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* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम | * प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम | ||
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद | * जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद | ||
===चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है=== | |||
* एक स्वतंत्र राष्ट्र में प्रजातंत्र को कार्यरूप में परिणत करने के लिए पहली शर्त यह है कि उसके कानूनों का पालन हो। चाहे हम उन्हें पसंद करें या न करें। ~ कैलाशनाथ काटजू | |||
* प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। ~ महात्मा गांधी | |||
* चुनाव जनता को राजनैतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है। ~ जवाहरलाल नेहरू | |||
* चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है, पर्व है-यह पानीपत नहीं, कुरुक्षेत्र नहीं, यह प्रयाग है-त्रिवेणी है, संगम है, सिंहस्थ है, कुम्भ है। ~ हरिभाई उपाध्याय | |||
* ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात | |||
* जो व्यक्ति प्रजा के पैर बनकर चलता है, उसे कभी कांटे नहीं चुभ सकते। ~ रामकुमार वर्मा | |||
===चले चलो, चले चलो=== | ===चले चलो, चले चलो=== |
15:50, 13 जुलाई 2012 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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विषय सूची
- 1 अ
- 1.1 अन्तर्दृष्टि
- 1.2 अहिंसा- तलवार की धार
- 1.3 अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं
- 1.4 अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें
- 1.5 अध्यापक संस्कृति के माली
- 1.6 अधिक प्रशंसा करना धोखा देना है
- 1.7 अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा
- 1.8 अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध
- 1.9 अविश्वास अश्रद्धा का रूप है
- 1.10 अभ्यास के लिए अभिलाषा जरूरी
- 1.11 अभिलाषाओं का मरना
- 1.12 अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती
- 1.13 असंतुष्ट रहनेवाला निर्धन है
- 1.14 अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें
- 1.15 अति से अमृत भी विष बन जाता है
- 1.16 अचल निष्ठा ही महान कार्यो की जननी है
- 1.17 अचल निष्ठा ही महान कामों की जननी है
- 1.18 अहिंसा अच्छी चीज है
- 1.19 अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है
- 1.20 अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है
- 1.21 अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है
- 1.22 अन्याय किसी के साथ मत कर करो
- 1.23 अक्रोध से क्रोध को जीतें
- 1.24 अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो
- 1.25 अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा
- 1.26 अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा
- 1.27 अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है
- 1.28 अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही
- 1.29 अनुभव बड़ा कि विद्वता
- 1.30 अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है
- 1.31 अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं
- 1.32 असली शिक्षा
- 1.33 अच्छा पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से बेहतर
- 2 आ
- 2.1 आलस्य पर विजय
- 2.2 आलस्य में दरिद्रता का वास
- 2.3 आलोचना एक भयानक चिंगारी है
- 2.4 आलोचना मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है
- 2.5 आलोचना से परे कोई भी नहीं है
- 2.6 आतंकवाद और गोलकीपर
- 2.7 आत्मविश्वास जैसा दोस्त कोई नहीं
- 2.8 आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका
- 2.9 आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण
- 2.10 आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है
- 2.11 आघात सहन करे, वही संत
- 2.12 आचरण के अभाव में ज्ञान
- 2.13 आचरण रहित विचार
- 2.14 आपत्ति में जिसकी बुद्धि कार्यरत है, वही धीर है
- 2.15 आरोग्य परम लाभ है
- 2.16 आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा
- 2.17 आशा समुद्र के समान
- 3 उ
- 4 इ
- 5 ई
- 6 ए
- 7 ऐ
- 8 औ
- 9 क
- 9.1 कुल की प्रशंसा करने से क्या?
- 9.2 किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है
- 9.3 किसी से आशा न करना श्रेष्ठ है
- 9.4 कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती
- 9.5 कौन धनी है, कौन निर्धन
- 9.6 कौन है स्थितिप्रज्ञ
- 9.7 कला एक जीवन है
- 9.8 कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है।
- 9.9 कृतज्ञता हृदय की स्मृति है
- 9.10 कलियुग में रहना है
- 9.11 कवि सौंदर्य देखता है
- 9.12 कीट-पतंगों की तरह नहीं जीना चाहिए
- 9.13 कामना सरलता से लोभ बन जाती है
- 9.14 कायर दैव का भरोसा करता है
- 9.15 कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है
- 9.16 करुणा के नेत्र खुल जाएं तो
- 9.17 करुणा में शीतल अग्नि होती है
- 9.18 कौड़ी भी कीमती होती है
- 9.19 कष्ट हृदय की कसौटी है
- 9.20 क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें
- 9.21 क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है
- 9.22 क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है
- 9.23 कपट से धर्म नष्ट हो जाता है
- 9.24 कुपठित विद्या विष है
- 9.25 कार्य और सिद्धांत
- 9.26 कर्म से हीन बन जाना संन्यास नहीं है
- 9.27 कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है
- 9.28 कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो
- 9.29 कर्मशक्ति प्रदान करो
- 9.30 क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है
- 10 ख
- 11 ग
- 11.1 गोत्र और धन से शुद्धता नहीं
- 11.2 गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं
- 11.3 गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है
- 11.4 गुण ही गुण को परखते हैं
- 11.5 गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता
- 11.6 गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं
- 11.7 गुणों से गुरुता होती है
- 11.8 गुणों से मनुष्य साधु होता है
- 11.9 गलतियां सुधार कर ही आगे बढ़ते हैं
- 11.10 गुनाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता
- 11.11 गफलत में पड़ने पर फिसल जाएगी आज़ादी
- 12 घ
- 13 च
- 14 छ
- 15 टीका टिप्पणी और संदर्भ
- 16 संबंधित लेख
अ
अन्तर्दृष्टि
- हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। ~ चाणक्य
- संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। ~ भतृहरि
- किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। ~ रामचंद्र शुक्ल
- शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
अहिंसा- तलवार की धार
- अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। ~ महात्मा गांधी
- जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। ~ विदुर
- हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। ~ भगवतीचरण वर्मा
अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं
- अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
- शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
- वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र
- मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
- वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
- साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन
अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें
- अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
- आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
- यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
- अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात
अध्यापक संस्कृति के माली
- धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। ~ रवीन्द्र
- शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। ~ हितोपदेश
- मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। ~ पंचतंत्र
- अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ राधाकृष्णन
- अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। ~ महर्षि अरविन्द
अधिक प्रशंसा करना धोखा देना है
- जब प्रकृति को कोई कार्य संपन कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
- किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। ~ प्रसाद
- एक दूसरे को इस प्रकार प्रेम करो जैसे गौ अपने बछड़े को करती है। ~ अथर्ववेद
- मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी बात की रक्षा करे। क्योंकि बात बिगड़ जाने पर विनाश हो जाता है। ~ नारायण पंडित
अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा
- अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
- नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को दौड़ता है। ~ नारायण पंडित
- खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
- श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध
- श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। ~ अज्ञात
- अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। ~ गांधी
- संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
- धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। ~ अश्वघोष
- जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। ~ शंकराचार्य
अविश्वास अश्रद्धा का रूप है
- अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
- श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। ~ अज्ञेय
- मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न
- चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास
- यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। ~ रामचंद्र शुक्ल
अभ्यास के लिए अभिलाषा जरूरी
- ऐसी कोई वस्तु नहीं जो अभ्यास से प्राप्त न की जा सकती हो। कोई अभ्यास के बल पर आकाश में गति पा लेते हैं। कोई बाघ और सांपों को काबू कर लेते हैं। कोई तो अभ्यास से शब्द ब्रह्मा को मात दे देते हैं। ~ संत ज्ञानेश्वर
- अभ्यास करते करते जड़मति भी सुजान हो जाता है। रस्सी पर बार बार आने-जाने से पत्थर पर भी निशान बन जाता है। ~ वृंद
- अभ्यास के लिए अभिलाषा जरूरी है। जिस अभिलाषा में शक्ति नहीं, उसकी पूर्ति असंभव है। ~ गुलाब रत्न वाजपेयी
- जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है। ~ अज्ञात
अभिलाषाओं का मरना
- अधिक संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
- मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है और मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। ~ महात्मा गांधी
- जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
- विषयों की खोज में दुख है। उनकी प्राप्ति होने पर तृप्ति नहीं होती। उनका वियोग होने पर शोक होना निश्चित है। ~ अश्वघोष
- शूरवीर व्यक्ति जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते। ~ वाल्मीकी
अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती
- अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ तिरुवल्लुवर
- कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
- जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात
असंतुष्ट रहनेवाला निर्धन है
- अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जो जिसके हृदय में स्थित है, वह दूर होते हुए भी उसके समीप है, हृदय से निकला हुआ व्यक्ति समीप होने पर भी दूर ही है। ~ शौनकीयनीतिसार
- समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन
- महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है। ~ शेख सादी
अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें
- अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
- आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
- यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
- अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात
अति से अमृत भी विष बन जाता है
- अति से अमृत भी विष बन जाता है। ~ लोकोक्ति
- अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। ~ तिरुवल्लुवर
- अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
- बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव
अचल निष्ठा ही महान कार्यो की जननी है
- जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- अचल निष्ठा ही महान कार्यो की जननी है। ~ विवेकानंद
- मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद
- स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त
अचल निष्ठा ही महान कामों की जननी है
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
- केवल शरर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से निर्मल बनता है। ~ स्कंदपुराण
- भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद बसु
- अचल निष्ठा ही महान कामों की जननी है। ~ विवेकानंद
- जितना दिखाते हो जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
- परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
अहिंसा अच्छी चीज है
- प्रिय शब्द स्वयं कह कर दूसरों के शब्दों के प्रयोजन को हृदयंगम करना निर्मल स्वभाव वाले महान व्यक्तियों का सिद्धांत है। ~ तिरुवल्लुवर
- अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन और बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
- शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा है। ~ हाफिज
- उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण। ~ अज्ञात
- नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है
- यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं। ~ एकनाथ
- अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
- यह साढ़े तीन हाथ का छोटा सा शरीर रूपी मंदिर है। मूर्ख लोग इसमें प्रवेश नहीं कर सकते। इसी में निरंजन वास करता है। निर्मल होकर उसे खोजो। ~ मुनि रामसिंह
अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है
- अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है, दो देवता के समान हैं, तीन गांव के समान हैं, इससे अधिक तो केवल कोलाहल और भीड़ है। ~ थेर गाथा
- बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय
- बार-बार मोहग्रस्त होने वाला साधक न इस पार रहता है न उस पार। ~ आचारांग
- साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी। ~ आचारांगचूर्णि
- जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु
- हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
- जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास
- सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है। ~ अज्ञात
अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है
- पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
- समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना वृथा है, धनाढ्यों को धन देना तथा दिन के समय दिए का जला लेना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति
- अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
- विपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालो, तो भी कुछ नहीं होता। ~ मुनि रामसिंह
- गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
- सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद
अन्याय किसी के साथ मत कर करो
- नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
- शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ न प्रदान करें। ~ तोलस्तोय
- मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर
- सबसे प्रेम करो, कुछ पर विश्वास करो, अन्याय किसी के साथ मत करो। ~ शेक्सपियर
अक्रोध से क्रोध को जीतें
- कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष विपत्ति में भी नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
- वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके उससे कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुवर
- अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलनेवाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
- कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी
अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो
- जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
- सुखद मधुर वचन व्यक्त करने वालों के पास दुख कभी नहीं फटकता। ~ तिरुवल्लुवर
- मरना तो है ही, अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो। ~ यशपाल
- लोक-जीवन से विमुख होकर निर्वाण की कामना विडंबना है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा
- अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होमेस
- शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास
- जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद
अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा
- अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
- बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि है। ~ भल्लट भट्ट
- मूर्खों की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
- कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा। ~ विष्णु शर्मा
- मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठ कर बौद्धिक बल में परिणत होती है। ~ कर्तव्य दर्शन
अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है
- यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
- जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है, किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
- अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है। ~ डेल कार्नेगी
अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही
- समाज की अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही धर्म है। ~ सेठ गोविंददास
- अगर हममें शक्कर का गुण है तो समाज में हम ऐसे विलीन हो जाएंगे जैसे समुद्र में नदी या सिंधु में बिंदु। सिंधु में विलीन होने पर बिंदु स्वयं ही सिंधु हो जाता है, बिंदु नहीं रहता। ~ विनोबा भावे
- सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो। ~ अज्ञात
- तुम समाज के साथ ही ऊपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा। यह नितांत असंभव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके। ~ स्वामी रामतीर्थ
अनुभव बड़ा कि विद्वता
- अनुभव 20 वर्ष में जो सिखाता है, विद्वता एक वर्ष में उससे अधिक सिखा देती है। ~ रोगर ऐस्कम
- अपनी विद्वता को पॉकिट घड़ी की तरह अपनी जेब में रखो, और उसे केवल यह दिखाने के लिए कि तुम्हारे पास भी है, न बाहर निकालो और न पटको। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
- विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है। ~ एडीसन
- जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। ~ जॉन बनयन
- यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सबका सेवक बने। ~ नवविधान
अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है
- ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। ~ खलील जिब्रान
- दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। ~ तुकाराम
- तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। ~ सूत्रकृतांग
अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं
- अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। ~ कालिदास
- विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूदक
- जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। ~ जातक
- विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद
- विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
- जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दुख नहीं होता। ~ भागवत
- वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही सुकर्म है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
- बड़ा काम करने के लिए बड़ा हृदय होना चाहिए। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- महान लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें। ~ शेख सादी
- शिक्षित व्यक्ति यदि चरित्रहीन हो, तब क्या उसे विद्वान कहेंगे? कभी नहीं। ~ सुभाषचंद बोस
असली शिक्षा
- सीखे गए को भूल जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
- अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधार पर रहनेवाली, पर उससे भी परे की वस्तु है। ~ विनोबा
- मनुष्य जैसा नित्य यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवशिष्ठ
- सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं। ~ अज्ञात
अच्छा पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से बेहतर
- अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
आ
आलस्य पर विजय
- जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद
- जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
- ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
- जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
- मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात
आलस्य में दरिद्रता का वास
- आलस्य में दरिद्रता का वास है। मगर जो आलस्य नहीं करता उसके परिश्रम में कमला बसती हैं। ~ संत तिरुवल्लुवर
- आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता। ~ अज्ञात
- आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता। ~ प्रेमचंद
- आराम उनके प्रति विश्वासघात है जो इस संसार से चले गए हैं और जाते समय स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित रखने के लिए हमें दे गए हैं। यह उस ध्येय के प्रति विश्वासघात है जिसे हमने अपनाया है और जिसे प्राप्त करने की हमने प्रतिज्ञा की है। यह उन लाखों के प्रति विश्वासघात है जो कभी आराम नहीं करते। ~ जवाहरलाल नेहरू
आलोचना एक भयानक चिंगारी है
- समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। ~ कोल्टन
- गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। ~ डेल कारनेगी
- आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। ~ डेल कारनेगी
- जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
- प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। ~ पास्कल
- गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। ~ डेनियल
आलोचना मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है
- जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- कभी - कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
- आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
- निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्र
- किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। ~ वेदव्यास
- अमीर जो गरीबों के समान नम्र हैं और गरीब जो कि अमीरों के समान उदार हैं, वही ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। ~ शेख सादी
आलोचना से परे कोई भी नहीं है
- दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
- आलोचना से परे कोई भी नहीं है। न साहूकार और न मजदूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
- आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फर्क है। आलोचना करीब लाती है और बुराई दूर करती है। ~ प्रेमचंद
- कभी कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के घर भेज देती है। ~ अज्ञात
आतंकवाद और गोलकीपर
- आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
- आतंकवाद किसी असंभव चीज को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
- आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की जिंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
- किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी
आत्मविश्वास जैसा दोस्त कोई नहीं
- सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद
- राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
- धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी
- मन की दशा ठीक कर लोगे तो अपनी दशा स्वयं ठीक हो जाएगी। ~ सुधांशु जी महाराज
- बुरे विचार ही हमारी सुख-शांति के दुश्मन हैं। ~ स्वेट मॉर्डन
आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका
- आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। ~ डेल कारनेगी
- जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। ~ स्वेट मार्डेन
- आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। ~ टेनीसन
- जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर
- केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। ~ रस्किन
- जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
- शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। ~ वालफोर
आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण
- हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
- जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
- सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। ~ शिवानंद
- सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
- आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है
- जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। ~ शेख सादी
- आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ~ विवेकानंद
- मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
- यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। ~ अज्ञात
आघात सहन करे, वही संत
- परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ
- संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से
- जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। ~ तुकाराम
- महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। ~ देवीभागवत
आचरण के अभाव में ज्ञान
- आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
- मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
- तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है। ~ कालिदास
- पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
- जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं। ~ सूत्रकृतांग
आचरण रहित विचार
- आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
- विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। ~ वेदव्यास
- जो विद्या पुस्तक में रखी हो, मस्तिष्क में संचित हो और जो धन दूसरे के हाथ में चला गया हो, आवश्यकता पड़ने पर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही। ~ चाणक्य
- बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात
आपत्ति में जिसकी बुद्धि कार्यरत है, वही धीर है
- साधु को दिन में देखना, रात में देखना और तब साधु पर विश्वास करना। ~ रामकृष्ण परमहंस
- झूठ का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जाएगा। ~ लीमेन बीकर
- आपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। ~ सोमदेव
- निरन्तर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर
- जो पाप हमें विनम्र और विनीत बनाता है, वह बेहतर है उस पुण्य से जो हमें घमंडी और उद्धत बनाता है। ~ इब्न अताउल्लाह
आरोग्य परम लाभ है
- आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है और निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
- मनुष्य पराक्रम द्वारा दुखों से पार होता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
- परिश्रम और प्रतिभा आप ही आप आदमी को अकेला बना देती हैं। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाजत नहीं देती। ~ राजकमल चौधरी
- जो सागर में गहरे जाते हैं, उन्हें मोती मिलता है। जो छिछले पानी वाले किनारे अपनाते हैं, उनके हिससे शंख और सीप ही होते हैं। ~ शाह अब्दुल लतीफ
आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा
- दूब लघु है, तो उसे देवता के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता। ~ दयाराम सतसई
- जो लक्ष्मी प्राणों के देने पर भी नहीं प्राप्त होती, वह चंचल होती हुई भी नीतिज्ञ मनुष्य के पास अपने आप दौड़ी चली आती है। ~ नारायण पंडित
- जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है, जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा है। ~ शेख सादी
- अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
- आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा। ~ संस्कृत लोकोक्ति
आशा समुद्र के समान
- जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
- संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। ~ वेदव्यास
- मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता। ~ शेख सादी
- आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। ~ कारमेन सिल्वा
उ
उन्नति करने वाले पर ही आती है विपत्ति
- जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव
- कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
- आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। ~ अश्वघोष
- बिना विनय के विजय नहीं टिकती। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
उड़ने से बेहतर है झुकना
- जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
- आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। ~ चाणक्य
- आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
- उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात
उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है
- मनुष्य नित्य जैसा यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवासिष्ठ
- उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
- सही चीज के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
- गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं। ~ अज्ञात
इ
इस लोक में शील ही महानता का कारण है
- कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक
- जो कुछ न्यायसंगत है, उसे कहने के लिए हर समय उपयुक्त समय है। ~ सोफोक्लीज
- सही चीज के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी के पीछे ख्वार होते हैं और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
- शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
इच्छा प्रबल हो, तो पा लेंगे सब कुछ
- दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन
- महान उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए। ~ अनातोले फ्रांस
- उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। ~ वाल्मीकि
- जो जिस वस्तु को पाने की इच्छा करता है, वह उसको अवश्य ही प्राप्त कर लेता है यदि बीच में ही प्रयत्न को न छोड़ दे। ~ योगवाशिष्ठ
ई
ईश्वर जानता है, हमारे लिए क्या अच्छा है
- धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
- प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
- उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
- हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात
ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा
- ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
- विद्वान झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें। ~ विष्णु पुराण
- धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
- विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
- यह नहीं हो सकता कि मुर्गी का आधा हिस्सा पका लें और आधा हिस्सा अंडा देने के लिए छोड़ दें। ~ विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति
ईश्वर समझ कर स्वागत करो
- सत्य तथा असत्य के विवेक को वैराग्य का साधन कहते हैं। ~ श्री रमण गीता
- कोई भी आपके पास आए, ईश्वर समझ कर उसका स्वागत करो, परंतु उस समय अपने को भी अधम मत समझो। ~ रामतीर्थ
- शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा होता है। ~ हाफिज
- अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वसिष्ठ
- कोई भी मनुष्य केवल अपने लिए ही गुलाब और करेला उत्पन्न नहीं कर सकता। आनंद प्राप्ति के लिए तुम्हें उसे आपस में बांटना ही होगा। ~ चेस्टर चार्ल्स
ईश्वर सदैव सही होता
- दुख की अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्मों का दोष नहीं देखता। ~ नारायण पंडित
- केवल शरीर के मैल को उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से अत्यंत निर्मल हो जाता है। ~ स्कंद पुराण
- शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांसपेशियों में। ~ महात्मा गांधी
- मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है। ~ अब्राहम लिंकन
- प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ संत तुकाराम
ईश्वर तो भाव में है
- ईश्वर न तो काष्ठ में विद्यमान रहता है, न पाषाण में और न ही मिट्टी की मूर्ति में। वह तो भावों में निवास करता है। ~ चाणक्य
- श्रद्धा पत्नी है और सत्य यजमान। यह सर्वोत्तम जोड़ा है। श्रद्धा और सत्य के जोड़ से मनुष्य स्वर्ग जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण
- श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है। जहां धर्म का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं श्रद्धा टिकती है। ~ रामचंद्र शुक्ल
- हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन
ए
एक उन्माद है राजनीति
- राजनीति साधुओं के लिए नहीं है। ~ लोकमान्य तिलक
- राजनीति कुछ मनुष्यों के फायदे के लिए बहुत सारे व्यक्तियों के बीच पैदा किया जाने वाला उन्माद है। ~ एलेक्जेंडर पोप
- सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं। ~ जॉन अरबुथनट
- राजनीति वेश्या के समान अनेक प्रकार से व्यवहार में लाई जाती है। कहीं झूठी, कहीं सच, कहीं कठोर तो कहीं वह अत्यंत प्रिय भाषिणी होती है। कहीं हिंसक तो कहीं दयालु होती है। कहीं कृपण तो कहीं उदार होती है। कहीं अत्यधिक व्यय को अनिवार्य बना देती है, तो कहीं मामूली सी बचत को भी बहुत बड़ा मुद्दा बना लेती है। ~ भर्तृहरि
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ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, उसकी चेतना में है
- धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है। ~ विनोबा भावे
- धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। ~ वेदव्यास
- ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तू
- लोगों के छिपे हुए ऐब जाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत जरूर घट जाएगी, मगर तुम्हारा तो एतबार ही उठ जाएगा। ~ शेख सादी
- प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल
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औरों की शांति के लिए
- उद्देश्य में निष्ठा ही सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
- मिनटों की चिंता करो क्योंकि घंटे तो अपनी चिता स्वयं ही कर लेंगे। ~ लॉर्ड चेस्टरफिल्ड
- अपनी शांति के लिए तपस्या करना बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न-बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
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कुल की प्रशंसा करने से क्या?
- कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूदक
- शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट
- शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। ~ भर्तृहरि
- उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? ~ स्वयंभूदेव
- शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। ~ रामचंद्र शुक्ल
किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है
- किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। ~ जयशंकर प्रसाद
- दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट
- सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
- दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे। ~ दाग़ देहलवी
- सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए। ~ श्रीमां
किसी से आशा न करना श्रेष्ठ है
- जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है। ~ क्षेमेन्द्र
- ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। ~ शंकराचार्य
- संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
- राग और द्वेष से दूषित स्वभाव वाले लोगों के मन सज्जनों के विषय में भी विकारपूर्ण हो जाते हैं। ~ भारवि
- धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती
- कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक रखने का प्रयास करे। ~ महात्मा गांधी
- संस्कृति की चाहे कोई भी परिभाषा क्यो न हो, किंतु उसे व्यक्ति, समूह अथवा राष्ट्र की सीमाओ मे बांधना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है। ~ जवाहरलाल नेहरू
- जो संस्कृति महान होती है वह दूसरो की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा महान क्यो है? दूसरे प्रवाहो को अपने मे मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है। ~ साने गुरु
कौन धनी है, कौन निर्धन
- अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
- जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
- दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
- सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत)
कौन है स्थितिप्रज्ञ
- दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है। ~ वेदव्यास
- आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित। ~ आचारांग
- प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है। ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
- स्नेह शून्य सब वस्तुओं को अपने लिए मानते हैं। स्नेह संपन्न अपने शरीर को भी दूसरों का मानते हैं। ~ तिरुवललुवर
कला एक जीवन है
- कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव - राशि अथाह होती है। ~ मैक्सिम गोर्की
- मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। ~ रस्किन
- कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
- सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकल एंजिलो
- दुनिया में दो ही ताकते हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है। ~ नेपोलियन
कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है।
- कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है। ~ मेजिनी
- मानव की बहुमुखी भावनाओ का का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप मे फूट पड़ता है। ~ रस्किन
- कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है। ~ अज्ञात
- सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकेल एंजिलो
- कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
- संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुकरण है। ~ सेनेका
- सच्ची कला वही है जिसे सुनने या देखने से रसिक का मन प्रसन्न हो जाए और उसे एक नई दृष्टि भी मिले। ~ रामचंद्र शुक्ल
कृतज्ञता हृदय की स्मृति है
- कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ कहावत
- कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। ~ प्रेमचंद
- संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। ~ गोविंद दास
- काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। ~ कालिदास
कलियुग में रहना है
- याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
- कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। ~ विनोबा
- यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं। ~ प्रेमचंद
कवि सौंदर्य देखता है
- संसार के पदार्थों में घटनाएं तो सभी देखते हैं, लेकिन जिन आंखों से उन्हें कवि देखता है, वे निराली ही होती हैं। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
- कवि सौंदर्य देखता है। वह चाहे बर्हिजगत का हो चाहे अंतर्जगत का। जो केवल बाहरी सौंदर्य का ही वर्णन करता है, वह कवि है पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का भी वर्णन करता है, वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
- कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। ~ महात्मा गांधी
- पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं। ~ विनोबा भावे
कीट-पतंगों की तरह नहीं जीना चाहिए
- जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
- हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। ~ महात्मा गांधी
- जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
- दूसरे को चुप करने के लिए पहले चुप हो जाओ। ~ सेनेका
- प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
कामना सरलता से लोभ बन जाती है
- इतनी संक्षिप्तता मत रखो कि अस्पष्ट हो जाओ। ~ ट्रायोन एडवर्ड्स
- सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए। ~ अज्ञात
- कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईंबाबा
- मानव जीवन के लिए शिक्षा वैसी ही है, जैसे किसी संगमरमर खंड के लिए मूर्तिकला। ~ एडिसन
- अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव
कायर दैव का भरोसा करता है
- लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
- तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
- प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
- तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ मनुस्मृति
- जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है
- कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
- अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। ~ कालिदास
- विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक
- जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। ~ वेदव्यास
करुणा के नेत्र खुल जाएं तो
- जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
- वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। ~ महात्मा गांधी
- कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। ~ विनोबा
- कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
- क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता
करुणा में शीतल अग्नि होती है
- करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। ~ सुदर्शन
- कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। ~ विनोबा
- इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करनेवाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
- निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
कौड़ी भी कीमती होती है
- हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, ऐसा सोचने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
- अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए मैं स्वयं को सदा इच्छाओं की छाया से दूर संतोष की मीठी धूप में रखता हूँ। ~ ब्रह्माकुमार
- लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक- दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
- अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को कभी स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव
- जितने भर से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत
कष्ट हृदय की कसौटी है
- कष्ट हृदय की कसौटी है। ~ जयशंकर प्रसाद
- कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
- कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
- कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
- मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात
क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें
- क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें। आक्रोशी से भी कुशलतापूर्वक बोलें। ~ नारद परिव्राजकोपनिषद्
- निश्चित ही शत्रुयुक्त पुरुष की तभी जय होती है जब वैरी-पुरुष लोक से निंदित होता है। ~ युधिष्ठिर विजयम्
- धर्म तथा सत्कार्यों में अधिक व्यय के कारण जिसका कोष/खजाना क्षीण हो गया है, ऐसे व्यक्ति की निर्धनता भी शोभनीय होती है। ~ कामंदकीय नीतिसार
- अतीत का शोक मत कर, क्योंकि ये शोक मनुष्य को बहुत दूर पतन की ओर ले जाते हैं। ~ अथर्ववेद
- कांच के लिए मोती की हानि करना उचित नहीं है। ~ कथासरित्सागर
क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है
- तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। ~ वृंद
- अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। ~ संत तिरुवल्लुवर
- घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
- गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। ~ भगवान महावीर
- क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? ~ सेठ गोविंददास
क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है
- जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
- क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। ~ अज्ञात
- क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सज़ा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। ~ शरतचंद्र
- क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। ~ प्रेमचंद
कपट से धर्म नष्ट हो जाता है
- कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
- धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
- सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ जयशंकर प्रसाद
- दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट
कुपठित विद्या विष है
- अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महज धन है तथा हे सुंदरी! विद्या तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त कल्हण
- जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु ज़्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन ही होते हैं। ~ कल्हण
- कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। ~ अज्ञात
- सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का। ~ कालिदास
कार्य और सिद्धांत
- कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। ~ स्वामी विवेकानंद
- कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। ~ प्रेमचंद
- बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। ~ जवाहर लाल नेहरू
- शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। ~ लोकमान्य तिलक
कर्म से हीन बन जाना संन्यास नहीं है
- अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
- जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
- दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
- कर्म से हीन बन जाना संन्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही संन्यास है। ~ लक्ष्मी नारायण मिश्र
- सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत)
- सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है जो कड़ी से कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहे। ~ महात्मा गांधी
- संधियों का पालन तभी तक किया जाता है जब तक उनका हितों से सामंजस्य रहता है। ~ नेपोलियन प्रथम
- संसार ही युद्ध-क्षेत्र है, इससे पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ ? ~ जयशंकर प्रसाद
कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है
- विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
- जीव का अपवित्र मन ही नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ एक महात्मा
- उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है। ~ कालिदास
- जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती हे और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~ अज्ञात
कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो
- अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
- व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
- कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन
- दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ
कर्मशक्ति प्रदान करो
- हे परमेश्वर, हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- जिसके पास धन है, वही कुलीन है, पंडित है, बहुश्रुत, गुणज्ञ, सुवक्ता और वर्णन करने योग्य है। तात्पर्य यह कि धनी व्यक्ति में संसार के सारे गुण बसते हैं। ~ भर्तृहरि
- धन किसी व्यक्ति का नहीं होता, वह संपूर्ण समाज का होता है। ~ कठोपनिषद
- धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, योग्यता, साहस तथा दृढ़ निश्चय से फलता - फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। ~ विदुर
- मधुर वचन बोलने वालों के पास दारिद्रय कभी नहीं फटकता। ~ तिरुवल्लुवर
- मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसी की अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है
- अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योगवासिष्ठ
- श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
- हे परमेश्वर हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
- कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
ख
खुद को समझो
- विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। ~ महात्मा गांधी
- निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। ~ विनोबा
- आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। ~ अज्ञात
- यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। ~ यशपाल
- जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। ~ धम्मपदं
खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है
- कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
- साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन
- विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
- खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है
- खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। ~ शिवानंद
- सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
- सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। ~ रामतीर्थ
- सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
- सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेंसन
ग
गोत्र और धन से शुद्धता नहीं
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
- शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। ~ थेर गाथा
- लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
- विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार
- जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति
गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं
- बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष न कहे। ~ चाणक्यनीति
- ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता। ~ सुभाषित रत्नमाला
- जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग
- विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है
- शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। ~ जाबालदर्शनोपनिषद्
- अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
- गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात
- मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज
गुण ही गुण को परखते हैं
- जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य
- महान की उपासना करना स्वयं महान होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
- प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन
- गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात
गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता
- जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? ~ वाल्मीकि
- गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
- कांच भी कंचन का संग पा जाने पर मरकत मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार सज्जनों का साथ करने से मूर्ख भी विद्वान बन जाता है। ~ नारायण पंडित
- गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता
- कोई भी वस्तु महान का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष
गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं
- सज्जन स्वयं ही दूसरे के हित के लिए उद्यम करते हैं, उन्हें किसी के द्वारा याचना की प्रतीक्षा नहीं होती। ~ भतृहरि
- गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। कोयल ही वसंत जानती है, कौवा नहीं। ~ अज्ञात
- बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। ~ वेदव्यास
- जैसा सुख-दु:ख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख उसी के परिणामस्वरूप स्वयं को प्राप्त होता है। ~ अज्ञात
गुणों से गुरुता होती है
- रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात। ~ कालिदास
- उपकार के बदले में उपकार चाहने वाले मनुष्य को विपत्ति के रूप में फल मिलता है। ~ भास
- स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। ~ चाणक्य
- गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से। ~ भारवि
- गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है। ~ मनुस्मृति
गुणों से मनुष्य साधु होता है
- गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु होता है। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो। जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
- सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात
- गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊंचे आसन पर बैठने से नहीं। महल के कितने भी ऊंचे शिखर पर बैठने से भी कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। ~ चाणक्य
- गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है। ~ कालिदास
गलतियां सुधार कर ही आगे बढ़ते हैं
- गलतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। ~ महात्मा गांधी
- गलती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम गलती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। ~ अज्ञात
- गलती खुद अंधी होती है, लेकिन वह ऐसी संतान पैदा करती है जो देख सकती हे। ~ एक कहावत
- गलती करना उतना गलत नहीं जितना उन्हें दोहराना है। ~ प्रेमचंद
गुनाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता
- मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
- वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनिश लोकोक्ति
- हम ऐसा मानने की गलती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी
- भविष्य को वर्तमान खरीदता है। ~ जॉनसन
- मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। ~ सूत्र निपात
गफलत में पड़ने पर फिसल जाएगी आज़ादी
- आज़ादी एक ऐसी चीज है कि जिस वक्त आप गफलत में पड़ेंगे, वह फिसल जाएगी। वह जा सकती है, वह खतरे में पड़ सकती है। ~ जवाहरलाल नेहरू
- बिना कहे हित-संपादन करने का भाव ही मन में स्थित स्वामीभक्ति को प्रकट करता है। ~ भट्टनारायण
- संसार मन से भिन्न नहीं है। मन हृदय से भिन्न नहीं है। अत: समस्त कथा हृदय में ही समाप्त हो जाती है। ~ श्रीरमणगीता
घ
घृणा प्रेम से ही कम होती है
- गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
- जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
- इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
- हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात
च
चापलूसी का ज़हरीला प्याला
- चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। ~ प्रेमचंद
- मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। ~ हरिऔध
- घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। ~ सुदर्शन
- भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। ~ चाणक्य
चापलूसी कब आती है
- मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। ~ गुरु रामदास
- जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। ~ कहावत
- चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। ~ स्माइल्स
- चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। ~ डिजराइली
चैंपियन कौन?
- चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। ~ जैक डेंपसी
- खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। ~ पिएर द कु बर्तिन
- मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। ~ बिली जीन किंग
- एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। ~ पैट रिले
- हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। ~ ओलिवर गोल्डस्मिथ
चिंता शहद की मक्खी
- चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। ~ सुदर्शन
- यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। ~ रुडयार्ड किप्लिंग
- आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। ~ अज्ञात
- प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। ~ स्वामी शंकराचार्य
चिंता करके वक्त बर्बाद मत करो
- मनुष्य जिस बात का सत्य होना अधिक पसंद करता है, उसी में विश्वास करना अधिक पसंद करता है। ~ बेकन
- जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ
- जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी
- इस भीषण संसार में प्रेम करनेवाले हृदय को खो देना, सबसे बड़ी हानि है। ~ जयशंकर प्रसाद
चिन्तन करना भी एक कला है
- प्रेम संयम और तप से उत्पन होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन
- जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। ~ महात्मा गांधी
- जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किन्तु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है। ~ वेदव्यास
चतुराई बहुत बुरी चीज है
- जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम
- जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद
चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है
- एक स्वतंत्र राष्ट्र में प्रजातंत्र को कार्यरूप में परिणत करने के लिए पहली शर्त यह है कि उसके कानूनों का पालन हो। चाहे हम उन्हें पसंद करें या न करें। ~ कैलाशनाथ काटजू
- प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। ~ महात्मा गांधी
- चुनाव जनता को राजनैतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है। ~ जवाहरलाल नेहरू
- चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है, पर्व है-यह पानीपत नहीं, कुरुक्षेत्र नहीं, यह प्रयाग है-त्रिवेणी है, संगम है, सिंहस्थ है, कुम्भ है। ~ हरिभाई उपाध्याय
- ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात
- जो व्यक्ति प्रजा के पैर बनकर चलता है, उसे कभी कांटे नहीं चुभ सकते। ~ रामकुमार वर्मा
चले चलो, चले चलो
- बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो। ~ वेदवाणी
- जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ गौतम बुद्ध
- अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है। ~ डिजराइली
- ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर
चलने वाले के पैर में श्री देवी
- उस मनुष्य का विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना
- मानव केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
- अपने में अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
- स्थिर रहनेवाले के पैर में दुर्भाग्य देवी, चलने वाले के पैर में श्री देवी। ~ तमिल लोकोक्ति
छ
छोटी सी जिह्वा बड़े दोष करती है
- गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष
- दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना। ~ शेख सादी
- बोल वह है जो सुनने वालों को वशीभूत कर दे और न सुनने वालों में भी सुनने की इच्छा उत्पन्न कर दे। ~ तिरुवल्लुवर
- कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी
- मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माईल इबन् अबीबकर
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