"अनमोल वचन 4": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* झगड़े में शामिल दोनों पक्ष गलत होते हैं। | * झगड़े में शामिल दोनों पक्ष गलत होते हैं। | ||
==झूठ== | |||
* थोडा सा झूठ भी मनुष्य का नाश कर सकता है। - महात्मा गाँधी | * थोडा सा झूठ भी मनुष्य का नाश कर सकता है। - महात्मा गाँधी | ||
* झूठ कि सजा यह नहीं कि उसका विश्वास नहीं किया जाता बलिक वह किसी का विश्वास नहीं कर सकता। - शेक्सपियर | * झूठ कि सजा यह नहीं कि उसका विश्वास नहीं किया जाता बलिक वह किसी का विश्वास नहीं कर सकता। - शेक्सपियर | ||
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* यदि झूठ बोलने से किसी कि जान बचाती है तो बह झूठ पाप नहीं पुण्य है। - प्रेमचंद | * यदि झूठ बोलने से किसी कि जान बचाती है तो बह झूठ पाप नहीं पुण्य है। - प्रेमचंद | ||
==ठोकर== | |||
* ठोकर लगे और दर्द हो तभी मैं सीख पाटा हूँ। - महात्मा गाँधी | * ठोकर लगे और दर्द हो तभी मैं सीख पाटा हूँ। - महात्मा गाँधी | ||
* दूसरों के अनुभव से होशियारी सीखने की मनुष्य को इच्छा नहीं होती, उसको स्वतंत्र ठोकर चाहिए। - विनोबा | * दूसरों के अनुभव से होशियारी सीखने की मनुष्य को इच्छा नहीं होती, उसको स्वतंत्र ठोकर चाहिए। - विनोबा | ||
* ठोकरें केवल धुल ही उड़ाती हैं फसलें नहीं उगती। - टैगोर | * ठोकरें केवल धुल ही उड़ाती हैं फसलें नहीं उगती। - टैगोर | ||
==तर्क== | |||
* जो तर्क नहीं सुने वह कट्टर है, जो तर्क न कर सके वह मूर्ख है और जो तर्क करने का सके वह गुलाम है। - ड्रमंड | * जो तर्क नहीं सुने वह कट्टर है, जो तर्क न कर सके वह मूर्ख है और जो तर्क करने का सके वह गुलाम है। - ड्रमंड | ||
* तर्क केवल बुद्धि का विषय है ह्रदय कि सिद्धि तक बुद्धि नहीं पहुँच सकती। | * तर्क केवल बुद्धि का विषय है ह्रदय कि सिद्धि तक बुद्धि नहीं पहुँच सकती। | ||
* जिसे बुद्धि मने मगर ह्रदय ना माने वह तजने योग्य है। - महात्मा गाँधी | * जिसे बुद्धि मने मगर ह्रदय ना माने वह तजने योग्य है। - महात्मा गाँधी | ||
==त्याग== | |||
* प्राणी कर्म का त्याग नहीं कर सकता, कर्मफल का त्याग ही त्याग है। - भगवान कृष्ण | * प्राणी कर्म का त्याग नहीं कर सकता, कर्मफल का त्याग ही त्याग है। - भगवान कृष्ण | ||
* त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज। - विनोबा | * त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज। - विनोबा | ||
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* त्याग यह नहीं कि मोटे और खुरदरे वस्त्र पहन लिए जायें और सूखी रोटी खायी जाये, त्याग तो यह है कि अपनी इच्छा अभिलाषा और तृष्णा को जीता जाये। - सुफियान सौरी | * त्याग यह नहीं कि मोटे और खुरदरे वस्त्र पहन लिए जायें और सूखी रोटी खायी जाये, त्याग तो यह है कि अपनी इच्छा अभिलाषा और तृष्णा को जीता जाये। - सुफियान सौरी | ||
==दंड== | |||
* दंड अन्यायी के लिए न्याय है। - अगस्तियन | * दंड अन्यायी के लिए न्याय है। - अगस्तियन | ||
* अपराधी को दंड से नहीं रोका जा सकता। - रस्किन | * अपराधी को दंड से नहीं रोका जा सकता। - रस्किन | ||
* अपराधी के दंड में उपयोगिता होनी चाहिए। - वाल्टेयर | * अपराधी के दंड में उपयोगिता होनी चाहिए। - वाल्टेयर | ||
==दर्शन== | |||
* दर्शन का उद्देश्य जीवन कि व्याख्या करना नहीं उसे बदलना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन | * दर्शन का उद्देश्य जीवन कि व्याख्या करना नहीं उसे बदलना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
* जब जिन्दगी को अपने दिल के गीत सुनाने का मौका नहीं मिलता तब वह अपने मन के विचार सुनाने के लिए दार्शनिक पैदा कर देती है। - खलील जिब्रान | * जब जिन्दगी को अपने दिल के गीत सुनाने का मौका नहीं मिलता तब वह अपने मन के विचार सुनाने के लिए दार्शनिक पैदा कर देती है। - खलील जिब्रान | ||
* दार्शनिक होने का अर्थ केवल सूक्ष्म विचारक होना या केवल किसी दर्शन प्रणाली को चला देना नहीं है बल्कि यह है कि हम ज्ञान के ऐसे प्रेमी बन जायें कि उसके इशारों पर चलते हुए विश्वास, सादगी, स्वतंत्रता और उदारता का जीवन व्यतीत करने लगें। - थोरो | * दार्शनिक होने का अर्थ केवल सूक्ष्म विचारक होना या केवल किसी दर्शन प्रणाली को चला देना नहीं है बल्कि यह है कि हम ज्ञान के ऐसे प्रेमी बन जायें कि उसके इशारों पर चलते हुए विश्वास, सादगी, स्वतंत्रता और उदारता का जीवन व्यतीत करने लगें। - थोरो | ||
==दुर्बलता== | |||
* स्वयं को भेंड बना लोगे तो भेड़िये आकर तुम्हे खा जायेंगे। - जर्मन कहावत | * स्वयं को भेंड बना लोगे तो भेड़िये आकर तुम्हे खा जायेंगे। - जर्मन कहावत | ||
* मन कि दुर्बलता से भयंकर और कोई पाप नहीं। - विवेकानंद | * मन कि दुर्बलता से भयंकर और कोई पाप नहीं। - विवेकानंद | ||
* दुर्बल को ना सताइए, जाको मोती हाय, मुई खल कि सांस सों, सार भसम हो जाय। - कबीर | * दुर्बल को ना सताइए, जाको मोती हाय, मुई खल कि सांस सों, सार भसम हो जाय। - कबीर | ||
==दुर्भावना== | |||
* दुर्भावना को मैं मनुष्य का कलंक समझता हूँ। - महात्मा गाँधी | * दुर्भावना को मैं मनुष्य का कलंक समझता हूँ। - महात्मा गाँधी | ||
* दुर्भावना अपने विष का आधा भगा स्वयं पीती है। - सैनेका | * दुर्भावना अपने विष का आधा भगा स्वयं पीती है। - सैनेका | ||
* आदमी की दुर्भावना उसके दुश्मन के बजाय उसे ही अधिक दुःख देती है। - चार्ल बक्सटन | * आदमी की दुर्भावना उसके दुश्मन के बजाय उसे ही अधिक दुःख देती है। - चार्ल बक्सटन | ||
==दुर्वचन== | |||
* दुर्वचन पशुओं तक को अप्रिय होते हैं। - बुद्ध | * दुर्वचन पशुओं तक को अप्रिय होते हैं। - बुद्ध | ||
* दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति ह्रदय में उठी हुई भावना तिरस्कार करती है, इसीलिए जब कोई तुम्हे उत्तेजित करता है तो यह तुम्हारे अन्दर की भावना ही है जो तुम्हे उत्तेजित करती है। - एपिक्टेतस | * दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति ह्रदय में उठी हुई भावना तिरस्कार करती है, इसीलिए जब कोई तुम्हे उत्तेजित करता है तो यह तुम्हारे अन्दर की भावना ही है जो तुम्हे उत्तेजित करती है। - एपिक्टेतस | ||
* दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | * दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | ||
==देश== | |||
* दुरात्मा के लिए देश-भक्ति अंतिम शरण है। - जॉन्सन | * दुरात्मा के लिए देश-भक्ति अंतिम शरण है। - जॉन्सन | ||
* यदि देश-भक्ति का मतलब व्यापक मानव मात्र का हित चिंतन नहीं है तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है। - महात्मा गाँधी | * यदि देश-भक्ति का मतलब व्यापक मानव मात्र का हित चिंतन नहीं है तो उसका कोई अर्थ ही नहीं है। - महात्मा गाँधी | ||
==देह== | |||
* देह आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसी पवित्र है। - महात्मा गाँधी | * देह आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसी पवित्र है। - महात्मा गाँधी | ||
* देह एक रथ है, इन्द्रिय उसमे घोड़े, बुद्धि सारथी और मन लगाम है, केवल देह पोषण करना आत्मघात है। - ज्ञानेश्वरी | * देह एक रथ है, इन्द्रिय उसमे घोड़े, बुद्धि सारथी और मन लगाम है, केवल देह पोषण करना आत्मघात है। - ज्ञानेश्वरी | ||
==दोष== | |||
* दोष पराये देखकर चालत हसंत हसंत, अपने याद ना आवई जिनका आदि ना अंत। - कबीर | * दोष पराये देखकर चालत हसंत हसंत, अपने याद ना आवई जिनका आदि ना अंत। - कबीर | ||
* तू दुसरे आँख का तिनका क्यों देखता है अपनी आँख का शहतीर तो निकाल। - बाइबल | * तू दुसरे आँख का तिनका क्यों देखता है अपनी आँख का शहतीर तो निकाल। - बाइबल | ||
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* मूर्ख आदमी अपने बड़े से बड़े दोष अनदेखा करता है किन्तु दुसरे के छोटे से छोटे दोष को देखता है। - संस्कृत सूक्ति | * मूर्ख आदमी अपने बड़े से बड़े दोष अनदेखा करता है किन्तु दुसरे के छोटे से छोटे दोष को देखता है। - संस्कृत सूक्ति | ||
==धर्म== | |||
* शांति से बढकर कोई ताप नहीं, संतोष से बढकर कोई सुख नहीं, तृष्णा से बढकर कोई व्याधि नहीं और दया के सामान कोई धर्म नहीं। - चाणक्य | * शांति से बढकर कोई ताप नहीं, संतोष से बढकर कोई सुख नहीं, तृष्णा से बढकर कोई व्याधि नहीं और दया के सामान कोई धर्म नहीं। - चाणक्य | ||
* हर अवसर और हर अवस्था में जो अपना कर्त्तव्य दिखाई दे उसी को धर्म समझ कर पूरा करना चाहिए। - गीता | * हर अवसर और हर अवस्था में जो अपना कर्त्तव्य दिखाई दे उसी को धर्म समझ कर पूरा करना चाहिए। - गीता | ||
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* धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | * धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | ||
==धीरज== | |||
* कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय, टूक एक के कारने, स्वान घरे घर जाय। - कबीर | * कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय, टूक एक के कारने, स्वान घरे घर जाय। - कबीर | ||
* शोक में, आर्थिक संकट में या प्रानान्त्कारी भय उत्पन्न होने पर जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए दीराज धारण करता है उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। - वाल्मीकि | * शोक में, आर्थिक संकट में या प्रानान्त्कारी भय उत्पन्न होने पर जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए दीराज धारण करता है उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। - वाल्मीकि | ||
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* सब्र जिन्दगी के मकसद का दरवाज़ा खोलता है क्योंकि सिवाय सब्र के उस दरवाज़े कि कोई और चाबी नहीं है। - शेख सादी | * सब्र जिन्दगी के मकसद का दरवाज़ा खोलता है क्योंकि सिवाय सब्र के उस दरवाज़े कि कोई और चाबी नहीं है। - शेख सादी | ||
==धोका== | |||
* अगर कोई व्यक्ति मुझे दोखा देता है तो धित्कार है उसपर और अगर कोई दूसरी बार मुझे धोका देता है तो लानत है मुझपर। - कहावत | * अगर कोई व्यक्ति मुझे दोखा देता है तो धित्कार है उसपर और अगर कोई दूसरी बार मुझे धोका देता है तो लानत है मुझपर। - कहावत | ||
* धूर्त को धोका देना धूर्तता नहीं है। - कहावत | * धूर्त को धोका देना धूर्तता नहीं है। - कहावत | ||
पंक्ति 847: | पंक्ति 847: | ||
* ज़्यादा मधुर बानी धोकेबाज़ी की निशानी। - कहावत | * ज़्यादा मधुर बानी धोकेबाज़ी की निशानी। - कहावत | ||
==ध्येय, लक्ष्य== | |||
* ध्येय जितना महान होता है, उसका रास्ता उतना ही लम्बा और बीहड़ होता है। | * ध्येय जितना महान होता है, उसका रास्ता उतना ही लम्बा और बीहड़ होता है। | ||
* यदि परिस्तिथियाँ अनुकूल हो तो सीधे अपने ध्येय कि ओर चलो, लेकिन परिस्तिथियाँ अनुकूल ना हो तो उस राह पर चलो जिसमे सबसे कम बाधा आने कि संभावना हो। - तिरुवल्लुवर | * यदि परिस्तिथियाँ अनुकूल हो तो सीधे अपने ध्येय कि ओर चलो, लेकिन परिस्तिथियाँ अनुकूल ना हो तो उस राह पर चलो जिसमे सबसे कम बाधा आने कि संभावना हो। - तिरुवल्लुवर | ||
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* अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ और अपनी साडी शारीरिक और मानसिक शक्ति उसे पाने में लगा दो। - कार्लाइल | * अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ और अपनी साडी शारीरिक और मानसिक शक्ति उसे पाने में लगा दो। - कार्लाइल | ||
==नक़ल== | |||
* किसी को अपना व्यक्तित्व छोड़कर दुसरे का व्यक्तित्व नहीं अपनाना चाहिए। - चैनिंग | * किसी को अपना व्यक्तित्व छोड़कर दुसरे का व्यक्तित्व नहीं अपनाना चाहिए। - चैनिंग | ||
* नक़ल के लिए भी कुछ अकल चाहिए। - फारसी कहावत | * नक़ल के लिए भी कुछ अकल चाहिए। - फारसी कहावत | ||
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* जहाँ नक़ल है वहां खाली दिखावत होगी, जहाँ खाली दिखावत है वहां मूर्खता होगी। - जॉन्सन | * जहाँ नक़ल है वहां खाली दिखावत होगी, जहाँ खाली दिखावत है वहां मूर्खता होगी। - जॉन्सन | ||
==नम्रता== | |||
* बड़े को छोटा बनकर रहना चाहिए, क्योंकि जो अपने आप को बड़ा मानता है वह छोटा बाह्य जाता है और जो छोटा बानाता है वह बड़ा पद पाटा है। - ईसा | * बड़े को छोटा बनकर रहना चाहिए, क्योंकि जो अपने आप को बड़ा मानता है वह छोटा बाह्य जाता है और जो छोटा बानाता है वह बड़ा पद पाटा है। - ईसा | ||
* नम्रता और खुदा के खौफ से इज्जत और जिन्दगी मिलती है। - सुलेमान | * नम्रता और खुदा के खौफ से इज्जत और जिन्दगी मिलती है। - सुलेमान | ||
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* ऊंचे पाने न टिके, नीचे ही ठहराए, नीचे हो सो भरी पिबैं, ऊचां प्यासा जाय। - कबीर | * ऊंचे पाने न टिके, नीचे ही ठहराए, नीचे हो सो भरी पिबैं, ऊचां प्यासा जाय। - कबीर | ||
==नरक== | |||
* संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान लेना पड़ता है की यह जगत ही नरक है। - जयशंकर प्रसाद | * संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान लेना पड़ता है की यह जगत ही नरक है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ। - तुलसीदास | * काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ। - तुलसीदास | ||
* अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से बैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवा, ये नरक में रहाहे वालों के लक्षण हैं। - चाणक्य नीति | * अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से बैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवा, ये नरक में रहाहे वालों के लक्षण हैं। - चाणक्य नीति | ||
==नशा== | |||
* जो आदमी नशे में मदहोश हो उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है। - तिरुवल्लुवर | * जो आदमी नशे में मदहोश हो उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है। - तिरुवल्लुवर | ||
* नशे की हालत में क्रोध की भांति, ग्लानी का वेग भी सहज ही बढ़ जाता है। - प्रेमचंद | * नशे की हालत में क्रोध की भांति, ग्लानी का वेग भी सहज ही बढ़ जाता है। - प्रेमचंद | ||
* नशा करनेवाले मित्र से चले कोई कितना ही प्रेम क्यों ना करता हो पर जब निर्भर करने का अवसर आता है तो वह भरोषा उसपर करता है जो नशा न करता हो। - शरतचंद्र | * नशा करनेवाले मित्र से चले कोई कितना ही प्रेम क्यों ना करता हो पर जब निर्भर करने का अवसर आता है तो वह भरोषा उसपर करता है जो नशा न करता हो। - शरतचंद्र | ||
==नाम== | |||
* नाम में क्या रखा है जिसे हम गुलाब खाहते हैं वह किसी और नाम से भी सुगंध ही देगा। - शेक्सपियर | * नाम में क्या रखा है जिसे हम गुलाब खाहते हैं वह किसी और नाम से भी सुगंध ही देगा। - शेक्सपियर | ||
* अपना नाम सदा कायम रखने के लिए मनुष्य बड़े से बड़ा जोखिम उठाने, धन खर्च करने, हर तरह के कष्ट सहने यहाँ तक की मरने के लिए भी तैयार हो जाता है। - सुकरात | * अपना नाम सदा कायम रखने के लिए मनुष्य बड़े से बड़ा जोखिम उठाने, धन खर्च करने, हर तरह के कष्ट सहने यहाँ तक की मरने के लिए भी तैयार हो जाता है। - सुकरात | ||
पंक्ति 885: | पंक्ति 885: | ||
* आदि नाम परस अहै, मन है मैला लोह, परसत ही कंचन भया, छूता बंधन मोह। - कबीर | * आदि नाम परस अहै, मन है मैला लोह, परसत ही कंचन भया, छूता बंधन मोह। - कबीर | ||
==नारी== | |||
* सुन्दर नारी या तो मूर्ख होती नहीं या अभिमानी। - स्पेनी कहावत | * सुन्दर नारी या तो मूर्ख होती नहीं या अभिमानी। - स्पेनी कहावत | ||
* पुरुष का नारी के सामान कोई बंधू नहीं। - महाभारत | * पुरुष का नारी के सामान कोई बंधू नहीं। - महाभारत | ||
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* नारी सब कुछ सह सकती है, दारुण से दारुण दुःख, बड़े से बड़ा संकट, नहीं सह सकती तो अपनी उमंगो का कुचलाजाना। - प्रेमचंद | * नारी सब कुछ सह सकती है, दारुण से दारुण दुःख, बड़े से बड़ा संकट, नहीं सह सकती तो अपनी उमंगो का कुचलाजाना। - प्रेमचंद | ||
==निंदा== | |||
* यदि तुम्हारी कोई निंदा करे तो भीतर ही भीतर प्रशन्न हो क्योंकि तुम्हारी निंदा करके वह तुम्हारे पाप अपने ऊपर ले रहा है। - ब्रह्मानंद सरस्वती | * यदि तुम्हारी कोई निंदा करे तो भीतर ही भीतर प्रशन्न हो क्योंकि तुम्हारी निंदा करके वह तुम्हारे पाप अपने ऊपर ले रहा है। - ब्रह्मानंद सरस्वती | ||
* ऐ ईमान वालों, दुसरे पर शक मत करो | दूसरों पर शक करना कभी कभी गुनाह हो जाता है। - कुरान | * ऐ ईमान वालों, दुसरे पर शक मत करो | दूसरों पर शक करना कभी कभी गुनाह हो जाता है। - कुरान | ||
पंक्ति 903: | पंक्ति 903: | ||
* जो तेरे सामने और की निंदा है वो और के सामने तेरी निंदा करेगा। - कहावत | * जो तेरे सामने और की निंदा है वो और के सामने तेरी निंदा करेगा। - कहावत | ||
==स्त्री== | |||
* किसी स्त्री के सलाह लीजिये और जो कुछ भी वह कहे उसका उल्टा कीजिये निश्चित रूप से आप बुद्धिमान बन जायेंगे। - टॉमस मूर | * किसी स्त्री के सलाह लीजिये और जो कुछ भी वह कहे उसका उल्टा कीजिये निश्चित रूप से आप बुद्धिमान बन जायेंगे। - टॉमस मूर | ||
* औरत के बाल आमतौर पर लम्बे होते हैं पर उसकी जुबान और भी ज़्यादा लम्बी होती है। - शेक्सपियर | * औरत के बाल आमतौर पर लम्बे होते हैं पर उसकी जुबान और भी ज़्यादा लम्बी होती है। - शेक्सपियर | ||
पंक्ति 910: | पंक्ति 910: | ||
* स्त्री अवं संगीत को कभी समय से सम्बंधित नहीं करना चाहिए। - अज्ञात | * स्त्री अवं संगीत को कभी समय से सम्बंधित नहीं करना चाहिए। - अज्ञात | ||
==निद्रा== | |||
* निद्रावस्था जागृतावस्था की स्तिथि का आईना है। - महात्मा गाँधी | * निद्रावस्था जागृतावस्था की स्तिथि का आईना है। - महात्मा गाँधी | ||
* निद्रा रोगी की माता, भोगी की प्रियतमा और आलसी की बेटी है। - अज्ञात | * निद्रा रोगी की माता, भोगी की प्रियतमा और आलसी की बेटी है। - अज्ञात | ||
पंक्ति 916: | पंक्ति 916: | ||
* सोता साथ जगाइए, करै नाम का जाप, यह तीनों सोते भले, साकत सिंह और सांप। - कबीर | * सोता साथ जगाइए, करै नाम का जाप, यह तीनों सोते भले, साकत सिंह और सांप। - कबीर | ||
==निराशा== | |||
* निराशा दुर्बलता का चिन्ह है। - रामतीर्थ | * निराशा दुर्बलता का चिन्ह है। - रामतीर्थ | ||
* निराशा में प्रतीक्षा अंधे की लाठी है। - प्रेमचंद | * निराशा में प्रतीक्षा अंधे की लाठी है। - प्रेमचंद | ||
* निराशा स्वर्ग का सीलन है जैसे प्रशन्नता स्वर्ग की शांति। - डाने | * निराशा स्वर्ग का सीलन है जैसे प्रशन्नता स्वर्ग की शांति। - डाने | ||
==नियम== | |||
* नियम यदि एक क्षण के लिए टूट जाये तो सारा सूर्यमंडल अस्त-व्यस्त हो जाए। - महात्मा गाँधी | * नियम यदि एक क्षण के लिए टूट जाये तो सारा सूर्यमंडल अस्त-व्यस्त हो जाए। - महात्मा गाँधी | ||
* जो अपने लिए नियम नहीं बनाता उसे दूसरों के नियमों पर चलना पड़ता है। - हरिभाऊ उपाध्याय | * जो अपने लिए नियम नहीं बनाता उसे दूसरों के नियमों पर चलना पड़ता है। - हरिभाऊ उपाध्याय | ||
* प्रकृति का यह साधारण नियम है जो कभी नहीं बदलेगा ही योग्य अयोग्यों पर शासन करते रहेंगे। - दायोनीसियस | * प्रकृति का यह साधारण नियम है जो कभी नहीं बदलेगा ही योग्य अयोग्यों पर शासन करते रहेंगे। - दायोनीसियस | ||
==निश्चय== | |||
* अनुभव बताता है की आवश्यकता कल में द्रिड निश्हय पूरी सहायता करता है। - शेक्सपियर | * अनुभव बताता है की आवश्यकता कल में द्रिड निश्हय पूरी सहायता करता है। - शेक्सपियर | ||
* जिसका निश्चय द्रिड और अटल है बह दुनिया को अपनी सोच में ढाल सकता है। - गेटे | * जिसका निश्चय द्रिड और अटल है बह दुनिया को अपनी सोच में ढाल सकता है। - गेटे | ||
पंक्ति 933: | पंक्ति 933: | ||
* जो व्यक्ति निश्चय कर सकता है उसके लिए कुछ असंभव नहीं है। - एमर्सन | * जो व्यक्ति निश्चय कर सकता है उसके लिए कुछ असंभव नहीं है। - एमर्सन | ||
==नीचता== | |||
* स्वाभाव की नीचता बर्षों में भी मालूम नहीं होती। - शेख सादी | * स्वाभाव की नीचता बर्षों में भी मालूम नहीं होती। - शेख सादी | ||
* कुछ कही नीच न छेडिये, भलो न वाको संग, पाथर दारे कीच में, उछारे बिगारे अंग। - वृन्द | * कुछ कही नीच न छेडिये, भलो न वाको संग, पाथर दारे कीच में, उछारे बिगारे अंग। - वृन्द | ||
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* नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | * नीच को देखने और उसकी बातें सुनाने से ही हमारी नीचता का आरम्भ होता है। - कन्फ्युसियास | ||
==नेकी | |||
* नेकी कर दरिया में डाल। - कहावत | * नेकी कर दरिया में डाल। - कहावत | ||
* मधुमक्खियाँ केवल अँधेरे में काम करती है। विचार केवल मौन में काम आते हैं, नेक कार्य भी गुप्त रहकर ही कारगर होते हैं। - कार्लाइल | * मधुमक्खियाँ केवल अँधेरे में काम करती है। विचार केवल मौन में काम आते हैं, नेक कार्य भी गुप्त रहकर ही कारगर होते हैं। - कार्लाइल | ||
पंक्ति 948: | पंक्ति 948: | ||
* जितने दिन ज़िन्दा हो, उसे ग़नीमत समझो और इससे पहले की लोग तुम्हे मुर्दा कहें नेकी कर जाओ। - शेख़ सादी | * जितने दिन ज़िन्दा हो, उसे ग़नीमत समझो और इससे पहले की लोग तुम्हे मुर्दा कहें नेकी कर जाओ। - शेख़ सादी | ||
==न्याय== | |||
* न्याय का मोती दया के ह्रदय में मिलता है। - जर्मन कहावत | * न्याय का मोती दया के ह्रदय में मिलता है। - जर्मन कहावत | ||
* मनुष्य का कर्त्तव्य है की वह उदास बनने से पूर्व त्यागी बने। - डिकेंस | * मनुष्य का कर्त्तव्य है की वह उदास बनने से पूर्व त्यागी बने। - डिकेंस | ||
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* न्याय में देर करना न्याय को अस्वीकार करना है, ईश्वर की चक्की धीरे चलती है पर बारीक पीसती है। - कहावत | * न्याय में देर करना न्याय को अस्वीकार करना है, ईश्वर की चक्की धीरे चलती है पर बारीक पीसती है। - कहावत | ||
==पछतावा, पश्चाताप== | |||
* अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। - कहावत | * अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। - कहावत | ||
* करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताए, बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाए। - कबीर | * करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताए, बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाए। - कबीर | ||
पंक्ति 962: | पंक्ति 962: | ||
* मुझे कोई पछतावा नहीं क्योंकि मैंने किसी का बुरा नहीं किया। - महात्मा गाँधी | * मुझे कोई पछतावा नहीं क्योंकि मैंने किसी का बुरा नहीं किया। - महात्मा गाँधी | ||
==पड़ौसी== | |||
* कोई भी इतना धनी नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। - डेनिस कहावत | * कोई भी इतना धनी नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। - डेनिस कहावत | ||
* जब तुम्हारे पड़ौसी के घर में आग लगी तो तुम्हारी संपत्ति पर भी खतरा है। - होरेस | * जब तुम्हारे पड़ौसी के घर में आग लगी तो तुम्हारी संपत्ति पर भी खतरा है। - होरेस | ||
* सच्चा पड़ौसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ उसी गली में रहता है बल्कि वह है जो तुम्हारे विचार स्तर पर रहता है। - रामतीर्थ | * सच्चा पड़ौसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ उसी गली में रहता है बल्कि वह है जो तुम्हारे विचार स्तर पर रहता है। - रामतीर्थ | ||
==पति-पत्नी== | |||
* योग्य पति अपनी पत्नी को सम्मान की अधिकारिणी बना देता है। - मनु | * योग्य पति अपनी पत्नी को सम्मान की अधिकारिणी बना देता है। - मनु | ||
* जिसे पति बनाना है उसके लिए पुरुष बनाना ज़रूरी है। - टैगोर | * जिसे पति बनाना है उसके लिए पुरुष बनाना ज़रूरी है। - टैगोर | ||
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* कर्मेशु मंत्री; कार्येशु दासी ; रुपेशु लक्ष्मी; क्षमाया धरित्री; भोज्येशु माता; शयनेशु रम्भा; सत्कर्म नारी कुलधर्मपत्नी। - पति के किये कार्य में मंत्री के समान सलाह देने वाली, सेवा में दासी के सामान काम करने वाली, माता के समान स्वादिष्ट भोजन करने वाली, शयन के समय रम्भा के सामान सुख देने वाली, धर्म के अनुकूल और क्षमादी गुण धारण करने में पृथ्वी के सामान स्थिर रहनेवाली होती है। - संस्कृत सूक्ति | * कर्मेशु मंत्री; कार्येशु दासी ; रुपेशु लक्ष्मी; क्षमाया धरित्री; भोज्येशु माता; शयनेशु रम्भा; सत्कर्म नारी कुलधर्मपत्नी। - पति के किये कार्य में मंत्री के समान सलाह देने वाली, सेवा में दासी के सामान काम करने वाली, माता के समान स्वादिष्ट भोजन करने वाली, शयन के समय रम्भा के सामान सुख देने वाली, धर्म के अनुकूल और क्षमादी गुण धारण करने में पृथ्वी के सामान स्थिर रहनेवाली होती है। - संस्कृत सूक्ति | ||
==पराधीनता== | |||
* पराधीन को ज़िन्दा कहें तो मुर्दा कौन है? - हितोपदेश | * पराधीन को ज़िन्दा कहें तो मुर्दा कौन है? - हितोपदेश | ||
* कोई ईमानदार आदमी हड्डी की ख़ातिर अपने को कुत्ता नहीं बना सकता, और अगर वह ऐसा करता है तो वह ईमानदार नहीं है। - डेनिस कहावत | * कोई ईमानदार आदमी हड्डी की ख़ातिर अपने को कुत्ता नहीं बना सकता, और अगर वह ऐसा करता है तो वह ईमानदार नहीं है। - डेनिस कहावत | ||
पंक्ति 981: | पंक्ति 981: | ||
* गुलामी में रखना इंसान के शान के खिलाफ है, जिस गुलाम को अपनी दशा का मान है और फिर भी जंजीरों को तोड़ने का प्रयास नहीं करता वह पशु से हीन है, अन्तः करण से प्रार्थना करनेवाला कभी गुलामी को बर्दास्त नहीं कर सकता। - महात्मा गाँधी | * गुलामी में रखना इंसान के शान के खिलाफ है, जिस गुलाम को अपनी दशा का मान है और फिर भी जंजीरों को तोड़ने का प्रयास नहीं करता वह पशु से हीन है, अन्तः करण से प्रार्थना करनेवाला कभी गुलामी को बर्दास्त नहीं कर सकता। - महात्मा गाँधी | ||
==परिवर्तन== | |||
* हर चीज़ बदलती है, नष्ट कोई चीज़ नहीं होती। - अरविन्द घोस | * हर चीज़ बदलती है, नष्ट कोई चीज़ नहीं होती। - अरविन्द घोस | ||
* परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है और स्थिर होना मृत्यु। - जयशंकर प्रसाद | * परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है और स्थिर होना मृत्यु। - जयशंकर प्रसाद | ||
* स्वयं को बदल दो भाग्य बदल जायेगा। - कहावत | * स्वयं को बदल दो भाग्य बदल जायेगा। - कहावत | ||
==परिश्रम== | |||
* परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने से नहीं। - हितोपदेश | * परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने से नहीं। - हितोपदेश | ||
* मरते दम तक तू अपने पसीने की कमाई की रोटी खाना। - बाइबल | * मरते दम तक तू अपने पसीने की कमाई की रोटी खाना। - बाइबल | ||
* मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र उसकी दस उंगलियाँ हैं। - राबर्ट कोलियर | * मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र उसकी दस उंगलियाँ हैं। - राबर्ट कोलियर | ||
* मानव सुख जीवन में है और जीवन परिश्रम में है। - अज्ञात | * मानव सुख जीवन में है और जीवन परिश्रम में है। - अज्ञात | ||
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{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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05:22, 2 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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