- राजनीति वेश्या के समान अनेक प्रकार से व्यवहार में लाई जाती है। कहीं झूठी, कहीं सच, कहीं कठोर तो कहीं वह अत्यंत प्रिय भाषिणी होती है। कहीं हिंसक तो कहीं दयालु होती है। कहीं कृपण तो कहीं उदार होती है। कहीं अत्यधिक व्यय को अनिवार्य बना देती है, तो कहीं मामूली सी बचत को भी बहुत बड़ा मुद्दा बना लेती है।
- शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है।
- कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते।
- जिसके पास धन है, वही कुलीन है, पंडित है, बहुश्रुत, गुणज्ञ, सुवक्ता और वर्णन करने योग्य है। तात्पर्य यह कि धनी व्यक्ति में संसार के सारे गुण बसते हैं।
- सज्जन स्वयं ही दूसरे के हित के लिए उद्यम करते हैं, उन्हें किसी के द्वारा याचना की प्रतीक्षा नहीं होती।
- निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते।
- दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।
- ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक् हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है।
- पहले विद्वता लोगों के क्लेश को दूर करने के लिए थी। कालांतर में वह विषयी लोगों के विषय सुख की प्राप्ति के लिए हो गई।
- जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता?
- क्षीण हुआ चंद्रमा पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते।
- अच्छी संगति बुद्धि के अंधकार को हरती है, वचनों को सत्य की धार से सींचती है, मान को बढ़ती है, पाप को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न रखती है और चारों ओर यश फैलाकर मनुष्यों को क्या क्या लाभ नहीं पहुंचाती?
- ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शौर्य का वाक संयम, ज्ञान का शांति और विनय तथा सार्मथ्य का आभूषण क्षमा है।
- संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात् सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है।
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