कला (सूक्तियाँ)

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क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है।
(2) कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है। फ्रायड
(3) मेरे पास दो रोटियां हों और पास में फूल बिकने आयें तो मैं एक रोटी बेचकर फूल ख़रीदना पसंद करूंगा। पेट ख़ाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता होगा तो मैं उसे गंवाऊगा नहीं। शेख सादी
(4) कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। रामधारी सिंह दिनकर
(5) कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(6) रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है| मुक्ता
(7) कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। रामधारी सिंह दिनकर
(8) कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। अज्ञात
(9) कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। डा. रामकुमार वर्मा
(10) जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती वह कला नहीं है। महात्मा गाँधी
(11) कला ईश्वर की परपौत्री है। दांते
(12) प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। लांगफैलो
(13) कला का अंतिम और सर्वोच्च ध्येय सौंदर्य है। गेटे
(14) मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। रस्किन
(15) साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) भर्तृहरि
(16) परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है। अल्फ्रेड ह्वाइटहेड
(17) प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है।
(18) सुनना एक कला है, इस कला के लिए कान और ध्यान दोनों चाहिए।
(19) व्यर्थ सुनने वालों से बचना भी एक कला है।
(20) मंजिल तो मिल ही जायेगी भटक कर ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकला ही नहीं करते।
(21) यदि तुम्हारे पास दो पैसे हों तो एक से रोटी और दुसरे से फूल, रोटी तुम्हे जीवन देगी और फूल तुम्हे जीवल जीने कि कला सिखाएगा। चीनी कहावत
(22) जीना भी एक कला है, बल्कि कला ही नहीं तपस्या है। हजारी प्रसाद द्विवेदी
(23) जब तक जीवन है, तब तक जीवन कला सीखते रहो। सेनेका
(24) सुनना एक कला है। इस कला के लिए कान और ध्यान दोनों चाहिए।
(25) नम्रता तन की शक्ति, जीतने की कला और शौर्य की पराकाष्ठा है। विनोबा
(26) हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः। (सोना (धन) ही कमाओ, कलाएँ निष्फल है) महाकवि माघ
(27) विपत्तियों को खोजने, उसे सर्वत्र प्राप्त करने, ग़लत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है। सर अर्नेस्ट वेम
(28) धर्म, कला और विज्ञान वास्तव में एक ही वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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