"अनमोल वचन 4": अवतरणों में अंतर
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* कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। ~ अज्ञात | * कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। ~ अज्ञात | ||
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ [[डा. रामकुमार वर्मा]] | * कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ [[डा. रामकुमार वर्मा]] | ||
* जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती वह कला नहीं है। | * जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती वह कला नहीं है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* कला ईश्वर की परपौत्री है। ~ दांते | * कला ईश्वर की परपौत्री है। ~ दांते | ||
* प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। ~ लांगफैलो | * प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। ~ लांगफैलो | ||
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* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥ (हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।) ~ [[महाभारत]] | ||
* यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ (जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे।) ~ [[पंचतंत्र]] | * यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥ (जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे।) ~ [[पंचतंत्र]] | ||
* को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) | * को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) ~ भर्तृहरि | ||
* सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) संहतिः कार्यसाधिका । (एकता से कार्य सिद्ध होते हैं) ~ पंचतंत्र | * सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) संहतिः कार्यसाधिका । (एकता से कार्य सिद्ध होते हैं) ~ पंचतंत्र | ||
* दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं। ~ कियोसाकी | * दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं, बाकी सब काम की तलाश करते हैं। ~ कियोसाकी | ||
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==अज्ञान== | ==अज्ञान== | ||
* अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। | * अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। ~ चाणक्य | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। ~ ईसा | ||
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है बल्कि स्वयं को अज्ञानी जानना ही उसका विशेषाधिकार है। | * अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है बल्कि स्वयं को अज्ञानी जानना ही उसका विशेषाधिकार है। ~ राधाकृष्णन | ||
* अशिक्षित रहने से पैदा ना होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही सब विपत्ति का मूल है। | * अशिक्षित रहने से पैदा ना होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही सब विपत्ति का मूल है। | ||
* अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। | * अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। ~ शेख सादी | ||
==अतिथि== | ==अतिथि== | ||
* अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। | * अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। ~ अथर्ववेद | ||
* यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। | * यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। ~ विनोबा | ||
* आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। | * आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। ~ तुलसीदास | ||
==अत्याचार== | ==अत्याचार== | ||
* अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। | * अत्याचारी से बढ़कर अभागा कोई दूसरा नहीं क्योंकि विपत्ति के समय उसका कोई मित्र नहीं होता। ~ शेख सादी | ||
* गुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। | * गुलामों की अपेक्षा उनपर अत्याचार करनेवाले की हालत ज़्यादा ख़राब होती है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। | * अत्याचार करने वाला उतना ही दोषी होता है जितना उसे सहन करने वाला। ~ तिलक | ||
==अधिकार== | ==अधिकार== | ||
* ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। | * ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। ~ टैगोर | ||
* संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। | * संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। ~ प्रेमचंद | ||
==अपराध== | ==अपराध== | ||
* दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। | * दूसरों के प्रति किये गए छोटे अपराध अपने प्रति किये गए बड़े अपराध हैं जिनका फक हमें भुगतना ही होता है। ~ अज्ञात | ||
* अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। | * अपराध मनुष्य के मुख पर लिखा होता है। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अपराधी मन संदेह का अड्डा है। | * अपराधी मन संदेह का अड्डा है। ~ शेक्सपीयर | ||
==अभिमान== | ==अभिमान== | ||
* जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। | * जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। ~ विदुर नीति | ||
* अभिमान नरक का मूल है। | * अभिमान नरक का मूल है। ~ महाभारत | ||
* कोयल दिव्या आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता है। | * कोयल दिव्या आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता है। ~ प्रसंग रत्नावली | ||
* कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए। | * कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए। ~ कबीर | ||
* समस्त महान गलतियों की तह में अभिमान ही होता है। | * समस्त महान गलतियों की तह में अभिमान ही होता है। ~ रस्किन | ||
* किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है। | * किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है। ~ हाफ़िज़ | ||
* जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। | * जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। ~ शेख सादी | ||
* अभिमान नरक का द्वार है। | * अभिमान नरक का द्वार है। | ||
* अभिमान जब नम्रता का महोरा पहन लेता है, तब ज्यादा ही घृणास्पद होता है। | * अभिमान जब नम्रता का महोरा पहन लेता है, तब ज्यादा ही घृणास्पद होता है। ~ कम्बरलेंद | ||
* बड़े लोगों के अभिमान से छोटे लोगों की श्रद्धा बड़ा कार्य कर जाती है। | * बड़े लोगों के अभिमान से छोटे लोगों की श्रद्धा बड़ा कार्य कर जाती है। ~ दयानंद सरस्वती | ||
* जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। | * जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। ~ महावीर स्वामी | ||
* सभी महान भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। | * सभी महान भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। ~ रस्किन | ||
==अभिलाषा== | ==अभिलाषा== | ||
* हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। | * हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। ~ टैगोर | ||
* अभिलाषा सब दुखों का मूल है। | * अभिलाषा सब दुखों का मूल है। ~ बुद्ध | ||
* अभिलाषाओं से ऊपर उठ जाओ वे पूरी हो जायंगी, मांगोगे तो उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेंगी। | * अभिलाषाओं से ऊपर उठ जाओ वे पूरी हो जायंगी, मांगोगे तो उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेंगी। ~ रामतीर्थ | ||
* कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। | * कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। ~ खलील जिज्ञान | ||
* अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। | * अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। ~ शेक्सपीयर | ||
==अहिंसा== | ==अहिंसा== | ||
* उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। | * उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। ~ महात्मा गाँधी | ||
* अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। | * अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। ~ ईसा | ||
* जब को व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर पूरा उतर जाता है तो अन्य व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर बैर भाव भूल जाता है। | * जब को व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर पूरा उतर जाता है तो अन्य व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर बैर भाव भूल जाता है। ~ पतंजलि | ||
* हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। | * हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। ~ महात्मा गाँधी | ||
==आंसू== | ==आंसू== | ||
* स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के ह्रदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। | * स्त्री ! तुने अपने अथाह आंसुओं से संसार के ह्रदय को ऐसे घेर रखा है जैसे समुद्र पृथ्वी को घेरे हुए है। ~ टैगोर | ||
* नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। | * नारी के आंसू अपने एक एक बूँद में एक एक बाढ़ लिए होते हैं। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* मेरी एक प्रबल कामना है की मैं कम से कम एक आँख का आंसू पोछ दूं। | * मेरी एक प्रबल कामना है की मैं कम से कम एक आँख का आंसू पोछ दूं। ~ महात्मा गाँधी | ||
* सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। | * सात सागरों में जल की अपेक्छा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आंसू बह चुके हैं। ~ बुद्ध | ||
==आचरण== | ==आचरण== | ||
* जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | * जैसा देश तैसा भेष। - कहावत | ||
* माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। | * माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। ~ शुक्रनीति | ||
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है, उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। | * मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है, उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। ~ टैगोर | ||
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं किन्तु जो उसके अनुसार आचरण करता है वोही वस्तुतः विद्वान है। | * शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं किन्तु जो उसके अनुसार आचरण करता है वोही वस्तुतः विद्वान है। ~ अज्ञात | ||
* रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। | * रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। ~ हितोपदेश | ||
==आपत्ति== | ==आपत्ति== | ||
* ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। | * ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। ~ अज्ञात | ||
* मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। | * मनुष्य को आपत्ति का सामना करने सहायता देने के लिए मुस्कान से बड़ी कोई चीज़ नहीं है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* आपत्ति 'मनुष्य' बनाती है और संपत्ति 'राक्षस'। | * आपत्ति 'मनुष्य' बनाती है और संपत्ति 'राक्षस'। ~ विक्टर ह्यूगो | ||
* धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपति काल परखिये चारी। | * धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपति काल परखिये चारी। ~ तुलसीदास | ||
* आपत्ति काल में हमारी अजीब अजीब लोगों से पहचान हो जाती है जो अन्यथा संभव नहीं। | * आपत्ति काल में हमारी अजीब अजीब लोगों से पहचान हो जाती है जो अन्यथा संभव नहीं। ~ शेक्सपीयर | ||
* रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | * रंज से खूगर (अभ्यस्त) हुआ इन्सान तो मिट जाता है रंज। | ||
==आशा== | ==आशा== | ||
* आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। | * आशा एक नदी है, उसमे इच्छा रूपी जल है, तृष्णा उस नदी की तरंगे हैं, आसक्ति उसके मगर हैं, तर्क वितर्क उसकी पक्षी हैं, मोह रूपी भवरों के कारन वह सुकुमार तथा गहरी है, चिंता ही उसके ऊंचे नीचे किनारे हैं जो धैर्य के वृक्षों को नष्ट करते हैं, जो शुध्चित्त उसके पास चले जाते हैं वो बड़ा आनंद पते हैं। ~ कहावत | ||
* आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। | * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गाँधी | ||
* आशा प्रयत्नशील मनुष्य का साथ कभी नहीं छोडती। | * आशा प्रयत्नशील मनुष्य का साथ कभी नहीं छोडती। ~ गेटे | ||
* जितनी अधिक आशा रखोगे उतनी अधिक निराशा होगी। | * जितनी अधिक आशा रखोगे उतनी अधिक निराशा होगी। ~ कहावत | ||
* स्मृति पीछे दृष्टि डालती है और आशा आगे। - रामचंद्र टंडन | * स्मृति पीछे दृष्टि डालती है और आशा आगे। - रामचंद्र टंडन | ||
* मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। | * मेरी मानो अपनी नाक से आगे ना देखा करो। तुम्हे हमेशा मालूम होता रहेगा उसके आगे भी कुछ है और यह ज्ञान तुम्हे आशा और आनंद से मस्त रखेगा। ~ बर्नार्ड शा | ||
==इंद्रियां== | ==इंद्रियां== | ||
* जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। | * जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, उसे स्त्री तिनके के जान पड़ती है। ~ चाणक्य | ||
* अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। | * अविवेकी और चंचल आदमी की इंद्रियां बेखबर सारथी के दुष्ट घोड़ों की तरह बेकाबू हो जाती हैं। ~ कठोपनिषद | ||
* जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को विषयों से खींच लेता है तभी उसकी बुद्धि स्थिर होती है। | * जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को विषयों से खींच लेता है तभी उसकी बुद्धि स्थिर होती है। ~ महाभारत | ||
* सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी स्वरुप की उपसना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। | * सब इंद्रियों को बश में रखकर सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ अचल और अचिन्त्य, सर्वव्यापी, स्वर्णीय, अविनाशी स्वरुप की उपसना करते हैं, वे सब प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। ~ भगवन कृष्ण | ||
==उत्साह== | ==उत्साह== | ||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। | * उत्साह से बढकर कोई दूसरा बल नहीं है, उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। ~ वाल्मीकि | ||
* विश्व इतिहास में प्रत्येक महान और महत्त्वपूर्ण आन्दोलन उत्साह द्वारा ही सफल हो पाया है। | * विश्व इतिहास में प्रत्येक महान और महत्त्वपूर्ण आन्दोलन उत्साह द्वारा ही सफल हो पाया है। ~ एमर्सन | ||
==उदारता== | ==उदारता== | ||
* उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। | * उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का पैमाना है। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। | * यह मेरा है यह तेरा है ऐसा संकीर्ण हृदय वाले मानते हैं, उदार चित्त वाले तो सरे संसार को एक कुटुंब समझते हैं। ~ हितोपदेश | ||
* उदार व्यक्ति दे-देकर अमीर बनता है, लोभी जोड़ जोड़ कर गरीब होता है। | * उदार व्यक्ति दे-देकर अमीर बनता है, लोभी जोड़ जोड़ कर गरीब होता है। ~ जर्मन कहावत | ||
* चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। | * चार तरह के लोग होते हैं- (1) मख्खिचूस - जो ना आप खाएं ना दूसरों को खाने दें, (2) कंजूस - जो आप खाएं पर दूसरों को ना दें, (3) उदार - जो आप भी खाएं और दूसरों को भी दें, (4) दाता - जो आप ना खाएं पर दूसरों को दें, सब लोग दाता नहीं तो कम से कम उदार तो बन ही सकते हैं। ~ अफलातून | ||
==उधार== | ==उधार== | ||
* ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। | * ना उधार दो, ना लो क्योंकि उधार देने से अक्सर पैसा और मित्र दोनों ही खो जाते हैं। ~ शेक्सपीयर | ||
* उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। | * उधार मांगना भीख माँगने जैसा है। ~ अज्ञात | ||
* उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। | * उधार वह मेहमान है जो एक बार आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। ~ प्रेमचंद | ||
==उपकार== | ==उपकार== | ||
* वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। | * वृक्ष खुद गर्मी सहन कर शरण में आये राहगीर को गर्मी से बचाता है। ~ कालिदास | ||
* जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके ह्रदय में प्रेम है उसके लिए द्वार खुले हैं। | * जो दूसरों पर उपकार जताने का इच्छुक है वह द्वार खटखटाता है। जिसके ह्रदय में प्रेम है उसके लिए द्वार खुले हैं। ~ टैगोर | ||
* उपकार के लिए अगर कुछ जाल भी करना पड़े तो उससे आत्मा की हत्या नहीं होती। | * उपकार के लिए अगर कुछ जाल भी करना पड़े तो उससे आत्मा की हत्या नहीं होती। ~ प्रेमचंद | ||
* उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। | * उपकार करके जाताना इस बात का प्रतीक है की किया गया समर्थन या कार्य उपकार नहीं है। ~ अज्ञात | ||
==उपदेश== | ==उपदेश== | ||
* बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। | * बिना मांगे किसी को उपदेश ना दो। ~ जर्मन कहावत | ||
* जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। | * जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक़ है। ~ शेख सादी | ||
* पेट भरे पर उपवास का उपदेश देना सरल है। | * पेट भरे पर उपवास का उपदेश देना सरल है। ~ कहावत | ||
* जिसने स्वयं को समझ लिया हो वह दूसरों सो समझाने नहीं जायेगा। | * जिसने स्वयं को समझ लिया हो वह दूसरों सो समझाने नहीं जायेगा। ~ धम्मपद | ||
* लोगों की समझ शक्ति के मुताबिक उपदेश देना चाहिए। | * लोगों की समझ शक्ति के मुताबिक उपदेश देना चाहिए। ~ हदीस | ||
* उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। | * उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन है। ~ टैगोर | ||
==उपहार== | ==उपहार== | ||
* जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। | * जिन उपहारों की बड़ी आस लगी रहती है वो भेंट नहीं किये जाते, अदा किये जाते हैं। ~ फ्रेंकलिन | ||
* शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना ह्रदय, बालक को उत्तम दृष्टान्त, पिता को आदर, माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व कर सके, अपने को प्रतिष्ठा और सबको उपहार। | * शत्रु को क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना ह्रदय, बालक को उत्तम दृष्टान्त, पिता को आदर, माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व कर सके, अपने को प्रतिष्ठा और सबको उपहार। ~ बालफोर | ||
==उपेक्षा== | ==उपेक्षा== | ||
* प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। | * प्रेम सब कुछ सह लेता है लेकिन उपेक्षा नहीं सह सकता। ~ अज्ञात | ||
* रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। | * रोग, सर्प, आग और शत्रु को तुच्छ समझा कर कभी उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ~ सुभाषित | ||
==एकाग्रता== | ==एकाग्रता== | ||
* जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। | * जब तक आशा लगी है तब तक एकाग्रता नहीं हो सकती। ~ रामतीर्थ | ||
* झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | * झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | ||
* मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। | * मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | ||
==एकांत== | ==एकांत== | ||
* जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। | * जो एकांत में खुश रहता है वो या तो पशु है या देवता। ~ अज्ञात | ||
* एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। | * एकांत मूर्ख के लिए कैदखाना है और ज्ञानी के लिए स्वर्ग। ~ अज्ञात | ||
* मुझे एकांत से बढकर योग्य साथी कभी नहीं मिला। | * मुझे एकांत से बढकर योग्य साथी कभी नहीं मिला। ~ थोरो | ||
* एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। | * एकांतवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के सामान हैं। ~ प्रेमचंद | ||
==ऐश्वर्य== | ==ऐश्वर्य== | ||
* कदम पीछे ना हटाने वाला ही ऐश्वर्य को जीतता है। | * कदम पीछे ना हटाने वाला ही ऐश्वर्य को जीतता है। ~ ऋग्वेद | ||
* स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। | * स्वयं को हीन मानने वाले को उत्तम प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होते। ~ महाभारत | ||
* धन ना भी हो तो आरोग्य, विद्वता सज्जन-मैत्री तथा स्वाधीनता मनुष्य के महान ऐश्वर्य हैं। | * धन ना भी हो तो आरोग्य, विद्वता सज्जन-मैत्री तथा स्वाधीनता मनुष्य के महान ऐश्वर्य हैं। ~ अज्ञात | ||
* ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। | * ऐश्वर्य उपाधि में नहीं बल्कि इस चेतना में है की हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तु | ||
==कल्पना== | ==कल्पना== | ||
* मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। | * मन जिस रूप की कल्पना करता है वैसा हो जाता है, आज जैसा वह है वैसे उसने कल कल्पना की थी। ~ योगवशिष्ठ | ||
* कल्पना विश्व पर शासन करती है। | * कल्पना विश्व पर शासन करती है। ~ नेपोलियन | ||
* पागल, प्रेमी और कवि की कल्पनाएँ एक सी होती हैं। | * पागल, प्रेमी और कवि की कल्पनाएँ एक सी होती हैं। ~ शेक्सपियर | ||
==कंजूसी== | ==कंजूसी== | ||
* कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है। | * कंजूसी मैं तुझे जनता हूँ! तू विनाश करने वाली और व्यथा देने वाली है। ~ अथर्ववेद | ||
* संसार में सबसे दयनीय कौन है? जो धवन होकर भी कंजूस है। | * संसार में सबसे दयनीय कौन है? जो धवन होकर भी कंजूस है। ~ विद्यापति | ||
* हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। | * हमारे कफ़न में जेब नहीं लगायी जाती। ~ इतालियन कहावत | ||
==कवि - कविता== | ==कवि - कविता== | ||
* कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। | * कवि लिखने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब तक उसकी स्याही प्रेम की आहों से सराबोर नहीं हो जाती। ~ शेक्सपियर | ||
* इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। | * इतिहास की अपेक्षा कविता सत्य के अधिक निकट होती है। ~ प्लेटो | ||
* कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर ह्रदय बंद होते हैं। | * कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सापों के स्थान पर ह्रदय बंद होते हैं। ~ प्रेमचंद | ||
==काम== | ==काम== | ||
* काम से शोक उत्पन्न होता है। | * काम से शोक उत्पन्न होता है। ~ धम्मपद | ||
* काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। | * काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। ~ गीता | ||
* सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। | * सहकामी दीपक दसा, सोखे तेल निवास, कबीरा हीरा संतजन, सहजे सदा प्रकास। ~ कबीर | ||
==कुरूपता== | ==कुरूपता== | ||
* मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। | * मेरे दोस्त किसी चीज़ को कुरूप ना कहो सिवाय उस भय के जिसकी मारी कोई आत्मा स्वयं अपनी स्मृतियों से डरने लगे। ~ खलील जिब्रान | ||
* कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। | * कुरूपता मनुष्य की सौंदर्य विद्या है। ~ चाणक्य | ||
==ख्याति== | ==ख्याति== | ||
* ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। | * ख्याति की अभिलाषा वह पोषक है जिसे ज्ञानी भी सवसे अंत में उतारते हैं। ~ कहावत | ||
* ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। | * ख्याति वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती अगस्त्य ऋषि की तरह वह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती। ~ प्रेमचंद | ||
==गुण== | ==गुण== | ||
* गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौवा गरुड़ नहीं हो सकता। | * गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं, महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौवा गरुड़ नहीं हो सकता। ~ चाणक्य | ||
* सद्गुनशील, मुंसिफ मिजाज़ और अक्लमंद आदमी तब तक नहीं बोलता जब तक ख़ामोशी नहीं हो जाती। | * सद्गुनशील, मुंसिफ मिजाज़ और अक्लमंद आदमी तब तक नहीं बोलता जब तक ख़ामोशी नहीं हो जाती। ~ शेख सादी | ||
* कस्तूरी को अपनी मौजूदगी कसम खाकर सिद्ध नहीं करनी पड़ती; गुण स्वयं ही सामने आ जाते हैं। | * कस्तूरी को अपनी मौजूदगी कसम खाकर सिद्ध नहीं करनी पड़ती; गुण स्वयं ही सामने आ जाते हैं। ~ अज्ञात | ||
* रूप कि पहुँच आँखों तक है, गुण आत्मा को जीतते हैं। | * रूप कि पहुँच आँखों तक है, गुण आत्मा को जीतते हैं। ~ पोप | ||
* बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। | * बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, रहिमन हीरा कब कहैं, लाख टका मेरो मोल। ~ रहीम | ||
==क्षमा== | ==क्षमा== | ||
* क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण जगत को धारण कर रखा है। | * क्षमा ब्रम्ह है, क्षमा सत्य है, क्षमा भूत है, क्षमा भविष्य है, क्षमा तप है, क्षमा पवित्रता है, कहमा में ही संपूर्ण जगत को धारण कर रखा है। ~ वेदव्यास | ||
* वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। | * वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। ~ चैतन्य | ||
* क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेना है। | * क्षमा कर देना दुश्मन पर विजय पा लेना है। ~ हज़रत अली | ||
* दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। | * दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। ~ कृष्ण | ||
* मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। | * मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। ~ शरतचंद्र | ||
==चतुराई== | ==चतुराई== | ||
* चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। | * चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। ~ शेख सादी | ||
* सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। | * सब से बड़ी चतुराई ये है कि कोई चतुराई न की जाये। ~ फ़्रांसिसी कहावत | ||
==चापलूसी== | ==चापलूसी== |
16:06, 11 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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