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यह इनके मौलिक ग्रन्थों में से हैं। राय कृष्णदास के इस अध्ययन और योजना के कारण आज, 'भारतीय कला भवन' का एक ऐतिहासिक महत्व है। शायद यही कारण है कि इधर राय साहब साहित्यिक रचनाओं की अपेक्षा भारतीय चित्रों और मूर्तियों को पहचानने, काल निर्धारित करने में अधिक समय देने लगे थे। | यह इनके मौलिक ग्रन्थों में से हैं। राय कृष्णदास के इस अध्ययन और योजना के कारण आज, 'भारतीय कला भवन' का एक ऐतिहासिक महत्व है। शायद यही कारण है कि इधर राय साहब साहित्यिक रचनाओं की अपेक्षा भारतीय चित्रों और मूर्तियों को पहचानने, काल निर्धारित करने में अधिक समय देने लगे थे। | ||
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− | राय कृष्णदास की | + | राय कृष्णदास की महत्त्वपूर्ण रचनाओं में से 'साधना' कहानी संग्रह ([[1919]] ई.), 'अनाख्या' ([[1929]] ई.), 'सुधांशु' (1929 ई.) मुख्य हैं। 'प्रवाल' गद्य गीतों का संग्रह है, जो 1929 ई. में प्रकाशित हुआ। भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला पर वैसे तो पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है, किन्तु हिन्दी में विशेष अभिरुचि और विश्लेषण के साथ राय कृष्णदास की पुस्तकों ने हिन्दी साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाने में सहायता दी है। |
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राय कृष्णदास को भारत सरकार ने [[पद्मविभूषण]] से सम्मानित किया था। | राय कृष्णदास को भारत सरकार ने [[पद्मविभूषण]] से सम्मानित किया था। |
13:45, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
राय आनंद कृष्ण (जन्म- 1892, वाराणसी; मृत्यु- 1985 प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकार, गद्यगीत लेखक थे।
जीवन परिचय
राय कृष्णदास का उपनाम 'नेही' था। राय कृष्णदास का जन्म सन 1892 ई. को वाराणसी में हुआ। इनकी चित्रकला, मूर्तिकला एवं पुरातत्व में विशेष रुचि थी। यह ललित कला अकादमी के सदस्य थे। ये राजा पटनीमल के वंशज थे। 'राय की उपाधि इनकी आनुवंशिक थी जो मुग़ल दरबार से मिली थी। यह बनारस के मान्य परिवार के हैं। यह प्रसाद जी के घनिष्ठ मित्रों में से एक हैं। राय कृष्णदास भारती भण्डार (साहित्य प्रकाशन संस्थान) और 'भारतीय कला भवन' के संस्थापक थे।
राय कृष्णदास की कहानियों में भारतीय जीवन के सामाजिक व्यंग्य एवं सरसता दोनों समान रूप से वर्तमान हैं। भावुक लेखक होने के नाते शिल्प के कथ्य और कलात्मक रचना की अपेक्षा आदर्श और यथार्थ के संघर्ष की अच्छी झाँकियाँ वर्तमान हैं। इनकी भाषा प्राजंल और अनुभूति नितान्त रागात्मक, दृष्टि मूलत: आदर्शवादी है। इसीलिए गद्य गीतों में भावुकता इनकी शैली की एक सजीव एवं सप्राण प्रतीक बन गयी है। छायावादी रागात्मकता इनके गद्य गीतों की जान है। मानवीय भावनाओं को भावुक एवं कोमल पक्ष इनकी रचनाओं में विशेष रूप से चित्रित हुआ है। गद्य गीतकारों में माखनलाल चतुर्वेदी और रावी के साथ यदि किसी का भी नाम लिया जा सकता है, तो वह हैं राय कृष्णदास।
साहित्यिक रुचि
इन साहित्यिक रुचियों के अतिरिक्त शोधपरक कार्यों के लिए मूल रचनाओं की प्रमाणिक हस्त प्रतियाँ प्राप्त करना, नये लेखकों की मूल पाण्डुलिपियों का संग्रह करना, प्राचीन चित्र और मूर्तियों को संचित करना, पुरानी विभिन्न भारतीय शैलियों के चित्रों को संग्रहीत करना राय साहब की विशेष रुचि है।
- 'भारत की चित्रकला' (1939 ई.),
- 'भारतीय मूर्तिकला' (1939 ई.)
यह इनके मौलिक ग्रन्थों में से हैं। राय कृष्णदास के इस अध्ययन और योजना के कारण आज, 'भारतीय कला भवन' का एक ऐतिहासिक महत्व है। शायद यही कारण है कि इधर राय साहब साहित्यिक रचनाओं की अपेक्षा भारतीय चित्रों और मूर्तियों को पहचानने, काल निर्धारित करने में अधिक समय देने लगे थे।
रचनाएँ
राय कृष्णदास की महत्त्वपूर्ण रचनाओं में से 'साधना' कहानी संग्रह (1919 ई.), 'अनाख्या' (1929 ई.), 'सुधांशु' (1929 ई.) मुख्य हैं। 'प्रवाल' गद्य गीतों का संग्रह है, जो 1929 ई. में प्रकाशित हुआ। भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला पर वैसे तो पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है, किन्तु हिन्दी में विशेष अभिरुचि और विश्लेषण के साथ राय कृष्णदास की पुस्तकों ने हिन्दी साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाने में सहायता दी है।
पुरस्कार
राय कृष्णदास को भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
मृत्यु
राय कृष्णदास जी की मृत्यु सन 1985 ई. में हुई थी।
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