"अनमोल वचन 4": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
|||
पंक्ति 110: | पंक्ति 110: | ||
* जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ ~ [[कबीर]] | * जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ ~ [[कबीर]] | ||
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। ~ अज्ञात | ||
==अभय, निर्भय== | ==अभय, निर्भय== | ||
पंक्ति 288: | पंक्ति 286: | ||
* जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। ~ महावीर स्वामी | * जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। ~ महावीर स्वामी | ||
* सभी महान भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। ~ रस्किन | * सभी महान भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। ~ रस्किन | ||
==अभिलाषा== | ==अभिलाषा== | ||
* हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। ~ टैगोर | * हमारी अभिलाष जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है। ~ टैगोर | ||
पंक्ति 298: | पंक्ति 292: | ||
* कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। ~ खलील जिज्ञान | * कोई अभिलाष यहाँ अपूर्ण नहीं रहती। ~ खलील जिज्ञान | ||
* अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। ~ शेक्सपीयर | * अभिलाषा ही घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता। ~ शेक्सपीयर | ||
==अहिंसा== | ==अहिंसा== | ||
* उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। ~ महात्मा गाँधी | * उस जीवन को नष्ट करने का हमे कोई अधिकार नहीं जिसके बनाने की शक्ति हममे न हो। ~ महात्मा गाँधी | ||
पंक्ति 382: | पंक्ति 375: | ||
* झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | * झूठ, कपट, चोरी, व्यभिचार आदि दुराचारों की वृत्तियों के नष्ट हुए बिना एकाग्र होना कठिन है और चाट एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधी नहीं हो सकती। - मनु | ||
* मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | * मन की एकाग्रता मनुष्य की विजय शक्ति है, यह मनुष्य जीवन की समस्त शक्तियों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | ||
==एकांत== | ==एकांत== | ||
पंक्ति 438: | पंक्ति 430: | ||
* दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। ~ कृष्ण | * दुसरे का अपराध सहनकर अपराधी पर उपकार करना, यह क्षमा का गुण पृथ्वी से सीखना और पृथ्वी पर सदा परोपकार रत रहने वाले पर्वत और वृक्षों से परोपकार की दक्षता लेना। ~ कृष्ण | ||
* मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। ~ शरतचंद्र | * मागने से पूर्व अपने आप गले पड़कर क्षमा करने का मतलब है मनुष्य का अपमान करना। ~ शरतचंद्र | ||
==चतुराई== | ==चतुराई== | ||
* चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। ~ शेख सादी | * चतुराई दरबारियों के लिए गुण है, साधुओं के लिए दोष। ~ शेख सादी | ||
पंक्ति 507: | पंक्ति 497: | ||
* दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति ह्रदय में उठी हुई भावना तिरस्कार करती है, इसीलिए जब कोई तुम्हे उत्तेजित करता है तो यह तुम्हारे अन्दर की भावना ही है जो तुम्हे उत्तेजित करती है। - एपिक्टेतस | * दुर्वचन कहने वाला तिरस्कृत नहीं करता बल्कि दुर्वचन के प्रति ह्रदय में उठी हुई भावना तिरस्कार करती है, इसीलिए जब कोई तुम्हे उत्तेजित करता है तो यह तुम्हारे अन्दर की भावना ही है जो तुम्हे उत्तेजित करती है। - एपिक्टेतस | ||
* दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | * दुर्वचन का सामना हमें सहनशीलता से करना चाहिए। - महात्मा गाँधी | ||
==देश== | ==देश== | ||
पंक्ति 647: | पंक्ति 636: | ||
* एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। - मुण्डक उपनिषद् | * एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। - मुण्डक उपनिषद् | ||
* ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। - इमर्सन | * ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। - इमर्सन | ||
==सत्संग Satsang== | ==सत्संग Satsang== | ||
पंक्ति 678: | पंक्ति 665: | ||
* दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है। - विनोबा | * दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है। - विनोबा | ||
* धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | * धर्म परमेश्वर कि कल्पना कर मनुष्य को दुर्बल बना देता है, उसमे आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होने देता और उसकी स्वतंत्रता का अपरहण करता है। - नरेन्द्र देव | ||
</div> | |||
</div> | </div> | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }} |
09:59, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
---|