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'''श्रावस्ती''' में [[जैन]] मतावलंबी भी रहते थे। इस धर्म के प्रवर्तक [[महावीर|महावीर स्वामी]] वहाँ कई बार आ चुके थे। नागरिकों ने उनका दिल खोल कर स्वागत किया और अनेक उनके अनुयायी बन गये। [[श्रावस्ती]] में ब्राह्मण मतावलंबी भी मौजूद थे। [[वेद|वेदों]] का पाठ और [[यज्ञ|यज्ञों]] का अनुष्ठान आदि इस नगर में चलता रहता था। मल्लिकाराम में सैकड़ों [[ब्राह्मण]] साधु धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद में संलग्न रहा करते थे। विशेषता यह थी कि वहाँ के विभिन्न धर्मानुयायियों में किसी तरह के सांप्रदायिक झगड़े नहीं थे।
 
==जैन ग्रंथों में वर्णित श्रावस्ती==
 
==जैन ग्रंथों में वर्णित श्रावस्ती==
 
[[बौद्ध]] मतावलंबियों की भाँति जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को इस प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे। वे इसे 'चंद्रपुरी' या 'चंद्रिकापुरी' के नाम से अभिहित करते थे। [[जैन धर्म]] के प्रचार केंद्र के रूप में भी यह विख्यात था। श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे [[तीर्थंकर]] [[संभवनाथ]]<ref>जैन [[हरिवंश पुराण]], पृष्ठ 717</ref> व आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभानाथ<ref>एस. स्टीवेंसन, हार्ट आफ जैनिज्म, (दिल्ली, 1970) पृष्ठ 42</ref> की जन्मस्थली थी। [[महावीर]] ने भी यहाँ एक वर्षावास व्यतीत किया था।<ref>सी. जे. शाह, जैनिज्म इन नार्थ इंडिया, पृष्ठ 26</ref> जैन साहित्य में '''सावत्थि अथवा सावत्थिपुर''' के प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ के गर्भ, जनम, तप और केवल ज्ञान कल्याणक यहीं संपन्न हुए थे। एक मत के मतानुसार श्रीवास्त द्वारा इस नगर की स्थापना की गई और इन्हीं के नाम पर इसका श्रावस्ती नाम पड़ा।<ref>कोशल, रिसर्च आफ दि इंडियन रिसर्च सोसायटी आफ अवध, भाग 3, पृष्ठ 23</ref> श्रावस्ती के महाश्रेष्ठि नंदिनीप्रिय, नागदत्त आदि से जैन धर्म के अध्ययनार्थ श्रावस्ती में लोग दूर-दूर से आते थे। इसमें [[कश्यप]] के पुत्र कपिल एवं जैन विद्वान केशी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।<ref>तत्रैव, पृष्ठ 24</ref>
 
[[बौद्ध]] मतावलंबियों की भाँति जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को इस प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे। वे इसे 'चंद्रपुरी' या 'चंद्रिकापुरी' के नाम से अभिहित करते थे। [[जैन धर्म]] के प्रचार केंद्र के रूप में भी यह विख्यात था। श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे [[तीर्थंकर]] [[संभवनाथ]]<ref>जैन [[हरिवंश पुराण]], पृष्ठ 717</ref> व आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभानाथ<ref>एस. स्टीवेंसन, हार्ट आफ जैनिज्म, (दिल्ली, 1970) पृष्ठ 42</ref> की जन्मस्थली थी। [[महावीर]] ने भी यहाँ एक वर्षावास व्यतीत किया था।<ref>सी. जे. शाह, जैनिज्म इन नार्थ इंडिया, पृष्ठ 26</ref> जैन साहित्य में '''सावत्थि अथवा सावत्थिपुर''' के प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ के गर्भ, जनम, तप और केवल ज्ञान कल्याणक यहीं संपन्न हुए थे। एक मत के मतानुसार श्रीवास्त द्वारा इस नगर की स्थापना की गई और इन्हीं के नाम पर इसका श्रावस्ती नाम पड़ा।<ref>कोशल, रिसर्च आफ दि इंडियन रिसर्च सोसायटी आफ अवध, भाग 3, पृष्ठ 23</ref> श्रावस्ती के महाश्रेष्ठि नंदिनीप्रिय, नागदत्त आदि से जैन धर्म के अध्ययनार्थ श्रावस्ती में लोग दूर-दूर से आते थे। इसमें [[कश्यप]] के पुत्र कपिल एवं जैन विद्वान केशी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।<ref>तत्रैव, पृष्ठ 24</ref>
 
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जैन ग्रंथ भगवती सूत्र (320 ई.पू. से 600 ई. से मध्य) के अनुसार श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र में भौतिक समृद्धि के चरमोत्कर्ष पर थी। यहाँ के व्यापारियों में शंख और मक्खलि मुख्य थे जिन्होंने यहाँ के नागरिकों के भौतिक समृद्धि के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।<ref>योगेन्द्र चंद्र शिकदार, स्टडीज इन भगवती सूत्राज, (रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ प्राकृत जैनोलाजी एंड अहिंसा, मुजफ्फरपुर, 1964), पृष्ठ 307</ref>
 
जैन ग्रंथ भगवती सूत्र (320 ई.पू. से 600 ई. से मध्य) के अनुसार श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र में भौतिक समृद्धि के चरमोत्कर्ष पर थी। यहाँ के व्यापारियों में शंख और मक्खलि मुख्य थे जिन्होंने यहाँ के नागरिकों के भौतिक समृद्धि के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।<ref>योगेन्द्र चंद्र शिकदार, स्टडीज इन भगवती सूत्राज, (रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ प्राकृत जैनोलाजी एंड अहिंसा, मुजफ्फरपुर, 1964), पृष्ठ 307</ref>
  

12:50, 22 मार्च 2017 का अवतरण

श्रावस्ती विषय सूची


जैन ग्रंथों में श्रावस्ती
प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष, श्रावस्ती
विवरण श्रावस्ती उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। बौद्ध एवं जैन तीर्थ स्थानों के लिए श्रावस्ती प्रसिद्ध है। यहाँ के उत्खनन से पुरातत्त्व महत्त्व की कई वस्तुएँ मिली हैं।
ज़िला श्रावस्ती
निर्माण काल प्राचीन काल से ही रामायण, महाभारत तथा जैन, बौद्ध साहित्य आदि में अनेक उल्लेख।
मार्ग स्थिति श्रावस्ती बलरामपुर से 17 कि.मी., लखनऊ से 176 कि.मी., कानपुर से 249 कि.मी., इलाहाबाद से 262 कि.मी., दिल्ली से 562 कि.मी. की दूरी पर है।
प्रसिद्धि पुरावशेष, ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा लखनऊ हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन बलरामपुर रेलवे स्टेशन
बस अड्डा मेगा टर्मिनस गोंडा, श्रावस्ती शहर से 50 कि.मी. की दूरी पर है
संबंधित लेख जेतवन, शोभनाथ मन्दिर, मूलगंध कुटी विहार, कौशल महाजनपद आदि।


श्रावस्ती में जैन मतावलंबी भी रहते थे। इस धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी वहाँ कई बार आ चुके थे। नागरिकों ने उनका दिल खोल कर स्वागत किया और अनेक उनके अनुयायी बन गये। श्रावस्ती में ब्राह्मण मतावलंबी भी मौजूद थे। वेदों का पाठ और यज्ञों का अनुष्ठान आदि इस नगर में चलता रहता था। मल्लिकाराम में सैकड़ों ब्राह्मण साधु धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद में संलग्न रहा करते थे। विशेषता यह थी कि वहाँ के विभिन्न धर्मानुयायियों में किसी तरह के सांप्रदायिक झगड़े नहीं थे।

जैन ग्रंथों में वर्णित श्रावस्ती

बौद्ध मतावलंबियों की भाँति जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को इस प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे। वे इसे 'चंद्रपुरी' या 'चंद्रिकापुरी' के नाम से अभिहित करते थे। जैन धर्म के प्रचार केंद्र के रूप में भी यह विख्यात था। श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ[1] व आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभानाथ[2] की जन्मस्थली थी। महावीर ने भी यहाँ एक वर्षावास व्यतीत किया था।[3] जैन साहित्य में सावत्थि अथवा सावत्थिपुर के प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ के गर्भ, जनम, तप और केवल ज्ञान कल्याणक यहीं संपन्न हुए थे। एक मत के मतानुसार श्रीवास्त द्वारा इस नगर की स्थापना की गई और इन्हीं के नाम पर इसका श्रावस्ती नाम पड़ा।[4] श्रावस्ती के महाश्रेष्ठि नंदिनीप्रिय, नागदत्त आदि से जैन धर्म के अध्ययनार्थ श्रावस्ती में लोग दूर-दूर से आते थे। इसमें कश्यप के पुत्र कपिल एवं जैन विद्वान केशी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।[5]

जैन ग्रंथ भगवती सूत्र (320 ई.पू. से 600 ई. से मध्य) के अनुसार श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र में भौतिक समृद्धि के चरमोत्कर्ष पर थी। यहाँ के व्यापारियों में शंख और मक्खलि मुख्य थे जिन्होंने यहाँ के नागरिकों के भौतिक समृद्धि के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।[6]

इस नगर में एक बहुत ही धनी श्रेष्ठी मिगार था जो जैन धर्म का प्रबल समर्थक था जबकि उसकी पुत्रवधू विशाखा[7] की अनुयायी थी।[8] भगवती सूत्र से पता चलता है कि आजीवक संप्रदाय का प्रधान मक्खलिपुत्र गोशाल महावीर का शिष्य था। जैने स्रोतों से पता चलता है कि कालांतर में श्रावस्ती आजीवक संप्रदाय का एक प्रमुख केंद्र बन गया। हरमन जैकोबी[9] और बी.एम. बरुआ[10] का मत है कि कुछ दिनों तक महावीर, मक्खलिपुत्र गोशाल के शिष्य थे। मक्खलिपुत्र गोशाल का जन्म श्रावस्ती में हुआ था। गोशाल महावीर से उम्र में बड़ा था। बाद में सिद्धांतीय मतभेदों के कारण गोशाल ने महावीर का साथ छोड़ दिया और आजीवक संप्रदाय के प्रमुख के रूप में श्रावस्ती में 16 वर्ष व्यतीत किए।[11]

संभवनाथ का मंदिर

ईसा के पूर्व ही यहाँ संभवनाथ का एक मंदिर निर्मित हुआ था। फ़ाह्यान ने जब श्रावस्ती की यात्रा की थी उस समय इस मंदिर का अवशेष मात्र शेष था। इस स्थल पर उत्खनन से एक नवीन जैन-मंदिर (शोभनाथ) के अवशेष मिले हैं, जिसकी ऊपरी बनावट से यह मध्य युग का प्रतीत होता था। साथ ही बहुत सी जैन प्रतिमाएँ भी मिली हैं।[12] यह नगर अधिक समय तक श्वेतांबर जैन श्रमणों की केंद्र-स्थली था, किन्तु बाद में यह दिगंबर संप्रदाय का केंद्र बन गया।[13]

इन्हें भी देखें: शोभनाथ मन्दिर श्रावस्ती

विदेशी यात्रियों का वर्णन

लगता है कि जैसे-जैसे कोसल साम्राज्य का अध:पतन होने लगा, वैसे-वैसे श्रावस्ती की भी समृद्धि घटने लगी। जिस समय चीनी यात्री फ़ाह्यान वहाँ पहुँचा, उस समय वहाँ के नागरिकों की संख्या पहले की समता में कम रह गई थी। अब कुल मिला कर केवल दो सौ परिवार ही वहाँ रह गये थे। पूर्वाराम, मल्लिकाराम और जेतवन के मठ खंडहर को प्राप्त होने लगे थे। उनकी दशा को देखकर वह दु:खी हो गया। उसने लिखा है कि श्रावस्ती में जो नागरिक रह गये थे, वे बड़े ही अतिथि-परायण और दानी थे। हुयेनसांग के आगमन के समय यह नगर उजड़ चुका था। चारों ओर खंडहर ही दिखाई दे रहे थे। वह लिखता है कि- "यह नगर समृद्धिकाल में तीन मील के घेरे में बसा हुआ था।" आज भी अगर आप को गोंडा ज़िले में स्थित सहेट-महेट जाने का अवसर मिले, तो वहाँ श्रावस्ती के विशाल खंडहरों को देख कर इसके पूर्वकालीन ऐश्वर्य का अनुमान आप लगा सकते हैं।[14]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैन हरिवंश पुराण, पृष्ठ 717
  2. एस. स्टीवेंसन, हार्ट आफ जैनिज्म, (दिल्ली, 1970) पृष्ठ 42
  3. सी. जे. शाह, जैनिज्म इन नार्थ इंडिया, पृष्ठ 26
  4. कोशल, रिसर्च आफ दि इंडियन रिसर्च सोसायटी आफ अवध, भाग 3, पृष्ठ 23
  5. तत्रैव, पृष्ठ 24
  6. योगेन्द्र चंद्र शिकदार, स्टडीज इन भगवती सूत्राज, (रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ प्राकृत जैनोलाजी एंड अहिंसा, मुजफ्फरपुर, 1964), पृष्ठ 307
  7. बौद्ध धर्म
  8. के.सी.जैन, लार्ड महावीर एंड हिज टाइंस, पृष्ठ 63
  9. हरमन याकोबी, से.बु.ई. (जैन सूत्राज), मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1964, पुनर्मुद्रित), भाग 45, पृष्ठ 30
  10. बेनी माधव बरुआ, एक हिस्ट्री आफ बुद्धिस्टिक इंडियन फिलासफी, पृष्ठ 300
  11. के.सी. जैन, लार्ड महावीर एंड हिज टाइंस, पृष्ठ 165
  12. जर्नल ऑफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी, 1908, पृष्ठ 102
  13. वृहत्कथाकोश (ए. एन. उपाध्याय द्वारा संपादित), पृष्ठ8, 348
  14. हमारे पुराने नगर |लेखक: डॉ. उदय नारायण राय |प्रकाशक: हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद |पृष्ठ संख्या: 43-46 |
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

बाहरी कड़ियाँ

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