अनमोल वचन 14
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अनमोल वचन |
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विषय सूची
- 1 स
- 1.1 सुंदर दिखना
- 1.2 सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है
- 1.3 सौंदर्य पवित्रता में रहता है
- 1.4 संसार वीरों की चित्रशाला है
- 1.5 संसार को बाज़ार समझो
- 1.6 संसार और स्वप्न
- 1.7 संसार में रहो, संसार को अपने अंदर मत रखो
- 1.8 संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का
- 1.9 संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री
- 1.10 सत्याग्रह की तलवार
- 1.11 सच पर विश्वास रखो
- 1.12 सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता
- 1.13 सच्ची शिक्षा
- 1.14 सच्ची प्रशंसा जड़ थाम लेती है और फिर पनपने लगती
- 1.15 सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति
- 1.16 सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है
- 1.17 सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं
- 1.18 सत्य सदा का है
- 1.19 सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है
- 1.20 सत्य का पालन करो, सज्जन बनो
- 1.21 सत्य ही सबका मूल है
- 1.22 सत्य सदैव निराला होता है
- 1.23 सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं
- 1.24 सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है
- 1.25 सत्य के तीन भाग हैं
- 1.26 सज्जन का क्रोध स्थायी नहीं होता
- 1.27 सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते
- 1.28 सज्जनों का सत्संग
- 1.29 साहस और धैर्य
- 1.30 साहस के मुताबिक संकल्प
- 1.31 सरलता कुटिलों के प्रति नीति नहीं
- 1.32 सोच-विचार कर करो
- 1.33 सभी आभूषण भार हैं
- 1.34 संगत से चरित्र में परिवर्तन
- 1.35 संतोष में सर्वोत्तम सुख है
- 1.36 संतुष्ट मनवाला सदा सुखी रहता है
- 1.37 संतुलन की कला
- 1.38 सफलता में अनंत सजीवता होती है
- 1.39 सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है
- 1.40 सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है
- 1.41 सदाचार के आधार-अदम्यता, सुकर्म और पवित्रता
- 1.42 सुख दूसरों को सुखी करने में है
- 1.43 सुख के दिनों का स्मरण करने से दुख होता है
- 1.44 सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं
- 1.45 सेवा करके विज्ञापन मत करो
- 1.46 संगति बुद्धि के अंधकार को हरती
- 1.47 सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है
- 1.48 साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती
- 1.49 समग्र विश्व एक ही परिवार है
- 1.50 संकल्प और भावना दो पलड़े हैं
- 1.51 संकल्प बनाए छोटा-बड़ा
- 1.52 संकल्पित लोग इतिहास बदल सकते हैं
- 1.53 संवेदनशील बनो और निर्मल भी
- 1.54 सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है
- 1.55 सुकर्म के बीज से ही महान फल
- 1.56 सारा संसार ही कुटुंब है
- 1.57 सावधानी से करें धन का उपयोग
- 1.58 सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता
- 1.59 साथियों से शत्रु जैसा व्यवहार न करें
- 1.60 संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है
- 1.61 सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है
- 1.62 संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं
- 1.63 संयम से वैर नहीं बढ़ता है
- 1.64 समता का नाम ही योग है
- 1.65 सुदिन सबके लिए आते हैं
- 1.66 सुधारक के लिए पुरस्कार
- 1.67 समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है
- 1.68 समृद्धि व्यक्तित्व की देन है, भाग्य की नहीं
- 1.69 सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है
- 1.70 सहृदय भी थोड़े ही होते हैं
- 1.71 सम्मान और अपमान
- 1.72 स्त्री विश्वास चाहती है
- 1.73 स्टूडंट को सुख की कामना नहीं करनी चाहिए
- 1.74 स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन है
- 1.75 स्वाधीनता का पक्ष ईश्वर का पक्ष है
- 1.76 स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है
- 1.77 स्वार्थ बड़ा बलवान है
- 2 ह
- 2.1 हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति की तरह हो
- 2.2 हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है
- 2.3 हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता,
- 2.4 हृदय की पुस्तक
- 2.5 हर मन एक माणिक्य है
- 2.6 हर शरीर में सात ऋषि हैं
- 2.7 हर ढंग सच हो सकता है
- 2.8 हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है
- 2.9 हठी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं है
- 2.10 हंसी के अवसाद और विषाद
- 2.11 हिम्मत और हौसला से मुश्किल आसान
- 2.12 हम भी हो जाएं प्रेम के वश में
- 2.13 हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं
- 2.14 हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें
- 2.15 हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प
- 3 क्ष
- 4 ज्ञ
- 5 श्र
- 5.1 श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं
- 5.2 श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है
- 5.3 श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है
- 5.4 श्रद्धा में विवाद नहीं
- 5.5 श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है
- 5.6 श्रम से सब कार्य सिद्ध
- 5.7 श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है
- 5.8 श्रेष्ठ दान विद्या दान है
- 5.9 श्रेष्ठ वही है जो पराये को अपना ले
- 6 टीका टिप्पणी और संदर्भ
- 7 संबंधित लेख
स
सुंदर दिखना
- यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
- सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। ~ सुदर्शन
- जो अहित करने वाली चीज़ है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। ~ भगवतीचरण वर्मा
- सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। ~ अज्ञात
सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है
- सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी
- सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु
- जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
- सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर
सौंदर्य पवित्रता में रहता है
- सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद
- जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
- प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ
- सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद
- अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। ~ तुलसीदास
- जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। ~ जॉर्ज हरबर्ट
संसार वीरों की चित्रशाला है
- वीर कभी बड़े मौकों का इंतज़ार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
- शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं। ~ वाल्मीकि
- संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं। ~ जयशंकर प्रसाद
- बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी
संसार को बाज़ार समझो
- धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं। ~ चाणक्यनीति
- परोपकार संतों का सहज स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान हैं, जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ
- इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते। ~ विद्यापति
- समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है। ~ कल्हण
- जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुत: वे ही मुक्त पुरुष हैं। ~ आचारांग
संसार और स्वप्न
- संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है। ~ याज्ञवल्क्य
- आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
- अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है। ~ स्वामी रामतीर्थ
- जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है। ~ सुभाष चन्द्र बोस
- आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
संसार में रहो, संसार को अपने अंदर मत रखो
- दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
- जो श्रम नहीं करता, दूसरों के श्रम से जीवित रहता है, सबसे बड़ा हिंसक होता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का
- संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। ~ वेदव्यास
- आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
- इच्छाओं के सामने आते ही सभी प्रतिज्ञाएं ताक पर धरी रह जाती हैं। ~ अज्ञात
- आपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती हैं, वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
- आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद
- केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब जरूरतों से परे कर सकता है। ~ स्वामी रामतीरथ
संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री
- क्षीण हुआ चंद्रमा पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
- यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है। ~ मौलाना रूमी
- संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। उदान
- संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई
- आपत्ति काल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं। ~ अभिनंद
सत्याग्रह की तलवार
- सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। ~ महात्मा गांधी
- सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। ~ ईशावास्योपनिषद
- प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। ~ सत्य साईं बाबा
- सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। ~ विश्वामित्र
सच पर विश्वास रखो
- वह सत्य नहीं हे जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया-युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है। ~ देवीभागवत
- सच पर विश्वास रखो, सच ही बोलो, सच ही करो। असत्य जीतता क्यों न लगे, सत्य का मुकाबला नहीं कर सकता। ~ महात्मा गांधी
- प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों न निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ संत एम्ब्रोज
- सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है। ~ वेदव्यास
सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता
- सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी
- प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद
- प्रेम दुख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दुख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
- पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन
- प्रेम बिना तर्क का तर्क है। ~ शेक्सपियर
सच्ची शिक्षा
- सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है। ~ महात्मा गांधी
- संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, शिक्षा सबसे बढ़कर है। ~ निराला
- शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है। ~ अज्ञात
सच्ची प्रशंसा जड़ थाम लेती है और फिर पनपने लगती
- सच्ची प्रशंसा जड़ थाम लेती है और फिर पनपने लगती है। ~ एक कहावत
- प्रशंसा के वचन साहस बढ़ाने मेें अचूक औषधि का काम करते हैं। ~ सुदर्शन
- तारीफ की भूख जिसे लग जाती है, वह कभी तृप्त नहीं होता। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
- प्रशंसा अच्छे गुणो की छाया है, परंतु वह जिन गुणो की छाया है उन्हीं के अनुसार उनकी योग्यता भी होती है। ~ राम कुमार वर्मा
- अयोग्य लोगो की तारीफ छिपे हुए व्यंग्य के समान होती है। ~ हरिशंकर पर साई
सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति
- बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। ~ वेदव्यास
- ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी
- सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
- ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है। ~ भक्तिदर्शन
सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है
- सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेन्स
- दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता
- भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता
- परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ बाण भट्ट
- बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज
सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं
- सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जब हम सत्य को पाते हैं तब वह अपने सारे अभाव और अपूर्णता के बावजूद हमारी आत्मा को तृप्त करता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सत्य सर्वदा स्वाबलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है। ~ महात्मा गांधी
- सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सुत्तनिपात
सत्य सदा का है
- सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
- प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ सेंट एम्ब्रोज
- सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। ~ अरविंद
सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है
- सत्य वह नहीं हें जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आंतरिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- सभी दीपक नहीं हैं। बुद्धिमानों के लिए सत्य वचन रूपी दीपक ही दीपक है। ~ तिरुवल्लुवर
- अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटकरा हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न है। ~ अरविंद
- मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
- सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
- मनुष्य श्रद्धा से इस संसार-प्रवाह को आसानी से पार कर जाता है। ~ सुत्तनिपात
- दुनिया में रहते हुए भी सेवा-भाव से और सेवा के लिए ही जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
- अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। ~ नारायण पंडित
सत्य का पालन करो, सज्जन बनो
- सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं। ~ वेदव्यास
- सज्जनों के मन थोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। ~ बाणभट्ट
- प्रत्येक पर्वत पर जिस तरह माणिक्य नहीं होते और जिस तरह चंदन हर जगह नहीं पाया जाता, सज्जन लोग भी सब जगह नहीं होते। ~ अज्ञात
- जो सत्य का पालन करता है, वही सज्जन है। ~ तुकाराम
सत्य ही सबका मूल है
- सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। ~ दशवैकालिक
- वह सत्य नहीं है, जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दयायुक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है। ~ देवीभागवत
- सत्य ही सबका मूल है। सत्य से बढ़कर अन्य कोई परम पद नहीं है। ~ वाल्मीकि
- जैसा चित्त में है, वैसी वाणी है। जैसा वाणी में है, वैसी ही क्रियाएं हैं। सज्जनों के चित्त, वाणी और क्रिया में एकरूपता होती है। ~ अज्ञात
सत्य सदैव निराला होता है
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। ~ महोपनिषद
- सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। ~ महात्मा गांधी
- झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
- सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन
सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं
- साधारण सुधारक सदा उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनसे आगे जाते हैं। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
- पढ़ना सुलभ है पर उसका पालन करना अत्यंत दुर्लभ। ~ ललद्देश्वरी
- संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता। ~ सुकरात
- संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं, स्वस्थ बहाव है। ~ रांगेय राघव
- शब्द, मुहावरे और फैशन आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं। ~ बर्नार्ड बार्टन
सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है
- हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। ~ ऋग्वेद
- जो कुछ न्यायसंगत है, उसे कहने के लिए हर समय उपयुक्त समय है। ~ सोफोक्लीज़
- किसी की भी जीभ पकड़ी नहीं जा सकती। जिसको जैसा समझ में आए, वैसा कहता रहे। ~ तुलसीदास
- सत्य हज़ार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। ~ स्वामी विवेकानंद
- अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
सत्य के तीन भाग हैं
- सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। इसका सबसे बड़ा शत्रु पक्षपात और इसका अचल साथी नम्रता है। ~ कोल्टन
- सत्य का प्रत्येक उल्लंघन मानव समाज के स्वास्थ्य में छुरी भोंकने के समान है। ~ एमर्सन
- सत्य किरणों की किरण, सूर्यों का सूर्य, चंद्रमाओं का चंद्र और नक्षत्रों का नक्षत्र है। सत्य सब का सारभूत तत्व है। ~ डिकेंस
- सत्य के तीन भाग हैं-प्रथम जिज्ञासा, जो कि आराधना है। द्वितीय ज्ञान, जो कि उसकी उपस्थिति है। और तृतीय विश्वास, जो कि उसका उपभोग है। ~ बेकन
- मनुष्य को मरते दम तक सत्य बोलना चाहिए और शैतान को लज्जित करना चाहिए। ~ शेक्सपियर
सज्जन का क्रोध स्थायी नहीं होता
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
- जो भी घटित होता है उससे मैं संतुष्ट हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि परमात्मा द्वारा चयन मेरे द्वारा चयन से अधिक श्रेष्ठ है। ~ एपिक्टेटस
- कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं। ~ प्रेमचंद
- सज्जन अत्यंत क्रुद्ध होने पर भी मिलने-जुलने से मृदु हो जाते हैं, किंतु नीच नहीं। ~ अमृतवर्धन
सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी तरह सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
- परिचित गुणों का स्मरण रखने वाले उत्तम लोग सारे दोषों को स्मरण रखने में कुशल नहीं होते। ~ माघ
- आए हुए उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सज्जनों का कुलव्रत है। ~ विशाखदत्त
- सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र
- सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष
सज्जनों का सत्संग
- जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है। ~ प्रेमचंद
- सज्जनों का सत्संग ही स्वर्ग में निवास के समान है। ~ चाणक्य
- विद्या शील के अभाव में शोचनीय हो जाती है और द्वेष से अपवित्र हो जाती है। ~ क्षेमेन्द्र
- धर्मान्धो! सुनो, दूसरों के पाप गिनने से पहले अपने पापों को गिनो। ~ काजी नजरूल इस्लाम
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
साहस और धैर्य
- साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। ~ महात्मा गांधी
- साफ़ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
साहस के मुताबिक संकल्प
- जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी
- यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे
- हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। ~ ऋग्वेद
- निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वाले की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है। ~ भारवि
- सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन
सरलता कुटिलों के प्रति नीति नहीं
- देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं। ~ ऋग्वेद
- सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत
- युक्तिपूर्वक कार्य करनेवाले मनुष्य के कार्य भी असावधान हो जाने से नष्ट हो जाते हैं। ~ शिशुपालवध
- धन में आसक्त लोगों का न कोई गुरु होता है और न कोई बंधु। ~ नीतिशास्त्र
- चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक क़दम आगे नहीं चलता। ~ मार्कण्डेय पुराण
सोच-विचार कर करो
- कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। ~ शेक्सपियर
- हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
- अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत
- बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। ख़ाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट
सभी आभूषण भार हैं
- सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
संगत से चरित्र में परिवर्तन
- मनुष्य जिस संगति में रहता है, उसकी छाप उस पर पड़ती है। उसका निज का गुण छिप जाता है और वह संगति का गुण प्राप्त कर लेता है। ~ एकनाथ
- यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम
- मुझे बताओ कि तुम किनके साथ रहते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
- संगत से चरित्र में परिवर्तन नहीं होता। ढाल और तलवार सदा एक साथ रहती है, पर फिर भी एक घातक है और दूसरी रक्षक। दोनों का स्वभाव भिन्न है। ~ दयाराम
संतोष में सर्वोत्तम सुख है
- संतोष से सर्वोत्तम सुख प्राप्त होता है। ~ पतंजलि
- जो कुछ तुझे मिल गया है, उसी पर संतोष कर और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करता रह। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज
संतुष्ट मनवाला सदा सुखी रहता है
- मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। ~ वेदव्यास
- अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद्
- संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
संतुलन की कला
- जीने का सबसे अच्छा और सर्वाधिक सुरक्षित तरीका जीवन में संतुलन रखना है। आपने आसपास और अपने भीतर की ताकत को पहचानना है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं और इस तरह जीते हैं तो आप सचमुच एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। ~ यूरीपिडीज
- इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड
- मैं जिस चीज़ का स्वप्न देखता हूं वह है संतुलन की कला। ~ हेनरी मातीस
- इस दुनिया की बनावट इतनी दैवीय है कि यहां हममें से हर कोई अपने स्थान और समय में अन्य दूसरी चीजों से एक विरल संतुलन में अवस्थित है। ~ गाइथे
सफलता में अनंत सजीवता होती है
- जो हानि हो चुकी है उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है। ~ शेक्सपियर
- श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा भर बन सकता है। ~ अज्ञेय
- कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। ~ महात्मा गांधी
- सफलता में अनंत सजीवता होती है, विफलता में असह्य अशक्ति। ~ प्रेमचंद
सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है
- सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। ~ बालकृष्ण भट्ट
- जिसे धर्म की शक्ति पर, धर्मस्वरूप भगवान की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का दुख उसके पास नहीं फटक सकता। ~ रामचंद्र शुक्ल
- साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद
- मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
- वे विजयी हो सकते हैं जिन्हें विश्वास है कि वे कर सकते हैं। ~ एमर्सन
सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है
- दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। ~ शेख सादी
- हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
- संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य
- जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा
- सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। ~ वेदव्यास
- ठीक वक्त पर किया हुआ थोड़ा सा काम भी बहुत उपकारी होता है और समय बीतने पर किया हुआ महान उपकार भी व्यर्थ हो जाता है। ~ योग वशिष्ठ
- समय पुन: वापस न आने के लिए उड़ा चला जा रहा है। ~ वर्जिल
- जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ
सदाचार के आधार-अदम्यता, सुकर्म और पवित्रता
- वाणी का सर्वोत्तम गुण संक्षिप्तता है, चाहे वह सभासद में हो या वक्ता में। ~ सिसरो
- विश्व एक विशाल ग्रंथ है और जो कभी घर के बाहर नहीं जाते, वे उसका केवल एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं। ~ ऑगस्टीन
- सभी दीपक दीपक नहीं हैं। बुद्धिमानों के लिए सत्य वचन रूपी दीपक ही दीपक है। ~ तिरुवल्लुवर
- सदाचार के तीन आधार हैं- अदम्यता, सुकर्म और पवित्रता। ~ विद्यानंद 'विदेह'
सुख दूसरों को सुखी करने में है
- जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। ~ प्रेमचंद
- पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
- साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। ~ महात्मा गांधी
- दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हंसी हंसता है, वैसी ही हंसी, मस्ती बिखेरने वाली हंसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। ~ रामचरण महेंद्र
- साफ़ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
- सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन
सुख के दिनों का स्मरण करने से दुख होता है
- कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक
- हृदयहीन मनुष्य से उपासना नहीं होती। ~ शेख सादी
- मनुष्य को सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। ~ भगवतीचरण वर्मा
- संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी
- अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दुख कोई नहीं है। ~ दांते
सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं
- शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है। ~ आचार्य नारायण राम
- किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दुख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं। ~ कालिदास
- मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है। ~ वेदव्यास
- सब कुछ दूसरे के वश में होना दुख है और सब कुछ अपने वश में होना सुख है। ~ मनुस्मृति
- जो दुख अभी तक आया नहीं है, वह दूर किया जा सकता है। ~ योगसूत्रम
सेवा करके विज्ञापन मत करो
- जो स्वाभवत: सुंदर हैं, उनकी विकृति भी शोभादायक होती है। ~ भारवि
- सामने वाले आदमी में जिस गुण की कमी है, उस सद्गुण के प्रत्यक्ष दर्शन उसे अपने व्यवहार द्वारा करा देना ही उसकी बड़ी से बड़ी सेवा है। ~ अरुण्डेल
- सेवा करने वाले हाथ स्तुति करने वाले होठों की अपेक्षा अधिक पवित्र हैं। ~ सत्य साईं बाबा
- सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। ~ हनुमानप्रसाद पोद्दार
- सेवा छोटी है या बड़ी, इसकी कीमत नहीं है। किस भावना से, किस दृष्टि से वह की जा रही है, उसकी कीमत है। ~ विनोबा
संगति बुद्धि के अंधकार को हरती
- अच्छी संगति बुद्धि के अंधकार को हरती है, वचनों को सत्य की धार से सींचती है, मान को बढ़ती है, पाप को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न रखती है और चारों ओर यश फैलाकर मनुष्यों को क्या क्या लाभ नहीं पहुंचाती? ~ भर्तृहरि
- मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं। ~ एमर्सन
- संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन
- वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास
सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है
- जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। ~ प्रेमचंद
- पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
- साफ़ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
- सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन
- हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
- अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती
- अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है, जितनी कि किसी काम को सही ढंग से सीखने की इच्छा न होना। ~ बेंजामिन फ्रैंकलिन
- असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
- कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
- प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है। ~ लाला हरदयाल
समग्र विश्व एक ही परिवार है
- सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद्
- मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है ओर मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। ~ महात्मा गांधी
- समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है। ~ गुरजाडा अप्पाराव
संकल्प और भावना दो पलड़े हैं
- संकल्प और भावना जीवन-तखड़ी के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा। संकल्प कर्त्तव्य है और भावना कला। दोनों के समान समन्वय की आवश्यकता है। ~ वृंदावनलाल लाल वर्मा
- मनुष्य में शक्ति की कमी नहीं होती, संकल्प की कमी होती है। ~ मेरी विक्टर ह्युगो
- संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलेन
- ख़तरा हमारी छिपी हुई हिम्मतों की कुंजी है। खतरे में पड़कर हम भय की सीमाओं से आगे बढ़ जाते हैं। ~ प्रेमचंद
संकल्प बनाए छोटा-बड़ा
- संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होता है और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराता है। ~ जेम्स एलेन
- सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योगवासिष्ठ
- संकल्प शक्ति मानसिक शक्तियों का शिरोमणि है। ~ शिवानंद
संकल्पित लोग इतिहास बदल सकते हैं
- दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
- कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
- मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
- सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
संवेदनशील बनो और निर्मल भी
- ईश्वर के सामने शीष नवाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
- संवेदनशील बनो और निर्मल भी। प्रेमी बनो और पवित्र भी। ~ बायरन
- अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
- पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं। ~ एकनाथ
- हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता
सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है
- हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
- प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता है। ~ जैनेंद्र
- चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता। ~ कालिदास
- सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी
सुकर्म के बीज से ही महान फल
- सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। ~ कथासरित्सागर
- प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है। ~ चाणक्य
- द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा
- बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल
सारा संसार ही कुटुंब है
- यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
- संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
- उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
- जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
- सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
- सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। ~ विवेकानन्द
- सत्य सदा का है, सत्य का कोई अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
- सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन
- पापी का उपकार करो और पाप का प्रतिकार करो। ~ मैथिलीशरण गुप्त
सावधानी से करें धन का उपयोग
- किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
- प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
- वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
- अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वासिष्ठ
- श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता
- सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है। इसी धरती के गुण और स्वभाव के अनुसार हमारा स्वभाव बनता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। ~ अज्ञात
- उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा
- सब गुणों को दबाकर स्वभाव सबके सिर पर बैठ रहता है। ~ नारायण पंडित
साथियों से शत्रु जैसा व्यवहार न करें
- कोई भी मनुष्य केवल अपने लिए ही गुलाब और करमकल्ला उत्पन्न नहीं करता। आनंद प्राप्ति के लिए तुम्हें उसे आपस में बांटना ही होगा। ~ चेस्टर चार्ल्स
- आपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालें तो भी क्या होगा? ~ मानु रामसिंह
- अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग
- शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव होता है। ~ महात्मा गांधी
संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है
- संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है। वह विद्युत की भांति एकाएक उदय होती है और नष्ट हो जाती है। ~ दण्डी
- पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है। ~ रवीन्द्र
- विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच्चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की। ~ कालिदास
- बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। ~ अज्ञात
सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है
- जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
- प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता होती है। ~ जैनेन्द्र
- यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम
- सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है। ~ एडमंड स्पेंसर
संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं
- हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरुनानक
- संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मतत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य
- जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
- संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है। ~ रांगेय राघव
संयम से वैर नहीं बढ़ता है
- जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। ~ वेदव्यास
- सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। ~ दशवैकालिक
- जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। ~ कालिदास
- संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। ~ रांगेय राघव
- संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। ~ उदान
समता का नाम ही योग है
- समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं। ~ प्रेमचंद
- बड़ों की कुछ समता हम विनीत होकर ही पाते हैं। ~ रवींद्रनाथ
- आसक्ति का त्याग करते हुए सिद्बि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर कर्म करना चाहिए। समता का नाम ही योग है। ~ गीता
- समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो। ~ महात्मा गांधी
- पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता। ~ अज्ञात
सुदिन सबके लिए आते हैं
- हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं। ~ धम्मपद
- लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दुख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी
- सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात
- सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन
सुधारक के लिए पुरस्कार
- सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ पंक्ति का क्यों न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी। ~ विनोबा भावे
- उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं। ~ प्रेमचंद
- जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन में चले जाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है
- अच्छा आदमी सामान्यत: कोप करता ही नहीं। यदि कोप करता है तो बुरा नहीं सोचता। यदि बुरा सोचता है तो भी कहता नहीं। और यदि कह भी देता है तो लज्जित होता है। ~ सातवाहन
- वह सत्य सत्य नहीं है, जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया-युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है। ~ देवीभागवत
- समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है। ~ एच. मैशके
- हमीं संसार के ऋणी हैं, संसार हमारा नहीं। यह तो हमारा सौभाग्य है कि हमें संसार में कुछ करने का अवसर मिला। ~ विवेकानंद
समृद्धि व्यक्तित्व की देन है, भाग्य की नहीं
- अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है और आदमी है कि सर्वत्र उससे लोहा लेने के लिए कमर कसे रहता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- समृद्धि व्यक्तित्व की देन है, भाग्य की नहीं। ~ चाणक्य
- भोले बनने का नाटक न करो। तुम्हारे मन का मैल तुम्हारे चेहरे पर चमक रहा है। ~ अज्ञात
- सबसे अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है, भले ही वह कितना ही कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो। ~ डॉ. राधाकृष्णन
- कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। ~ अज्ञात
सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है
- प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता। ~ जयशंकर प्रसाद
- बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में दुख के कारणों को रोका करते हैं। ~ शेक्सपियर
- नियम में स्थिर रह कर मर जाना अच्छा है, न कि नियम से फिसल कर जीवन धारण करना। ~ अश्वघोष
- सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है। ~ सी. जे. वेबर
- किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए और न किसी प्रकार उसे सुनना ही चाहिए। ~ वेदव्यास
सहृदय भी थोड़े ही होते हैं
- संपन्नता अनेक प्रकार के भय और रुचिकर बातों से रहित नहीं होती, और निर्धनता सांत्वनाओं और आशाओं से रहित नहीं होती। ~ बकेन
- दुष्ट को, मूर्ख को और बहके हुए को समझा पाना बहुत कठिन है। ~ स्थानांग
- सहृदय भी थोड़े ही होते हैं। जो होते हैं वे भी थोड़ी देर के लिए ही। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- आवश्यक समय पर पहुंचाई गई सहायता अल्प होने पर भी उपयुक्त होती है। ~ तिरुवल्लुवर
सम्मान और अपमान
- जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तलवार का घाव भर जाता है, पर अपमान का घाव कभी नहीं भरता। ~ एक कहावत
- अपमानपूर्वक जीने से अच्छा है प्राण त्याग देना। प्राण त्यागने में कुछ समय का दुख होता है, लेकिन अपमानपूर्वक जीने में तो प्रतिदिन का दुख सहना होता है। ~ चाणक्य
- अपमान का भय कानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। ~ प्रेमचंद
- अपना मान तभी बना रह सकता है जब हम दूसरों के सम्मान की चिंता करें। ~ जैनेंद्र कुमार
स्त्री विश्वास चाहती है
- जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। ~ गीता
- स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। ~ प्रेमचंद
- स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
- संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। ~ लक्ष्मीनारायण लाल
- प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। ~ जैनेंद्र कुमार
स्टूडंट को सुख की कामना नहीं करनी चाहिए
- घाव पर बार-बार चोट लगती है, अन्न की कमी होने पर भूख बढ़ जाती है, विपत्ति में बैर बढ़ जाते हैं- विपत्तियों में अनर्थ बहुलता होती है। ~ अज्ञात
- सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख कहां? सुख चाहने वाले को विद्या और विद्यार्थी को सुख की कामना छोड़ देनी चाहिए। ~ चाणक्यनीति
- विदेश में बंधु का मिलना मरुस्थल में अमृत के निर्झर की प्राप्ति के समान होता है। ~ सोमदेव
- मनुष्यों की गुणों से रहित वाणी भी यदि उचित अवसर पर कही गई हो, तो शोभा देती है। ~ अज्ञात
स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन है
- स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन है और अस्वस्थ शरीर इसका कारागार। ~ बेकन
- शांति का सीधा संबंध हमारे हृदय से है, सहृदय होकर शांति की खोज करनी चाहिए। ~ चिदानंद सरस्वती
- गुण का सच्चा मानदण्ड मन में स्थित है। जिनके सत विचार हैं, वे सत्पुरुष हैं। ~ आइजक बिकरस्टाफ
- मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
स्वाधीनता का पक्ष ईश्वर का पक्ष है
- जो हुकूमत अपना गान करती है, वह चल नहीं सकती। ~ महात्मा गांधी
- स्वाधीनता का पक्ष ईश्वर का पक्ष है। ~ विलियम लियोल बाउल्स
- दयालुता से दयालुता और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स
- परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। ~ सुप्रभाचार्य
- अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है
- हृदयों को अर्पित करो पर उसे एक-दूसरे के संरक्षण में मत रखो। ~ खलील जिब्रान
- स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है। यही तो कारण है कि अधिकांश मनुष्य उससे डरते हैं। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शा
- एक का कर्म देखकर दूसरा भी निंदनीय कर्म करता है। लोक गतानुगतिक होता है, वास्तविकता का विचार कर कार्य नहीं करता। ~ विष्णु शर्मा
- प्रत्येक पदार्थ प्रति क्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और नित्य भी रहता है। ~ प्राकृत
- इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। ~ विद्यापति
- आप दूसरों को तभी उठा सकते हैं, जब आप स्वयं ऊपर उठ चुके हों। ~ शिवानंद
- दुख आ पड़ने पर मुस्कराओ। उसका सामना करके विजयी होने का साधन इसके समान और कोई नहीं है। ~ तिरुवल्लुवर
- स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है। ~ अज्ञात
स्वार्थ बड़ा बलवान है
- स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र। ~ वेदव्यास
- कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
- दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंक कर आगे बढ़ जाती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
- जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
- मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
- संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं। ~ इकबाल
- तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिज़ाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
- संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
- जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
- विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी
- मूर्ख सत्य का एक ही अंग देखता है और पंडित सत्य के सौ अंगों को देखता है। ~ थेरगाथा
- लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
- मनुष्य जब वस्त्र धारण कर लेता है तब ऐसा प्रतीत होता है मानो वह कभी नग्न रहा ही नहीं था। ~ जाबिर बिन सालब उत ताई
- हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। ~ ऋग्वेद
- भिक्षुओ! संसार में दो व्यक्ति दुर्लभ हैं। कौन से दो? तृप्त और तृप्तिदाता। ~ अंगुत्तरनिकाय
- मनुष्य के चरित्र का सबसे सही परिचय इससे मिलता है कि वह किन बातों पर हंसता है। ~ ओलिवर होम्स
- माता के समान सुख देने वाली कौन है? उत्तम विद्या। देने से क्या बढ़ती है? उत्तम विद्या। ~ शंकराचार्य
- नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित
ह
हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति की तरह हो
- एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। ~ अज्ञात
- जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत
- प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
- माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। ~ अज्ञात
- जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
- हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। ~ महात्मा गांधी
- चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। ~ समर्थ रामदास
- शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा करनेवाला कवच है। ~ थेर गाथा
हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है
- शांति जैसा तप नहीं है, संतोष से बढ़कर सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया से बढ़कर धर्मा नहीं है। ~ चाणक्यनीति
- वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं क्योंकि हृदयाकाश के केंद में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
- आपत्तिकाल में प्रकृति बदल देना अच्छा परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छा नहीं। ~ अभिनंद
- हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है। ~ मारकस आरेलियस
हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता,
- हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता, रोग और मूर्खता। वे वीर धन्य हैं जो इन तीनो के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं। वे मानवता के यथार्थ के उपासक और हमारे सच्चे सेनानायक हैं। ~ रामवृक्ष बेनीपुरी
- अपने शत्रु को कभी छोटा मत समझो। देखो, तिनको के बड़े ढेर को आग की छोटी सी चिंगारी भस्म कर देती है। ~ वृंद
- छोटे शत्रु को छोटे उपाय करके ही काबू मे लाना चाहिए। जैसे चूहे को सिंह नहीं बिल्ली ही मारती है। ~ माघ
- आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है। ~ एक कह ावत
हृदय की पुस्तक
- संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। ~ अश्वघोष
- ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। ~ तिरुवल्लुवर
- संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। ~ रामतीर्थ
- मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। ~ अरस्तू
- जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। ~ विवेकानन्द
- प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। ~ वाल्टेयर
हर मन एक माणिक्य है
- वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। ~ यशपाल
- समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। ~ शरतचंद्र
- शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। ~ वाल्मीकि
- हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। ~ शेख सादी
- जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। ~ वेदव्यास
- उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। ~ अज्ञात
- कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन, ये एक बार टूटने पर पहले जैसे नहीं रह जाते। अत: सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति
हर शरीर में सात ऋषि हैं
- प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। ~ यजुर्वेद
- अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। ~ कालिदास
- जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार वेद ही है। ~ साने गुरु जी
- अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। ~ रामतीर्थ
- उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। ~ अज्ञात
हर ढंग सच हो सकता है
- सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। ~ शिवानंद
- सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
- अपनी बुद्धि से साधु होना कहीं अच्छा है, बजाय कि पराई बुद्धि से राजा बनना। ~ उड़िया लोकोक्ति
- मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठकर बौद्धिक बल में परिणत होती है। ~ कर्त्तव्य दर्शन
हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है
- यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बंद कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं। ~ प्रेमचंद
- दूसरों की भूलों से बुद्धिमान लोग अपनी भूलें सुधारते हैं। ~ साइरस
- यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ शिक्षा दे सकती है। ~ डिकेंस
हठी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं है
- हठी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं है। ~ अश्वघोष
- गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। ~ भगिनी निवेदिता
- संकटों से घृणा की जाए, तो वे बड़े हो जाते हैं। ~ एडमंड बर्क
- मुक्ति शून्यता में नहीं, पूर्णता में है। पूर्णता सृजन करती है, ध्वंस नहीं करती। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हृदय की गांठों का खुल जाना ही ज्ञान है और ज्ञान होने पर ही मुक्ति होती है। ~ महोपनिषद्
हंसी के अवसाद और विषाद
- हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है - मेरे मन की ही नहीं, तुम्हारे मन की भी। ~ महात्मा गांधी
- मानव जाति को यूं तो अनेक उपहार मिले हैं, लेकिन हंसी उसे दिए गए सर्वोत्तम दिव्य उपहारों में से एक है। ~ अज्ञात
- हंसते तो सभी हैं। लेकिन जब मैं स्वयं पर हंसता हूं तो मेरा अपना बोझ हलका हो जाता है। ~ रवींद्रनाथ
- मनुष्य बराबर वालों की हंसी नहीं सह सकता, क्योंकि उनकी हंसी में ईर्ष्या, व्यंग्य और जलन होती है। ~ प्रेमचंद
- हमारे भीतर का अवसाद और विषाद हंसी के तेज झोकों से रुई के कतरों की भांति उड़ कर नष्ट हो जाता है। ~ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय
हिम्मत और हौसला से मुश्किल आसान
- हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आंधी और तूफ़ान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सार्मथ्य से बाहर है। ~ प्रेमचंद
- सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना है। उससे एक शब्द कहो और वह लापता हो जाएगी। ~ विवेकानंद
- जो मनुष्य भीरु है, वह छोटे-छोटे कार्यों को भी बहुत बड़े कार्य समझता है। और जो साहसी होता है, वह बहुत बड़े कार्यों को भी छोटे छोटे कार्य ही समझता है। ~ मुतनब्बी
- वह सच्चा साहसी है जो मनुष्यों पर आने वाली भारी से भारी विपत्ति को बुद्धिमत्तापूर्वक सह सकता है। ~ शेक्सपियर
हम भी हो जाएं प्रेम के वश में
- प्रेम सबको वश में कर लेता है। हमें भी प्रेम के वश में हो जाना चाहिए। ~ वर्जिल
- ज्ञानरूप, जानने योग्य और ज्ञान से प्राप्त होने वाला परमात्मा सबके हृदय में विराजमान है। ~ वेदव्यास
- जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इस बात की परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। ~ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
- संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
- श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं
- हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जो गुणज्ञ न हो, उसके सामने गुण नष्ट हो जाता है और कृतघ्न के साथ की गई उदारता नष्ट हो जाती है। ~ अज्ञात
- पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
- प्रत्येक व्यक्ति सब बातों में निपुण नहीं हो सकता, प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट उत्कृष्टता होती है। ~ यूरोपिटीज़
हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें
- मेरा मुकुट मेरे हृदय में है, न कि सिर पर। मेरा मुकुट न तो हीरों से जटित है और न ही रत्न जटित। मेरा मुकुट दिखाई भी नहीं देता। मेरे मुकुट का नाम है संतोष, और राजा लोग कदाचित ही इसे धारण करते हैं। ~ शेक्सपियर
- अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव
- जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत
- मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
- हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद
हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प
- हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
- समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति
- प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
- विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक
- चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता। ~ कालिदास
- सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रय ाजी
क्ष
क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है
- जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। ~ गौतम बुद्ध
- क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। ~ वेदव्यास
- क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है। ~ जयशंकर प्रसाद
- यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरों का काम है, परंतु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसे अवश्य दंड दो। ~ गुरु गोविंद सिंह
ज्ञ
ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण
- मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। ~ विनोबा
- अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है। ~ डिजराइली
- ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। ~ कन्फ्यूशस
- ज्ञान अनुभव की बेटी है। ~ कहावत
- ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
- जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
- लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
- शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट
- शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है। ~ क्षेमेंद्र
ज्ञान से मन शांत
- जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
- प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। ~ गौतम बुद्ध
- जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। ~ माघ
ज्ञानी राजा के लिए प्रजा संतान की तरह है
- हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदाई बल और कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
- योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
- मूर्ख राजा अपनी प्रजा पर शासन करता है, चतुर राजा उसकी शक्ति और सार्मथ्य का लाभ उठाता है और ज्ञानी राजा उसे संतान की तरह प्रेम करता है। ~ कल्हण
- डूबते सूरज के प्रति लोग अपने द्वार बंद कर लेते हैं। ~ शेक्सपियर
- यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी आने पर हिल उठे, तो फिर दोनों में अंतर ही क्या रहा। ~ कालिदास
श्र
श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं
- विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार
- वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। ~ विवेकानंद
- शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेदव्यास
- श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। ~ महात्मा गांधी
- जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं। ~ वेदव्यास
- सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सुत्तनिपात
- ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए, जो हित, मित और ग्राह्य हो। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
- गुण से रूप की, सदाचार से कुल की और सफलता से विद्या की शोभा होती है। ~ अज्ञात
- धीर पुरुषों का स्वभाव यह होता है कि वे आपत्ति के समय और भी दृढ़ हो जाते हैं। ~ सोमदेव
- उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर काम में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जॉर्ज सांतायना
- हर प्रशंसा की तुलना में बुरा समाचार दूर तक जाता है। ~ बाल्टासार ग्राशियन
- घर सेवा की सीढ़ी का पहला डंडा है। इसे छोड़कर तुम ऊपर नहीं जा सकते। ~ प्रेमचंद
श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है
- धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी, ये सब मनुष्य के साथ शील के आधार पर रहते हैं। ~ वेदव्यास
- कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन - इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
- ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शौर्य का वाक संयम, ज्ञान का शांति और विनय तथा सार्मथ्य का आभूषण क्षमा है। ~ भर्तृहरि
- श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है। ~ महात्मा गांधी
श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है
- थोड़े से निर्दोष शब्दों में कहना जो नहीं जानते, वे ही अनेक शब्दों को कहने के इच्छुक होंगे। ~ तिरुवल्लुवर
- अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य- इन पांच कारणों से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। ~ उत्तराध्ययन
- सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। ~ ऋग्वेद
- श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
श्रद्धा में विवाद नहीं
- श्रद्धा में विवाद का स्थान ही नहीं है। इसलिए कि एक की श्रद्धा दूसरे के काम नहीं आ सकती। ~ महात्मा गांधी
- अपढ़ भी संस्कारपूर्ण हो सकता है और विद्वान भी संस्कारहीन। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत
- जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार से सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है
- अन्य व्यक्ति को तुम कम से कम एक मुस्कान तो दे ही सकते हो - प्रेम और आनंद से भरी मुस्कान। यह उसके मन पर लदा चिंताओं का बोझ हटा देगी। ~ स्वामी रामदास
- वही प्रशंसनीय है जो विपत्ति में अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। ~ प्रकाशवर्ष
- सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
- श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्माण
श्रम से सब कार्य सिद्ध
- जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते। ~ ऋग्वेद
- श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं। ~ हितोपदेश
- श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद
- श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करनेवाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी
श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है
- जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
- श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
- उस मनुष्य पर विश्वास करो जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना
- जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। ~ वाल्मीकि
श्रेष्ठ दान विद्या दान है
- सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है। ~ रामतीर्थ
- विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद
- हम महान व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं जब हम नम्रता में महान होते हैं। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
- संसार के समस्त संबंध तथा पदार्थ क्षणिक हैं। केवल अपना कर्म ही शेष रहता है। ~ धनंजय
श्रेष्ठ वही है जो पराये को अपना ले
- सत्यप्रतिज्ञ श्रेष्ठ व्यक्ति को कटु वचन कह कर भी कौन क्षुब्ध कर सकता है? (कोई नहीं)। ~ माघ
- मुक्ति चाहने वाले विरक्त लोगों को भी अच्छे लोगों के प्रति पक्षपात होता है। ~ भारवि
- जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। ~ योगवासिष्ठ
- पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी
- वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को अपना बना ले। ~ विमल मित्र
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