"अहिंसा (सूक्तियाँ)": अवतरणों में अंतर
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| सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। | | सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। | ||
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| हिंसा से अशान्ति एवं पाशविकता का जन्म होता है ; अहिंसा से शान्ति, सद्भावना, मानवीयता एवं सामाजिकता का। जीव वैज्ञानिक दृष्टि से तो आदमी भी एक पशु है। अहिंसा की चेतना एवं भावना के कारण उसमें मानवीय एवं सामाजिक भावना का विकास हुआ है। | |||
| महावीर सरन जैन | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
07:32, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
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(1) | उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। | महात्मा गाँधी |
(2) | अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। | ईसा |
(3) | जब को व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर पूरा उतर जाता है तो अन्य व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर बैर भाव भूल जाता है। | पतंजलि |
(4) | हिंसा के मुकाबले में लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है. अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। | महात्मा गाँधी |
(5) | ‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती। | महात्मा गांधी |
(6) | अहिंसा अच्छी चीज़ है, लेकिन शत्रुहीन होना अच्छी बात है। | विमल मित्र |
(7) | अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। | |
(8) | अहिंसा ही धर्म है, वही ज़िंदगी का एक रास्ता है। | महात्मा गांधी |
(9) | अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। | महात्मा गांधी |
(10) | हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। | भगवतीचरण वर्मा |
(11) | क्रोध को क्षमा से, विरोध को अनुरोध से, घृणा को दया से, द्वेष को प्रेम से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतो। | दयानंद सरस्वती |
(12) | केवल पढ़-लिख लेने से कोई विद्वान नहीं होता। जो सत्य, तप, ज्ञान, अहिंसा, विद्वानों के प्रति श्रद्धा और सुशीलता को धारण करता है, वही सच्चा विद्वान है। | अज्ञात |
(13) | सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। | दशवैकालिक |
(14) | हिंसा से अशान्ति एवं पाशविकता का जन्म होता है ; अहिंसा से शान्ति, सद्भावना, मानवीयता एवं सामाजिकता का। जीव वैज्ञानिक दृष्टि से तो आदमी भी एक पशु है। अहिंसा की चेतना एवं भावना के कारण उसमें मानवीय एवं सामाजिक भावना का विकास हुआ है। | महावीर सरन जैन |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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