चंद्रशेखर वाजपेयी

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चंद्रशेखर वाजपेयी
चंद्रशेखर वाजपेयी
पूरा नाम चंद्रशेखर वाजपेयी
जन्म 1855 ई.,
मृत्यु 1932 ई.
मुख्य रचनाएँ 'हम्मीरहठ'
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि कवि, साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

चंद्रशेखर वाजपेयी का (जन्म- 1855 ई., निधन- 1932 ई.), 19वीं शताब्दी के कवि थे, इनके पिता मनीराम वाजपेयी एक अच्छे कवि थे। इनके गुरु असनी के करनेश महापात्र थे, 22 वर्ष की उम्र में इन्होंने दरभंगा की यात्रा की। वहाँ 7 वर्ष बिताकर ये जोधपुर के राजा मानसिंह, पटियालाधीश कर्मसिंह और महाराज नरेंद्रसिंह के आश्रय में रहे। वीर रस वर्णन में इस कवि ने बहुत ही सुंदर साहित्यिक विवेक का परिचय दिया है।[1]

जीवन परिचय

चंद्रशेखर वाजपेयी 19वीं शताब्दी के कवि थे। इनका जन्म सम्वत 1855, पौष शुक्ल 10 को मोजबाबाद (फतेहपुर) में हुआ था। इनके पिता मनीराम वाजपेयी एक अच्छे कवि थे। इनके गुरु असनी के करनेश महापात्र थे, जो 'कर्णभरण', 'श्रुतिभूषण' और भूपभूषण' नामक ग्रंथों के रचयिता करनेश से भिन्न 19वीं शती में रहे थे। 22 वर्ष की उम्र में इन्होंने दरभंगा की यात्रा की। वहाँ सात वर्ष बिताकर ये जोधपुर के राजा मानसिंह, पटियालाधीश कर्मसिंह और महाराज नरेंद्रसिंह के आश्रय में रहे।

रचनाएँ

इनकी 10 मुख्य रचनाएँ हैं-

  1. हम्मीर हठ (र. का. 1902 वि.)
  2. नखशिख,
  3. रसिकविनोद (1903 वि.),
  4. वृंदावन शतक,
  5. गुरुपंचाशिंका,
  6. ज्योतिष का ताजक,
  7. माधुरीवसंत,
  8. हरि-भक्ति-विलास (हरि-मानसविलास),
  9. विवेकविलास और
  10. राजनीति का एक वृहत्‌ ग्रंथ।

चंद्रशेखर वाजपेयी की इन सभी रचनाओं में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना 'हम्मीरहठ' है, जिस पर कवि की कीर्ति अवलंबित है। इसमें रणथंभोर के राजा हम्मीर और सम्राट् आलउद्दीन के युद्ध का वर्णन बड़ी ही ओजपूर्ण शैली में किया गया है। इसका प्रधान रस वीर है। वाराणसी के लहरी बुक डिपो से यह प्रकाशित भी हो चुका है। रसिकविनोद नायिका भेद और रसों के वर्णन का ग्रंथ है।[1]

साहित्यिक परिचय

वीर, श्रृंगार और भक्ति तीनों रसों का अच्छा परिपाक इनकी रचनाओं में मिलता है। इसीलिए अचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, कि 'उत्साह की मंग की व्यंजना जैसी चलती, स्वाभाविक और जोरदार भाषा में इन्होंने की है वैसे ढंग से करने में बहुत ही कम कवि समर्थ हुए हैं। वीर रस वर्णन में इस कवि ने बहुत ही सुंदर साहित्यिक विवेक का परिचय दिया है' (हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. 389, पंचम संस्करण)। कवि का अपनी साहित्यिक भाषा पर पूरा अधिकार है। उसमें व्यवस्था, प्रवाह और रसानुकूल उत्कृष्ट पदविन्यास भी पाया जाता है। प्रसंग विधान पूर्ववर्ती कवियों जैसा ही है। बहुल अनुप्रास योजना रस बाधक न होकर रसोपकरी सिद्ध हुई।[1]

निधन

चंद्रशेखर वाजपेयी का निधन सम्वत 1932 वि. में हुआ था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 चंद्रशेखर वाजपेयी (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 02 अगस्त, 2015।

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