भारत के अनेकों धर्मों तथा परम्पराओं और उनका आपस में संमिश्रण ने विश्व के अनेकों स्थानों को भी प्रभावित किया है।
हजारों वर्षों से भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं, रीति-रिवाजों आदि में विविधता बनी रही है जो कि आज भी विद्यमान है, और यही अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की महान विशेषता है।
भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
प्रचलित मान्यता के अनुसार यह त्योहार हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है।
संस्कृत शब्द होलक्का से होली शब्द का जन्म हुआ है। वैदिकयुग में होलक्का को ऐसा अन्न माना जाता था, जो देवों का मुख्य रूप से खाद्य-पदार्थ था।
यह ब्रज का विशेष त्योहार है। फाल्गुन के माह रंगभरनी एकादशी से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो दौज तक चलते हैं। दौज को बल्देव (दाऊजी) में हुरंगा होता है।
होलिकापूजन पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुनपूर्णिमा) के दिन ही होता है। इसी दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है, तथा लोग इसी अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का आनन्द लेते हैं।
देश के कई अलग-अलग प्रान्तों में होली को अलग अलग नामों से जाना जाता है और बड़े ही निराले अंदाजों में मनाया जाता है। जैसे- डोल पूर्णिमा (पश्चिम बंगाल), कमान पंदिगाई (तमिलनाडु), होला मोहल्ला (पंजाब), कामना हब्बा (कर्नाटक), फगुआ (बिहार), रंगपंचमी (महाराष्ट्र), शिमगो (गोवा), धुलेंडी (हरियाणा) आदि। .... और पढ़ें
रक्षाबन्धन भारत में भाई-बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता हैं।
रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना।
भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है।
यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है।
रक्षाबंधन के दिन देश में कई स्थानों पर ब्राह्मण, पुरोहित भी अपने यजमान की समृद्धि हेतु उन्हें रक्षा बाँधते हैं, जिसकी उन्हें दक्षिणा भी मिलती है।
मुंबई में रक्षाबंधन पर्व को नारली (नारियल) पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को (नारियल) अर्पित किए जाते हैं। .... और पढ़ें