अनमोल वचन 15

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:52, 17 जुलाई 2017 का अवतरण (Text replacement - " शृंगार " to " श्रृंगार ")
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
अनमोल वचन
  • बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत
  • हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
  • अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है। ~ एक कहावत
  • कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है। ~ एक कहावत
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ चीनी कहावत
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • ग़लती खुद अंधी होती है, लेकिन वह ऐसी संतान पैदा करती है जो देख सकती हे। ~ एक कहावत
  • जब निष्कपट व्यवहार को दरवाज़े से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। ~ कहावत
  • स्थिर रहने वाले के पैर में दुर्भाग्य देवी, चलने वाले के पैर में श्री देवी। ~ तमिल लोकोक्ति
  • जहां विनय है, वहां भय नहीं है। ~ कन्नड़ लोकोक्ति
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन, यह एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति
  • वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज़्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
  • वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ एक चीनी कहावत
  • वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • बीमारी से भी कहीं ज़्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उड़िया लोकोक्ति
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन, ये एक बार टूटने पर पहले जैसे नहीं रहते। अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ राजस्थानी लोकोक्ति
  • दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। ~ संस्कृत लोकोक्ति
  • आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। ~ तुर्की लोकोक्ति
  • जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। ~ उडि़या लोकोक्ति
  • पराई बुद्धि से राजा होने से कहीं बेहतर है अपनी बुद्धि से पथिक होना। ~ लोकोक्ति
  • सच्ची प्रशंसा जड़ थाम लेती है और फिर पनपने लगती है। ~ एक कहावत
  • अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। ~ फारसी कहावत
  • तलवार का घाव भर जाता है, पर अपमान का घाव कभी नहीं भरता। ~ एक कहावत
  • आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है। ~ एक कहावत
  • ज्ञान अनुभव की बेटी है। ~ कहावत
  • सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई सन्न्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। ~ हाफिज
  • जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज
  • दु:ख में एक भी क्षण व्यतीत करना संसार के सारे सुखों से बढ़कर है। ~ हाफिज
  • शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा होता है। ~ हाफिज
  • हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात
  • कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
  • संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता। ~ सुकरात
  • जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात
  • ऐसी कोई वस्तु नहीं जो अभ्यास से प्राप्त न की जा सकती हो। कोई अभ्यास के बल पर आकाश में गति पा लेते हैं। कोई बाघ और सांपों को काबू कर लेते हैं। कोई तो अभ्यास से शब्द ब्रह्मा को मात दे देते हैं। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
  • चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है, पर्व है-यह पानीपत नहीं, कुरुक्षेत्र नहीं, यह प्रयाग है-त्रिवेणी है, संगम है, सिंहस्थ है, कुम्भ है। ~ हरिभाई उपाध्याय
  • तारीफ की भूख जिसे लग जाती है, वह कभी तृप्त नहीं होता। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
  • विपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालो, तो भी कुछ नहीं होता। ~ मुनि रामसिंह
  • यह साढ़े तीन हाथ का छोटा सा शरीर रूपी मंदिर है। मूर्ख लोग इसमें प्रवेश नहीं कर सकते। इसी में निरंजन वास करता है। निर्मल होकर उसे खोजो। ~ मुनि रामसिंह
  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • साधु को दिन में देखना, रात में देखना और तब साधु पर विश्वास करना। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • इच्छाओं के सामने आते ही बड़ी से बड़ी प्रतिज्ञाएं भी ताक पर धरी रह जाती हैं। समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है। ~ स्वामी रामकृष्ण
  • जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। ~ साने गुरुजी
  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
  • हमारी इच्छाओं और हार्दिक भावों का सीधा असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। ~ साने गुरुजी
  • जो संस्कृति महान् होती है वह दूसरो की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा महान् क्यों है? दूसरे प्रवाहों को अपने मे मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है। ~ साने गुरु
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दु:ख नहीं होता। ~ भागवत
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत
  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत
  • किसी महान् कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। ~ भागवत
  • यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ मनुस्मृति
  • गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है। ~ मनुस्मृति
  • जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
  • सब कुछ दूसरे के वश में होना दु:ख है और सब कुछ अपने वश में होना सुख है। ~ मनुस्मृति
  • जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। ~ विदुर
  • धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है। साहस, योग्यता, कीर्ति, वेग, दृढ़ निश्चय से बढ़ता है। चतुराई से फलता-फूलता है और संयम से सुरक्षित रहता है। ~ विदुर
  • दुष्टों का बल हिंसा है। राजाओं का बल दंड विधि है। स्त्रियों का बल सेवा है। लेकिन गुण वालों का बल क्षमा है। ~ विदुर
  • वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र
  • अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन और बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
  • झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। ~ विमल मित्र
  • जो सचमुच मनुष्य है, वह विदोह करेगा, अन्याय के प्रति विदोह। ~ विमल मित्र
  • प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
  • मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। ~ पंचतंत्र
  • अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली पुरुष भी अपमान सहन करता है। काठ के भीतर रहने वाली आग को लोग आसानी से लांघ जाते हैं, किंतु जलती हुई अग्नि को नहीं। ~ पंचतंत्र
  • सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले आते हैं। ~ पंचतंत्र
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूदक
  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक
  • जड़ कट जाने पर वृक्ष का पालन भला कैसे हो सकता है। ~ शूद्रक
  • अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। ~ शूद्रक
  • मनुष्य जैसा नित्य यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवशिष्ठ
  • जो जिस वस्तु को पाने की इच्छा करता है, वह उसको अवश्य ही प्राप्त कर लेता है यदि बीच में ही प्रयत्न को न छोड़ दे। ~ योग वसिष्ठ
  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वसिष्ठ
  • इस संसार में दु:ख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योग वसिष्ठ
  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योग वसिष्ठ
  • ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा-सा काम भी बहुत उपकारी है और समय बीतने पर किया हुआ महान् उपकार भी व्यर्थ हो जाता है। ~ योग वसिष्ठ
  • सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योग वसिष्ठ
  • जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। ~ योग वसिष्ठ
  • यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं। ~ एकनाथ
  • परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ
  • मनुष्य जिस संगति में रहता है, उसकी छाप उस पर पड़ती है। उसका निज का गुण छिप जाता है और वह संगति का गुण प्राप्त कर लेता है। ~ एकनाथ
  • पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं। ~ एकनाथ
  • दूब लघु है, तो उसे देवता के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता। ~ दयाराम सतसई
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सार्मथ्य किसमें है? ~ दयाराम सतसई
  • लघुता में प्रभुता का निवास है और प्रभुता, लघुता का भवन है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं भी नहीं पहनता। ~ दयाराम सतसई
  • जहां प्रीति होती है, वहां नीति नहीं ठहरती और जहां नीति होती है, वहां प्रीति नहीं रहती। ~ दयाराम सतसई
  • संगत से चरित्र में परिवर्तन नहीं होता। ढाल और तलवार सदा एक साथ रहती है, पर फिर भी एक घातक है और दूसरी रक्षक। दोनों का स्वभाव भिन्न है। ~ दयाराम सतसई
  • ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरु नानक
  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक
  • हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरु नानक
  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु होता है। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो। जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दु:ख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
  • अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
  • जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। ~ महादेवी वर्मा
  • जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। ~ महादेवी वर्मा
  • असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
  • संसार में झूठ पापों का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर
  • मनुष्य का आचरण ही बताता है कि दरअसल वह कैसा है। ~ काका कालेलकर
  • अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। ~ काका कालेलकर
  • चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास
  • मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। ~ गुरु रामदास
  • अन्य व्यक्ति को तुम कम से कम एक मुस्कान तो दे ही सकते हो - प्रेम और आनंद से भरी मुस्कान। यह उसके मन पर लदा चिंताओं का बोझ हटा देगी। ~ स्वामी रामदास
  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद
  • जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद
  • कोई भी वस्तु महान् का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष
  • अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
  • सज्जन अपना नाम नहीं लेते, श्रेष्ठ लोगों की यही आचार परंपरा है। ~ श्रीहर्ष
  • अपने उपायों से ही उपकारी का उपकार करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता। ~ श्रीहर्ष
  • सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है। ~ श्री हर्ष
  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
  • जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। ~ पतंजलि
  • संतोष से सर्वोत्तम सुख प्राप्त होता है। ~ पतंजलि
  • अपना मान तभी बना रह सकता है जब हम दूसरों के सम्मान की चिंता करें। ~ जैनेंद्र कुमार
  • प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। ~ जैनेंद्र कुमार
  • प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता होती है। ~ जैनेंद्र कुमार
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद्
  • हृदय की गांठों का खुल जाना ही ज्ञान है और ज्ञान होने पर ही मुक्ति होती है। ~ महोपनिषद्
  • जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद्
  • जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। ~ गीता
  • आसक्ति का त्याग करते हुए सिद्बि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर कर्म करना चाहिए। समता का नाम ही योग है। ~ गीता
  • कर्म में ही अधिकार है। उससे उत्पन्न होने वाले फलों में कदापि नहीं। कर्म का फल हेतु न हो। कर्म न करने का भी तुझे आग्रह न हो। ~ गीता
  • क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता
  • यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है। ~ उमर खैयाम
  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिज़ाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • जब तक तुम्हें अपने सम्मान और दूसरे का अपमान सुख देता है, तब तक तुम अपमानित ही होते रहोगे। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
  • सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
  • संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है। ~ सनाई
  • लोभ के कारण सत्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। ~ सनाई
  • रुपया और भय संसार में साथ ही आते हैं और साथ ही चले जाते हैं। ऐसा ज्ञात होता है मानो वे दोनों सगे भाई हैं। ~ सनाई
  • अगर अपने आपको किसी रंग में रंगना है तो प्रेम-रंग में रंग, क्योंकि इस रंग में रंगा हुआ मनुष्य मृत्यु के बंधनों से छूट जाता है। ~ सनाई
  • ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ होता है। इस तरह से लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन
  • भयंकर युद्ध में सैकड़ों दुर्जय शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपने आप को जीत लेना ही सबसे बड़ी विजय है। ~ उत्तराध्ययन
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन
  • सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन
  • प्रिय होने पर भी जो हितकर न हो, उसे न कहें। हितकर कहना ही अच्छा है, चाहे वह अत्यंत अप्रिय हो। ~ विष्णु पुराण
  • विद्वान् झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें। ~ विष्णु पुराण
  • जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है। ~ विष्णु पुराण
  • लोभ पाप का मूल है, द्वेष पाप का मूल है और मोह पाप का मूल है। ~ मज्झिम निकाय
  • मोह, लोभ का मूल है। लोभ, द्वेष का मूल है, और द्वेष पाप का मूल है। ~ मज्झिम निकाय
  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिम निकाय
  • भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। ~ मज्झिम निकाय
  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पति नीति सार
  • किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार
  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
  • ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए, जो हित, मित और ग्राह्य हो। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
  • व्यक्ति के अंतर्मन को परखना चाहिए। ~ दशवैकालिक
  • शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें। ~ दशवैकालिक
  • सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। ~ दशवैकालिक
  • अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
  • अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। ~ सूत्रकृतांग
  • जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं। ~ सूत्रकृतांग
  • यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सबका सेवक बने। ~ नवविधान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। ~ नवविधान
  • अपने पिता और अपनी माता का आदर कर और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर। ~ नवविधान
  • यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। ~ नवविधान
  • महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। ~ देवी भागवत
  • यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। ~ देवी भागवत
  • संपत्ति तो जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था, शोक और राग के बीज का उत्तम अंकुर है। इसके प्रभाव में अंधा हुआ मानव मुक्ति के मार्ग को नहीं देख सकता। ~ देवी भागवत
  • वह सत्य सत्य नहीं है, जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया-युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है। ~ देवी भागवत
  • बिना कहे हित-संपादन करने का भाव ही मन में स्थित स्वामीभक्ति को प्रकट करता है। ~ भट्टनारायण
  • विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। ~ भट्टनारायण
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। ~ भट्टनारायण
  • उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है। ~ भट्टनारायण
  • सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सुत्तनिपात
  • मनुष्य श्रद्धा से इस संसार-प्रवाह को आसानी से पार कर जाता है। ~ सुत्तनिपात
  • मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है। ~ मौलाना रूम
  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज़ है। ~ मौलाना रूम
  • प्रेम के कारण कड़ुवी वस्तुएं मीठी हो जाती हैं। प्रेम के स्वभाव के कारण तांबा सोना बन जाता है। ~ मौलाना रूम
  • आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित। ~ आचारांग
  • बार-बार मोहग्रस्त होने वाला साधक न इस पार रहता है न उस पार। ~ आचारांग
  • साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी। ~ आचारांग
  • जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग
  • जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह भी तू ही है। ~ आचारांग
  • प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है। ~ आचारांग
  • जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुत: वे ही मुक्त पुरुष हैं। ~ आचारांग
  • परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर
  • धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं। ~ रामधारी सिंह दिनकर
  • दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर
  • स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद
  • अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न। ~ अरविन्द
  • हर व्यक्ति में दिव्यता का कुछ अंश है, कुछ विशेषता है- शिक्षा का यही कार्य है कि वह इसको खोज निकाले। ~ अरविंद
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। ~ अरविन्द
  • समाज की अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही धर्म है। ~ सेठ गोविंददास
  • क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? ~ सेठ गोविंददास
  • अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता। ~ हिंदू पंच
  • अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। ~ हिंदू पंच, बलिदान अंक
  • जो सागर में गहरे जाते हैं, उन्हें मोती मिलता है। जो छिछले पानी वाले किनारे अपनाते हैं, उनके हिस्से शंख और सीप ही होते हैं। ~ शाह अब्दुल लतीफ
  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा करने वाला कवच है। ~ थेर गाथा
  • मूर्ख सत्य का एक ही अंग देखता है और पंडित सत्य के सौ अंगों को देखता है। ~ थेर गाथा
  • अतीत का शोक मत कर, क्योंकि ये शोक मनुष्य को बहुत दूर पतन की ओर ले जाते हैं। ~ अथर्ववेद
  • जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न संचित रहता है और जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं होता, वहां लक्ष्मी आप ही आकर विराजमान हो जाती है। ~ अथर्ववेद
  • एक दूसरे को इस प्रकार प्रेम करो जैसे गौ अपने बछड़े को करती है। ~ अथर्ववेद
  • प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। ~ यजुर्वेद
  • मेरे मन के संकल्प पूर्ण हों। मेरी वाणी सत्य व्यवहार वाली हो। ~ यजुर्वेद
  • मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। ~ सूत्र निपात
  • सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सूत्र निपात
  • प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, मोह प्रतिदान चाहता है। ~ अश्विनी कुमार दत्त
  • जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा। ~ श्रीमां
  • सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए। ~ श्रीमां
  • लघुता में प्रभुता निवास करती है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता। ~ दयाराम
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
  • हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। ~ भगवतीचरण वर्मा
  • प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। ~ भगवतीचरण वर्मा
  • जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव
  • धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में महान् धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव
  • उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव
  • धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ डॉ. राधाकृष्णन
  • धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है। ~ डॉ. राधाकृष्णन
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन् अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ डॉ. राधाकृष्णन
  • सबसे अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है, भले ही वह कितना ही कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो। ~ डॉ. राधाकृष्णन
  • जीव के दो स्वभाव हैं- अपना-पराया। स्व और पर दोनों में भी जीव के अस्तित्व होने के कारण दूसरों के प्रति बुरी बात करना अनुचित है। ~ पानुगंटि
  • जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है। ~ पानुगंटि
  • जीव के दो स्वभाव हैं- अपना-पराया। स्व और पर दोनों में भी जीव के अस्तित्व होने के कारण दूसरों के प्रति बुरी बात करना अनुचित है। ~ पानुगंटि
  • मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
  • भाग्य, पुरुषार्थ और काल तीनों संयुक्त हाकर मनुष्य को फल देते हैं। ~ मत्स्य पुराण
  • भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्य पुराण
  • जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी
  • जो मनुष्य भीरु है, वह छोटे-छोटे कार्यों को भी बहुत बड़े कार्य समझता है। और जो साहसी होता है, वह बहुत बड़े कार्यों को भी छोटे छोटे कार्य ही समझता है। ~ मुतनब्बी
  • नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। ~ मुतनव्बी
  • परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • उचित पाबंदी को निभाकर चलना उतना ही कल्याणकारी है, जितना अनुचित पाबंदी को तोड़कर चलना। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत् में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे
  • किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन नहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के हृदय प्रभावित नहीं कर सकते। ~ गेटे
  • लोगों की धर्म तथा अधर्म की प्रवृत्ति में कारण राजा ही होता है। ~ शुक्रनीति
  • जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति
  • जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है। ~ शुक्रनीति
  • वीरता कभी-कभी हृदय की कोमलता का भी दर्शन कराती है। ऐसी कोमलता देखकर सारी प्रकृति कोमल हो जाती है, ऐसी सुंदरता देख लोग माहित हो जाते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
  • वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं, क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
  • वीर कभी बड़े मौकों का इंतज़ार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
  • परिस्थितियां ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • वर्तमान तो कर्म चाहता है, स्वप्न नहीं, यथार्थ के दर्शन चाहता है। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • अपने सम्मान, सत्य और वास्तविकता के लिए प्राण देनेवाला ही वास्तविक विजेता होता है। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'
  • जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। ~ उदान
  • जिसमें न दंभ है, न अभिमान है, न लोभ है, न स्वार्थ है, न तृष्णा है और जो क्रोध से रहित तथा प्रशांत है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, और वही भिक्षु है। ~ उदान
  • सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। ~ ईशावास्योपनिषद
  • किसी के धन का लालच मत करो। ~ ईशावास्योपनिषद्
  • प्रेम दु:ख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दु:ख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
  • प्रशंसा अच्छे गुणों की छाया है, परंतु वह जिन गुणों की छाया है उन्हीं के अनुसार उनकी योग्यता भी होती है। ~ राम कुमार वर्मा
  • सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है। ~ रामकुमार वर्मा
  • जो व्यक्ति प्रजा के पैर बनकर चलता है, उसे कभी कांटे नहीं चुभ सकते। ~ रामकुमार वर्मा
  • श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा भर बन सकता है। ~ अज्ञेय
  • जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय
  • धर्म की रक्षक विद्या ही है क्योंकि विद्या से ही धर्म और अधर्म का बोध होता है। ~ दयानंद
  • क्रोध को क्षमा से, विरोध को अनुरोध से, घृणा को दया से, द्वेष को प्रेम से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतो। ~ दयानंद सरस्वती
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद सरस्वती
  • राजनीति साधुओं के लिए नहीं है। ~ लोकमान्य तिलक
  • शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। ~ लोकमान्य तिलक
  • यदि राजसत्ता अत्याचारी हो तो किसान का सीधा उत्तर है- जा, जा, तेरे ऐसे कितने राज मैंने मिट्टी में मिलते देखे हैं। ~ सरदार पटेल
  • विद्वान् तो बहुत होते हैं, लेकिन विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले कम होते हैं। ~ सरदार पटेल
  • पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। ~ भवभूति
  • कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
  • जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ न करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है। ~ भवभूति
  • संकल्प और भावना जीवन-तखड़ी के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा। संकल्प कर्त्तव्य है और भावना कला। दोनों के समान समन्वय की आवश्यकता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही सुकर्म है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। ~ गौतम बुद्ध
  • धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
  • जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • जैसे चक्की छत में जल भरता है वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ बुद्ध
  • जिसने अपने आप को वश मे कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार मे नहीं बदल सकते। ~ महात्मा बुद्ध
  • मूर्ख किसान का भी बीज अच्छे खेत में पड़ जाए, तो उसे अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है। ~ विशाखदत्त
  • आए हुए उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सज्जनों का कुलव्रत है। ~ विशाखदत्त
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • संसार के समस्त संबंध तथा पदार्थ क्षणिक हैं। केवल अपना कर्म ही शेष रहता है। ~ धनंजय
  • न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विग्न करता है। ~ धनंजय
  • पूर्ण मनुष्य वही है, जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी
  • पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
  • झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने वाला होता है। ~ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद
  • जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इस बात की परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। ~ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
  • तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है। ~ शिव
  • मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है। ~ शिव
  • न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। ~ चाणक्य नीति
  • जो विद्या केवल पुस्तकों में रहती है और जो धन दूसरे के हाथों में रहता है, समय पड़ने पर न वह विद्या है और न वह धन। ~ चाणक्य नीति
  • विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है। वह सदा फल देनेवाली है। परदेश में वह माता के समान है। विद्या को इसीलिए गुप्त धन कहा जाता है। ~ चाणक्य नीति
  • लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करने वाली है। ~ बल्लाल कवि
  • पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
  • मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठ कर बौद्धिक बल में परिणत होती है। ~ कर्तव्य दर्शन
  • दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे। ~ दाग़ देहलवी
  • संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं। ~ इक़बाल
  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • मनुष्य जब वस्त्र धारण कर लेता है तब ऐसा प्रतीत होता है मानो वह कभी नग्न रहा ही नहीं था। ~ जाबिर बिन सालब उत ताई
  • भिक्षुओ! संसार में दो व्यक्ति दुर्लभ हैं। कौन से दो? तृप्त और तृप्तिदाता। ~ अंगुत्तरनिकाय
  • प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
  • हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता, रोग और मूर्खता। वे वीर धन्य हैं जो इन तीनो के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं। वे मानवता के यथार्थ के उपासक और हमारे सच्चे सेनानायक हैं। ~ रामवृक्ष बेनीपुरी
  • शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शैनकीयनीतिसार
  • श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है। ~ स्वामी कृष्णानंद
  • संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
  • अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए मैं स्वयं को सदा इच्छाओं की छाया से दूर संतोष की मीठी धूप में रखता हूँ। ~ ब्रह्माकुमार
  • क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें। आक्रोशी से भी कुशलतापूर्वक बोलें। ~ नारद परिव्राजकोपनिषद्
  • निश्चित ही शत्रुयुक्त पुरुष की तभी जय होती है जब वैरी-पुरुष लोक से निंदित होता है। ~ युधिष्ठिर विजयम्
  • धर्म तथा सत्कार्यों में अधिक व्यय के कारण जिसका कोष/ख़ज़ाना क्षीण हो गया है, ऐसे व्यक्ति की निर्धनता भी शोभनीय होती है। ~ कामंदकीय नीतिसार
  • कांच के लिए मोती की हानि करना उचित नहीं है। ~ कथासरित्सागर
  • विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
  • जीव का अपवित्र मन ही नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ एक महात्मा
  • कर्म की परिसमाप्ति ज्ञान में और कर्म का मूल भक्ति अथवा संपूर्ण आत्मसमर्पण में है। ~ अरविंद घोष
  • धन किसी व्यक्ति का नहीं होता, वह संपूर्ण समाज का होता है। ~ कठोपनिषद
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
  • ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता। ~ सुभाषित रत्नमाला
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
  • शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। ~ जाबालदर्शनोपनिषद्
  • मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज
  • गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्ग संहिता
  • संसार मन से भिन्न नहीं है। मन हृदय से भिन्न नहीं है। अत: समस्त कथा हृदय में ही समाप्त हो जाती है। ~ श्रीरमणगीता
  • मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। ~ हरिऔध
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल- ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। ~ शिव पुराण
  • कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी
  • एक स्वतंत्र राष्ट्र में प्रजातंत्र को कार्यरूप में परिणत करने के लिए पहली शर्त यह है कि उसके क़ानूनों का पालन हो। चाहे हम उन्हें पसंद करें या न करें। ~ कैलाशनाथ काटजू
  • बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो। ~ वेदवाणी
  • उस मनुष्य का विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना
  • अपने में अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
  • गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। ~ कंचनलता सब्बरवाल
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ तत्वकथा
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। ~ गरुड़ पुराण
  • ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
  • यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी। ~ आदिभट्टल नारायणदासु
  • दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्ती बिखेरने वाली हँसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। ~ रामचरण महेंद्र
  • राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ जयप्रकाश नारायण
  • न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका
  • हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
  • जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि
  • अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं। ~ कौटिल्य
  • यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। ~ राउपाख
  • मनुष्य को अपनी करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है। ~ सोमेन दत्त
  • काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। ~ महाभारत
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए। ~ श्रीराम शर्मा आचार्य
  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। ~ प्रसाद
  • झूठ बोलने वाला कभी भी श्रेष्ठ पद को नहीं पा सकता। ~ उपनिषद
  • दुष्ट को, मूर्ख को और बहके हुए को समझा पाना बहुत कठिन है। ~ स्थानांग
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। ~ दुर्गा भागवत
  • जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं। ~ माखनलाल चतुर्वेदी
  • आलोचना से परे कोई भी नहीं है। न साहूकार और न मज़दूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
  • मन की दशा ठीक कर लोगे तो अपनी दशा स्वयं ठीक हो जाएगी। ~ सुधांशु जी महाराज
  • झूठ का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जाएगा। ~ लीमेन बीकर
  • जो पाप हमें विनम्र और विनीत बनाता है, वह बेहतर है उस पुण्य से जो हमें घमंडी और उद्धत बनाता है। ~ इब्न अताउल्लाह
  • परिश्रम और प्रतिभा आप ही आप आदमी को अकेला बना देती हैं। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाजत नहीं देती। ~ राजकमल चौधरी
  • प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है। ~ बालजाक
  • विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
  • यह नहीं हो सकता कि मुर्गी का आधा हिस्सा पका लें और आधा हिस्सा अंडा देने के लिए छोड़ दें। ~ विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति
  • सत्य तथा असत्य के विवेक को वैराग्य का साधन कहते हैं। ~ श्री रमण गीता
  • केवल शरर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से निर्मल बनता है। ~ स्कंद पुराण
  • श्रद्धा पत्नी है और सत्य यजमान। यह सर्वोत्तम जोड़ा है। श्रद्धा और सत्य के जोड़ से मनुष्य स्वर्ग जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण
  • उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? ~ स्वयंभूदेव
  • धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। ~ क़ुरान
  • जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। ~ रैदास
  • धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह
  • सज्जनों की संगति होने पर दुर्जनों में भी सुजनता आ ही जाती है। ~ क्षत्रचूड़ामणि
  • महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ नेहरू
  • महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य
  • कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर
  • भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता
  • प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है। ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
  • संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। ~ गोविंद दास
  • संसार के पदार्थों में घटनाएं तो सभी देखते हैं, लेकिन जिन आंखों से उन्हें कवि देखता है, वे निराली ही होती हैं। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
  • कवि सौंदर्य देखता है। वह चाहे बर्हिजगत का हो चाहे अंतर्जगत का। जो केवल बाहरी सौंदर्य का ही वर्णन करता है, वह कवि है पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का भी वर्णन करता है, वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
  • आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। ~ भगवद्गीता
  • जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
  • इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करनेवाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
  • निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम्
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
  • गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए। ~ कविता-कौमुदी
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। ~ कंचनलता सब्बरवाल
  • प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। ~ विमानवत्थु
  • प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है। ~ उमाशंकर जोशी
  • जिस प्रकार दीपक दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है और अपने स्वरूप को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार अंत:करण दूसरी वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है और अपने आप को भी। ~ संपूर्णानंद
  • सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
  • ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
  • यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी। ~ आदिभट्टल नारायणदासु
  • अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
  • मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न
  • अभ्यास के लिए अभिलाषा जरूरी है। जिस अभिलाषा में शक्ति नहीं, उसकी पूर्ति असंभव है। ~ गुलाब रत्न वाजपेयी
  • बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय
  • जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु
  • बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि है। ~ भल्लट भट्ट
  • अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होते हैं। मुंह में रखकर चूसने के लिए नहीं। ~ वक्रमुख
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दु:ख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दु:ख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दु:ख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत
  • सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब
  • समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है। ~ गुरुजाडा अप्पाराव
  • श्रद्धा उसी को मिलती है जो हृदय के गोत्र का होता है। ~ विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्ती बिखेरने वाली हँसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। ~ रामचरण महेंद्र
  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश रहती है। ~ रमण
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। ~ रामानंद
  • राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ जयप्रकाश नारायण
  • जंगली पशु खेल और मनोरंजन के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। ~ महाभारत
  • अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होते हैं। मुंह में रखकर चूसने के लिए नहीं। ~ वक्रमुख
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दु:ख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दु:ख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दु:ख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। ~ भानुदत्त
  • सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब
  • समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है। ~ गुरुजाडा अप्पाराव
  • न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका
  • जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि
  • अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं। ~ कौटिल्य
  • मनुष्य को अपनी करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है। ~ सोमेन दत्त
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • वृद्ध व्यक्ति जो झुककर चलता है, वह धरती में क्या खोजता चलता है? उसका जो यौवन रूपी रत्न खो गया है, उसे ही खोजता है कि शायद कहीं पर गिरा हुआ हो। ~ जायसी
  • विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा ग़लत है। ~ अभिनंद
  • श्रद्धा उसी को मिलती है जो हृदय के गोत्र का होता है। ~ विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। ~ विमानवत्थु
  • मूर्ख किसान का भी बीज अच्छे खेत में पड़ जाए, तो उसे अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है। ~ विशाखदत्त
  • प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है। ~ उमाशंकर जोशी
  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। ~ हाल सातवाहन
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। ~ कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। ~ भगदत्त जल्हण
  • धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरुवत होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शाड़ंधर-पद्धति
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। ~ दुर्गा भागवत
  • निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम्
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
  • गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए। ~ कविता-कौमुदी
  • दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में, दु:ख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
  • मनुष्य जिस समय पशु के समान आचरण करता है, उस समय वह पशुओ से भी नीचे गिर जाता है। ~ रवींद्र नाथ
  • इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। ~ अलंकारसर्वस्व
  • हिम्मत से रहित व्यक्ति का रद्दी के काग़ज़ की तरह कोई आदर नहीं करता। ~ कृपाराम
  • रूप में अनुरक्त मत हों। उधर जाते हुए नेत्रों को रोकें। रूप में आसक्त पतंगे को दीपक में जलते हुए देखें। ~ देवसेन
  • कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। ~ ठाकुर गोपालशरण सिंह
  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। ~ हाल सातवाहन
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। ~ कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। ~ भगदत्त जल्हण
  • धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरुवत होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शाड़ंधर-पद्धति
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ तत्वकथा
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। ~ गरुड़ पुराण
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। ~ बाण
  • विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान् और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। ~ इत्तिवृत्तक
  • मैं महान् उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। ~ गुरुदत्त
  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना काम करना ही चाहिए। ~ अपभ्रंश से
  • धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी
  • सज्जनों की संगति होने पर दुर्जनों में भी सुजनता आ ही जाती है। ~ क्षत्रचूड़ामणि
  • किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू
  • योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। ~ मोहन राकेश
  • किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। ~ लाला लाजपतराय
  • दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस
  • संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन, दूसरे, सत्य- शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
  • स्वभावत : कुटिल पुरुष द्वारा किया गया विद्या का अभ्यास दुष्टता को बढ़ाने वाला ही होता है। ~ मुरारि
  • अपनी डिगनिटी को बनाए रखने के लिए मैं सदा संतोष की धूप में खड़ा रहता हूं और स्वयं को इच्छाओं की छाया से दूर रखता हूं। ~ ब्रह्माकुमार
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह
  • राजा सत्य है, राजा धर्म है, राजा कुलीन पुरुषों का कुल है, राजा ही माता और पिता है तथा राजा समस्त मानवों का हित साधन करने वाला है। ~ केशवदास
  • राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ जयप्रकाश नारायण
  • गूंगा कौन है? जो समयानुसार प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष
  • भली प्रकार प्रयुक्त की गई वाणी को विद्वानों ने कामनापूर्ण करनेवाली कामधेनु कहा है। ~ दण्डी
  • 'आज' निश्चित है, जो 'कल' है, वह अनिश्चित है। ~ शतपथ
  • प्रकृति-पुरुष के संयोग से ब्रह्मांड की रचना ही रासलीला है। इस रासलीला में परमात्मा की सहचरी माया या प्रकृति ही राधा है। ~ गंगेश्वरानंद
  • गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। ~ सिस्टर निवेदिता
  • धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • केवल शरीर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से उत्पन्न होता है। ~ स्कंदपुराण
  • पक्षपात, गुणों को दोष और दोष को गुण बना देता है। ~ राजशेखर
  • जो अहित करने वाली चीज़ है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। ~ भगवतीचरण वर्मा
  • सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी
  • इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते। ~ विद्यापति
  • संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है। ~ याज्ञवल्क्य
  • सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। ~ विश्वामित्र
  • प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों न निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ संत एम्ब्रोज
  • संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, शिक्षा सबसे बढ़कर है। ~ निराला
  • अयोग्य लोगो की तारीफ छिपे हुए व्यंग्य के समान होती है। ~ हरिशंकर परसाई
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
  • ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है। ~ भक्तिदर्शन
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेन्स
  • दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता
  • बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज
  • झूठा नाता जगत् का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई
  • महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य
  • कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर
  • भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता
  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश रहती है। ~ रमण
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। ~ रामानंद
  • इस संसार में दो तरह के व्यक्ति दुर्लभ हैं, कौन से दो? उपकारी और कृतज्ञ। ~ अंगुत्तरनिकाय
  • धन में आसक्त लोगों का न कोई गुरु होता है और न कोई बंधु। ~ नीतिशास्त्र
  • समय रूपी अमृत बहता जा रहा है, संभव है प्यास बुझाने का अवसर तुम्हें फिर न मिले। ~ शंकर कुरुप
  • गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। ~ भगिनी निवेदिता
  • जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। ~ मुक्तिकोपनिषद
  • वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान् और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज
  • पढ़ना सुलभ है पर उसका पालन करना अत्यंत दुर्लभ। ~ ललद्देश्वरी
  • सज्जन अत्यंत क्रुद्ध होने पर भी मिलने-जुलने से मृदु हो जाते हैं, किंतु नीच नहीं। ~ अमृतवर्धन
  • धर्मान्धो! सुनो, दूसरों के पाप गिनने से पहले अपने पापों को गिनो। ~ क़ाज़ी नजरूल इस्लाम
  • सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत
  • चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक क़दम आगे नहीं चलता। ~ मार्कण्डेय पुराण
  • साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद
  • सदाचार के तीन आधार हैं- अदम्यता, सुकर्म और पवित्रता। ~ विद्यानंद 'विदेह'
  • लज्जा और संकोच करने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्ध्मिग्ग
  • दु:ख, सुख के साथ ही निरंतर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता
  • जो व्यक्ति मूर्ख के सामने विद्वान् दिखने की कामना करते हैं, वे विद्वानों के सामने मूर्ख लगते हैं। ~ क्विन्टिलियन
  • विश्वास लाख हथौड़ी की चोट से भी नहीं टूटता। नीलकंठ के समान विष पान करके भी विश्वास सदा अजर अमर है। ~ अमृतलाल नागर
  • विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद
  • संवेदनशील बनो और निर्मल भी। प्रेमी बनो और पवित्र भी। ~ बायरन
  • दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हंसी हंसता है, वैसी ही हंसी, मस्ती बिखेरने वाली हंसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। ~ रामचरण महेंद्र
  • मनुष्य को सुख और दु:ख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। ~ भगवतीचरण वर्मा
  • शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है। ~ आचार्य नारायण राम
  • जो दु:ख अभी तक आया नहीं है, वह दूर किया जा सकता है। ~ योगसूत्रम
  • सामने वाले आदमी में जिस गुण की कमी है, उस सद्गुण के प्रत्यक्ष दर्शन उसे अपने व्यवहार द्वारा करा देना ही उसकी बड़ी से बड़ी सेवा है। ~ अरुण्डेल
  • वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास
  • कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
  • प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है। ~ लाला हरदयाल
  • समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है। ~ गुरुजाडा अप्पाराव
  • हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
  • सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान् फल देता है। ~ कथासरित्सागर
  • पापी का उपकार करो और पाप का प्रतिकार करो। ~ मैथिलीशरण गुप्त
  • आपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालें तो भी क्या होगा? ~ मानु रामसिंह
  • संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है। वह विद्युत की भांति एकाएक उदय होती है और नष्ट हो जाती है। ~ दण्डी
  • लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दु:ख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी
  • सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन
  • अच्छा आदमी सामान्यत: कोप करता ही नहीं। यदि कोप करता है तो बुरा नहीं सोचता। यदि बुरा सोचता है तो भी कहता नहीं। और यदि कह भी देता है तो लज्जित होता है। ~ सातवाहन
  • समस्या का हल विधि नहीं करती, मनुष्य करता है। ~ एच. मैशके
  • सभ्य जंगली सबसे बुरा जंगली होता है। ~ सी. जे. वेबर
  • शांति का सीधा संबंध हमारे हृदय से है, सहृदय होकर शांति की खोज करनी चाहिए। ~ चिदानंद सरस्वती
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। ~ सुप्रभाचार्य
  • प्रत्येक पदार्थ प्रति क्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और नित्य भी रहता है। ~ प्राकृत
  • इस संसार को बाज़ार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। ~ विद्यापति
  • संकटों से घृणा की जाए, तो वे बड़े हो जाते हैं। ~ एडमंड बर्क
  • हमारे भीतर का अवसाद और विषाद हंसी के तेज झोकों से रुई के कतरों की भांति उड़ कर नष्ट हो जाता है। ~ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय
  • प्रत्येक व्यक्ति सब बातों में निपुण नहीं हो सकता, प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट उत्कृष्टता होती है। ~ यूरोपिटीज़
  • पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
  • सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है। ~ अतिरात्रयाजी
  • यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरों का काम है, परंतु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसे अवश्य दंड दो। ~ गुरु गोविंद सिंह
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
  • उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर काम में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जॉर्ज सांतायना
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। ~ मुक्तिकोपनिषद्
  • महानता जिस क्षुद्रता में पलती है, वह क्षुद्रता कभी महानता को समझती नहीं। ~ रांगेय राघव
  • संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है। ~ रांगेय राघव
  • वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता। सत्य, असत्य, साधु, असाधु ये सब वाणी की वजह से ही हमें ज्ञात हैं। ~ छन्दोग्योपनिषद
  • मृत्यु सुनने में जितनी भयावह लगती है, पर देखने में उतनी ही निरीह और स्वाभाविक है। ~ शिवानी
  • ईंट-पत्थर के सब मंदिरों के ऊपर हृदय का मंदिर है। ~ साधु वासवानी
  • धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरु पर्वत के समान होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शांड़्धर-पद्धति
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है और विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त जल्हण
  • वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो। वही जीवन है जो परसेवा में बीते। वही अर्जित है जिसका भोग स्वजन करें। ~ गरुड़ पुराण
  • तू छोटा बन, बस छोटा बन। गागर में आएगा सागर। ~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
  • गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता है। ~ अमोघवर्ष
  • नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं। ~ भारवि
  • वही प्रशंसनीय है जो विपत्ति में अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। ~ प्रकाशवर्ष
  • श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्माण
  • श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करनेवाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी
  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
  • पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी
  • सच्चे इंसान द्वारा किए गए कर्म न सिर्फ खुशबू देते हैं बल्कि दूसरो को खुश भी करते हैं। ~ विष्णु प्रभाकर
  • नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन

एमर्सन

  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
  • हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन
  • प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन
  • जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन
  • चोरी से कोई धनवान नहीं बन सकता, दान से कोई कंगाल नहीं हो सकता। थोड़ा सा झूठ भी कभी छिप नहीं सकता। यदि तुम सच बोलोगे तो सारी प्रकृति और सब जीव तुम्हारी सहायता करेंगे। चरित्र ही मनुष्य की पूंजी है। ~ एमर्सन
  • हंसमुख और बुद्धिमान चेहरा ही संस्कृति का लक्ष्य है। ~ एमर्सन
  • कला विचार को मूर्ति में परिणित करती है। ~ एमर्सन
  • मनुष्य केवल रोटी से जीवित नहीं रहता, अपितु विश्वास, प्रशंसा व सहानुभूति से जीता है। ~ एमर्सन
  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
  • मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं। ~ एमर्सन
  • वे विजयी हो सकते हैं जिन्हें विश्वास है कि वे कर सकते हैं। ~ एमर्सन
  • सत्य का प्रत्येक उल्लंघन मानव समाज के स्वास्थ्य में छुरी भोंकने के समान है। ~ एमर्सन
  • मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। ~ डिजरायली
  • उद्देश्य में निष्ठा ही सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
  • चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। ~ डिजराइली
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है। ~ डिजराइली
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली
  • विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। ~ डिजरायली
  • यदि मनुष्य प्रतीक्षा करे तो हर वस्तु प्राप्त हो जाती है। ~ डिजरायली
  • विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है। ~ एडीसन
  • मानव जीवन के लिए शिक्षा वैसी ही है, जैसे किसी संगमरमर खंड के लिए मूर्तिकला। ~ एडिसन
  • दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन
  • सदाचार के आचरण के अतिरिक्त विश्वास को दृढ़ बनाने वाली दूसरी वस्तु नहीं है। ~ एडीसन
  • वही मनुष्य महान् है जो भीड़ की प्रशंसा की उपेक्षा कर सकता है और उसकी कृपा से स्वतंत्र रहकर प्रसन्न रहता है। ~ एडीसन
  • समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन
  • मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
  • यदि कोई मनुष्य निश्चिंतताओं से प्रारंभ करेगा तो अंत संदेहों में होगा, लेकिन वह यदि वह संदेहों से प्रारंभ कर सके तो अंत में उसे निश्चिंततओं की प्राप्ति होगी। ~ बेकन
  • स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन है और अस्वस्थ शरीर इसका कारागार। ~ बेकन
  • सत्य के तीन भाग हैं-प्रथम जिज्ञासा, जो कि आराधना है। द्वितीय ज्ञान, जो कि उसकी उपस्थिति है। और तृतीय विश्वास, जो कि उसका उपभोग है। ~ बेकन
  • संपन्नता अनेक प्रकार के भय और रुचिकर बातों से रहित नहीं होती, और निर्धनता सांत्वनाओं और आशाओं से रहित नहीं होती। ~ बकेन
  • मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। ~ रस्किन
  • विवेकपूर्ण कार्य उपयोगी होता है। उपयोगी होने पर कार्य की कठिनता की परवाह नहीं करता। ~ रस्किन
  • दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। ~ रस्किन
  • जिस तरह तीतर अपने अंडों को नहीं सेता, उसी तरह बेईमानी से कमाने वाला व्यक्ति अपने धन का उपभोग नहीं कर पाता। और मृत्यु के बाद लोग उसे मूर्ख और कुटिल कह कर बुलाते हैं। ~ रस्किन बांड
  • केवल वही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर रहा है जिसका हृदय कोमल, ख़ून गर्म, दिमाग तेज होता जाता है और जिसके मन को शांति मिलती जाती है। ~ रस्किन
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
  • यदि समाज के हर वर्ग तक उन्नति का भाग नहीं पहुंचता तो समझ लीजिए ज़रूर कहीं कुछ गड़बड़ है। ~ सेनेका
  • संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुकरण है। ~ सेनेका
  • दूसरे को चुप करने के लिए पहले चुप हो जाओ। ~ सेनेका
  • बुरे विचार ही हमारी सुख-शांति के दुश्मन हैं। ~ स्वेट मॉर्डन
  • जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। ~ स्वेट मार्डेन
  • मनुष्य उसी काम को ठीक तरह से कर सकता है, उसी मे सफलता प्राप्त कर सकता है जिसकी सिद्धि मे उसका सच्चा विश्वास है। ~ स्वेट मार्डेन
  • हर स्थिति नहीं, हर क्षण अनंत मूल्य का है, क्योंकि यह संपूर्ण अनंतता का प्रतिनिधि है। ~ गेटे
  • गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होता है। चरित्र का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है। ~ गेटे
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे
  • किसी कार्य को संपन्न करने के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे
  • प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती। वह अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है। ~ गेटे
  • काम करने का इच्छुक किंतु काम पाने में असमर्थ व्यक्ति संभवत: इस विश्व में भाग्य की असमानता द्वारा प्रदर्शित करुणतम दृश्य है। ~ कार्लाइल
  • समय और उचित अवसर पर बोला गया एक शब्द युगों की बात है। ~ कार्लाइल
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। ~ कार्लाइल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। ~ कार्लाइल
  • अनुभव प्राप्ति के लिए अत्यंत अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है परंतु इससे जो शिक्षा मिलती है वह अन्य किसी साधन द्वारा नहीं मिल सकती। ~ कार्लाइल
  • अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है, दो देवता के समान हैं, तीन गांव के समान हैं, इससे अधिक तो केवल कोलाहल और भीड़ है। ~ थेर गाथा
  • वही बात बोलनी चाहिए जिससे न स्वयं को कष्ट हो और न दूसरों को ही। वस्तुत: सुभाषित वाणी ही श्रेष्ठ वाणी है। ~ थेरगाथा
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। ~ थेर गाथा
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। ~ डेल कारनेगी
  • अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है। ~ डेल कार्नेगी
  • आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। ~ डेल कारनेगी
  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। ~ डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। ~ डेल कारनेगी
  • दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन
  • भविष्य को वर्तमान ख़रीदता है। ~ जॉनसन
  • कोई व्यक्ति नकल से अभी तक महान् नहीं हुआ है। ~ जॉनसन
  • सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन
  • झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है। ~ बेन जॉनसन
  • राजनीति कुछ मनुष्यों के फायदे के लिए बहुत सारे व्यक्तियों के बीच पैदा किया जाने वाला उन्माद है। ~ एलेक्जेंडर पोप
  • धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • संधियों का पालन तभी तक किया जाता है जब तक उनका हितों से सामंजस्य रहता है। ~ नेपोलियन प्रथम
  • दुनिया में दो ही ताकते हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है। ~ नेपोलियन
  • त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है। ~ प्लूटार्क
  • विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। ~ प्लूटार्क
  • कृतज्ञ और प्रसन्न हृदय से की गई पूजा ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है। ~ प्लूटार्क
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • दयालुता से दयालुता और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। ~ वेमना
  • जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं। ~ वेमना
  • प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए। ~ एडमंड बर्क
  • जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मज़बूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। ~ बर्क
  • उपदेश की अपेक्षा कहीं अधिक हम अनुकरण से सीखते हैं। ~ बर्क
  • संकटों से घृणा की जाए, तो वे बड़े हो जाते हैं। ~ एडमंड बर्क
  • धूर्तता और भोलेपन के बीच विवेक का स्वर रुद्ध हो जाता है। ~ एडमंड वर्क
  • संपन्नता महान् शिक्षक है पर विपत्ति महानतर शिक्षक है। संपत्ति मन को लाड़ से बिगाड़ देती है, किंतु अभाव उसे प्रशिक्षित कर शक्तिशाली बनाता है। ~ हैजलिट
  • विनोद उचित मात्रा में ही ठीक रहता है। वह बातचीत का नमक है, भोजन नहीं। ~ हैजलिट
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट
  • विनोद का उपयोग रक्षा के लिए होना चाहिए, उसे दूसरों को घायल करने के लिए तलवार कभी नहीं बनना चाहिए। ~ फुलर
  • कोमल शब्द कठोर तर्क होते हैं। ~ टामस फुलर
  • जो भविष्य का भय नहीं करता वही वर्तमान का आनंद ले सकता है। ~ टॉमस फुलर
  • विनोद किसी समय ही अच्छा लग सकता है, हर समय नहीं। ~ फ्रैंकलिन
  • धन उसका नहीं जिसने उसे अर्जित किया है, और उसका भी नहीं जिसने उसे संचित रखा है। धन उसका है, जो उसका उपभोग करता है। ~ फ्रैंकलिन
  • अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है, जितनी कि किसी काम को सही ढंग से सीखने की इच्छा न होना। ~ बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है। ~ अरस्तु
  • किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू
  • राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीने के लिए नहीं। ~ अरस्तू
  • ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तू
  • मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। ~ अरस्तू
  • ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। ~ कन्फ्यूशस
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। ~ कन्फ्यूशस
  • समय पुन: वापस न आने के लिए उड़ा चला जा रहा है। ~ वर्जिल
  • हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
  • प्रेम सबको वश में कर लेता है। हमें भी प्रेम के वश में हो जाना चाहिए। ~ वर्जिल
  • पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन
  • शांति की अपनी विजयें होती हैं जो युद्ध की अपेक्षा कम कीतिर्मयी नहीं होतीं। ~ मिल्टन
  • जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। ~ मिल्टन
  • जीने का सबसे अच्छा और सर्वाधिक सुरक्षित तरीका जीवन में संतुलन रखना है। आपने आसपास और अपने भीतर की ताकत को पहचानना है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं और इस तरह जीते हैं तो आप सचमुच एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। ~ यूरीपिडीज
  • पहले स्वयं पुरुषार्थ करना चाहिए, भगवान भी तभी मददगार होते हैं। ~ यूरीपिडीज़
  • अवसर भी बुद्धिमान के ही पक्ष में लड़ता है, मूर्ख के नहीं। ~ यूरीपेडीज
  • वाणी का सर्वोत्तम गुण संक्षिप्तता है, चाहे वह सभासद में हो या वक्ता में। ~ सिसरो
  • बुद्धिमान विवेक से, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं। ~ सिसरो
  • यदि तुम भलाई का अनुकरण परिश्रम के साथ करो तो परिश्रम समाप्त हो जाता है और भलाई बनी रहती है, यदि तुम बुराई का अनुकरण सुख के साथ करो तो सुख चला जाता है और बुराई बनी रहती है। ~ सिसरो
  • सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन
  • संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलेन
  • यकीन करें कि बुढ़ापा उम्र का सबसे शानदार दौर होता है। भले ही आप उस वक्त अपनी ज़िम्मेदारियों से निबट चुके होते हैं, पर तब आप फ्रंट सीट पर बैठकर उन कामों के नतीजे का मजा ले सकते हैं जो आपने सक्रिय होते हुए किए थे। ~ जेन एलेन हैरिसन
  • साधारण सुधारक सदा उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनसे आगे जाते हैं। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • जंगली पशु खेल और मनोरंजन के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है। ~ अब्राहम लिंकन
  • चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है। छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं, परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है। ~ लिंकन
  • अवसर के अनुकूल आचरण हमें कहीं का कहीं पहुंचा देता है। ~ चेखव
  • डॉक्टर ज़्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फ़र्क़ यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
  • अपनी विद्वता को पॉकिट घड़ी की तरह अपनी जेब में रखो, और उसे केवल यह दिखाने के लिए कि तुम्हारे पास भी है, न बाहर निकालो और न पटको। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
  • मुझे बताओ कि तुम किनके साथ रहते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
  • मिनटों की चिंता करो क्योंकि घंटे तो अपनी चिता स्वयं ही कर लेंगे। ~ लॉर्ड चेस्टरफिल्ड
  • जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। ~ जॉर्ज हरबर्ट
  • प्रवीणता और आत्मविश्वास - जीवन संग्राम में यही दोनों अविजित सेनाएं हैं। ~ जॉर्ज हरबर्ट
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
  • मनुष्य के चरित्र का सबसे सही परिचय इससे मिलता है कि वह किन बातों पर हंसता है। ~ ओलिवर होम्स
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। इसका सबसे बड़ा शत्रु पक्षपात और इसका अचल साथी नम्रता है। ~ कोल्टन
  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। ~ कोल्टन
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
  • चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। ~ स्माइल्स
  • चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है। ~ स्माइल्स
  • हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि ग़लती हमेशा बातूनी होती है। ~ ओलिवर गोल्डस्मिथ
  • विनोद निर्धन के बस की बात नहीं, वह धनियों का ही सफल होता है। ~ गोल्डस्मिथ
  • जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सबसे बड़ा बेवकूफ है। ~ वाल्टेयर
  • प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। ~ वाल्टेयर
  • अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन के अजायब घर के पत्थर इतने वर्षों बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमानों से ज्यादा बुद्धिमान होते। ~ बर्नाड शॉ
  • स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है। यही तो कारण है कि अधिकांश मनुष्य उससे डरते हैं। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शा
  • आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। ~ टेनीसन
  • जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
  • मनुष्य अनुकरण करने वाला प्राणी है और जो सबसे आगे बढ़ जाता है वही समूह का नेतृत्व करता है। ~ शिलर
  • विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। ~ शिलर
  • हमारा जीवन हमारे विचारों का ही प्रतिफल है। ~ मारकस आरेलियस
  • मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
  • कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है। ~ मेजिनी
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
  • यदि मैं अपनी चिंता न करूं, तो और कौन करेगा? किंतु यदि मैं केवल अपनी ही चिंता करूं तो मेरा अस्तित्व ही किसलिए है? ~ मैक्सिम गोर्की
  • कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव-राशि अथाह होती है। ~ मैक्सिम गोर्की
  • यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ शिक्षा दे सकती है। ~ डिकेंस
  • सत्य किरणों की किरण, सूर्यों का सूर्य, चंद्रमाओं का चंद्र और नक्षत्रों का नक्षत्र है। सत्य सब का सारभूत तत्व है। ~ डिकेंस
  • जिस विचार का सही समय आ जाता है, उसकी ताकत के आगे कोई सेना नहीं ठहर सकती। ~ विक्टर ह्यूगो
  • मनुष्य में शक्ति की कमी नहीं होती, संकल्प की कमी होती है। ~ मेरी विक्टर ह्युगो
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेंसन
  • संसार में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है। हम सबको किसी न किसी प्रकार कठोर परिश्रम करने, दु:ख उठाने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए। ~ स्टीवेंसन
  • जो कुछ न्यायसंगत है, उसे कहने के लिए हर समय उपयुक्त समय है। ~ सोफोक्लीज़
  • अवसर बार बार हाथ नहीं लगता। ऐसा मत सोचो कि अवसर तुम्हारा द्वार दोबारा खटखटाएगा। ~ सफोक्लीज
  • वही व्यक्ति सबसे अधिक दौलतमंद है, जिसकी प्रसन्नता सबसे सस्ती है। ~ थोरो
  • उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
  • धन अथाह समुद्र है, जिसमें इज्जत, अंत: करण और सत्य - सब कुछ डूब सकते हैं। ~ कोजले
  • ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर
  • आतंकवाद किसी असंभव चीज़ को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
  • आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। ~ कारमेन सिल्वा
  • मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माईल इबन् अबीबकर
  • अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दु:ख कोई नहीं है। ~ दांते
  • रिटायरमेंट के वक्त मैं ठीक उसी तरह जाना चाहूंगा जैसे किसी पार्टी से कोई सभ्य मेहमान उठ कर जाता है। ~ लियोंटाइन प्राइस
  • चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं। ~ लू शुन
  • संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से
  • जैसे फल के पहले फूल होता है, वैसे ही सत्कार्य के पहले जरूरी होता है विश्वास। ~ ह्वैटली
  • अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी ज़िंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन
  • नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
  • नैतिक शिक्षा देते समय संक्षेप में कहो। ~ होरेस
  • विवाद और असहमति किसी भी क्रियाशील समाज की प्राणशक्ति हैं। ~ ह्युबर्ट हम्फ्री
  • डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
  • बुद्धिमान की बुद्धि आइने के समान है। वह स्वर्ग का प्रकाश लेकर उसे दूसरों को दे देती है। ~ हेयर
  • मैं जिस चीज़ का स्वप्न देखता हूं वह है संतुलन की कला। ~ हेनरी मातीस
  • शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। ~ पेट्रार्क
  • हमारे न तो कोई शाश्वत मित्र है और न कोई स्थायी शत्रु। शाश्वत तो हमारे हित हैं और उन हितों का अनुसरण करना हमारा कर्त्तव्य है। ~ पार्मस्टन
  • खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। ~ पिएर द कु बर्तिन
  • एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। ~ पैट रिले
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। ~ पास्कल
  • आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
  • दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस
  • जो भी घटित होता है उससे मैं संतुष्ट हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि परमात्मा द्वारा चयन मेरे द्वारा चयन से अधिक श्रेष्ठ है। ~ एपिक्टेटस
  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • सर्वोत्तम मन सर्वोत्तम संतोष से युक्त होता है। ~ एडमंड स्पेंसर
  • विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। ~ एरिओस्टो
  • कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
  • कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति उसके उपकारों के लिए हृदय की श्रद्धांजलि है। ~ एन.पी. विल्स
  • इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड
  • राजा अपने राज्य का प्रथम सेवक होता है। ~ फ्रेडरिक महान्
  • चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है। ~ फ्रेडरिक सांडर्स
  • प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
  • इस दुनिया की बनावट इतनी दैवीय है कि यहां हममें से हर कोई अपने स्थान और समय में अन्य दूसरी चीजों से एक विरल संतुलन में अवस्थित है। ~ गाइथे
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। ~ गार्डनर
  • मानव से संबंधित सभी वस्तुएं यदि उन्नति नहीं करतीं तो उनका ह्रास होने लगता है। ~ गिबन
  • जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ
  • कोई भी मनुष्य केवल अपने लिए ही गुलाब और करेला उत्पन्न नहीं कर सकता। आनंद प्राप्ति के लिए तुम्हें उसे आपस में बांटना ही होगा। ~ चेस्टर चार्ल्स
  • विनोद को लोग फ़ालतू चीज़ समझ लेते हैं, वह बहुत गंभीर होता है। ~ चर्चिल
  • विश्व एक विशाल ग्रंथ है और जो कभी घर के बाहर नहीं जाते, वे उसका केवल एक पृष्ठ ही पढ़ पाते हैं। ~ ऑगस्टीन
  • गुण का सच्चा मानदण्ड मन में स्थित है। जिसके सत्य विचार हैं, वे सत्यपुरुष हैं। ~ आइजक बिकरस्टाफ
  • कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है। ~ अस्त्रोवस्की
  • प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल
  • महान् उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए। ~ अनातोले फ्रांस
  • संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन
  • अविश्वासी के उत्तम विचार से विश्वासी की भूल कहीं अधिक अच्छी है। ~ टामस रसल
  • विश्वास हृदय की वह पेसिल है जो स्वर्गीय वस्तुओ को चित्रित करती है। ~ टी बरब्रिज
  • एक बुराई दूसरी बुराई से उत्पन्न होती है। ~ टेरेंस
  • इतनी संक्षिप्तता मत रखो कि अस्पष्ट हो जाओ। ~ ट्रायोन एडवर्ड्स
  • आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की ज़िंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
  • जो जिसके हृदय में स्थित है, वह दूर होते हुए भी उसके समीप है, हृदय से निकला हुआ व्यक्ति समीप होने पर भी दूर ही है। ~ शौनकीयनीतिसार
  • पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न-बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
  • शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ न प्रदान करें। ~ तोलस्तोय
  • मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर
  • मूर्खों की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
  • दु:ख स्वयं ही एक औषधि है। ~ विलियम कोपर
  • विश्वास उन शक्तियो मे से एक है जो मनुष्य को जीवित रखती है, विश्वास का पूर्ण अभाव ही जीवन का अवसान है। ~ विलियम जेम्स
  • स्वाधीनता का पक्ष ईश्वर का पक्ष है। ~ विलियम लियोल बाउल्स
  • यदि तुम एक बार बोलने से पहले दो बार सोच लेते हो तो तुम अच्छा बोलोगे। ~ विलियम पेन
  • बेवकूफ को उससे बड़ा बेवकूफ उसकी प्रशंसा करने वाला मिल जाता है। ~ वाइलो
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। ~ विल्मट
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। ~ वेमना
  • शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। ~ वालफोर
  • अनुभव 20 वर्ष में जो सिखाता है, विद्वता एक वर्ष में उससे अधिक सिखा देती है। ~ रोगर ऐस्कम
  • वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। ~ राउपाख
  • यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। ~ रुडयार्ड किप्लिंग
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
  • जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ रिचर्ड कंबरलैंड
  • कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
  • किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी
  • शिक्षित मूर्ख, अशिक्षित की अपेक्षा अधिक बेवकूफ होता है। ~ मौलियर
  • 'निष्ठा से शहीद बनते हैं' कहने की अपेक्षा 'शहीदों से निष्ठा बनती है' कहना अधिक सत्य है। ~ मिगेल डि यूनामुनो
  • रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न
  • रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज़्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज़ वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो
  • महान् की उपासना करना स्वयं महान् होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
  • अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग
  • यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है। ~ मार्क ट्वेन
  • सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकल एंजिलो (Michelangelo) (1475 - 1564)
  • जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। ~ मिल्ट
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • दूसरों की भूलों से बुद्धिमान लोग अपनी भूलें सुधारते हैं। ~ साइरस
  • सीखे गए को भूल जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
  • प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। ~ सेंट एम्ब्रोज
  • अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। ~ सेंट ऑगस्टीन (Saint Augustine) (354 - 430)
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। ~ सोलन
  • डॉक्टर असंख्य ग़लतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर
  • जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर
  • गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। ~ डेनियल
  • हर प्रशंसा की तुलना में बुरा समाचार दूर तक जाता है। ~ बाल्टासार ग्राशियन
  • नकद दौलत अल्लादीन का चिराग है। ~ बायरन
  • जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
  • शब्द, मुहावरे और फैशन आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन सत्य और प्रकृति सदैव रहते हैं। ~ बर्नार्ड बार्टन
  • मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। ~ बिली जीन किंग
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। ~ बाइबिल
  • अच्छे लोग जिस बात को अपने ऊपर लेते हैं, उसका निर्वाह करते हैं। ~ बिल्हन
  • चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर पत्थर को घिस सकता है। ~ बर्टल
  • कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन
  • उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
  • बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। ख़ाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट
  • सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली
  • जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। ~ जॉन बनयन
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
  • जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल
  • सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं। ~ जॉन अरबुथनट
  • विकास के लिए यूं तो कई चीज़ें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। ~ जॉन नेल
  • चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। ~ जैक डेंपसी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी
  • सम्मान सच्चे परिश्रम में है। ~ जी. क्लीवलैंड


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख