"विष्णु शर्मा के अनमोल वचन": अवतरणों में अंतर

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* कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा।   
* कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा।   
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।   
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।   
* उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं।   
* उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं।   
* संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं।   
* संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं।   
* जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है।   
* जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है।   
* अपना अहित करने वाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं।   
* अपना अहित करने वाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं।   
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करने वाले ही महान कहलाते हैं।   
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करने वाले ही महान् कहलाते हैं।   
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है।   
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है।   
* उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है।   
* उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है।   

11:25, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

विष्णु शर्मा के अनमोल वचन
  • कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा।
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।
  • उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं।
  • संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं।
  • जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है।
  • अपना अहित करने वाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं।
  • संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करने वाले ही महान् कहलाते हैं।
  • जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है।
  • उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है।
  • एक का कर्म देखकर दूसरा भी निंदनीय कर्म करता है। लोक गतानुगतिक होता है, वास्तविकता का विचार कर कार्य नहीं करता।


इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत



टीका टिप्पणी और संदर्भ


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