने पर भी नहीं मिलता। - चाणक्य | ||
* मूर्ति के सामन मनुष्य का जीवन सभी ओर से सुन्दर होना चाहिए। - सुकरात | * मूर्ति के सामन मनुष्य का जीवन सभी ओर से सुन्दर होना चाहिए। - सुकरात | ||
पंक्ति 758: | पंक्ति 758: | ||
* जीवन एक फूल है और प्रेम उसका मधु। - ह्यूगो | * जीवन एक फूल है और प्रेम उसका मधु। - ह्यूगो | ||
==झगड़ा== | |||
* लोग फल के बजाये छिलके पर अधिक झगड़ते हैं। | * लोग फल के बजाये छिलके पर अधिक झगड़ते हैं। | ||
* झगड़े में शामिल दोनों पक्ष गलत होते हैं। | * झगड़े में शामिल दोनों पक्ष गलत होते हैं। |
05:05, 2 अक्टूबर 2011 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
---|
|
|
|
|
|