चौखंडी स्तूप

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चौखंडी स्तूप वाराणसी, उत्तर प्रदेश से 13 किलोमीटर की दूरी पर सारनाथ में स्थित है। यह स्तूप बौद्ध समुदाय के लिए बहुत पूजनीय है। सारनाथ में प्रवेश करने पर सबसे पहले चौखंडी स्तूप दिखाई देता है। स्तूप में ईंट और रोड़ी का बड़ी मात्रा में उपयोग किया गया है। यह विशाल स्तूप चारों ओर से अष्टभुजीय मीनारों से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि यह स्तूप मूल रूप से मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था। धमेख स्तूप से आधा मील दक्षिण में यह स्तूप स्थित है, जो सारनाथ के अवशिष्ट स्मारकों से अलग है।

बुद्ध की निशानियाँ

चौखंडी स्तूप में गौतम बुद्ध से जुड़ी कई निशानियाँ हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्तूप का निर्माण मूलत: सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था। बोध गया से सारनाथ जाने के क्रम में गौतम बुद्ध इसी जगह पर अपने पहले शिष्य से मिले थे। इसलिए इस जगह को श्रद्धांजलि देने के लिए मंदिर बनवाया गया था। बाद में इस स्तूप को वर्तमान आकार में संशोधित किया गया। मुग़ल बादशाह हुमायूँ की यात्रा को श्रद्धांजलि देने के लिए इसमें एक आठ कोने वाला टॉवर जोड़ा गया। इस स्थान पर गौतम बुद्ध ने अपने पाँच शिष्यों को सबसे प्रथम उपदेश सुनाया था, जिसके स्मारक स्वरूप इस स्तूप का निर्माण हुआ।

ह्वेनसांग का वर्णन

प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस स्तूप की स्थिति सारनाथ से 0.8 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में बताई है, जो 91.44 मी. ऊँचा था।[1] इसकी पहचान चौखंडी स्तूप से ठीक प्रतीत होती है। इस स्तूप के ऊपर एक अष्टपार्श्वीय बुर्जी बनी हुई है। इसके उत्तरी दरवाज़े पर पड़े हुए पत्थर पर फ़ारसी में एक लेख उल्लिखित है, जिससे ज्ञात होता है कि टोडरमल के पुत्र गोवर्द्धन ने सन 1589 ई. (996 हिजरी) में इसे बनवाया था। लेख में वर्णित है कि हुमायूँ ने इस स्थान पर एक रात व्यतीत की थी, जिसकी यादगार में इस बुर्ज का निर्माण संभव हुआ।[2]

आकृति

इस स्तूप का 'चौखंडी' नाम पुराना जान पड़ता है। इसके आकार-प्रकार से ज्ञात होता है कि एक चौकोर कुर्सी पर ठोस ईंटों की क्रमश: घटती हुई तीन मंज़िले बनाई गई थीं। सबसे ऊपर मंज़िल की खुली छत पर संभवत: कोई प्रतिमा स्थापित थी। गुप्त काल में इस प्रकार के स्तूपों को 'त्रिमेधि स्तूप' कहते थे।[3] उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर यह निश्चित हो जाता है कि गुप्त काल में इस स्तूप का निर्माण हो चुका था।

उत्खनन

एलेक्जेंडर कनिंघम ने 1836 ई. में इस स्तूप में रखे समाधि चिह्नों की खोज में इसके केंद्रीय भाग में खुदाई की, इस खुदाई से उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु नहीं मिली। सन 1905 ई. में ओरटेल ने इसकी फिर से खुदाई की। उत्खनन में इन्हें कुछ मूर्तियाँ, स्तूप की अठकोनी चौकी और चार गज ऊँचे चबूतरे मिले। चबूतरे में प्रयुक्त ऊपर की ईंटें 12 इंच X10 इंच X2 ¾ इंच और 14 ¾ X10 इंच X2 ¾ इंच आकार की थीं, जबकि नीचे प्रयुक्त ईंटें 14 ½ इंच X 9 इंच X2 ½ इंच आकार की थीं।[4]

अन्य स्थल

यदि चौखंडी स्तूप घूमने के लिए जाना हो तो इसके आस-पास के पर्यटन स्थल भी अवश्य घूमना चाहिए। यहाँ से पास में ही अशोक स्तंभ, धमेख स्तूप, धर्माजिका स्तूप, धर्मचक्र स्तूप और मूलगंध कुटी मंदिर है।[5]

इन्हें भी देखें: सारनाथ, धमेख स्तूप एवं गौतम बुद्ध


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सेमुअल बील, चाइनीज एकाउंट्स् आफ् इंडिया, भाग 3, पृ. 297
  2. आर्कियोलाजिकल् सर्वे आफ् इंडिया, (वार्षिक रिपोर्ट), 1904-05, पृ. 74 जर्नल यू.पी.हि.सो., भाग 15, पृ. 55-64
  3. उल्लेखनीय है कि अहिच्छत्र की खुदाई में इसी प्रकार का एक ‘त्रिमेधि स्तूप’ या मंदिर मिला है जिसकी चोटी पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित था।
  4. आर्कियोलाजिकल् सर्वे आफ् इंडिया, (वार्षिक रिपोर्ट), 1904-05, पृ. 78
  5. चौखंडी स्तूप, सारनाथ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 अक्टूबर, 2013।

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