अतिथि (सूक्तियाँ)
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
---|---|---|
(1) | अतिथि जिसका अन्न खता है उसके पाप धुल जाते हैं। | अथर्ववेद |
(2) | यदि किसी को भी भूख प्यास नहीं लगती तो अतिथि सत्कार का अवसर कैसे मिलता। | विनोबा |
(3) | आवत ही हर्षे नहीं, नयनन नहीं सनेह, तुलसी वहां ना जाइये, कंचन बरसे मेह। | तुलसीदास |
(4) | ग्राहक हमारे लिए एक विशिष्ट अतिथि है। वह हम पर निर्भर नहीं है। हम ग्राहक पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में व्यवधान नहीं है - बल्कि वह इसका उद्देश्य है। हम ग्राहक की सेवा कर कोई उपकार नहीं कर रहे। वह सेवा का मौका देकर हम पर उपकार कर रहा है। | महात्मा गांधी |
(5) | जब घर में अतिथि हो तब चाहे अमृत ही क्यों न हो, अकेले नहीं पीना चाहिए। | तिरुवल्लुवर |
(6) | मछली एवं अतिथि, तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं। | बेंजामिन फ्रैंकलिन |
(7) | यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। | हितोपदेश |
(8) | यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। | हितोपदेश |
(9) | मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव' की संस्कृति अपनाओ! | |
(10) | स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन है और अस्वस्थ शरीर इसका कारागार। | बेकन |
(11) | अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। | कालिदास |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख